द बर्निंग ट्रेन:सुरक्षा के यह कैसे उपाय?

Ash tray in Chinese train smoking zobe{ निर्मल रानी ** }
भारतीय रेल सेवा के अंतर्गत् चलने वाली सवारी गाडिय़ां कई बार अग्रिकांड की भेंट चढ़ चुकी हैं। इनमें पैसेंजर से लेकर मेल,एक्सप्रेस तथा प्रथम श्रेणी की कई रेलगाडिय़ां भी शामिल हैं। आमतौर पर जबभी कोई भारतीय रेल ‘द बर्निंग ट्रेनका रूप धारण करती है उसके तत्काल बाद भारतीय रेल के उच्चाधिकारी विशेषकर इस विभाग से जुड़े सुरक्षा विशेषज्ञ व अधिकारी घटना के फौरन बाद उच्चस्तरीय बैठक बुलाते हैं तथा उनके द्वारा आग से बचाने के कुछ उपाय आनन-फ़ानन में घोषित कर दिए जाते हैं। इन उपायों के परिणामस्वरूप रेल में आग लगने की घटनाएं रुकें या न रुकें,यह उपाय सतही हैं अथवा बुनियादी,कारगर हैं या बेकार इन सब बातों की परवाह किए बिना भारतीय रेल से संबद्ध उच्चाधिकारी ऐसे कई सतही उपायों की घोषणा कर अपना फजऱ् पूरा कर डालते हैं ताकि सरकार व जनता खासतौर पर रेल मंत्रालय को यह संदेश जा सके कि रेल सुरक्षा विभाग से जुड़े अधिकारी बहुत सक्रिय,चौकस तथा फरमांबरदार हैं।
उदाहरण के तौर पर गत् कई वर्षों से रेलगाड़ी में सिगरेट व बीड़ी पीने वालों की सुविधाओं के मद्देनज़र लगाई गई एशट्रे रेलगाडिय़ों से निकाली जा चुकी है। पूरी ट्रेन में बीड़ी-सिगरेट न पिए जाने के निर्देश जारी कर दिए गए हैं। प्लेटफार्म,रेलवे कैंटीन अथवा रेल परिसर में बीड़ी-सिगरेट व माचिस की बिक्री पर प्रतिबंध लगाया जा चुका है। यह सभी उपाय हालांकि रेल को आग से बचाने के दृष्टिगत् किए गए हैं परंतु इन आदेशों के जारी होने के बाद भी अब तक कई बार चलती हुई रेलगाडिय़ों में आग लगने की घटनाएं हो चुकी हैं। यदि बीड़ी-सिगरेट व माचिस से रेलगाडिय़ों में आग लगती होती तो इस प्रतिबंध के बाद रेल में आग लगने की घटनाएं समाप्त हो जानी चाहिए थीं। इस विषय से जुड़ी दूसरी सच्चाई यह है कि भारतीय रेल विभाग रेल,प्लेटफार्म व रेल परिसर में बीड़ी-सिगरेट,माचिस की बिक्री बंद कर चुका है उसके बावजूद रेल कर्मचारियों व रेलवे की सुरक्षा हेतु तैनात पुलिस की मिलीभगत से अब भी न केवल रेल परिसर अथवा रेलवे प्लेटफार्म पर बल्कि चलती हुई रेलगाडिय़ों में भी यह सामग्री चोरी छुपे बेचने वाले लेाग देखे जा सकते हैं। यदि यह नियम वास्तव में रेल अग्रिकांड रोकने में सक्षम हैं तो इन्हें सख्ती से लागू करने की जि़म्मेदारी आखिर किसकी है?
पिछले दिनों भारतीय रेल अधिकारियों द्वारा पुन: इसी प्रकार का एक और फैसला रेल के डिब्बे में लगने वाली आग को रोकने की गरज़ से लिया गया है । अब पूरे देश की रेलगाडिय़ों में 3 एसी कोच में बीच रास्ते में लगे हुए पर्दों को पूरी तरह से हटा दिया जाए। जबकि खिड़की की ओर लगे छोटे पर्दे रहने दिए जाएंगे। कुछ समय पूर्व नांदेड़ एक्सप्रेस में लगी आग के बाद जांच-पड़ताल के दौरान मिले तथ्यों के आधार पर संभवत: रेल अधिकारियों ने यह फैसला लिया। रेल अधिकारियों के इस निर्णय को अग्रिकांड रोकने के लिए उठाया जाने वाला प्रभावी कदम स्वीकार करने के बजाए आम लोगों द्वारा इसे एक हास्यास्पद व सतही कदम बताया जा रहा है। रास्ते के जिन परदों को एसी 3 कोच से हटाने का आदेश जारी किया गया है वैसे ही पर्दे 2एसी कोच में भी लगे होते है। आखिर उन्हें न हटाने का कारण क्या हो सकता है? यदि परदे ही आग पकडऩे का कारण हैं तो क्या खिड़कियों पर लगे परदे कोच में आग लगने के लिए पर्याप्त नहीं हैं? इसके अतिरिक्त रेल कोच में बर्थ व सीट के निर्माण में इस्तेमाल की जाने वालीे भीतर से लेकर बाहर तक की अधिकतर सामग्री उच्च ज्वलनशील वस्तुओं द्वारा निर्मित होती है।
क्या परदे हटने के बाद कोच की बर्थ व सीटों में आग नहीं लग सकती? कहीं ऐसा तो नहीं कि रेल अधिकारी रेल कोच में आग लगने की घटनाओं के बाद औपचारिकता मात्र के चलते कुछ ऐसे सतही फैसले ले लेते हों जिनसे जनता को यह झूठा एहसास हो सके कि रेल विभाग यात्रियों की सुरक्षा के लिए वास्तव में बहुत चिंतित वफिक्रमंद है।
अब आईए इसी विषय के परिपेक्ष्य में चीन जैसे विशाल देश में जोकि रेल व्यवस्था के क्षेत्र में विश्व में नंबर एक की रेल व्यवस्था होने की दिशा में बहुत तेज़ी से आगे बढ़ रहा है वहां रेल कोच में अग्रिकांड को रोकने के लिए किए गए कुछ उपायों का जायज़ा लेते हैं। चीन में स्टेशन पर सिगरेट व लाईटर की बिक्री पर कोई प्रतिबंध नहीं है। बल्कि यह कहा जाए कि सबसे अधिक भीड़ और रौनक़ सिगरेट की ही दुकानों पर दिखाई देती है। इसके अतिरिक्त चीन में प्रत्येक प्लेटफार्म पर सुंदर व आकर्षक ऐशट्रे बड़ी संख्या में लगे देखे जा सकते हैं। इतना ही नहीं बल्कि मेल,एक्सप्रेस गाडिय़ों में प्रत्येक दो डिब्बों के बीच एक विशेष क्षेत्र एल्यूमीनियम व लोहा जैसे मेटल से पूरी तरह युक्त ऐसा बनाया गया है जहां आग लगाने से भी नहीं लग सकती। और ऐसे क्षेत्र को स्मोकिंग ज़ोन का नाम दिया गया है। इस स्मोकिंग ज़ोन में रेल विभाग द्वारा न केवल एशट्रे की व्यवस्था की गई है बल्कि इस स्मोकिंग ज़ोन में लाईटर का भी प्रबंध रेलवे की ओर से ही किया गया है। जो भी रेल यात्री सिगरेट पीने का इच्छुक होता है वह बड़े ही अनुशासित तरीके से खड़ी हुई या चलती हुई गाड़ी में इस स्मोकिंग ज़ोन में जाकर सिगरेट पीने का अपना शौक पूरा कर सकता है। हां इतना ज़रूर है कि इस स्मोकिंग ज़ोन के अलावा ट्रेन में दूसरे किसी हिस्से में सिगरेट पीने पर सख्त प्रतिबंध है। शेष पूरी रेलगाड़ी उच्च स्तर की क़ालीन, मैटिंग तथा परदों व बिस्तर व कंबल आदि से सुसज्जित रहती है। हां तीव्रगति से चलने वाली हाईस्पीड ट्रेन जिसे हम बुलेट ट्रेन के नाम से जानते हैं उन रेलगाडिय़ों में स्मोकिंग पर पूर्णतया प्रतिबंध है। जब बुलेट ट्रेन किसी स्टेशन पर रुकती है तो वहां सिगरेट पीने वाला यात्री कोच से बाहर निकल कर सिगरेट पीने की अपनी तलब पूरी कर सकता है।
उपरोक्त पूरे नियम व कानून में दो बातें सर्वाधिक ध्यान देने योग्य हैं। एक तो यह कि चीन में शायद ही कोई व्यक्ति आपको ऐसा मिले जोकि उपरोक्त नियम व कानून की अवहेलना करता हो। दूसरी बात यह कि बावजूद इसके कि चीन की आम जनता कानूनों का पूरा पालन करती है फिर भी प्रशासन द्वारा कैमरों के माध्यम से, धुंआ डिडेक्ट करने वाली मशीन के द्वारा तथा अपनी निजी चौकसी के माध्यम से कानून पर अमल करने व कराने की सफल कोशिश की जाती है। परिणामस्वरूप चीन में रेल में आग लगने की घटनाएं न के बराबर हुआ करती हैं। परंतु हमारे देश में तमाम कानूनों के बावजूद प्रत्येक डिब्बे में आम लोग बीड़ी-सिगरेट पीते नज़र आ जाएंगे। बीड़ी-सिगरेट की तो बात ही क्या करनी अनेक भगवा वस्त्र धारी,जटाधारी बाबा व भिखारी सरेआम चलती टे्रन में रास्ते में बैठकर चिलम का कश लगाते हुए भी दिखाई देे जाते हैं। और यदि आप उन्हें रोक-टोकें तो पहले तो वे अपने को बाबा बताकर अपने जन्मजन्मांतर ‘विशेषाधिकार की बात करते हैं। और यदि आपने उनसे ज़्यादा बहस की तो उनकी बदज़ुबानी ,बदतमीज़ी यहां तक कि उनसे लड़ाई-झगड़े तक के लिए तैयार रहना पड़ता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि प्रत्येक रेल कर्मचारी व रेल सुरक्षासे जुड़ा हर व्यक्ति इन पाखंडी बाबाओं के कानून से खिलवाड़ करने की प्रवृति को भलीभांति जानता है। उन्हें यह भी पता है कि यह भिखारी व बाबा बिना टिकट यात्रा भी कर रहे हैं। परंतु न तो उनसे कोई टिकट पूछता है न ही उनके बीड़ी-सिगरेट या चिलम पीने पर कोई आपत्ति करता है। इसका अर्थ आखिर क्या है? यही न कि सारे नियम,कायदे-कानून व उनके पालन करने की जि़म्मेदारी मेहनतकश,शरीफ,इज़्ज़तदार तथा जि़म्मेदार व्यक्ति की ही है? नंग-धडंग व पाखंडी व ढोंगी लोग क़ानून का जितना चाहे खिलवाड़ करें उनसे बोलने वाला या उन्हें कानून का पाठ पढ़ाने वाला कोई नहीं? चीन ऐसी ‘आज़ादी से पूर्णतया मुक्त है। ऐसी पाबंदियों से भी अग्रिकांड की संभावना कम हो जाती है। इतना ही नहीं बल्कि हमारे देश में कई बार मिट्टी के तेल अथवा अन्य ज्वलनशील पदार्थों के डिब्बे,गैस सिलेंडर तथा स्टोव जैसे प्रतिबंधित सामग्री लेकर भी यात्रियों को ट्रेन में सफर करते देखा जा सकता है। ऐसे यात्रियों में कभी कोई यात्री दबंग प्रवृति का होता है तो कभी कोई रेलवे का ही कर्मचारी अथवा सुरक्षाकर्मी इस प्रकार के प्रतिबंधित सामानों के साथ यात्रा करता दिखाई देता है।गोया हर व्यक्ति स्वयं को आज़ाद देश का पूरी तरह से आज़ाद नागरिक समझे बैठा है। और इस आज़ादी का इतना नाजायज़ फ़ायदा उठाता है कि वह अपने देश के कायदे-कानून व प्रतिबंधों को ही भूल बैठता है। सवाल यह है कि आखिर सरकार विशेषकर रेल मंत्रालय ऐसे कौन से उपाय करे जिससे भारतीय रेल को पूरी तरह सुरक्षित बनाया जा सके? केवल अग्रिकांड ही नहीं बल्कि चोरी,डकैती, रेलवे में होने वाली तोडफ़ोड़ व उसकी क्षति ,ट्रेन प्लेटफार्म व रेल लाईन पर होने वाली भीषण गंदगी जैसी सभी बुराईयों से छुटकारा दिलाया जा सके।
निश्चित रूप से इसके लिए एक उच्चस्तरीय ईमानदार,पारदर्शी तथा योग्य व देशप्रेम की भावना रखने वाले प्रतिनिधि मंडल को चीन की यात्रा करनी चाहिए तथा वहां बहुत बारीकी से इस बात का अध्ययन करना चाहिए कि भारतीय रेल को कैसे चुस्त-दुरुसत,साफ-सुथरा,आकर्षक तथा पूर्णरूप से सुरक्षित बनाया जा सके। और केवल अध्ययन करने से भी काम नहीं चलने वाला बल्कि इसके लिए लोहे के दस्ताने पहनकर सख्त कानून लागू कराने की भी इच्छाशक्ति की ज़रूरत है। जब तक भारतीय रेल में दरवाज़े खोलकर चलने की तथा मनमाने तरीक़े से जो भी वयक्ति जिस डिब्बे में घुसना चाहे घुस जाए जो चाहे जिस प्लेटफार्म पर जा बैठे और जो चाहे कोच के एसी कंट्रोल पैनल अथवा अन्य डिब्बों के विद्युत प्रणाली से छेड़छाड़ करने लगे जैसी लापरवाहियां चलती रहेंगी तब तक भारतीय रेल को न तो सुरक्षित बनाया जा सकता है न ही सुरक्षित समझा जा सकता है। भारतीय रेल को सुरक्षित,सुव्यवस्थित तथा विश्वस्तरीय बनाने के लिए सतही नहीं बल्कि बुनियादी उपायों की आवश्यकता है।
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Nirmal Rani** निर्मल रानी

 कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.

Nirmal Rani (Writer )
1622/11 Mahavir Nagar Ambala
City 134002 Haryana
Phone-09729229728

*Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC

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