शिव कुमार झा टिल्लू की टिप्पणी : रितु जी की कवितायें सहज सरल और सौम्य काव्य की गति यति और नियति को पारिभाषित करती है .विविध स्थानो पर प्रवासित होने के कारण ये जगह जगह की मानकता का अलंकरण भी करती हैं .एक ऐसी गति जिसे देखकर विरले हीअहसास कर सकतें हैं ..द्रुतगामी वायुयान में बैठे लोग नहीं कर सकते अनुमान उसकी गति का…जमीन से देखने वाले भी उसे सहज ही समझते है….लेकिन जिसमे कला है उसकी गवेषणा को पहचानने का वह समझ सकता है…..यह प्रेम सर्वत्र व्याप्त हैं ..माँ की ममता में , प्रकृति की रम्यता में , शब्दों की गमता में , अवधारणा की समता में .आप ने एक पत्र के माध्यम से परखने की दिशा ओ दशा के साथ साथ कला का भावपूर्ण संयोजनकिया है. सर्वे भवन्तु सुखिनः की भाव को दर्शाती इनकी कवितायेँ एकाकार ब्रह्माण्ड को एक दृष्टि से आलोकित करती हैं. एक तरफ विभाजन का दर्द न तो दूसरी तरफ सामाजिक समस्याओं का आवरण .प्रांजल अर्थों में रितु नव काव्य विधा की नवांकुर प्रतिभा हैं जिनमे नैसर्गिक काव्य लोच की प्रबल संभावनाएं दिखाई देती हैं ( शिव कुमार झा टिल्लू )
रितु झा की कविताएँ
1.जीवन में उजास……
सूरज की किरण सी
उतर आई हो तुम
ताजा हवा के झोंके सी
मन मे समा जाती हो तुम
तुम सुरमयी साझं हो
मिठी प्रात हो
मधुर रात हो तुम
वो तुम हो जिससे है
मेरा ये आकाश
जिससे है मेरी धरती
जिससे है मेरे
जीवन मे उजास. …..
2. अनोखा एहसास….
बरसों बाद आई एक चिठ्ठी
मेरे नाम की…….
डाकिये से लिया मैंने
देखा तो लगा बहुत
पहले की पहचान है
इन लिफाफो से…..
नाम पढ़ते ही दिल की धड़कन
दौड़ गयी दुगुनी रफ्तार से
लिफाफे की खुशबू से
मेरी साँसे महकने लगी
‘प्रिय पहला शब्द
पुरानी यादे झकझोर गया
तुम कैसी हो….?
आँखो से अशक छलका गया
जिन स्मृतियों को मैं
बरसों पहले दफन कर
आगे चली आई जीवन मे
कागज के उस टुकड़े पर
अनुराग की रोशनाई से लिखे
हफॆ ने जीवंत कर दिया
अतीत को और दे गया मुझे
………अनोखा एहसास………
3. भारत की नारी
सूरज की पहली किरण
के साथ
खुलती है जिसकी आँखें
वो मैं हूँ ……
बुहार रही होती घर आँगन
साफ़ करती रात का मलिन
वो मैं हूँ ……
प्रतिदिन प्रातः जिसके
स्वर में गूंजती वंदना
घर के हर कमरे में
धूप जलाती
घर का मंदिर बनाती
वो मैं हूँ ……
सबके लिए भोजन बनाती
सबको खिलाकर खुद खाती
जूठे बर्तन और मलिन
कपडे धोती
वो मैं हूँ ……
बुजुर्गों की सेवा करती
आदर और सम्मान
हर बात सुनती सहती
वो मैं हूँ ……
बच्चो को देती शिक्षा
और संस्कार
पति की मित्र अर्धांगिनी
सुख -दुःख की साथी
मन से करती सेवा
और प्रेम
वो मैं हूँ ……
धन की देवी लक्ष्मी
अन्न की देवी अन्नपूर्णा
ज्ञान की देवी सरस्वती
सभी कष्टों और दुखों
को झेलती आदि शक्ति
का रूप मैं हूँ ..
मैं हूँ भारत की नारी !!!!!!
4.एक से हैं
अम्बर से बारिश की बूँदें
बरसते ही मिट्टी से
सौंधी खुशबू आती है
पावस की पहली बारिश में
वो खुशबू वो अनुभव
एक से हैं,
तेरे -मेरे मुल्क के …
सूरज की गर्मी
चाँद की चांदनी
सितारों से सजी रात
एक से हैं,
तेरे मेरे मुल्क के ..
खेतों की हरियाली
चाय की प्याली
कटे आम भरी थाली
गोरी के गालों की लाली
वो मिठास से भरी बोली
वो चहकती हमजोली
सारे अनुभव – एहसास
एक से हैं ,
तेरे मेरे मुल्क के ..
फूलों का रंग
दोस्तों का संग
दुश्मनी में जंग
नदियों का तरंग
उत्सव का उमंग
सदेह या अनंग
छुए- अनछुए हालात
एक से हैं ,
तेर मेरे मुल्क के….
बच्चों की भोली मुस्कान
भवरे का अपश्रव्य गान
पंछियों की मधुर तान
सारे विप्लव जज्बात
एक से हैं ,
तेरे मेरे मुल्क के …
कुदरत ने बनाई
हर चीज एक जैसी !
फिर क्यों बँट गए हम
जबकि हर ख्वाब
एक से हैं ,
तेरे मेरे मुल्क के …
रितु झा
जन्म तिथि : ०९–११-१९८२
पूर्व उद्घोषक : आकाशवाणी जगदलपुर
सम्प्रति : जम्मू में प्रवास
सम्पर्क : ritujha97@yahoo.com
क्या लिखूं काव्य के अंतर्जाल में आबद्ध होकर मेरे शब्द फीके पड़ जाएंगे…अद्भुत प्रतिभा की धनी हैं सौभाग्यशालिनी रितु….आशा तो यही करूँगा की आपके काव्य तरकश में गोया ऐसे नव-नव नायाब सकारमात्मक परिवादी बाणों की कमी नहीं पड़े..
All the poems composed by ritu ji are exqusite beauties in the panorama of poetry
ऋतू जी …आपकी कविताएँ आपकी सोच को ब्यान करती हैं ! शानदार कविताओं के साथ एक बढिया टिप्पणी भी पढ़ने को मिली ! साभार आप दोनों का साथ में आई एन वी सी न्यूज़ का भी जो पाठको का इतना ज़्यादा ध्यान रखते हैं !
You are a very capable person! nice poetry
शानदार कविताएँ ! भारत की नारी …सबसे अच्छी लगी ,आपका कविता कहने और लिखने का अंदाज़ सबसे ” निराला ” हैं !!
ऋतू जी आपकी कविताएँ पढ़ने के बाद लगा की आप बहुत दूर तक जायेंगी ! बधाई आपकी हर कविता शानदार हैं ! …..अनोखा एहसास…. मुझे सबसे पसंद आई ! धन्यवाद
कुमार झा टिल्लू की टिप्पणी के साथ साथ रीती जी आपकी सभी कविताएँ सच में पढ़ने योग्य हैं पर मेरे ख्याल से एक से हैं …सबसे शानदार हैं !
वाह ,शानदार कविताएँ पर भारत की नारी…सबसे बढिया हैं ! बधाई ! टिप्पणी भी बहुत सलीके से लिखी गई हैं ! कुमार झा टिल्लू जी मैंने आपकी कविताएँ कई बार पढ़ी हैं पर आपका यह रूप भी उम्दा हैं !