नित्यानन्द गायेन की टिप्पणी : मिता दास का लेखन क्षेत्र बहुत बड़ा है . वे दो भाषाओँ में समान अधिकार रखती हैं और लिखती हैं . इनकी कविताओं में बांग्ला और छत्तीसगढ़ी दोनों भाषाओँ के शब्द बहुत हैं यह इनकी कविता का लोक है . भारत का सामाजिक परिदृश्य और पुरुष प्रधान व्यवस्था में स्त्री की वेदनामय चित्रण इनकी रचनाओं में मौजूद हैं
मिता दास की पाँच कविताएँ
1. गरम रोटी का स्वाद और बासन मांजती लड़की “
आटा सानते, बासन मांजते और रोटी की लोई तोड़ते
वह देखती है , एक आदिम वन्य पुरुष का चेहरा
फिर देखती , आटे को ,
आटे की लोई को और अपने प्रिय पुरुष को
फिर पेट जाये को
लड़की सभी के जीम लेने पर
बासन मांजती है आँगन में
खुरदुरे हाथों से ……..और
वह जो बैठी ताक रही बूढी
झींगले खाट पर ,
समय की झुर्रियां डाले
कठोर चेहरे पर
तुलसी की माला फेरती
ऊँची आवाज़ में पुकारती …….हुआ की नहीं ?
घर के सभी पुरुष { मर्द } जीम लिए
दे मुझे भी गरम – गरम
लड़की झुक जाती पेट पर हाथ धरे
चूल्हे के अंगार से आँख सेंकती ,
आंसुओं को भाप बनाती
और उठते धुंए को लील जाती …. खालिश
धुएं के जली रोटियों की गंध , समां लेती आँतों में
फिर धरती
रोटियां ……….
एक – एक कर थाल में
प्रश्न चिन्ह लटका है
चौखट की खूँटी पर
गरम रोटियां अपने – अपने हिस्से की
बस
गरम धुआं ही लीला है
और गरम रोटियों की गंध ही
न तो उस रोटी सेंकती औरत और
बासन मांजती लड़की ने |
2 .भात
खेतो में पकने लगी है
फसल
गरीब किसान के घर
उठने लगी है
नये भात कि महक
यौवन कि महक भी
छुपती नही नये भात की तऱ्ह
बांस के झोपडो से
बांस के फांको से
फूट निकलती है
धुये के साथ |
जवान बेटी का बाप
सर झुकाये तक रहा
उन आस पास के जी उठे कुत्तो को
लार टपक पडती
जीभ लटक आती जमीन तक
हाफते- हाफते ——– सह- भोज में
रात – बिरात
अलाव के पास
नशे में धुत्त , नाचते – गाते
नये भात के नशे में उन्मत्त
यौवन पीते साथ -साथ |
नया नशा
नया भात उफनता है चूल्हे पे
लक्कड़ पर गिर
सौंधी महक बिखेरता
इक नया नशा भात -भात |
जैसे की बकरियों को
बाघ झपट ले जाते
रात -बिरात
नोच लेते आत्मा उन बकरियों की
खसोट लेते मांस और
बिखेर देते फसलों की ढेरियों पर
फसल का लालच दे |
उसी बहाने पहुँच जाती लिपट कर वे
फसलों के साथ
मंडियों में
पॉलिश– पैकिंग
और डिस्पैचिंग के लिए |
3 . जागो मानुष !
रात गहरा रही है
नींद उचाट
सब दूर सोता पड़ा है
पर नींद नहीं आती
जगा देती धीमी दस्तक
एक लम्बी गाड़ी जा रूकती
पडोसी के दरवाजे पर
पडोसी की सुन्दर अनपढ़ ——-
औरत दिखती है खींसे निपोरती
रोज एक ही तमाशा
झल्लाता रहता मन
गोलियों की आवाज़ से बहरी होती माँ
कांपती माटी उर्वरा
शव में तब्दील होता मानुष !
यकायक याद पड़ता है सन चौहत्तर
नक्सलबारी ———– कैसे -कैसे
खींच -खींच कर ले गए थे गरम खून
छलनी कर माँ का सीना बाप के दोनों कंधे
आज भी थरथराता है सब कुछ कामरेड
ठहाकों में ठुंसे कारतूस और पेट की अंतड़ियों में
पुलिस की गोलियां ,भात की जगह
बुरा समय ….. तय करना मुश्किल
तब या अब
लालगढ़ में या राजनांद गाँव के मानपुर में |
4. जंगल
मैं अपने भीतर छोड़ आई
एक भरा पूरा जंगल
जहाँ – तहां रोड़ा बनते, वृक्ष
विस्तार लिए, कटे ठूंठ
सूखे पत्तों का शोर
शिकारी की मचान
रोबदार शब्दों की चुभन
जड़ों का रोना
रोम विहीन त्वचा पर ,
अमर बेल सा नहीं लिपटना , अब !
जंगल हो
जंगल ही रह गए
मैं कोई वन देवी नहीं
हाड़ – मांस का टुकड़ा नहीं
ह्रदय – पिंड हूँ …….
सिर्फ साँसें ही नहीं भरती
हँस भी सकती हूँ
नाच भी सकती हूँ , अब !
चीख भी सकती हूँ …..
गुर्रा भी ………….
5. पेइंग गेस्ट
आखिर कब तक
हवा में घुल कर
साँसों के रास्ते
उतरोगे तुम मेरे जिस्म में
तुम कोई हवा का झोंका तो नहीं
की आना – जाना करते रहो
बे रोक -टोक
मन चाहा अवैध्य तो नहीं ?
टिक जाओ आराम से सोफे पर ऐसे
कि जब उठो तो , तकिया बेतरतीब मिले
ऐसा नहीं की तुम
ठेल कर आ बैठो
अंदरूनी तल घरों में
इसकी इजाजत भी तो नहीं
एक लम्बी रौशनी है भीतर के तल घरों में
पिघलते फर्श और छत की टपकती
पपड़ियों के बीच
तुम्हारा छू जाना
इस तल से उस अटल तक
और वे जीवित प्राण बिंदु
जिसे बहा ले गए
अनुशासन के दानव
पर तुम डटे रहे उसी दृढ़ता से
जहाँ छूटा था ——————-
देह
कामनाओं से मुक्त
और इच्छाओं के बगुले
थककर
जब सुस्ताने लगे
तब तुम आत्मा की सुगंध बन
बिखेरते रहे ……….गंध
बन कर पेइंग गेस्ट …………
बे रोक – टोक |
प्रस्तुति
नित्यानन्द गायेन
Assitant Editor
International News and Views Corporation
परिचय –
मिता दास
शिक्षा – बी.एस.सी . विधा- हिंदी भाषा & बांग्ला भाषा में कविता , कहानी ,लेख , अनुवाद और संपादन
प्रकाशन –
” अंतर मम” { काव्य ग्रन्थ , बांगला भाषा में } अनुवाद एर जलसा” { अनुदित कविताओं का संकलन बांगला भाषा में } प्रकाशाधीन3…..” माँ खिदे पेयेचे” {बांग्ला काव्य संकलन }
संपादन – 1.” हम बीस सदी के ” काव्य संकलन में
संकलित कवितायेँ और संग्रह के संपादक मंडल में
2.” धरातल के स्वर “के संपादक मंडल में
3.” छत्तीस गढ़ आस पास “के संपादन मंडल में.
प्रसारण
आकाशवाणी रायपुर से 16 वर्षों से लगातार स्वरचित कविताओं का प्रसारण भोपाल दूरदर्शन से गीतों का प्रसारण { गायिका .तपोशी नागराज , संगीत — मुरलीधर नागराज } बांग्ला कहानी एवं कविताओं का लगातार 15 वर्षों से लेखन ,एवं रेखांकन भी प्रकाशित हिंदी कहानी एवं कविताओं का लगारत लेखन ,एवं रेखांकन का प्रकाशन.
पत्र-पत्रिकाएं
नया ज्ञानोदय , युद्ध रत आम आदमी , शेष , पाखी , पब्लिक एजेंडा , अभिनव मीमांशा ,सूत्र , संबोधन , अरावली ऊदघोष , परस्पर , समकालीन जनमत सनद, समग्र दृष्टि ,सद्भावना दर्पण , राष्ट्र सेतु , छत्तीस गढ़ आस पास , छत्तीस गढ़ टुडे , नारी का संबल , विकल्प , समावर्तन , साहित्य नामा , अक्षर की छांव , संतुलन ,बहुमत {ग्रामोदय } आदि ।
समाचार पत्र -.दैनिक देश बंधू ,दैनिक युग पक्ष आदि अमृत धारा में रचनाएँ प्रकाशित
पुरस्कार व् सम्मान
कहानी ” पहलू यह भी ” भिलाई भाषा ,भारती पुरस्कार सन 1999 में.
1. उत्तर बंग नाट्य जगत शिलिगुड़ी से ” कवि रोबिन सूर सम्मान” { हिंदी कवि सम्मान }सन 2002
2. ” हिंदी विद्या रत्न भारती सम्मान ” कादंबरी सहिय परिषद सन 2003
3. ” डा 0 खूब चंद बघेल सम्मान ” 2005
संपर्क –
63/4 नेहरू नगर पश्चिम , भिलाई , छत्तीसगढ़ , 490020 – फोन न. 08871649748, 09329509050, 0788 -2293948
कविताओँ में कवयित्री का दृष्टि-फलक विस्तारित है…..दूर तक भांप लेती है…..ढांप लेती है……आंच लेती है…..और बदले में उजाला देती है…….सादर….अरविन्द.
ek depth aur maturrity li huyi rachnayen.. behtareen sab ki sab.. shukriya inhe hamare saath baantne ke liye..