-तनवीर जाफ़री-
कोरोना महामारी का क़हर इस समय वैसे तो लगभग पूरे उत्तर भारत में बरपा है परन्तु ख़ास तौर पर दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र इस समय सबसे अधिक प्रभावित है। एन सी आर के लोग गत वर्ष के प्रारंभिक कोरोनाकाल में भी इतना भयभीत व निराश नहीं थे जितना वर्तमान समय में नज़र आ रहे हैं। ख़ास तौर पर दिल्ली व आसपास के कई अस्पतालों में कोविड मरीज़ों को भर्ती न करने, बिना ऑक्सीजन के मरीज़ों की मौत होने,शमशान घाट में चिताओं के लिए शवों के लाइन में लगाए जाने जैसी अनेक ख़बरों ने लोगों में भय पैदा कर दिया है। आमजन इस समय बड़ी हसरतों और उम्मीदों के साथ सरकार की तरफ़ देख रहे हैं। भला हो दुनिया के उन तमाम देशों का जिन्होंने भारत के वर्तमान विचलित कर देने वाले दृश्यों को देखकर ऑक्सीजन,ऑक्सीजन प्लांट तथा कोविड संबंधी ज़रूरी दवाइयों की बड़ी खेप भारत भेजी।
देश में इस अभूतपूर्व महामारी पर नियंत्रण पाने के लिए सरकार अनेक उपाय भी कर रही है। सेना की सहायता ली जा रही है। अनेक राज्यों में कहीं आंशिक तो कहीं पूर्ण लॉकडाउन की घोषणा भी की जा चुकी है। गत वर्ष अचानक केंद्र सरकार द्वारा घोषित किये गए लॉक डाउन के चलते सरकार की जो फ़ज़ीहत हुई थी तथा श्रमिकों से लेकर उद्योग धंधों तथा सामान्य व्यव्सायों पर उस का जो दुषप्रभाव पड़ा था उससे सबक़ लेते हुए सरकार अब फूंक फूंक कर क़दम रख रही है। आम तौर पर इस बार लॉक डाउन या किसी भी प्रकार की सख़्ती करने की ज़िम्मेदारी केंद्र सरकार ने राज्य सरकारों को दे दी है। देश में स्वास्थ्य,बिजली,पानी,दूध,खाद्य सामग्री की आपूर्ति जैसी कुछ मानव की दैनिक ज़रुरत संबंधी सेवाओं को तो बहाल रखा गया है जबकि बड़े बड़े निर्माण कार्य भी इस समय लगभग ठप हो चुके हैं। महामारी के दौरान इस तरह की व्यवस्था करने का एक ही मक़सद होता है कि आम आदमी कम से कम एक दूसरे के क़रीब या एक दूसरे के संपर्क में आ सके ताकि कोरोना नियंत्रण में सबसे बड़ी बाधा साबित हो रहे मानव संपर्क को कम किया जा सके व कोरोना की बढ़ती श्रृंखला को बाधित किया जा सके। इस दौरान दैनिक ज़रुरत संबंधी सेवाओं को इसलिए बहाल रखा जाता है क्योंकि इंसान के जीने के लिए स्वास्थ्य,बिजली,पानी,दूध,खाद्य सामग्री की आपूर्ति आदि बेहद ज़रूरी है।
परन्तु देश में कुछ कार्य इस समय ऐसे भी हो रहे हैं जो न केवल ग़ैर ज़रूरी हैं बल्कि कोरोना महामारी के और अधिक विस्तार का कारण भी बन सकते हैं। ऐसी ही एक परियोजना है राजधानी दिल्ली की सेंट्रल विस्टा परियोजना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की इच्छा है कि स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे होने पर देश को एक नया संसद भवन मिले। इसीलिए इस का निर्माण कार्य पूरा करने के लिए 2023 का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। इसीलिए इस परियोजना पर दिन काम चल रहा है। इतना ही नहीं बल्कि इस निर्माण कार्य को ‘आवश्यक सेवाओं’ के दायरे में भी रखा गया है। सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट के निर्माण को लेकर देश के अनेक बुद्धिजीवियों तथा विपक्षी दलों के द्वारा भी कई बार यह सवाल खड़े किये जा चुके हैं कि आख़िर जब देश के पास एक ऐतिहासिक तथा बेहद मज़बूत व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की निर्माण शैली का संसद भवन मौजूद है फिर आख़िर नए संसद भवन की ज़रुरत ही क्या है ? वैसे भी कोरोना के दौर में जिस तरह ऑक्सीजन आपूर्ति ,बेड की उपलब्धता ,एम्बुलेंस अस्पताल यहाँ तक कि लगभग पूरा स्वास्थ्य ढांचा चरमराया सा दिखाई दे रहा है ऐसे में इस परियोजना से देश को आख़िर क्या हासिल होने वाला है ? राजधानी दिल्ली जो कि इस समय देश में सबसे अधिक कोरोना प्रभावित है और लॉक डाउन से जूझ रही है,वहां सैकड़ों मज़दूरों का निरंतर काम करना तथा 15 से 20 किलोमीटर तक की दूरी से प्रतिदिन उनका बसों में बैठकर कार्यस्थल पर आना निश्चित रूप से कोरोना विस्फ़ोट को दावत देना है। परियोजना से जुड़े श्रमिक स्वयं इस आशंका से भयभीत भी हैं।
परन्तु प्रधानमंत्री की अपनी कार्यशैली जगज़ाहिर है। उनकी नज़रों में 1,500 करोड़ की सेंट्रल विस्टा परियोजना ज़्यादा ज़रूरी है। क्योंकि नए संसद भवन की उद्घाटन पट्टिका पर उन्हें अपना नाम अंकित करवाने की बेचैनी है। प्रधानमंत्री की नज़रों में गुजरात के मुख्य मंत्री के लिए 191 करोड़ का विशेष विमान ख़रीदना तथा अपने (प्रधानमंत्री ) लिये 8500 करोड़ का विमान ख़रीदना ज़्यादा ज़रूरी है। प्रधानमंत्री के लिये इतना मंहगा विमान ख़रीदने की ज़रुरत तो उस नेहरू-गांधी परिवार ने भी नहीं महसूस की थी जो दशकों तक प्रधानमंत्री पद पर क़ाबिज़ भी रहा और जिन्हें स्वयं नरेंद्र मोदी शहज़ादा और राजा कहते नहीं थकते थे। जबकि प्रधानमंत्री स्वयं को कभी चौकीदार कभी चाय वाला,कभी प्रधानसेवक और कभी फ़क़ीर बताते रहते हैं। फिर आख़िर उन्हें अपने लिए व अपने गृह राज्य के लिए नए विमानों की ज़रुरत क्यों पड़ी? इसी तरह देश की जनता के लगभग तीन हज़ार करोड़ रूपये गुजरात में ही सरदार पटेल की प्रतिमा पर ख़र्च कर दिए। देश की जनता को आए दिन अपने मन की बात सुनाने वाले प्रधानमंत्री इस तरह के ग़ैर ज़रूरी ख़र्च भी अपने मन की आवाज़ पर ही करते हैं।
आज देश में ब्रिटिश काल के निर्मित किये गए अनेक ऐसे विशाल भवन हैं जो नवनिर्मित होने वाले किसी भी भवन से कहीं ज़्यादा मज़बूत हैं। भारतीय संसद भवन व राष्ट्रपति भवन के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश,तमिलनाडु व दिल्ली सहित कई राज्यों के विधानसभा भवन,विभिन्न राज्यों के उच्च न्यायलय व सर्वोच्च न्यायलय,दिल्ली का इंडिया गेट व मुंबई का गेट वे ऑफ़ इंडिया,कोलकता की रायटर्स बिल्डिंग व विक्टोरिया मेमोरियल बिल्डिंग जैसे सैकड़ों आलीशान भवन हैं जो आज भी पूरी मज़बूती व भव्यता के साथ सुशोभित हैं। ऐसे में संसद भवन जैसे ऐतिहासिक भवन को मिटाना और उसकी जगह नया संसद भवन निर्मित करना आख़िर कहाँ का फ़लसफ़ा है ? यदि उपरोक्त ग़ैर ज़रूरी ख़र्च करने के बजाय जनता के टैक्स का यही पैसा स्वास्थ्य सेवाओं पर ख़र्च किया गया होता तो आज इस तरह जगह जगह न तो लाशों की क़तारें नज़र आतीं,न ही ऑक्सीजन के बिना तड़पते बिलखते और दम तोड़ते लोग दिखाई देते। न ही दुनिया में सरकार की इतनी फ़ज़ीहत होती न ही देश को किसी दूसरे देश की मदद का मोहताज होना पड़ता। प्रधानमंत्री जी को देश व जनहित को ध्यान में रखते हुए अब अपने मन की बात करने के बजाए जन की बात सुननी चाहिए।
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About the Author
Tanveer Jafri
Columnist and Author
Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.
He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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