नित्यानंद गायेन की कविता – जीवन के कुरुक्षेत्र में

जीवन के कुरुक्षेत्र में

मुझे याद नही, शोषण के विरुद्ध

और अधिकारों के हक़ में

कब लिखी थी मैंने आखरी कविता

कई सदियों से लगा हुआ हूँ

खुद को बचाने में

जी हाँ, कविता के बहाने

मैं खुद को बचाये रखने की संघर्ष में व्यस्त हूँ

मेरी मजबूरी

विदुर, भीष्म पितामह और राजसभा में

मामा शकुनी के पासों की चाल से

शतरंज में हारे हुए

पांडवों की मजबूरी सी है

अपने शौर्य का ज्ञात होते हुए भी

असहाय हूँ ,

जीवन के कुरुक्षेत्र में

बिलकुल निहत्था

और युद्धभूमि में धसे हुए कर्ण के रथ की पहिये की तरह

हो चूका हूँ /

और मेरी गर्दन पर निशाना साधे

तैयार है कई तीर

बस कुछ ही क्षण में धरती पर गिरने वाला हूँ

मेरी पराजय की सूचना पहुँच चुकी है

राजभवन में

राजन के चेहरे पर है मुस्कुराहट

उदास है मेरी माँ का चेहरा //

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images17नित्यानन्द गायेन 

रिचय – 20 अगस्त 1981 को पश्चिम बंगाल के बारुइपुर , दक्षिण चौबीस परगना के शिखरबाली गांव में जन्मे नित्यानंद गायेन की कवितायेँ और लेख सर्वनाम, कृतिओर ,समयांतर , हंस, जनसत्ता, अविराम ,दुनिया इनदिनों ,अलाव,जिन्दा लोग, नई धारा , हिंदी मिलाप ,स्वाधीनता, स्वतंत्र वार्ता , छपते –छपते ,वागर्थ, लोकमत, जनपक्ष, समकालीन तीसरी दुनिया , अक्षर पर्व, हमारा प्रदेश , ‘संवदिया’ युवा कविता विशेषांक, ‘हिंदी चेतना’ ‘समावर्तन’ आकंठ, परिंदे, समय के साखी, आकंठ, धरती, प्रेरणा, जनपथ, मार्ग दर्शक, कृषि जागरण आदि पत्र –पत्रिकाओं में प्रकशित . इसके अलावा पहलीबार , फर्गुदिया , अनुभूति , अनुनाद और सिताब दियारा जैसे चर्चित ब्लॉगों पर भी इनकी कविताएँ प्रकाशित |इनका काव्य संग्रह ‘अपने हिस्से का प्रेम’ (२०११) में संकल्प प्रकशन से प्रकाशित .कविता केंद्रित पत्रिका ‘संकेत’ का नौवां अंक इनकी कवितायों पर केंद्रित .इनकी कुछ कविताओं का नेपाली, अंग्रेजी,मैथली तथा फ्रेंच भाषाओँ में अनुवाद भी हुआ है . फ़िलहाल  हैदराबाद के एक निजी संस्थान में अध्यापन एवं स्वतंत्र लेखन.

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8 COMMENTS

  1. विचारों की परिकल्पना कहीं और ले गई ,बहुत बढिया

  2. क्या मारा हैं ,दिल खुश कर दिया ,आपके लेखन को सलाम

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