{ आई एन वी सी ब्यूरो चीफ चन्द्रशेखर जोशी कि ख़ास रिपोर्ट }
दलित चिंतक, नाटककार और गद्य के अप्रतिम रचनाकार ओमप्रकाश वाल्मिकी. 17 नव02013 सुबह देहरादून में उनका इंतकाल हो गया. साहित्यकार वाल्मीकि लीवर के कैंसर से पीड़ित थे, उत्तराखण्ड सरकार से उनकी मदद के लिए कई बार आग्रह किया गया था परन्तु मुख्यमंत्री की ओर से दलित साहित्यकार को कोई मदद नही दी गयी, दलित साहित्यकार को कोई मदद न दिये जाने का मामला तूल पकड सकता है इससे दलित राज्य की कांग्रेस सरकार से आक्रोशित हो सकते हैं, प्रदेश में होने जा रहे त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव तथा लोकसभा चुनाव की बेला पर दलित साहित्य के सुपर स्टार को कोई मदद न दिये जाने का प्रभाव पूरे देश में पड सकता है, पूरे देश में हिन्दी दलित साहित्य के सुपर स्टार के निधन पर दुख जताया जा रहा है, हिमालयायूके डॉटओआरजी ब्यूरो की रिपोर्ट-
हिंदी के कथाकार और उपन्यासकार ओमप्रकाश वाल्मीकि अपने लेखन में दलित विमर्श के शिखर रचनाकार हैं. अपनी आत्मकथा जूठन से देश दुनिया के लेखन जगत में चर्चा में आए वाल्मीकि ने हिंदी में दलित विमर्श को स्थापित करने में महती भूमिका निभाई. दलित साहित्य के सशक्त हस्ताक्षर और आत्मकथा ‘जूठन’ से देश-विदेश में नाम कमाने वाले ओम प्रकाश वाल्मीकि का रविवार को यहां मैक्स अस्पताल में निधन हो गया। वह 67 वर्ष के थे। देर शाम उनका अधोईवाला श्मशान घाट पर अंतिम संस्कार कर दिया गया। तमाम कर्मचारी संगठनों, सामाजिक प्रतिनिधियों और राजनेताओं ने कहा कि ओम प्रकाश वाल्मीकि के निधन से दलित साहित्य का एक मजबूत स्तम्भ उखड़ गया है।
साहित्यकार पद्मश्री डॉ. लीलाधर जगूड़ी ने दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती साहित्यकार एवं सामाजिक चिंतक ओमप्रकाश वाल्मीकि के इलाज में मदद करने का आग्रह प्रदेश सरकार से किया था।
डॉ. जगूड़ी ने बताया कि साहित्यकार वाल्मीकि लीवर के कैंसर से पीड़ित हैं और पिछले 15 दिन से उनका सर गंगाराम अस्पताल में उपचार चल रहा है, लेकिन खर्च अधिक होने के कारण तमाम मुश्किलें पेश आ रही हैं। ऐसे में प्रदेश सरकार को उनके इलाज का खर्चा उठाना चाहिए। उन्होंने बताया कि वाल्मीकि साहित्य के माध्यम से प्रदेश की सेवा कर रहे हैं, इसलिए सरकार व साहित्य जगत से जुड़े लोगों को उनकी मदद करनी चाहिए।
डॉ. जगूड़ी ने बताया कि वाल्मीकि न सिर्फ प्रसिद्ध कथाकार हैं, बल्कि उन्होंने कहानी व कविता में अपना महत्वपूर्ण स्थान बनाया है। उनकी एक दर्जन से अधिक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली से भी साहित्यकार मित्रों के फोन आ रहे हैं कि उनकी मदद को क्या प्रयास हो रहे हैं।
अंबेडकरवादी, समाज सुधारक और चिंतक ओम प्रकाश वाल्मीकि को 10 दिन पहले मैक्स अस्पताल में भर्ती कराया गया था। रविवार सुबह आठ बजे करीब उन्होंने अंतिम सांस ली। 30 जून 1950 को उत्तार प्रदेश में जन्मे ओम प्रकाश वाल्मीकि की स्कूली शिक्षा गांव और देहरादून में हुई। उन्होंने समाज में व्याप्त ऊंच-नीच, भेदभाव और छूआछुत जैसी सामाजिक कुरीतियों के विरूद्ध अपनी लेखनी के माध्यम से समाज को नई दिशा देने का काम किया। उनकी आत्मकथा ‘जूठन’ न केवल भारत बल्कि विदेशों में भी लोकप्रिय रही। उनकी कहानियां, कविताएं सीबीएसई बोर्ड के पाठ्यक्रम में भी शामिल की गई। आयुध निर्माणी से सहायक कार्य प्रबंधक के पद से सेवानिवृत्ता हुए ओम प्रकाश को अंबेडकर पुरस्कार के अलावा विभिन्न राज्य सरकारों और सामाजिक संस्थाओं ने भी सम्मानित किया था।
पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने कहा कि ओम प्रकाश वाल्मीकि ने अपने लेखन में दलित समाज की आवाज को बुलंद किया और उन्हें पहचान दिलाने का महत्वपूर्ण काम किया।
सोशल मीडिया में खबर है कि शूद्र लेखक “ॐ प्रकाश बाल्मीकी” ने हिन्दू धर्म के खिलाफ बहुत जहर उगला,