गत शनिवार को जे.एन.यू, नई दिल्ली में बुलायी गई आम सभा की बैठक में नए पदाधिकारियों एवं कार्यकारिणी का चुनाव संपन्न हुआ । चुनाव की पूरी प्रक्रिया चार चुनाव अधिकारियों प्रो. गोपेश्वर सिंह (अध्यक्ष, हिन्दी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय) डॉ. आर.पी. ममगाईं (निदेशक भारतीय दलित अध्ययन संस्थान) प्रो. सुबोध मालाकार (जे.एन.यू) श्री चन्द्रभूषण (वरिष्ठ पत्रकार,नवभारत टाइम्स) दो पर्यवेक्षक प्रो. चौथीराम यादव (बनारस विश्वविद्यालय) एवं प्रो. वी.एन. पांडे (रांची विश्वविद्यालय) की देख रेख में लोकतांत्रिक विधी एवं आम सहमती से पूरी की गई । इस आम सभा में ’दलित लेखक संघ’ के लगभग ६० रचनाकारों में भाग लिया ।
अध्यक्ष पद पर सर्वसम्मती से प्रो. तुलसी राम को चुना गया । उपाध्यक्ष के दो पदों पर प्रो. हेमलता महिश्वर एवं पन्ना लाल, महासचिव पद पर डॉ. राम चंद्र, सचिव पद पर डॉ. कौशल पंवार, सह-सचिव के चार पदों पर डॉ. सुमित्रा महरोल, राज वालमीकि, डॉ. हेमलता, एवं जाकिर हुसैन, मीडिया सचिव के पद पर विनोद सोनकर, कोषाध्यक्ष पद पर दिलीप कठेरिया, कार्यकारिणी सदस्यों में सावी सावरकर, अनिल सुर्या, इंतिज़ार नईम, सूरज बड़त्या, विनीता रानी, अभय खाखा, प्रमोद कुमार, मीनाक्षी, प्रवीण कुमार, ब्रह्मानंद, शिवदत्त, ब्राती विश्वास, सतीश चन्द्रा, एवं केदार प्रसाद मीणा का सर्वसम्मती से चयन हुआ । इस कार्यकारिणी का कार्यकाल ३ वर्ष होगा । आम सहमती से प्रो. विमल थोरात को दलेस का संरक्षक नियुक्त किया गया । दलेस की भूतपूर्व अध्यक्ष प्रो. विमल थोरात ने अपने कार्यकाल के अनुभव एवं सुझाव रखे ।
दलेस का अध्यक्ष पद ग्रहण करते हुए प्रो. तुलसी राम ने अपने वक्तव्य में दलित साहित्य को व्यापक फलक से जोड़ते हुए कहा कि बुद्ध, फुले, अम्बेडकर की वैचारिकी लोकतांत्रिक वैचारिकी है । जातिवाद, सांप्रदायिकता और क्षेत्रियता इसके तीन बडे दुश्मन है । दलित साहित्य प्रगतिशील विचारकों पर आक्रमणकारी टीका टिप्पणी का भी विरोध करता है । हमें यह नहीं भुलना चाहिए कि प्रतिरोध की परंपरा प्रगतिशील लोगों के बिना पूरी नहीं होगी ।