लेखक म्रदुल कपिल कि कृति ” चीनी कितने चम्मच ” पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी l
-चीनी कितने चम्मच पुस्तक की अंतिम कहानी –
___ सहर होने तक ____
ज्योत्स्ना ने बैठक में कुछ आवाजे सुनी तो वो भी बाहर आ गयी , बैठक में दूर के चाचा और चाची जी आये हुए थे .ज्योत्स्ना के चेहरे पर चाचा जी के हाथ की चाय गिरते गिरते बची और चाची जी के मुह में जा रही नमकीन बीच में ही रुक गयी ,और अजीब सी सहानभूति सी उभर आयी थी उन के चेहरों पर , माँ ने ज्योत्स्ना के कंधे पर हाथ रखा और उसे उसके कमरे की ओर ले जाने लगी “बेटा चलो आराम कर लो ” । और वो अपने कमरे में खिड़की के पास बैठ कर अपने गुजरे हुए कल के बारे में सोचने लगी …
घर वालो ने उसका जो नाम रखा था वो बिल्कुल सही था ” ज्योत्स्ना ” वो थी भी बिकुल श्वेत चाँदनी की तरह सुन्दर और शांत , जो भी देखता बस उसमे खो सा जाता था , लोग बोलते थे उसे मिस इंडिया के लिए फार्म भरना चाहिए , कोई कहता की जिस के घर भी ये जाएगी वो बहुत खुसनसीब होगा ,
लेकिन इन सब बातो से अलग उसका सपना था अपने पापा के सर को इतना ऊपर उठना की वो गर्व से कह सके की ” क्या हुआ अगर बेटा नही है तो मेरी बेटी तो है ” वो डॉक्टर बनना चाहती थी , बहुत बड़ा डॉक्टर…! माँ की तरह उसे खान बनना उसे बहुत पसंद था , उसके सिर्फ 2 दोस्त थे एक माँ और दूसरा उसके कमरे में लगा आईना ।
उस दिन CPMT का Exam था ,ज्योत्स्ना ने बहुत अच्छी तैयारी की थी उसे पता था की इस बार उसका नाम जरूर होगा , तेज़ कदमो से वो Examination Building की और जा रही थी , तभी किसी ने उसका हाथ पकड़ कर अपनी तरफ खींचा , ज्योत्स्ना ने देखा ये तो वही लड़का कई दिनों से उसका पीछा कर रहा था , शायद किसी सांसद का भतीजा था , और अगले ही पल उस लड़के के गाल पर ज्योत्स्ना के हाथ का भरपूर तमाचा पड़ा , ” अगर आज के बाद मेरा पीछा किया तो पूरी उम्र जेल में गुजारोगे ” वो हाथ छुड़ा कर जल्दी से चली गयी ,
Exam बहुत अछा हुआ था , ज्योत्स्ना ने सोचा जिस दिन वो डाक्टर बन जाएगी पापा और माँ कितने खुश होगे , वो सोच रही थी की एक दिन अपना हॉस्पिटल खोलेगी माँ पापा के नाम पर , तभी उसके बगल से एक मोटरसाइकिल निकली और उसे अपने चेहरे पर कुछ गिर गया सा लगा , बहुत तेज़ जलन से हो रही थी , उसकी आँखों के सामने अँधेरा सा घिरने लगा और उसे फिर कुछ याद नही रहा।
3 दिन बाद उसे हॉस्पिटल के कमरे में होश आया जलन अभी भी थी , चेहरे पर बहुत सारी पट्टिया बंधी हुयी थी , लोगो ने बताया की उसके चेहरे पर तेज़ाब डाल दिया गया था , चाँदनी धूमिल हो गयी थी , नाम की हड्डी पिघल गयी थी , पुरे चेहरे का मांस हाजरो टुकड़ो में बट गया था , एक आँख हरदम के लिए बंद हो गयी थी ,
समय के साथ घाव भर गए थे , लोगो की आँखों के सवाल और सहानभूति भी कम होने लगी थी , पापा VRS ले कर उसकी plastic surgery करना चाहते थे , लेकिन उसने मना कर दिया था , वो अभी भी बिना चेहरा ढके ही घर से निकलती थी , जब उसने खूबसूरती को नही छुपाया तो अब अपना चेहरा क्यों छुपाये ? , पडोसी बच्चो को उसके नाम से डराते थे , जब दोस्तों के साथ वो किसी रेस्त्रां में जाती थी तो जैसे लोगो के खाने में कंकड़ पड़ जाये ऐसा लगता था , माँ हरदम उस से आराम करने के लिए बोलती थी।
लेकिन वो सब को बताना चाहती थी वो अभी भी वही ज्योत्स्ना है। उसे आराम की जरूरत नही है , वो सब के साथ फिर से वैसे ही रहना चाहती है , वैसे ही बाते करना चाहती है , खेलना चाहती है जैसे पहले था।
शादी के लिए कुछ रिश्ते आये थे , जो ज्योत्स्ना से से नही , ज्योत्स्ना की मज़बूरी से शादी करना चाहते थे , ताकि अगले दिन अख़बार में छपे की …”Mr.. ने एक तेजाब हमले की पीड़ित लड़की से शादी करके एक मिशाल कायम की है ” ज्योत्स्ना किसी के प्रचार की एक टूल्स नही बनना चाहती थी ,
उसने शादी के लिए मना कर दिया ,डॉक्टर और घर वालो को ड़र था की वो आत्महत्या न कर ले ,
लेकिन तेजाब उसके सपनो को नही झुलसा सकता था , उसकी उम्मीदों को नही बाट सका था । उसने तय कर लिया था की वो अब भी डॉक्टर बनेगी और जिस किसी अभागी लड़की के साथ ऐसा हुआ उसको वो फिर से नई ज़िंदगी देगी । उसने फिर से cpmt का एक्सम दिया था और आज आया result बता रहा था की उसे पुरे राज्य में दूसरा स्थान मिला है ।!
ज्योत्स्ना ने खिड़की के परदे खिसकाएँ और आकाश की तरफ देखा रात अपने दूसरे पहर में थी , लेकिन चाँद की रौशनी ने पुरे आसमा में अपनी चमक बिखेर रखी थी और एक बार तिमिर हार गया था …..
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म्रदुल कपिल
लेखक व् विचारक
18 जुलाई 1989 को जब मैंने रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ तो तब दुनियां भी शायद हम जैसी मासूम रही होगी . वक्त के साथ साथ मेरी और दुनियां दोनों की मासूमियत गुम होती गयी . और मै जैसी दुनियां देखता गया उसे वैसे ही अपने अफ्फाजो में ढालता गया . ग्रेजुएशन , मैनेजमेंट , वकालत पढने के साथ के साथ साथ छोटी बड़ी कम्पनियों के ख्वाब भी अपने बैग में भर कर बेचता रहा . अब पिछले कुछ सालो से एक बड़ी हाऊसिंग कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूँ . और अब भी ख्वाबो का कारोबार कर रहा हूँ . अपने कैरियर की शुरुवात देश की राजधानी से करने के बाद अब माँ –पापा के साथ स्थायी डेरा बसेरा कानपुर में है l
पढाई , रोजी रोजगार , प्यार परिवार के बीच कब कलमघसीटा ( लेखक ) बन बैठा यकीं जानिए खुद को भी नही पता . लिखना मेरे लिए जरिया है खुद से मिलने का . शुरुवात शौकिया तौर पर फेसबुकिया लेखक के रूप में हुयी , लोग पसंद करते रहे , कुछ पाठक ( हम तो सच्ची ही मानेगे ) तारीफ भी करते रहे , और फेसबुक से शुरू हुआ लेखन का सफर ब्लाग , इ-पत्रिकाओ और प्रिंट पत्रिकाओ ,समाचारपत्रो , वेबसाइट्स से होता हुआ मेरी “ पहली पुस्तक “तक आ पहुंचा है . और हाँ ! इस दौरान कुछ सम्मान और पुरुस्कार भी मिल गए . पर सब से पड़ा सम्मान मिला आप पाठको अपार स्नेह और प्रोत्साहन . “ जिस्म की बात नही है “ की हर कहानी आपकी जिंदगी का हिस्सा है . इसका हर पात्र , हर घटना जुडी हुयी है आपकी जिंदगी की किसी देखी अनदेखी डोर से . “ जिस्म की बात नही है “ की 24 कहनियाँ आयाम है हमारी 24 घंटे अनवरत चलती जिंदगी का .