न्याय प्रणाली में सुधार के लिए समय-समय पर कई पहलें की गई हैं ताकि देश के आम आदमी को न्याय मिल सके और उसकी पहुंच न्याय तक हो सके। सरकार इसके तहत लगातार प्रयास करती रही है कि न्याय के विलंब को कम किया जा सके और जो मुक़दमें लंबित हैं उनका निपटारा शीघ्र हो सके। केन्द्र सरकार की इन पहलों में न्याय प्रणाली को मजबूत बनाना, समय-समय पर न्यायाधीशों की संख्या का समीक्षा करना, अस्थायी/विशेष अदालतों का गठन करना, अदालतों की संरचना में सुधार करना, न्यायालय प्रबंधन में आईसीटी का प्रयोग बढ़ाने के साथ-साथ उच्चतम न्यायालय/ उच्च न्यायालयों, जिला और अधीनस्थ न्यायालयों में हर स्तर पर नागरिक-आधारित सेवाएं प्रदान करना सम्मिलित है। इनमें से कुछ पहलें इस प्रकार हैं :-
1. मुक़दमों को शीघ्र निपटाने का काम विशेष अभियान के तहत किया जा रहा है। मौजूदा स्थिति में यह काम 01 जुलाई, 2011 से 31 दिसंबर, 2011 के संदर्भ में हो रहा है। इसके अलावा न्याय उपलब्ध कराने और क़ानूनों में सुधार के लिए राष्ट्रीय मिशन का गठन किया गया है जो न्याय प्रणाली में विलंब और लंबित मुकदमों के मुद्दों को हल करने का कार्य करेगा। साथ ही, हर स्तर पर बेहतर जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए कई उपाय किए जा रहे हैं, जिनमें प्रदर्शन मानक की निगरानी, प्रशिक्षण द्वारा क्षमता उन्नयन आदि शामिल हैं।
2. 11वें वित्त आयोग की सिफ़ारिशों के अनुसार फास्ट ट्रैक अदालतों का गठन किया गया है। वर्ष 2000-05 के लिए इन अदालतों के संबंध में 502.90 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था। इस योजना को 2010-11 तक बढ़ा दिया गया था। प्राप्त रिपोर्टों के अनुसार 31 मार्च, 2011 तक देश में कुल 1192 फास्ट ट्रैक अदालतें काम कर रही थीं। वर्ष 2000-01 से 2010-11 के संदर्भ में 11 वर्ष की अवधि की केन्द्रीय सहायता के दौरान फास्ट ट्रैक अदालतों ने लगभग 33 लाख मुक़दमों का निपटारा किया।
वर्ष 2010-15 के बीच की पाँच वर्ष की अवधि के लिए 13वें वित्त आयोग ने राज्यों के लिए 05 हजार करोड़ रुपए के अनुदान की सिफारिश की है। यह रकम राज्यों को विभिन्न पहलों के तहत दी जाएगी :-(i) मौजूदा संरचना के तहत प्रात:/सांय/पालियों में अदालतें लगाकर न्यायालय का कार्य समय बढ़ाना,
(ii) नियमित अदालतों का भार कम करने के लिए लोक अदालतों को समर्थन देना,(iii) राज्य विधि सेवा प्राधिकरणों को अतिरिक्त धन राशि देना ताकि वे कमजोर वर्गों को कानूनी सहायता एवं न्याय उपलब्ध करा सकें,
(iv) अदालत के बाहर विवाद निपटाने के लिए वैकल्पिक विवाद निपटान (एडीआर) प्रणाली को बढ़ावा देना,
(v) प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से न्यायिक अधिकारियों और अभियोजकों की क्षमता बढ़ाना,
(vi) इस तरह के प्रशिक्षण के लिए सभी राज्यों में न्यायिक अकादमियों का गठन करना और उन्हें मजबूत बनाना,
(vii) न्यायाधीशों को उनके प्रशासनिक कामों में सहायता करने के लिए सभी जिला अदालतों और उच्च न्यायालयों में कोर्ट मैनेजर के पदों का सृजन करना,
(viii) ऐतिहासिक महत्व की अदालती इमारतों का रख-रखाव करना। इस मद में राज्यों को 1,353.623 करोड़ रुपए की रकम जारी की जा चुकी है।
3. जिला और अधीनस्थ अदालतों के कम्प्यूटरीकरण (ई-कोर्ट परियोजना) और सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों की आईसीटी संरचना के उन्नयन के संदर्भ में 31 मार्च, 2012 तक देश की 9,914 अदालतों (14,229 अदालतों में से) का कम्प्यूटरीकरण हो चुका है। शेष अदालतों का कम्प्यूटरीकरण 31 मार्च, 2014 तक हो जाएगा। दूसरे चरण में, डिजिटलीकरण, पुस्तकालय प्रबंधन, ई-फाइलिंग और डाटा भंडारण का कार्य होने की संभावना है।
4. बुनियादी स्तर पर लोगों को उनके दरवाजे पर न्याय उपलब्ध कराने के इरादे से ग्राम न्यायालयों के गठन के लिए ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 लागू किया जा चुका है। गैर-आवर्ती खर्चों के संबंध में ग्राम न्यायालयों की गठन के लिए केन्द्र सरकार राज्यों को प्रति ग्राम न्यायालय अधिकतम 18 लाख रुपए की सहायता प्रदान कर रही है। यह सहायता पहले तीन वर्षों के लिए होगी। राज्य सरकारों से जो सूचना प्राप्त हुई है, उसके अनुसार कुल 153 ग्राम न्यायालयों को अधिसूचित किया जा चुका है। इनमें से 151 ग्राम न्यायालयों ने काम करना शुरू कर दिया है। पिछलें तीन वर्षों के दौरान ग्राम न्यायालयों की स्थापना के लिए राज्य सरकारों को 25.39 करोड़ रुपए की धन राशि जारी की जा चुकी है।
5. न्यायपालिका के बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 1993-94 से एक केन्द्र प्रायोजित योजना चल रही है, जिसके अंतर्गत अदालतों की इमारतों और न्यायिक अधिकारियों की रिहाइश के निर्माण के लिए धन राशि जारी की जा रही है ताकि राज्य सरकारों को मदद मिल सके। इस योजना के खर्चे को केन्द्र और राज्य सरकारों द्वारा 75:25 के आधार पर वहन किया जाएगा। पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों में यह औसत 90:10 आधार पर है। इस योजना पर 31 मार्च, 2012 तक 1,841 करोड़ रुपए खर्च हो चुके हैं।
6. भारत के सीमांत लोगों की विधिक अधिकारिता के लिए चुने हुए सात राज्यों में ‘भारत में सीमांत लोगों के लिए न्याय तक पहुंच’ नामक परियोजना चलाई जा रही है जिसे यूएनडीपी से समर्थन प्राप्त है। यह सात राज्य हैं: बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश। इस परियोजना का लक्ष्य निर्धनों, महिलाओं, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों और अल्पसंख्यकों को न्याय दिलाना है। इस परियोजना के तहत एक तरफ प्रमुख न्याय सेवा प्रदाताओं की सांस्थानिक क्षमताओं को बढ़ाना है ताकि वे गरीबों और वंचितों को बेहतर तरीकों से सेवा प्रदान कर सकें, तथा दूसरी तरफ इस परियोजना का उद्देश्य गरीबों और वंचित लोगों को सीधे तौर पर शक्ति संपन्न बनाना है ताकि वे न्याय सेवाएं प्राप्त कर सकें।
*लेखक पत्र सूचना कार्यालय नई दिल्ली ( भारत सरकार ) में उप-निदेशक (मीडिया एवं संचार) पद पर कार्यरत हैं।