प्रभात कुमार राय की कविता
अंतः स्थल का प्रदूषण
यह निरुत्तरित मौन
मर्मस्पर्शी प्रश्नों के जबाव में,
क्या कोलाहल नहीं मचा रहा
अंतर्मन की चहारदिवारियों में ?अनार्द्र और सूखी आँखें
पथरायी सी जान पड़ती हैं,
वीभत्सता के कठोर परिप्रेक्ष्य में
क्या अश्रुधारा नहीं बह हरा
नेत्रपट के पीछे ?
मानव-मौन का सस्तापन
बिकाऊ परंपरायें एवं संकीर्णताएँ,
क्या तुम्हारे मन को आंदोलित
नहीं करती अपनी भयावहता
एवं निरंतर प्रहार से ?
कदाचार और नैतिक अवमूल्यन
अनुशासनरहित वातावरण की दुर्गंध
क्या तुम्हारे अंतःस्थल को
नहीं कर रहा अनवरत प्रदूषण ?
परिचय -:
प्रभात कुमार राय
( मुख्य मंत्री बिहार के उर्जा सलाहकार )
पता: फ्लॅट संख्या 403, वासुदेव झरी अपार्टमेंट,
वेद नगर, रूकानपुरा, पो. बी. भी. कॉलेज,
पटना 800014
email: pkrai1@rediffmail.com – energy.adv2cm@gmail.com
Mob. 09934083444
लेकिन यह सवाल किससे?
पथराई आँखों से तो कदाचित नहीं!
तो फिर किससे?
कदाचार कमाऊ है,
उसे इन प्रश्नों से मतलब नहीं|
परम्पराएं बिकाऊ हो गयीं,
उनका अपना परिचय ही नहीं रहा|
संकीर्णताएं और नैतिक अवमूल्यन
अब सफलता की कुंजी हैं,
अब जिन्हें पढाया जा रहा है,नए नामों से!
उन्हें आप प्रश्नाकित नहीं कर सकते,
क्योंकि सफलता उनके औचित्य का प्रमाण है!
और हमें तो सफलता की कामना करनी हैं,
सबके लिए!
शानदार कविता ,पढ़ना सुखद अहसास !! साभार !!
ATI SUNDER ABAM BHAWPURNA.EXPECT MORE TO COME.
मेरा बहु मरी पानी मे भीगे, बीमारी मे
माथे पर चाट न मिला , .
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मेरा बहु मरी पानी मे भीगे, बीमारी मे
माथे पर चाट न मिला ,
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अगर उसे पूछो तुझे है पता तेरा देश महान?
तो बोले, मुझे है पता मेरा बीटा भूखा,
घूमता फिरे मेरी रोटी कान्हा ?
मेरा बेटी रोई, मेरी कपड़ा कान्हा?
मेरा बागु मरी पानी मे भीगे, बीमारी मे
माथे पर चाट न मिला ,
मई रहा उनपर, लूट गया मेरा ज़मीन
मेरा ही अंगूठा पर ………………….
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वो था एक अनजान
वो है एक अनजान,
वो रहे एक अनजान .
Bahut sunder!!Badhai.Aaj samaaj may vikritiyon ki jad yahi jadta hai –neutrality and silence ka samuchit dukh-gaatha hai yah Kavita..Hamlogo ne apni dharmic detachment ko galat jagah per social environment may laga diya. Likhte rahiye.