बिहार में सड़कों के ‘माया-जाल’ का सच

आलोक कुमार वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक पटना,3{ आलोक कुमार ** }
सड़कों के मामले में बिहार की हालत अभी भी चिंतनीय ही है l ” राष्ट्रीय स्तर पर प्रति लाख आबादी पर 257 किलोमीटर सड़क है, जबकि बिहार में प्रति लाख आबादी पर मात्र 90 किलोमीटर सड़क ही है l” फिर भी पूरी दुनिया में ये शोर है कि बिहार में सडकों का जाल बिछा दिया गया है l प्रधानमंत्री ग्राम – सड़क योजना में जहाँ दूसरे राज्यों में 60 फीसदी काम हुआ है, वहीं बिहार की उपलब्धि मात्र 35 फीसदी ही है l पूरे प्रदेश में सड़कों की गुणवत्ता पर सवालिया निशान उठते रहे हैं l ग्रामीण –इलाकों में लोग अक्सर ये शिकायत करते हुए मिल जाते हैं कि सड़कें निर्माण के चंद महीनों बाद ही टूट जा रही हैं l सी.ए.जी. ने भी पूर्व में इस बारे में सवाल खड़े किए थे l बिहार के ज़्यादातर इलाकों में राजमार्गों और आलोक कुमार वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक पटनाबड़ी सड़कों को ग्रामीण इलाकों से जोड़ने  वाली छोटी और मध्यम सड़कें बदहाली की स्थिति में हैं l यहाँ एक उदाहरण उद्धृत करना चाहूँगा ( वैसे तो अनेकों उदाहरण मौजूद हैं लेकिन इस उदाहरण की महत्ता इस लिए भी ज्यादा है कि ये प्रदेश की राजधानी से बिलकुल सटा हुआ इलाका है ) , बिहार की राजधानी पटना से सटे सोनमई ग्राम पंचायत से एक12 फुट चौड़ी सड़क पटना-गया राष्ट्रीय राजमार्ग तक आती है। यह सड़क इस क्षेत्र की बहुत पुरानी सड़क है तथा यह इस पंचायत के साथ अन्य 3 पंचायतों के 12 ग्रामों के निवासियों के लिए “लाइफ –लाईन” है। यह सड़क इस समय इतनी बुरी हालत में है कि महज 2 किलोमीटर का रास्ता तय करने में ही केवल सवार ही नहीं, बढि़या से बढि़या गाड़ी भी हाँफ जाती है। इस क्षेत्र के ग्रामीणों का कहना है कि बरसों से हम इस सड़क की मरम्मती का टेंडर पास हो जाने की खबरें तो सुनते चले आ रहे हैं लेकिन खबरें सिर्फ और सिर्फ खबरें बन कर ही रह गयी हैं l बनायी गई सडकों के बारे में पूर्व में खुद सरकार ने सदन में स्वीकार किया है कि राज्य में बनाई गयी सड़कों की गुणवत्ता काफी घटिया स्तर की है। ज्यादातर सड़कों पर कोलतार की परत चढ़ा कर देखने में अच्छा बना दिया जाता है, वस्तुतः जिसकी उम्र दो से चार महीने से ज्यादा की नहीं होती। हर बार बरसात गुजरने के बाद प्रदेश के सड़कों की दशा देखी जा सकती है। हाल ही में पटना से छपरा – सीवान जाने के क्रम में मैंने जब छपरा के एक स्थानीय निवासी से छपरा – सीवान सड़क की खराब दशा के बारे में पूछा तो उन्होंने शायराना अंदाज में कहा “ सब माया है सड़कों के जाल बिछाने का , कोई इस सूरते-ए-हाल का सबब ‘हूजूर’ से तो पूछे ?”

आलोक कुमार वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक पटना.2प्रदेश के नक्सल प्रभावित जिलों के अधिकांश इलाकों में ( जमुई , मुंगेर, गया, नवादा , औरंगाबाद , जहानाबाद , अरवल, रोहतास , शिवहर , सीतामढ़ी , पश्चिमी चंपारण  इत्यादि ) ग्रामीण सड़कों का निर्माण कार्य भी अरसे से ठप्प ही पड़ा है। इन जिलों में गंभीर नक्सल समस्या के चलते सुदूर ग्रामीण – क्षेत्रों में सड़कों के निर्माण के लिए कोई ठेकेदार नहीं मिलने से काम शुरू ही नहीं हो पाता है। ये एक गंभीर मसला है l इन इलाकों में सड़कों के न बनने से इन क्षेत्रों का विकास पूरी तरह ठप है और निवासीयों को मूलभूत जरूरतें भी बड़ी मुश्किल से मुहैया हो पाती हैं । प्रदेश की सरकार की उदासीनता से हालात और खराब हुए हैं। ठेकेदारों को पर्याप्त सुरक्षा मुहैया कराने में प्रदेश – सरकार की नाकामी की वजह से ना तो नयी सड़कों का निर्माण ही पा रहा है ना ही पुरानी सड़कों की मरम्मती । पुरानी सड़कें गढों में तब्दील हो गई हैं l

सुशासन के ‘अंधभक्त’ अकसर NHAI के द्वारा बनाई गई सड़कों का श्रेय भी प्रदेश की सरकार को ही देते हुए दिखाई देते हैं और राजधानी पटना की वी.आई.पी. या अन्य शहरों की चंद सड़कों की दुहाई देते हैं l ऐसे लोगों से मेरा सवाल है कि जब आप समग्रविकास की गंगा बहाने का – दावा कर रहे हैं तो विकास तो सभी जगहों पर परिलक्षित होना चाहिए !!सुशासनी – समर्थक एवं यहाँ तक की सूबे के मुखिया भी अनेक अवसरों पर पूर्व के लालू – राज की सड़कों से अपने कार्य-काल की सड़कों को बेहतर बताते हुए दिखते हैं- l इस संदर्भ में मैं सूबे के मुखिया से पूछना चाहता हूँ कि वो तो घोषित “जंगल-राज ”  था और इसी वजह से जनता ने आप को मौका दिया  , आप उससे अपनी तुलना क्यूँ करते हैं ?आप विकास के मामले में नंबर – वन होने का दावा करते हैं तो अपनी तुलना विकसित प्रदेशों की सड़कों से क्यूँ नहीं करते ? जहाँ और जब आप की परियोजनाएं फेल होते हुई दिखती हैं तो आप ठीकरा केंद्र की सरकार पर आलोक कुमार वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक पटनाफोड़ते हुए दिखते हैं  या विपक्षी साजिश का रोना रोते हैं , लेकिन श्रेय लेने का एकाधिकार सदैव अपने पास ही रखते हैं ऐसा क्यूँ ?क्या आप जवाब दे सकते हैं कि पिछले साढ़े आठ सालों के दौरान आपके द्वारा ही घोषित और शिलान्यास किए हुए कितनी फोरलेन-सड़कों का निर्माण – कार्य  पूरा हो पाया है ? मेरे हिसाब से एक भी पूर्ण – रूप से निर्मित नहीं हुई है lक्या साढ़े आठ सालों का कार्य-काल अपर्याप्त होता है  फोरलेन सड़कों के निर्माण के लिए ?  चंद सालों में जब वर्ली सी– लिंक एवं  मेट्रो – रेल जैसी महती और वृहत परियोजनाओं का निर्माण संभव हो सकता है तो क्या फोरलेन – सड़कों के निर्माण के पीछे कोई गूढ – विज्ञान छिपा है  ?

अंत में मैं निःसंकोच कह सकता हूँ कि बिहार के किसी भी  जिले में सड़कें किसी चर्चित अभिनेत्री के गालों सरीखी चिकनी तो नहीं ही हैं उल्टे अधिकांश सड़कें ओम पुरी जी की गालों के माफिक ही हैं l अगर ऐसा नहीं होता तो चुनावों के दरम्यान ‘रोड नहीं तो वोट नहीं’ का नारा अनेकों जगहों पर गूँजता दिखाई नहीं देता l

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**आलोक कुमार (वरिष्ठ पत्रकार व विश्लेषक), पटना.

*Disclaimer: The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC.

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