राष्ट्रीय अखंडता के शिल्पकारः सरदार पटेल

24
62

Sardar Vallabhbhai Patel invc news{ प्रभात कुमार राय }
सरदार वल्लभ भाई पटेल (31.10.1875 – 15.12.1950) स्वतंत्रता प्राप्ति के शक्ति स्तंभ, आधुनिक भारत के निर्माता, अनुशासन प्रिय, मितभाषी, अदम्य साहसी, सिद्यांतवादी तथा मन, वचन और कर्म से सच्चे देशभक्त थे। वे कर्मठता, संगठन शक्ति, कूटनीतिज्ञता, पैनी राजनीतिक दृष्टि, आंतरिक निर्भीकता, शीघ्र निर्णय लेने की क्षमता, आत्म-त्याग, अनवरत सेवा तथा सार्वजनिक जीवन में ईमानदारी के पर्याय थे। वे जमीन से जुड़े नेता थे तथा यथार्थता में विश्वास रखते थे। वे राष्ट्र की राजनीतिक क्षितिज पर 1917 से 1950 तक प्रकाश-स्तंभ के रूप में विराजमान रहे।

1915 में सरदार पटेल गाँधीजी के स्वदेशी आंदोलन के दरम्यान अहमदाबाद में उनके भाषण सुनने के बाद अत्यंत प्रभावित हुए तथा स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भाग लेना शुरू कर दिया। चम्पारण सत्याग्रह में गाँधीजी की सफलता भी उन्हें प्रेरित किया। 1932 में गाँधीजी और सरदार पटेल दोनों यरवदा जेल में थे। गाँधीजी जेल में उन्हें संस्कृत सिखाते थे। जब गाँधीजी ने जेल में ब्रिटिश सरकार द्वारा काम्यूनल एवार्ड की घोषणा के बाद आमरण अनशन किया तब पटेल उनकी देख-भाल की तथा खुद भी खाना छोड़ दिया। गाँधीजी का दर्शन ने उन पर गहरा प्रभाव छोड़ा। उन्होंने झॉसी की महारानी लक्ष्मीबाई तथा नाना साहब की सेनाओं में भाग लेकर अंग्रेजो के साथ युद्ध भी किया था। उन्होंने गुजरात में मद्य निषेद्य, अस्पृश्यता, जातीय विषमता को दूर करने तथा नारी सशक्तीकरण के लिए काफी काम किया। वे वर्ण-भेद और वर्ग-भेद के कट्ठर विरोधी थे।

स्वतंत्रता प्राप्ति के तुरत बाद भारत की सबसे बड़ी समस्या देशी रियासतों के विलय की थी। इनके विलय के बिना भारत एक शक्तिशाली संघ नहीं बन सकता था। भारत की एकता और अखंडता की दृष्टि से इन रियासतों का भारत के साथ एकीकरण होना नितांत आवश्यक था। गाँधीजी ने पटेल पर भरोसा जताते हुए उन्हें कहा था, “राज्यों की समस्याएँ इतनी जटिल हैं कि सिर्फ आप ही इसका समाधान कर सकते हैं।” सरदार पटेल ने साम-दाम-दंड-भेद की नीति को अपनाकर अपनी महान कूटनीतिक एवं रणनीतिक चातुर्य का परिचय देते हुए 561 रियासतों को रक्तरहित क्रांति के तहत भारत में मिलाया। बिस्मार्क ने भी 1860 की दशक में जर्मनी को एकता के सूत्र में बाँधा था। बिस्मार्क को जर्मनी का ‘आयरन चांसलर’ कहा जाता है और सरदार पटेल को भारत का लौह पुरूष। अनेक इतिहासकारों ने सरदार पटेल की तुलना बिस्मार्क से की है। लेकिन लंदन टाइम्स ने लिखा था, “बिस्मार्क की सफलताएँ पटेल के सामने महत्वहीन हो रह जाती है।” बिस्मार्क ने मात्र दर्जन भर राज्यों को एकीकृत किया था तथा बल का भी प्रयोग किया था। पटेल ने 561 रियासतों के लगभग 8.6 करोड़ लोगों को, जो 8 लाख वर्ग किलोमीटर में फैले हुए थे, भारतीय संघ में अपूर्व कौशल के साथ मिलाया। 1956 में निकिता रवु्रश्चेव भारत के दौरे पर आये तो खास तौर से चर्चा कीः “भारत ने रजवाड़ो को मिटाए बिना ही रियासतों को मिटा दिया।“

दुनिया की प्रसिद्ध ‘टाईम’ पत्रिका अपने 27.1.1947 अंक के आवरण कथा (कवर स्टोरी) को सरदार पटेल पर आधारित किया था। इसने टिप्पणी की थीः “पटेल में सज्जनता, वाकपटुता या कट्टर पंथी के अतिउत्साह आादि का कोई दिखावा नहीं है। वे, अमेरीकी संदर्भ में, एक राजनीतिक अगुआ है।” कांग्रेस के अंदर सरदार पटेल को पंडित नेहरू का प्रबल प्रतिद्वंदी माना जाता था। यद्यपि अधिकांश प्रादेशिक क्रांगेस समितियाँ पटेल के पक्ष में थी, गाँधीजी की इच्छा का सम्मान करते हुए पटेल ने खुद को प्रधानमंत्री पद की दौड़ से दूर रखा। कई इतिहासकारों का मानना है कि पंडित नेहरू सी. राजगोपालाचारी को प्रथम राष्ट्रपति बनाने के पक्षधर थे। वे चाहते थे कि डा. राजेन्द्र प्रसाद उनका विरोध न कर अपनी दावेदारी वापस ले लें। सही समय पर सरदार पटेल ने चतुराई का परिचय देते हुए डॉ0 राजेन्द्र प्रसाद को समझा-बूझाकर चुनाव के लिए राजी करवाया। उनकी मृत्यु पर ‘गार्जियन‘ अखबार ने बेवाक टिप्पणी की थी, “पटेल के बिना गाँधी के विचार इतने प्रभावशाली नहीं होते तथा नेहरू के आदर्शवाद का इतना विस्तार नहीं होता। वह न केवल स्वतंत्रता संग्राम के संगठनकर्त्ता, बल्कि नए राष्ट्र के निर्माता भी थे। कोई ब्यक्ति एक साथ विद्रोही और राष्ट्र निर्माता के रूप में शायद ही सफल होता है। सरदार पटेल इसके अपवाद थे।”

सरदार पटेल किसानों के लिए काफी संघर्ष किया। उन्हें किसान की आत्मा के रूप में जाना जाता था। दरअसल उन्हें सरदार की उपाधि 1928 में अंग्रेजों द्वारा किसान-विरोधी नीति के खिलाफ सत्याग्रह आन्दोलन में सफलता के बाद दी गयी थी। किसानों की अर्न्तव्यथा प्रकट करते हुए उन्होंने कहा थाः ”किसान डरकर दुःख उठाए और जालीम की लातें खाये, इससे मुझे शर्म आती है और मैं सोचता हूँ कि किसानों को गरीब और कमजोर न रहने देकर सीधे खड़े करूँ और ऊँचा सिर करके चलनेवाला बना दूँ। इतना करके मरूँगा तो अपना जीवन सफल समझँूगा।“
1931 में कांग्रेस को अपने अध्यक्षीय भाषण में स्वतंत्र भारत के स्वरूप के संबंध में अपने विचार को स्पष्टता से प्रकट किया थाः “स्वतंत्र भारत में कोई भी भूख से नहीं मरेगा। इसके अनाज निर्यात नहीं किये जायेंगे। कपड़ों का आयात नहीं किया जायगा। इसके नेता न विदेशी भाषा का प्रयोग करेगें ना किसी दूरस्थ स्थान, समुद्र स्तर से 7000 फीट ऊपर से, शासन करेंगे। इसके सैन्य खर्च भारी नहीं होंगे। इसकी सेना अपने ही लोगों या किसी और की भूमि पर कब्जा नहीं करेगी। इसमे सबसे अच्छे वेतन पाने वाले अधिकारी सबसे कम वेतन पाने वाले सेवकों से बहुत जयादा नहीं कमाएगें और यहाँ न्याय पाना ना खर्चीला और ना ही कठिन होगा।”

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद संविधान निर्माण की समस्या महत्वपूर्ण थी। सरदार पटेल की पहल पर डॉ0 बी0 आर0 अम्वेडकर को संविधान के प्रारूप समिति का अध्यक्ष घोषित किया गया था। उन्होंने राज्यों की स्वायत्ता के महत्व को गहराई से महसूस किया लेकिन वे केन्द्र नियंत्रित अखिल भारतीय सेवा के पक्षधर थे। उनका मानना था कि लोकसेवक, कुशलता, पक्षहीनता, स्थानीय एवं सांप्रदायिक पुर्वाग्रह से मुक्त तथा राजनीतिक दलों के प्रभाव के ऊपर उठकर राष्ट्र को वांछित सेवा प्रदान कर सकते है। आई0 सी0 एस0 (भारतीय सिविल सेवा) बिट्रिश हुकूमत के प्रति राजभक्ति के लिए बदनाम थी और कई समकालीन राजनेताओं को यह भय था कि स्वतंत्र भारत के लिए ऐसी प्रशासनिक प्रणाली कतई हितकर नहीं होगा। पटेल आई0 सी0 एस0 अधिकारियों की कार्यक्षमता तथा उनके विराट ज्ञान की सराहना करते थे तथा नवजात राष्ट्र की प्रारंभिक कठिनाइयों को दूर करने के लिए उनकी निरंतरता एवं अपेक्षित सहयोग को आवश्यक समझते थे। उन्होंने अपनी प्रशासनिक कौशल का परिचय देते हुए अंग्रेजांे की सेवा करनेवाले पुराने आई0 सी0 एस0 अधिकारियों की बिट्रिश राजभक्ति को राष्ट्र भक्ति का पाठ पढ़ाकर चमत्कारिक तौर पर लोकभक्ति में परिवर्तित कर दिया। वे अधिकारियों के प्रशासनिक कार्यो के निर्वहन में राजनेताओं के हस्तक्षेप को प्रजातांत्रिक व्यवस्था के लिए अत्यंत खतरनाक समझते थे। राजनेताओं तथा अधिकारियों के कर्Ÿाव्य के बारे में उनकी स्पष्ट अवधारणा थीः ”राजनीतिकों का काम नीति निर्धारण का है तथा तय नीति को पूरी स्वायत्ता के साथ लागू करना प्रशासनिक अधिकारियों का दायित्व है।” उन्होंने संविधान सभा में कहा था, “अगर आप शासन की बागडोर संभाले हुए हैं तो अपने अधीनस्थ अधिकारियों को अपनी राय बिना किसी भय या पक्षपात के प्रकट करने की स्वतंत्रता प्रदान करना आपका कर्Ÿाव्य है।” वे अधिकारियों की क्षमता, प्रतिभा तथा कौशल को तुरत भॉप जाते थे तथा उन्हें उचित जवावदेही देकर उनके गुणों का महŸाम सदुपयोग लक्ष्यवद्ध ढं़ग से कार्य संपादन में किया करते थे। इस प्रक्रिया में उनके साथ कार्य करनेवाले अधिकारियों के साथ तादात्म्य तथा परस्पर विश्वास पैदा होता था।  लेकिन वे एक कठोर टास्क-मास्टर थे तथा कर्Ÿाव्यहीनता, भ्रष्टाचार तथा गड़बड़ियों को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करते थे। वे प्रशासन को एक महत्वपूर्ण साधन और औजार मानते थे। उन्होंने अखिल भारतीय सेवा के विरोध करनेवाले राजनेताओं को चेताया थाः “मैं अपने अनुभव के आधार पर कह रहा हूँ कि जिस औजार से आपको काम करना है उससे झगड़ा मोल न लें। एक खराब कारीगर ही अपने औजार से झगड़ा करता है।” अंततोगत्वा उन्होंने प्रशासन की ब्रिट्रिश प्रणाली में थोड़ा परिवर्Ÿान कर स्वतंत्र भारत के लिए उपयुक्त बनाया। उन्हें प्रशासनिक कार्यकलाप में कोई हस्तक्षेप पसंद नहंी था। वे तभी हस्तक्षेप करते थे जब मदद की निहायत जरूरत पड़ती थी या भरोसा कायम नहीं रह पाता था। पटेल कुछ दिन और जीवित होते तो संभवतः भारत में नौकरशाही का पूरा कायाकल्प हो जाता।

1950 में पंडित नेहरू को लिखे एक पत्र में पटेल ने चीन तथा तिब्बत के प्रति भारत की नीति की विसंगतियों से सावधान किया था। उन्होंने चीन के रवैये को कपटपूर्ण तथा विश्वासघाती बतलाया था। चीन को भारत का शत्रु, भारत के प्रति उसके रूख को अभद्र तथा चीन के पत्रों की भाषा को दुश्मन की भाषा करार किया था। उन्होंने यह भी लिखा था कि तिब्बत पर चीन का कब्जा नई एवं अत्यंत विकट समस्याओं को जन्म देगा।

समकालीन प्रख्यात पत्रकार फ्रेंक मोराएस ने उनकी कर्मठता एवं लोकप्रियता के बारे में लिखा हैः “एक विचारक आपका ध्यान आकर्षित करता है; एक यथार्थवादी आदर का आह्वान करता है, पर कर्मठ व्यक्ति, जिसको बातें कम और काम अधिक करने का श्रेय प्राप्त होता है, लोगों पर छा जाने का आदी होता है, और पटेल एक कर्मठ व्यक्ति थे।”

उन्होंने अपनी रचनात्मक दृष्टि, दृढ़ता, पराक्रम एवं साहस के बल पर अल्प कार्यकाल में ही स्वतंत्र भारत के गृह मंत्री के रूप में प्रशासनिक प्रणाली पर अमिट छाप छोड़ा। वे पारदर्शिता एवं सार्वजनिक जीवन में शुचिता में अपनी उपमा आप ही थे। मरणोपरांत उनकी संपŸिा में मात्र धोती, कुर्Ÿाा और एक छोटा सा सूटकेश मिला। वे संघर्ष को ही जीवन की व्यस्तता समझते थे। आज के राजनेताओं एवं तमाम सेवकाँ को उनसे सीख लेने की जरूरत है ताकि नैतिक अवमूल्यन को रोका जा सके तथा अटूट कर्मनिष्ठा का वातावरण बनाया जा सके।

——————————–

prabhat-raiBIHAR invc newsपरिचय -:

प्रभात कुमार राय

( मुख्य मंत्री बिहार के उर्जा सलाहकार )

पता: फ्लॅट संख्या 403, वासुदेव झरी अपार्टमेंट,
वेद नगर, रूकानपुरा, पो. बी. भी. कॉलेज,
पटना 800014

email: pkrai1@rediffmail.com – energy.adv2cm@gmail.com

 Mob. 09934083444

——————————-

24 COMMENTS

  1. Informative article painstakingly prepared.What i feel is that it needed abit elaboration.Good article eagerly waiting for your next.

  2. Spot on with this write-up, I absolutely believe this web site needs much more attention. I’ll probably be back again to see more, thanks for the information!

  3. I discovered your site by way of Google at the same time as looking for a related matter, your website came up, it seems to be great. I’ve bookmarked it in my google bookmarks.

  4. Great remarkable issues here. I am very satisfied to peer your article. Thanks so much and i’m having a look ahead to touch you

  5. You are so awesome! I don’t think I have read something like this before. So wonderful to find someone with a few genuine thoughts on this subject matter. Really.. many thanks for starting this up. This site is something that is needed on the internet, someone with a little originality!

  6. Hello There. I found your site using msn. This is a really well written article. I will make sure to bookmark it and return to read more of your useful information. Thanks for the post. I will definitely return.

  7. I like the helpful information you provide in your articles. I’ll bookmark your site and check again here regularly. I am quite sure I’ll learn many new stuff right here! Good luck for the next!

  8. Thank you for another excellent article. The place else may just anybody get that type of info in such an ideal method of writing? I’ve a presentation subsequent week, and I am at the look for such info.

  9. I’m still learning from you, but I’m making my way to the top as well. I absolutely liked reading everything that is posted

  10. Hello.This article was really motivating, particularly since I was searching for thoughts on this issue last couple of days.

  11. I do agree with all of the ideas you have presented in your post. They are really convincing and will certainly work. Still, the posts are too short for beginners. Could you please extend them a little from next time? Thanks for the post.

  12. I would like to thank you for the efforts you’ve put in writing this site. I’m hoping the same high-grade e post from you in the upcoming also. Your write up is a good example of it.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here