कविताएँ
सलमान खान मर चुका है
आतमहत्या के कई ख्याल,
मेरे दिमाग में आते हैं उस तरह
जैसे बच्चों को
अपने खिलौनों के आते है।
खुद को बौना महसूस करता हूँ
हर उस सेकण्ड
जब भी जीवन-मृत्यु के चक्र के बीच देखता हूँ
इतिहास में मरे हुए लोग।
बना रहा था एक चित्र,
मोनालिसा की बहन का/और
मेरी होने वाली बेटी को पीले रंग के ब्रश से प्यार है।
इस वक़्त हमारे घर के एकमात्र टीवी में बना हुआ था माहौल/
इटली के भूकंप का।
टीवी की धारारेखीय शक्ल ने रिपोर्टर के वाक़् यन्त्र का सहारा लेकर बताया,
“एक सो सोलह लोगों की मौत”
मोनालिसा की बहन
बन गयी उसकी मौसी की शक्ल में;
और बेटी के हाथ ने
जानबूझकर गिरा दिया
रंग का डिब्बा/मेरी बेटी के हाथ पीले हो गए
(समय से सोलह साल पहले)
जब भी मेरे दाँतो पर रगड़ खाता है;
पेप्सोडेंट का चिपचिपा पदार्थ,
तो हंस देता हूँ
“ब्रह्माण्ड की तीन चीजों पर”
मेरे कुतुबमीनारनुमा कमरे की
रोती हुई दीवार पर
राजगुरु और सुखदेव की आधी रंगीन फ़ोटो के बीच लटकी हुई एक कील
मुझे हंसते हुए कई बार देख लेती है।और मुझे वह इंसान बहुत पैसे वाला लगता है,
जो पैंसठ रुपये में
बीच वाली फ़ोटो खरीद ले गया था।
मुझे मंगलवार का दिन;
दिन जैसा नही लगता।
हनुमान जी की करोड़ों फोटोज पर
चढ़ाये गए चांदी के कई गोल्ड पेपर।
उधर
एक मन्दिर के पीछे,
मां की कोख में मर गया भावी आइंस्टीन।
उसमे कैल्सियम की कमी नही थी।सिल्वर, गोल्ड और कैल्सियम
ब्रह्माण्ड के यही वे तीन तत्व थे।
जब भी कोई आधे आदमी
या
पूरी औरतें,
दिमाग तेज करने का सबसे आसान उपाय ढूंढता है
तो मुझे
अपने सातवीं क्लास के दोस्त
सलमान खान की याद आती है।
क्या आपको पता है,
एक जिन्दा आदमी का दिमाग बहुत नर्म होता है
और इसे चाकू से/ आसानी से
काटा जा सकता हैं।
सलमान खान पानी पीकर मरा था,
वो स्कूल के दिन थे,
और मैं अनपढ़ था।
जब भी किसी ऊंट के मूहँ में जीरा देखता हूँ तो थोड़ी बहुत कविता लिखना सीख लेता हूँ।
गरीब आदमी हूँ साहब,
मैं किसी कॉफी अन्नान को नही जानता।
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ऐश्वर्या राय का कमरा… (भाग 1)
चला जाता हूँ/उस सड़क पर
जहां लिखा होता है-
आगे जाना मना है।
मुझे खुद के अंदर घुटन होती है
मैं
समझता हूँ लूई पास्चर को,
जिसने बताया की
करोड़ों बैक्टिरिया हमें अंदर ही अंदर खाते हैं
पर वो लाभदायक निकलते है
इसलिए वो मेरी घुटन के जिम्मेदार नही हैं
कुछ और ही है
जो मुझे खाता है/चबा-चबा कर।
आपको भी खाता होगा कभी
शायद नींद में/जागते हुए/
या
रोटी को तड़फते झुग्गी झोंपड़ियों के बच्चों को निहारती आपकी आँखों को।
…धूप ,
नही आयगी उस दिन
दीवारें गिर चुकी होंगी
या काली हो जाएँगी/
आपके बालों की तरह
आप उन पर गार्नियर या कोई महंगा शम्पू नही रगड़ पाओगे
आपकी वो काली हुई दीवार
इंसान के अन्य ग्रह पर रहने के सपने को और भी ज्यादा/ आसान कर देगी।
अगर आपको भी है पैर हिलाने की आदत,
तो हो जाएं सावधान..
सूरज कभी भी फट सकता है
दो रुपये के पटाके की तरह
और चाँद हंसेगा उस पर
तब हम,
गुनगुनाएंगे हिमेश रेशमिया का कोई नया गाना।
तीन साल की उम्र तक आपका बच्चा नहीं चल रहा होगा तो…
आप कुछ करने की बजाए
कोसेंगे बाइबिल और गीता को
तब तक
आपका बैडरूम बदल चुका होगा एक तहखाने में
आप कुछ नही कर पाओगे
आपकी तरह मेरा दिमाग या मेरा आलिंद-निलय का जोड़ा,
सैकड़ों वर्षों से कोशिश करता रहा है कि जब मृत्यु घटित होती है,
तो शरीर से कोई चीज बाहर जाती है या न्हीं?
आपके शरीर पर कोई नुकीला पदार्थ खरोंचेगा..
और अगर धर्म; पदार्थ को पकड़ ले,
तो विज्ञान की फिर कोई भी जरूरत नहीं है।
मैं मानता हूँ कि
हम सब बौने होते जा रहे है/कल तक हम सिकुड़ जायेंगे/
तब दीवार पर लटकी
आइंस्टीन की एक अंगुली हम पर हंसेगी।
और आप सोचते होंगे कि
मैं कहाँ जाऊंगा?
मैं सपना लूंगा एक लंबा सा/
उसमेंकोई “वास्को_डी गामा” फिर से/कलकत्ता क़ी छाती पर कदम
रखेगाऔर आवाज़ सुनकर मैं उठ खड़ा हो जाऊंगा
एक भूखा बच्चा,
वियतनाम की खून से सनी गली में /अपनी माँ को खोज लेता है/
उस वक़्त ऐश्वर्या राय अपने कमरे (मंगल ग्रह वाला) में सो रही है
और दुबई वाला उसका फ्लैट खाली पड़ा है।
मेरे घर में चीनी खत्म हो गयी है..
मुझे उधार लानी होगी..
इसलिये बाक़ी कविता कभी नही लिख पाउँगा।
(हालांकि आपका सोचना गलत है)
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परिचय -:
बृजमोहन स्वामी “बैरागी”
हिंदी और राजस्थानी कवि व् लेखक
सम्पर्क – birjosyami@gmail.com
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Disclaimer : The views expressed by the author in this poetry are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.
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