– कवयित्री हैं … जयति जैन (नूतन) –
– कविताएँ –
—– सदियों से औरत —–
बारी अब अपना मान सँभालने की आयी है
सदियों से औरत ने ही ठोकर खायी है !
संस्कारों के जेवर से रिश्तों को सजाया है
रस्मों की भारी चूनर से खुद को छुपाया है
तोड़कर रीति रिवाज़ जीने की बारी आयी है
सदियों से औरत ने ही ठोकर खायी है !
ना खुलकर हंस नहीं सकी तुम कभी
ना तेज़ क़दमों से चलकर जाने का कहीं
जिसने की मन उसपर तानों की बौछार आयी है
सदियों से औरत ने ही ठोकर खायी है !
दूसरों के लिए अपनी ख्वाहिशों को दबाया है
आँखों में समेट के ख्वाब जी को दुखाया है
नौछावर कर खुद को कितना सवंर पायी है
सदियों से औरत ने ही ठोकर खायी है !
सुहागन मरने की चाह में खुद को मिटाया है
बीमार होकर भी घरभर को खाना खिलाया है
अब खुद के लिए सोचने की सुधी आयी है
सदियों से औरत ने ही ठोकर खायी है !
नाचने दो अपने अरमानों को जीभर कर
लहराओ आँचल को आसमां समझकर
सहनशीलता का ताज उतारने की बारी आयी है
सदियों से औरत ने ही ठोकर खायी है !
—— लडकियां बोलने लगी हैं ——-
सहमकर सिर नीचे झुकाना
बोलने में हिचकिचाना
आँखों में ही डर जाने वालीं
लडकियां बोलने लगी हैं !
जितनी दबी उतनी उठ गयी
जितनी डरी उतनी संभल गयी
खुलकर जीने की चाह में
लडकियां बोलने लगी हैं !
कबतक घुट-घुट कर जीतीं
कबतक सह-सह कर रोतीं
रस्मों का बोझ उतारने के लिए
लडकियां बोलने लगी हैं !
व्याकुल मन की व्यथा सुनाने
अपने को परिपक्व बनाने
काँपते लफ़्ज़ों को छोड़कर
लडकियां बोलने लगी हैं !
—– मैं आज़ाद होना चाहती हूँ —–
अब मैं आज़ाद होना चाहती हूँ !
हां खुद के लिए जीना चाहती हूँ
मैं थक चुकी हूँ सबको समझाते
सबको बताते अपनी ख्वाहिशों को
हर बार मुझे रोक दिया है पर
अब मैं आज़ाद होना चाहती हूँ !
समझते क्यूँ नहीं तुम मेरी भावनाओं को
मैं भी इंसान हूँ और सपने है मेरे
वो चिड़ियाँ जो पंख फैलाये उड़ती है
नीले आसमान को अपना बनाने के लिए
मैं भी अरमानों के पंख फैलाना चाहती हूँ
हाँ अब मैं आज़ाद होना चाहती हूँ !
मुक्त होना चाहती हूँ रस्मों रिवाज़ों से
जो बेड़ियों की तरह पैरों को जकड़ी हैं
मैं ढोना नहीं चाहती अच्छे होने का चोला
मैं नाचना चाहती हूँ बारिश में मयूरी बनकर
मैं खुलकर हंसना, जीना चाहती हूँ
हाँ अब मैं आज़ाद होना चाहती हूँ !
मैं अब और नहीं रोकना चाहती खुद को
मेरी आशाओं, मेरी उम्मीदों को साथ लिए
मैं चाहती हूँ तुम भी चलो साथ मेरे
मेरे हमसफ़र, मेरे साथी हमराही बनकर
मुझे रोकना नहीं टोकना नहीं साथ देना बस
हाँ अब मैं आज़ाद होना चाहती हूँ !
——– मेरे हिस्से इतवार कब आयेगा ? ——–
मैं बीमार हुं
लेकिन
मैं किसी से कह नहीं सकती
कि मैं बीमार हुं
शरीर थकावट से चूर है
सुकून बहुत दूर है
लेकिन मैं कह नहीं सकती
आज आराम की जरुरत है
खडे होना भी दूभर है
हाथों में सूजन है
लेकिन मैं कह नहीं सकती
आज काम नहीं होगा मुझसे
आज तो इतवार है
छुट्टी का दिन
आराम का दिन
कोई दस बजे उठेगा
कोई बारह बजे
लेकिन मैं रोज़ की तरह आज भी
सुब्ह पांच बजे उठी
सिर में दर्द, कमर में दर्द
लेकिन मैं किसी से कह नहीं सकती
आज मैं दस बजे तक उठूगीं
फरमाईशें कल रात ही बता दी सबने
मैं ये खाऊगा, मैं वो
किसी ने पूछां ही नहीं
मैं क्या खाऊगीं ?
लेकिन मैं कह नहीं सकती
मैं आज ये खाना बनाऊगीं
सबके हिस्से का इतवार आ गया
मेरे हिस्से का कब आयेगा ?
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जयति जैन (नूतन)
लेखिका ,कवयित्री व् शोधार्थी
शिक्षा – : D.Pharma, B.pharma, M.pharma (Pharmacology, researcher)
लोगों की भीड़ से निकली साधारण लड़की जिसकी पहचान बेबाक और स्वतंत्र लेखन है ! जैसे तरह-तरह के हज़ारों पंछी होते हैं, उनकी अलग चहकाहट “बोली-आवाज़”, रंग-ढंग होते हैं ! वेसे ही मेरा लेखन है जो तरह -तरह की भिन्नता से – विषयों से परिपूर्ण है ! मेरा लेखन स्वतंत्र है, बे-झिझक लेखन ही मेरी पहचान है !! लेखन ही सब कुछ है मेरे लिए ये मुझे हौसला देता है गिर कर उठने का , इसके अलावा मुझे घूमना , पेंटिंग , डांस , सिंगिंग पसंद है ! पेशे से तो में एक रिसर्चर , लेक्चरर हूँ (ऍम फार्मा, फार्माकोलॉजी ) लेकिन आज लोग मुझे स्वतंत्र लेखिका के रूप में जानते हैं !
मैं हमेशा सीधा , सपाट और कड़वा बोलती हूँ जो अक्सर लोगो को पसंद नहीं आता और मुझे झूठ चापलूसी नहीं आती , इसीलिए दोस्त कम हैं लेकिन अच्छे हैं जो जानते हैं की जैसी हूँ वो सामने हूँ !
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