{ निर्मल रानी } भारत की दस प्रतिशत से भी कम संख्या के संपन्न लोगों को सुविधा पहुंचाने की दिशा में एक और कदम आगे बढ़ाते हुए भारत सरकार देश में तीव्रगामी बुलेट ट्रेन चलाने की योजना पर काम कर रही है। पिछले दिनों दिल्ली व आगरा के मध्य 160 किलोमीटर की रफ्तार से चलाकर सेमी बुलेट ट्रेन का परीक्षण भी कर लिया गया। हालांकि बुलेट ट्रेन चलाने की योजना की शुरुआत पिछली यूपीए सरकार के शासनकाल में की गई थी। परंतु वर्तमान राजग सरकार इसका श्रेय लेने की गरज से इस योजना को अपने शासनकाल में और आगे ले जाना चाह रही है। निश्चित रूप से देश में निर्मित अनेक चौड़े राष्ट्रीय राजमार्ग, तमाम गगनचुंबी इमारतों,पांच सितारा होटलों, उच्च कोटि के कई हवाई अड्डों की ही तरह तीव्रगति से चलने वाली यह प्रस्तावित रेलगाड़ियां भी उच्च श्रेणी के सुविधा संपन्न व धनाढ्य तबके के लिए सुविधा का एक और साधन बन जाएंगी। परंतु सवाल यह है कि क्या देश की शेष 90 प्रतिशत आम जनता इन तीव्रगामी रेलगाड़ियों के संचालन के बाद स्वयं को भी लाभान्वित महसूस कर सकेगी? देश में बुलेट ट्रेन चलने के बाद क्या यह समझा जा सकता है कि रेल विभाग ने यात्रियों की तमाम छोटी-मोटी परेशानियों व उन्हें होने वाली असुविधाओं पर फतेह पाने के बाद ही तीर्व्र्रगति वाली रेलगाड़ियों की ओर अपना कदम बढ़ाया है? यदि हम इसकी पड़ताल करने की कोशिश करें तो हमें कुछ ऐसी वास्तविकताओं से रू-ब-रू होना पड़ेगा जिन्हें देखकर हमें यह कहने में भी कोई आपत्ति नहीं होगी कि भारतीय रेल संभवतः अभी भी लगभग वहीं पर खड़ी है जहां इसे अंग्रेज छोड़कर गए थे।
रेलवे स्टेशन रेल का एक सर्वप्रमुख अंग माना जाता है। रेल यात्री अपने गंतव्य पर आने-जाने के लिए रेलवे स्टेशन का प्रयोग करते हैं। रेल भी रेलवे स्टेेशन पर ही रुकती है। और सवारियों से लेकर माल ढुलाई तथा डाक व पार्सल आदि के चढ़ाने व उतारने का काम करती है। देश में इस समय छोटे व बड़े लगभग 8500 रेलवे स्टेशन हैं। देश में कई महानगर व बड़े-बड़े शहर ऐसे भी हैं जहां यात्रियों की सुविधाओं के अनुसार एक ही शहर में कई-कई रेलवे स्टेशन बनाए गए हैं। और इन्हीं में अनेक रेलवे स्टेशन ऐसे हैं जहां एक से लेकर 16-18 व 20 प्लेटफार्म तक बनाए गए हैं। देश में इस समय छोटे व बड़े लगभग 8500 रेलवे स्टेशन हैं। सैंकड़ों रेलवे स्टेशन पर आज भी 1947 के पूर्व की स्थिति की ही तरह केवल एक ही प्लेटफार्म रेलयात्रियों को उपलब्ध है, जबकि कई महानगरों में कई स्टेशन बने हैं।
देश में कई जगहों पर अब भी रेल के बढ़ते यातायात व यात्रियों की बढ़ती संख्या के मद्देनजर रेलवे प्लेटफार्म बढ़ाए जाने का सिलसिला जारी है। निश्चित रूप से रेलवे स्टेशन पर नए प्लेटफार्म का बढ़ना रेल यात्रियों के लिए सुविधाजनक है। परंतु आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि हमारे देश में अभी हजारों ऐसे रेलवे स्टेशन भी हैं जहां या तो समुचित तरीके से प्लेटफार्म का निर्माण ही नहीं किया गया और या फिर उस स्टेशन पर केवल एक ही प्लेटफार्म है।
दुर्भाग्यपूर्ण बात तो यह है कि छोटे कस्बाई अथवा दूर-दराज के गांवों में पड़ने वाले स्टेशन तो दूर देश में कई जिला मुख्यालय वाले रेलवे स्टेशन भी ऐसे हैं जहां रेलगाड़ियों की आवाजाही भी पहले से कई गुणा बढ़ चुकी है तथा रेल यात्रियों के आने-जाने की संख्या में भी भारी वृद्धि हुई है। परंतु इसके बावजूद ऐसे स्टेशन पर आज भी 1947 के पूर्व की स्थिति की ही तरह केवल एक ही प्लेटफार्म रेलयात्रियों को उपलब्ध है।
देश के प्रमुख राज्य बिहार के दरभंगा जिले में पड़ने वाला एक रेलवे स्टेशन है लहेरिया सराय। हालांकि जिले का नाम दरभंगा है परंतु इससे सटा लहेरिया सराय एक ऐसा उपनगर है जहां दरभंगा जिले के लगभग सभी मुख्यालय मौजूद हैं। जिला कचहरी, जिलाधिकारी कार्यालय, आईजी व डीआईजी तथा एसपी ऑफिस, अधिकांश बैंकों के जिला मुख्यालय, नगर के प्रमुख बाजार आदि सब कुछ लहेरिया सराय रेलवे स्टेशन के बिल्कुल निकट हैं। लहेरिया सराय रेलवे स्टेशन से होकर गुजरने वाली अधिकांश रेलगााड़ियों का ठहराव भी इस स्टेशन पर होता है। यह स्टेशन माल चढ़ाने-उतारने का भी एक प्रमुख केंद्र हैं। इस स्टेशन पर आरक्षण के काऊंटर भी उपलब्ध हैं। स्टेशन पर यात्रियों को मिलने वाली सुविधाओं में भी पहले की तुलना में विस्तार हुआ है। परंतु आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि जिला मुख्यालय का प्रमुख स्टेशन होने के बावजूद भी इस स्टेशन पर अभी भी अंग्रेजों के समय का ही बनवाया हुआ केवल एक ही प्लेटफार्म यात्रियों को अपनी सेवाएं दे रहा है।
कई बार ऐसा भी होता है कि एक ही समय में दो रेलगाड़ियां लहेरिया सराय स्टेशन पर आ खड़ी होती हैं। ऐसे में एक ही प्लेटफार्म होने के कारण प्लेटफार्म के अतिरिक्त दूसरी लाईन पर खड़ी होने वाली रेलगाड़ी के यात्रियों को कितनी तकलीफ उठानी पड़ती है और अपनी जान को किस कद्र जोखिम में डालना पड़ता है इस बात का अंदाजा केवल उन्हीं यात्रियों को हो सकता है जो आए दिन ऐसी यात्राओं के भुक्तभोगी होते हैं।
जरा कल्पना कीजिए कि रेल लाईन नंबर 2 पर खड़ी रेलगाड़ी और उस ट्रेन पर पहुंचने के लिए कोई दूसरा रास्ता नहीं सिवाए एक नंबर प्लेटफार्म पर खड़ी किसी रेलगाड़ी के डिब्बों के बीच से घुसकर जाने के। उस पर ट्रेन के दोनों ओर पत्थर की बजरियां। इसके अलावा यात्रियों के साथ उनके सामान का बोझ, और इन्हीं यात्रियों में बुजुर्ग भी, महिलाएं भी, बच्चे भी और कई बार तो कोई विकलांग व्यक्ति भी शामिल होता है। उधर इस स्टेशन पर रेलगाड़ियों के रुकने का समय भी मात्र दो मिनट या पांच मिनट। ऐसे में पत्थर की बजरियों पर अपना सामान साथ लेकर दौड़ते हुए अपनी निर्धारित बोगी तक पहुंचना किसी यात्री के लिए बेहद कष्टदायक तो होता ही है साथ-साथ उसे अपनी जान का भी जोखिम उठाना पड़ता है।
मैं स्वयं इस स्टेशन से इस प्रकार की खतरनाक यात्रा करने की भुक्तभोगी रही हूं। यदि मेरे साथ मेरे परिवार के अन्य सदस्य व कई सहयोगी न होते तो निश्चित रूप से या तो मेरा कोई सामान छूट गया होता या मैं स्वयं अपनी बोगी तक न पहुंच पाती। इतना ही नहीं बल्कि लाईन नंबर दो से दो बार शुरु की गई अपनी यात्रा के बाद मैंने लहेरिया सराय स्टेशन से ट्रेन पकड़नी ही छोड़ दी है। अब मुझे अपना समय व पैसा और अधिक बरबाद कर और आगे दरभंगा स्टेशन तक जाना पड़ता है। वहां से ट्रेन पकड़कर वापस लहेरिया सराय होते हुए अपनी मंजिल की तरफ वापस आती हूं। जाहिर है प्रत्येक यात्री के लिए ऐसा कर पाना न तो संभव है न ही न्यायसंगत। इस समस्या का केवल एक ही समाधान है कि रेल विभाग विश्वस्तरीय भारतीय रेल बनाने के लोकलुभावने सपने देश व दुनिया के लोगों को दिखाने के बजाए सर्वप्रथम आम लोगों की बुनियादी परेशानियों का समाधान करे। ऐसे रेलवे स्टेशन पर प्लेटफार्म संख्या 2 व 3 का निर्माण बेहद जरूरी तथा रेलयात्रियों की सुविधा व उनके सुरक्षा के हक में होगा। यही नहीं बल्कि नए प्लेटफार्म के निर्माण के साथ-साथ उसे एक नंबर प्लेटफार्म से जोडने वाले पुल का निर्माण भी बेहद जरूरी है। ताकि रेलयात्री एक रेलगाड़ी में घुसकर दूसरी ओर जाने जैसे खतरे मोल न लें।
बिहार के लहेरिया सराय की ही तरह उत्तर प्रदेश में भी बहराइच नाम का एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है। बहराइच भी एक जिला है तथा जिला मुख्यालय के सभी कार्यालय बहराइच में ही स्थित हैं। परंतु यहां भी अंग्रेजों के समय का बनाया गया रेलवे स्टेशन व इस पर मौजूद एक ही प्लेटफार्म रेल यात्रियों को अपने अस्तित्व में आने से लेकर अब तक उसी प्रकार सुविधा देता आ रहा है।
बिहार के लहेरिया सराय स्टेशन की ही भांति यहां भी रेल यात्रियों को उसी प्रकार की तकलीफ उठानी पड़ती है तथा एक नंबर प्लेटफार्म के व्यस्त होने की स्थिति में लाईन नंबर 2 पर खड़ी गाड़ी को पकड़ने के लिए इसी तरह अपनी जान को जोखिम में डालना पड़ता है। लहेरिया सराय में कम से कम हमारे जैसे रेल यात्रियों के पास दरभंगा जाकर ट्रेन पकडने का विकल्प मौजूद है परंतु बहराइच में तो ऐसा भी नहीं है। जिला मुख्यालय की नगरीय सीमा क्षेत्र में पडने वाला बहराइच अकेला रेलवे स्टेशन है। यहां के यात्रियों को सुविधा के लिए प्लेटफार्म नंबर 2 व 3 का निर्माण तथा एक नंबर प्लेटफार्म से उसे जोड़ने वाले पुल के निर्माण की तत्काल जरूरत है। जिला मुख्यालय होने के नाते बहराइच रेलवे स्टेशन पर भी माल चढ़ाने व उतारने व डाक तथा पार्सल आदि के उतार-चढ़ाव का काम अंजाम दिया जाता है। इस स्टेशन से होकर कई सवारी गाड़ियां तथा एक्सप्रेस रेलगाड़ियों गुजरती हैं। लहेरिया और बहराइच स्टेशन तो मैंने स्वयं देखे हैं। यकीनन देश में इसके अलावा और भी सैकड़ों ऐसे रेलवे स्टेशन होंगे जहां जिला मुख्यालय होने के बावजूद इसी प्रकार एक रेलवे प्लेटफार्म होगा। रेल विभाग को बड़ी गंभीरता के साथ ऐेसे सभी रेलवे स्टेशन का सर्वेक्षण तथा इन स्टेशन पर रेलयात्रियों को महज प्लेटफार्म की कमी के चलते होने वाली असुविधाओं का अध्ययन करवाना चाहिए।
देश की अधिकांश आबादी इन्हीं सामान्य रेलगाड़ियों व ऐसे ही साधारण रेलवे स्टेशन के माध्यम से अपनी यात्रा करती है। इन यात्रियों को तीव्रगति से चलने वाली सपनों की रेलगाड़ियों से अधिक इस बात की जरूरत है कि इन्हें वर्तमान रेलवे स्टेशन तथा रेलगाड़ियों में ही समुचित सुविधा व सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए। बुलेट ट्रेन चलाकर दुनिया के समक्ष भारतीय रेल को विश्वस्तरीय रेल के रूप में प्रचारित कर विदेशी पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करने जैसे पाखंडपूर्ण व दिखावा करने वाले विकास कार्य से ज्यादा जरूरी है कि अपने देशवासियों पर प्रतिदिन मंडराने वाले जान के खतरों से उन्हें महफूज करने के उपाय तत्काल किए जाएं।
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कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.
Nirmal Rani (Writer )
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