– तनवीर जाफ़री –
लगता है लोजपा की कमान संभालने वाले स्व० राम विलास पासवान के सुपुत्र चिराग़ पासवान ने भी सत्ता में बने रहने की तिकड़मबाज़ियों का हुनर बख़ूबी सीख लिया है। विश्लेषकों का मांनना है कि जिस तरह वे स्वयं को प्रधानमंत्री ‘नरेंद्र मोदी का हनुमान’ भी बता रहे हैं और अपनी छाती चीरकर ‘मोदी दर्शन’ कराने की बात कह रहे हैं दूसरी तरफ़ चुनाव बाद नितीश कुमार को जेल भेजने जैसा अत्यधिक आत्म विश्वास दिखा रहे हैं,और अपने मुख्य प्रतिद्वंदी महागठबंधन नेता तेजस्वी यादव पर कम और नितीश कुमार पर अधिक आक्रामक हैं,उसे देखकर इस बात का अंदाज़ा होने लगा है कि भले ही उन्हें दो सीटें मिलें या दस वे सत्ता के साथ ही जाना पसंद करेंगे। अब यह चुनाव परिणामों व उनके दल के विजयी विधायकों की संख्या पर निर्भर करेगा कि उनकी सत्ता साझेदारी सशर्त होगी या बिना शर्त। चिराग़ के नेतृत्व में लड़ रही लोजपा को लेकर एक हक़ीक़त यह भी है कि जहां काफ़ी मतदाता उनके पिता के स्वर्गवास के चलते उनके पक्ष में सहानुभूति दिखते हुए मतदान कर सकते हैं वहीं इस चुनाव में कई बातें ऐसी भी हैं जो चिराग़ को नुक़्सान पहुंचा सकती हैं।
इनमें सबसे मुख्य बात तो यही है कि स्वयं को ‘मोदी का हनुमान’ बताने की वजह से खांटी भाजपा विरोधी मत जिसे उनके स्वर्गीय पिता अपने ‘राजनैतिक कौशल’ से हासिल कर लिया करते थे,वे अब शायद चिराग़ के पक्ष में न जा सकें। दूसरा मुख्य बिंदु यह भी है कि चिराग़ के लगभग सभी उम्मीदवार या तो भाजपा के बाग़ी हैं या जे डी यू के। गोया चिराग़ ने अपने दल के नेताओं व कार्यकर्ताओं की विजय क्षमता पर विश्वास करने के बजाए अन्य दलों के विद्रोहियों या सीधे शब्दों में कहें तो दलबदलुओं पर अधिक विश्वास जताया है। ऐसे में ज़ाहिर है लोजपा के नेता व कार्यकर्त्ता स्वयं को ठगा हुआ भी महसूस कर रहे हैं। इन परिस्थितियों में लोजपा नेताओं व कार्यकर्ताओं की सक्रियता व चुनावों के दौरान उनकी ईमानदारी व समर्पण के प्रति भी संदेह बना हुआ है। ले देकर चिराग़ में उनके पिता की मृत्यु की सहानुभूति अलावा आकर्षक युवा व्यक्तित्व के नाते युवाओं में उनका थोड़ा बहुत आकर्षण ज़रूर है जिसे देखने चिराग़ की सभाओं में अच्छी संख्या में युवा जुट भी रहे हैं। परन्तु जो युवा नौकरी व रोज़गार की आस लगाए हैं उन्हें सबसे अधिक उम्मीद तेजस्वी यादव से ही है।
चिराग़ पासवान को चुनाव के बाद अपने पारिवारिक विवाद से भी जूझना पड़ सकता है। इस की सुगबुगाहट उनके पिता के स्वर्गवास के साथ ही शुरू हो गयी थी। हालांकि देश चिराग़ पासवान को ही उनके पिता राम विलास पासवान का असली वारिस जनता व मानता है। स्वयं राम विलास ने भी हर जगह चिराग़ को ही आगे रखकर उन्हीं को अपना वारिस घोषित किया है। परन्तु उनकी मृत्यु के बाद उनकी पूर्व पत्नी राजकुमारी देवी की दोनों पुत्रियों तथा दामादों ने चिराग़ के राम विलास पासवान का उत्तराधिकारी होने पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। संभव है कि यह विवाद यदि पारिवारिक स्तर पर हल न हुआ तो यह अदालत भी जा सकता है। ख़बरों के अनुसार रामविलास पासवान का पहला विवाह मात्र 14 वर्ष की आयु में 13 वर्षीय राजकुमारी देवीसे हुआ था।वे आज भी पासवान के पैतृक घर में रहती हैं।उधर स्व राम विलास ने 1983 में रीना शर्मा से दूसरा विवाह रचा लिया,चिराग़ व दो पुत्रियां इन्हीं पासवान व रीना शर्मा (पासवान) की संतानें हैं। हालाँकि राम विलास पासवान अपने चुनावी हलफ़नामे में इस बात का उल्लेख कर चुके हैं कि उन्होंने राजकुमारी देवी को 1981 में तलाक़ दे दिया था।परन्तु स्वयं राजकुमारी देवी,व उनकी दोनों बेटियां तथा दामाद पासवान के किसी भी तरह के तलाक़ के दावे को ख़ारिज करते हैं।वे साफ़ तौर पर कह रहे हैं कि रामविलास के देहांत के बाद उनकी असली वारिस उनकी वास्तविक पत्नी उनकी बेटियां व दामाद हैं न कि चिराग़ पासवान। राजकुमारी देवी अपने पति के देहांत के बाद पहली बार उनके अंतिम दर्शन करने पटना आई थीं जहां चिराग़ उनसे गले मिले व पैर छूकर आशीर्वाद भी लिया। उनहोंने यह उम्मीद भी जताई कि चिराग़ ही अब मेरा सहारा बनेगा।
अब यदि यह मामला पारिवारिक स्तर पर सुलझ जाता है फिर तो ठीक है अन्यथा यदि यह अदालत में जाता है तो तलाक़ की वास्तविकता व इससे दस्तावेज़ अदालत तलब कर सकती है। परन्तु 1981 से लेकर अब तक राजकुमारी देवी का खगड़िया ज़िले के शहरबन्नी गांव स्थित अपनी सुसराल में ही रहना,और अपने पति के देहांत की ख़बर सुनकर उनका पटना पहुंचना,उनके शव पर विलाप करना व इससे संबंधित चित्रों व बयानों का अचानक सुर्ख़ियों में आना इस निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए काफ़ी है कि चिराग़ पासवान के पिता के उत्तराधिकार का मामला उतना सरल नहीं है। ग़ौर तलब है कि हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार न तो कोई व्यक्ति एक साथ दो पत्नियां रख सकता है न ही अपनी पहली पत्नी को तलाक़ दिए बिना दूसरा विवाह कर सकता है।लिहाज़ा कहा जा सकता है कि चिराग़ को भविष्य में राजनैतिक ही नहीं बल्कि पारिवारिक चुनौतियां से भी जूझना पड़ सकता है। चिराग़ व उनकी लोजपा के लिए बशीर बद्र का एक शेर अत्यंत सामयिक व मौज़ूं प्रतीत होता है।
मेरे साथ जुगनू है हमसफ़र,मगर इस शरर* की बिसात क्या।
ये चिराग़ कोई चिराग़ है,न जला हुआ न बुझा हुआ ?
*शरर (चिंगारी)
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About the Author
Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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