{ वसीम अकरम त्यागी ** } 21 मई 2013 को फैजाबाद कोर्ट परिसर में हुआ मोहम्मद सलीम पर होने वाला हमला बहुत कुछ बयां कर गया और उस पर मीडिया की खामोशी से ये साबित होता है कि प्रदेश में अब सांप्रदायिक लोगों के हौसले बुलंदी पर हैं। जबकि ये संविधान पर हमला है ये हमला प्रदेश की समाजवादी सरकार पर हमला है, ये हमला लोकतंत्र पर हमला है। क्योंकि जब पूर्व प्रधानमंत्री के हत्यारों को वकील मौहय्या कराया जा सकता है और उन पर किसी ने हमाला तो दूर उनसे ये तक मालूम करना गवारा नहीं समझा कि आप देश के प्रधानमंत्री के हत्यारों का मुकदमा क्यों लड़ रहे हो ? जबकि भारतीय संविधान के अनुसार प्रत्येक अभियुक्त को वकील उपलब्ध करान की जिम्मेदारी सरकार की बनती है जिसके लिये एनिस्क कमैटी द्वारा उसे वकील उपलब्ध कराया जा सकता है ये तब है जब कोई भी वकील किसी अभियुक्त का मुकदमा लड़ने से इंकार कर दे। लेकिन अगर कोई किसी अभियुक्त का मुकदमा लड़ रहा है तो उस पर हमला करके उसे जान से मारने का प्रयास करना क्या दर्शाता है क्या ये भी किसी को बताने की जरूरत है कि ये हमला किस उद्देश्य की प्राप्ती के लिये किया गया है ?
एशियन ह्यूमन राईट्स कमीशन के प्रोग्राम कोर्डिनेटर अवनीश पांडे समर के शब्दों में कहा जाये तो “अगस्त 2008- लखनऊ बार असोसिएशन मोहम्मद शोएब और ए एम फरीदी को ‘संदिग्ध आतंकियों’ का मुकदमा लड़ने के लिए बार काउन्सिल से निष्काषित कर देती है. इसके कुछ दिन बाद बार काउन्सिल के सदस्य वकील इन दोनों वकीलों पर अदालत परिसर में जानलेवा हमला करते हैं. उनके कपड़े फाड़ डालते हैं, उनसे पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगवाते हैं. पांच साल बाद भी किसी वकील को सजा नहीं होती. मई 2013- फैजाबाद बार काउन्सिल मौलाना खालिद मुजाहिद की अभिरक्षा में हत्या (custodial killing) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन में भाग लेने वाले मुस्लिम वकीलों के खिलाफ प्रस्ताव पारित करती है. काउन्सिल के सदस्य वकील एडवोकेट मोहम्मद शकील पर जानलेवा हमला करते हैं. इन दोनों मामलों में अब्दुल्ला बुखारी से लेकर कल्बे सादिक तक और सलमान खुर्शीद से लेकर आज़म खान तक कौम के सरपरस्त मुंह सिल लेते हैं. अपराधियों के खिलाफ कहीं कोई मुकदमा दायर नहीं होता कोई पीआईएल नहीं की जाती” वे आगे कहते हैं कि “मेरे तमाम इस्लामपरस्त मुसलमान दोस्तों को दीवालों पर लिखी इबारत साफ़ नहीं दिखती. वे इन सरपरस्तों के हलक में हाथ डाल के नहीं पूछते कि मियां- सिर्फ कौम की ठेकेदारी करोगे या कौम (इन्साफ छोडिये, कौम ही मान लेते हैं) के लिए सच में लड़ रहे इन जांबाजों के लिए कुछ करोगे भी ? हौसला है तो आइये ये जंग वहां लड़ते हैं जहाँ यह लड़ी जानी चाहिए.. एक बार पहले भी कहा था, फिर कह रहा हूँ कि हालात ख़राब हैं पर इतने नहीं कि बुखारियों के बोलने पर भी असर न हो”।
क्या ये नाम निहाद मुस्लिम परस्त नेता कुछ बोलेंगे इस पर ? उलेमा कुछ करेंगे जो बिलावजह मेरठ के व्यापारपरस्त पूर्व मंत्री हाजी याकूब कुरैशी के कमेले के झमेले में समर्थन दे रहे हैं जिससे शहर के लोगों को अलावा बीमारी के कुछ और मिला ही नहीं अब जब उस जमीन पर प्रशासन ने कॉलेज बनाने का फैसला किया है तो ये तथाकथित कौम परस्त उलेमा नेता जी के सुर में सुर मिला रहे हैं। जिसका कोई औचित्य ही बनता। क्या ये समझ लिया जाये कि जहां पर इनकी जरूरत सबसे अधिक होती है वहीं पर इनकी जबान खामोश क्यों हो जाती है ? उधर फैजाबाद से खबर आई है कि मोहम्मद सलीम जिनका कसूर सिर्फ इतना था कि उन्होंने खालिद मुजाहिद की मौत के खिलाफ प्रदर्शन में हिस्सा लिया था इसी लिये उन पर हमला किया गया जान लेवा हमला किया गया, आरोपियों में से दो के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर ली गई है और 12 अन्य आरोपियों को 123, 423, 506, धाराओं मे नामजद किया गया है। साथ ही चौक और कैंट थाना क्षेत्र में धारा 144 लगा दी गई है। आये दिन इस तरह की अराजकता फैलाने वाली घटनायें प्रदेश की समाजवादी सरकार में घट रही हैं, सांप्रदायिक ताकतों के हौसले बुलंदी पर पहुंच गये हैं तभी तो वकीलों पर वकीलों द्वारा हमले किये जा रहे हैं. उनसे अभद्रता की जा रही है।
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** वसीम अकरम त्यागी
उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ में एक छोटे से गांव अमीनाबाद उर्फ बड़ा गांव में जन्म
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एंव संचार विश्विद्यलय से पत्रकारिता में स्नातक और स्नताकोत्तर
समसामायिक मुद्दों और दलित मुस्लिम मुद्दों पर जमकर लेखन। यूपी में हुऐ जिया उल हक की हत्या के बाद राजा भैय्या के लोगों से मिली जान से मारने की धमकियों के बाद चर्चा में आये ! फिलहाल मुस्लिम टूडे में बतौर दिल्ली एनसीआर संवाददता काम कर रहें हैं
9716428646. 9927972718
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maf karna bhai laikin jitni begherti musalman netawo me dekhne ko mili kahin dikhai nahi deti zara si bat per bhajpa sangh pariwar ke log sadakon per utar aate hen .sikh jo sirf 2% hen sadkon per utar aate hen .laikin musalman neta chahe bukhari ho chahe madani ho chahe azam khan hon yaphir congress ke muslim neta.kahan hen shafiqurrehman barq jinhone musalmano ka hamdard banne ki koshish ki .kya ye hamle ye begunaho ki mot inhe dikhai nahi de rahi sare mafad parast hen .apne mafad ke liyen jalse kiye jate hen laikin aaj jab zulm ke khilaf awaz uthane ki zaroorat he to gharon me beth kar qom per ho rahe zulm ka tamasha dekh eahe hen.midia hamara dushman sarkare hamari dushman akhbar hamare dushman unhen kya padi he ke hamare liyen bolen .jis qaom ke ander be hisi aur begherti paida ho jati he wo tabah ho jati hen.
tamasha dekhoge kab tak qaom ki is pitai ka,jago aur karo aghaz khilafe zulm ki ladai ka.
na samjhoge to mit jaoge ae musalmano
yahi he waqt do sath apne dini bhai ka.