रितु झा की कहानी ” उत्तरित प्रश्न “
शिव कुमार झा टिल्लू की टिप्पणी : मेरे हिसाब से यह एक समकालीन समस्या जो हमारे देश को मधुमेह से भी बदतर रूप से अंदर ही अंदर खाए जा रही है को स्पष्ट स्पर्श करती है..अर्थात साम्प्रदायिक समस्या पर गंभीर प्रहार .इस कथा का सबल पक्ष है …सकारात्मक स्वरुप से कथा का विसर्जन .जो बहुत ही बोधगामी है मेरी समझ से यह भाव , शिल्प औऱ बिम्ब में बहुत सारगर्भित है कही भी पाठक पर बोझिल नहीं होती इसे यदि विचारमूलक बालसाहित्य के श्रेणी में रक्खा जाय तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी ( शिव कुमार झा टिल्लू साहित्यकार और समालोचक )
– उत्तरित प्रश्न –
आठ वर्षीय बुलबुल छोटे शहर के ब्राह्मण परिवार की बिटिया पढ़ने में तेज़ , वाचाल , तितली सी चंचल , चमकती आँखें घुंघरीले बाल हँसती खेलती एक दिन स्कूल से अपनी सहेली शाहिना के साथ अपने घर आई. बरामदे पर बैठी बुलबुल की दादी माँ ने बुलबुल को दुलार किया .यह मनोहर दृश्य मैं तनिक दूर से देख रही थी, तभी बुलबुल ने अपनी बाईं हाथ लहराते हुए कहा ” दादी माँ ! यह मेरी सहेली शाहिना है .बुलबुल के मुख से यह ” शाहिना ” नाम सुनते ही दादी माँ ने अपनी बुलंद आवाज़ में उस प्यारी सी बच्ची से पूछा ” क्यों री ! तू मुसलमान है ? उस बच्ची ने सरलता से उत्तर दिया हां दादी माँ ! दादी अर्थात मेरी सासु गुस्से में तिलमिलाकर बोली ” जा ! बाहर जा ….!!
वह निरपराध बालिका दादी की ओर देखती हुई बाहर चली गई.बुलबुल ने तत्परता से कहा ” दादी माँ , यह मेरी सबसे प्यारी सहेली है , मेरे साथ मेरी कक्षा में पढ़ती है और आप उसे जाने को बोल रही हैं .आखिर क्यों ?
मेरी सास ने मेरी ओर अंगारे बरसाती नज़रों से देखा ! बुलबुल वही खड़ी रो रही थी औऱ धीमी आवाज़ में कह रही थी दादी ने मेरी सहेली को भगा दिया . तत्क्षण दादी ने बुलबुल पर चिल्लाते हुए कहा ..सुन री ! वह मुसलमान है, उससे दूर रहना समझी. मेरी मासूम परी भला क्या समझे. इस रूढ़िवादी बुढ़िया के हिन्दू -मुसलमान भेद को ..?मेरे पास आकर रोते हुए पूछने लगी ..मम्मी यह मुसलमान क्या होता है ?पढ़ी -लिखी बड़े शहर की स्वतंत्र विचारोंवाली महिला मैं उस समय असमंजस में थी , की अपनी फूल सी बच्ची को क्या समझाऊँ. गीली मिट्टी के समान कोमल ह्रदय को गलत कैसे बताऊँ ? अंतर्द्वंद्व में पड़ गई क्योंकि सत्य घर की शांति का बाधक जो बन गया था . मुझे उस क्षण अपने शिक्षित होने पर भी शर्म आ रही थी .मैं बैठी सोच ही रही थी की अचानक मुझे आवाज़ सुनाई दी . आज तो तुम्हारी बेटी ने हमारा धर्म ही भ्रष्ट कर दिया . अनिल बोले… क्यों माँ क्या हुआ ..?अब क्या किया बुलबुल ने ..?
वो दुखी मन से बोली आज तुम्हारी बेटी ने एक मुसलमान लड़की को अपने घर ले आई .राम! राम ! मैंने तो सारे घर में गंगाजल छीँट दिया है ..लेकिन मेरी आत्मा शांत नहीं हुई .अनिल ने मुझे आवाज़ दी , मैं बाहर आकर खड़ी हो गई . वे मुझे देखते ही बोले , ये सब क्या है ? तुम बुलबुल को समझाओ हम ब्राह्मण हैं . हमें अपने धर्म औऱ जातिगत संस्कार नहीं भूलना चाहिए. वरना, हमारा समाज हमें ग्राह्य नहीं करेगा .अभी से ही उसे ये सारी बातें मालूम होनी चाहिए . मैं स्तब्ध खड़ी सुनती रही औऱ डबडबी नज़रों से अनिल की और एकटक देखती रही . सास की बात मैं समझ सकती हूँ . वे पुराने लोग हैं , पुराने खयालात हैं उनके ! लेकिन अनिल .वो तो आज के शिक्षित पुरुष है उनकी भी सोच ऐसी है यह देखकर आश्चर्य औऱ अपने आप से ग्लानि भी…मेरी दृष्टि में वे आदर्श जो बन चुके थे
मैं दुखी एक बेटी के माँ होने के कारण नहीं वरन अपनी बच्ची के प्रश्नो का सही उत्तर नहीं दे पाने के कारण थी .मेरा शिक्षित होना व्यर्थ सा हो गया .इस समय मुझे संसार की सारी अच्छी औऱ सच्ची बातें बुरी औऱ झूठी लग रही थी.
कहतें है, घर शिशु का प्रथम विद्यालय औऱ माँ उसकी पहली गुरु होती है .लेकिन यह कहाँ तक सत्य है ..आज मुझे यह सब निरर्थक लग रहा था. अपने बच्चों को सही शिक्षा देना चाहती हूँ लेकिन नहीं दे सकती , असहाय निर्बल सा प्रतीत हो रहा था मुझे . क्या कहूँ अपनी बेटी से ..जा ! अपने जात वाले के साथ खेल .बात कर .
यह गलत है अपनी आत्मा की हत्या कर कदापि गलत शिक्षा नहीं दे सकती .इस अपराध के लिए मुझे अपने संस्कार .यहाँ तक की भगवान से डर सा होने लगा . यदि किसी दिन बुलबुल आकर बोले माँ ! आप तो ब्राह्मण हरिजन और मुसलमान की बात करती हैं ..लेकिन विद्यालय के शिक्षक बोलते हैं हम सारे भाई बहने है ..क्या उत्तर दूंगीं मैं .
बोझिल नयन अवांछित अश्रु की प्रतीक्षा में था ….तत्क्षण .” कैसी हो बहू ! की ध्वनि ने मेरा अंतर्ध्यान भग्न कर दिया ..एकाएक उठकर हंसने की नौटंकी और चरण स्पर्श ….मेरे श्वसुर जी समक्ष थे .” घर में क्या हुआ ..खैर -खून खांसी खुशी का पाठ पढ़ाने लगे .” बहू को किसने क्या कहा है ?
सब बातें अमर उजाला के समान साफ़ होने लगी थी . मैं उनका बहुत कद्र करती हूँ . मेरे विद्यालय के प्राचार्य जो थे . अपने चुना था उन्होंने मुझे ….मैंने रोकर अपनी ” अनुत्तरित प्रश्न ” उन्हें सुना दिया ..” क्या सोचा था क्या उम्मीद लेकर पढ़ाया था अनिल तुम्हें . अरे दोनों का गुरु तो एक ही है लेकिन कितना अंतर तेरे और बहू के संस्कार में सहज ही कहा गया है .दीपक तले अँधेरा ..दूसरे की खुशी हमारे घर बहू बनकर हमारे संस्कारों के साथ आईं लेकिन मेरा बेटा ही उसे ग्रहण न कर सका ..छी ! छी !!! यह बुढ़िया तो पथराई नदी के समान हो गयी है .अब क्या बोलूँ इसको ..आश्चर्य था आज सासु माँ भी चुप थी क्यों चुप थी पता नहीं पर मेरे लिए तो अच्छा ही था .मेरे क्या मानवता के लिए भी अच्छा ही था…
श्वसुरजी के लिए अगले सुबह जब चाय बना रही थी तो बुलबुल आकर बोली .अब मैं नहीं पूछूंगी माँ ! क्या है मुसलमान ? दादाजी ने सब समझा दिया है मुझे सब इंसान हैं ना कोई हिन्दू और ना कोई मुसलमान .दादी मूर्ख है ना नहीं समझती .दादी के लिए ऐसी बातें नहीं बोलते बेटा ! जो भी हो मैं बेहद खुश थी अब सारे प्रश्न ” उत्तरित प्रश्न” जो हो चुके थे ..
परिचय – :
रितु झा
जन्म तिथि : ०९–११-१९८२
पूर्व उद्घोषक : आकाशवाणी जगदलपुर
सम्प्रति : जम्मू में प्रवास
सम्पर्क : ritujha97@yahoo.com
ऋतू जी एक सामाजिक सन्देश देने वाली कहानी पाठको तक पहुचाने के लिए बधाई ! पहलीबार इस पोर्टल पर आना हुआ ! पर आना सफ़र हो गया !
अपने आप में बहुत सारे सवाल खडी करती कहानी ! आपकी कविताओं की तरहा आपकी कहानी भी बार बार बहुत कुछ कहती हैं ! बधाई !!
आपकी कहानी में जो कारण ,बजह हैं उसका समाज के साथ साथ देश पर भी बुरा ससार हुआ हैं ! एक शानदार कहानी के लिये ऋतू जी आपको बधाई !!आज सुबह सैर के वक़्त इस न्यूज़ पोर्टल की चर्चा हुई ! मैंने उत्सुकता के साथ लोग इन किया ! मुझे पहलीबार कोई ऐसी जगह का पता चला हैं जहाँ लिखने – पढ़ने वाले के साथ साथ पढ़ाने वालो के लियें भी इतना कुछ मौजूद हैं !
सुबह – सुबह एक शानदार कहानी पढ़ने को मिली ! ऋतू जी आपने कहानी में जो कहा हैं…उसके लिए हिम्मत चाहिये ! महिला लेखन में अब नई पीड़ी का आगाज़ हो चुका हैं !
कहानी ,समाज की मानसिकता पर जो चोट करती हैं उस चोट की आवाज़ बहुत दूर तक गूंजेगी ! बधाई एक शानदार कहानी के लिए ! आईं एन वी सी न्यूज़ का भी साभार जिन्होंने इस तरहा की आलोचनातमक कहानी को जगह दी !
शानदार ,दिल को ,दिमाग को ,आत्मा को हिला कर रखने वाली कहानी ! सलीके से बयान किया गया किस्सा