आई एन वी सी,
चण्डीगढ़,
दुनियां में दो प्रकार के धन होते हैं एक नाम धन और दाम धन । नामधन केवल सत्गुरू की शरण में आकर ही मिलता है । इसे प्राप्त करने के लिए किसी तप त्याग, शिक्षा, मेहनत या चतुर चालाकी की आवश्यकता नहीं होती । केवल सत्गुरू की शरण में आकर नतमस्तक होकर इससे प्रार्थना करनी होती है । नामधन एक ऐसा धन है जिसे चोर डाकू चुरा नहीं सकते और न ही कोई इसे हड़प सकता है । यह जितना खर्च किया जाए उतना और बढ़ता है । यह इन्सान के जीवन में बाधक नहीं साधक होता है क्योंकि यह सदैव साथ निभाता है तभी मीरां ने कहा था
मैने राम रतन धन पायो ।
वस्तु अमोलक दी मेरे सत्गुरू कृपा कर अपनाओ ।
खर्च न खूटे, चौर न लूटे दिन दिन बढ़े सवायो ।
ये उद्गार आज यहां सन्त निरंकारी सत्संग भवन में हुए विशाल समारोह में शिमला से आए वहां के ज़ोनल इन्चार्ज श्रीमति राजवन्तकौर जी ने हजारों की संख्या में उपस्थित श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए व्यक्त किए । श्रीमति कौर न आगे कहा कि दामधन नामधन के बिल्कुल विपरीत होता है । दामधन शिक्षा, मेहनत, व्यापार, चतुर चालाकी आदि से प्राप्त होता है । दामधन को चोर डाकू चुरा सकते हैं और यह खर्च करने से घटता है और अन्त समय में भी साथ नहीं देता । इसलिए हमें बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने जो नामधन प्रदान किया है इसको प्राथमिकता देनी है, इसका अधिक से अधिक प्रयोग करना है ताकि अन्य भी इस नामधन को प्राप्त कर सकें । श्रीमति कौर न आगे कहा कि परमात्मा को पहले जान कर फिर इसका सिमरन करने से इन्सान को सभी रोगों से छुटकारा प्राप्त हो जाता है । परमात्मा के सिमरन में इतनी शक्ति है कि यह इन्सान के सभी बिगड़े कामों को संवार देती है । यहां तक कि जिस व्यक्ति की आंख में नूर नहीं होता उसको भी सही मार्ग पर ले आता है । इससे पूर्व यहां के संयोजक श्री मोहिन्द्र सिंह जी ने शिमला से आए श्रीमति कौर का सभी की ओर से स्वागत किया ।