आई एन वी सी,
लखनऊ,
विश्व जल दिवस के अवसर पर अखिल भारतीय लोधी राजपूत टेलीफोन डायरेक्टरी के तत्वाधान मैं देह्तोरा ग्राम मैं सर्वहितकारी जूनियर हाईस्कूल पर जल संरक्षण संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमे समाज और गाँव के जल प्रेमियों ने हिस्सा लिया । जल संरक्षण संगोष्ठी मैं अखिल भारतीय लोधी राजपूत टेलीफोन डायरेक्टरी के सम्पादक मानसिंह राजपूत विचार व्यक्त करते हुये कहा कि सृष्टि की रचना के साथ ही प्रकृति ने हमें निर्बाध रूप से हवा, पानी व प्रकाश प्रचुरता में उपलब्ध कराया है। प्राणी मात्र के लिए प्रकृति प्रदत्त पंचतत्व अमूल्य हैं। सृष्टि रचना में इनका महत्वपूर्ण योगदान है। अतः प्रकृति के नियमों के तहत ही हमें इनका उपयोग करना होगा। उन्होंने कहा की देश में पानी की कमी नही है, बल्कि इसके संरक्षण एवं रखरखाव के लिये पारम्परिक तरीके जैसे तालाब, बावडिया आदि को पुनर्जीवित कर तथा शहरों के अन्धाधुन्द विकास पर नियन्त्रण करते हुये ग्रामीण विकास की नीति को अपनाते हुए इसके संरक्षण सम्वर्धन की नीति समग्र बनायी जाए। अखिल भारतीय लोधी राजपूत टेलीफोन डायरेक्टरी के उपसम्पादक ब्रहमानंद राजपूत ने कहा की विश्व जल दिवस दिन है पानी बचाने के संकल्प का दिन। पानी के महत्व को जानने का दिन और पानी के संरक्षण के विषय में समय रहते सचेत होने का दिन। आँकड़े बताते हैं कि विश्व के 1.5 अरब लोगों को पीने का शुद्ध पानी नही मिल रहा है। प्रकृति जीवनदायी संपदा जल हमें एक चक्र के रूप में प्रदान करती है, हम भी इस चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। चक्र को गतिमान रखना हमारी जिम्मेदारी है, चक्र के थमने का अर्थ है, हमारे जीवन का थम जाना। प्रकृति के खजाने से हम जितना पानी लेते हैं, उसे वापस भी हमें ही लौटाना है। हम स्वयं पानी का निर्माण नहीं कर सकते अतः प्राकृतिक संसाधनों जैसे हमारी प्रमुख नदिया गंगा, यमुना को दूषित न होने दें और पानी को व्यर्थ न गँवाएँ यह प्रण लेना आज के दिन बहुत आवश्यक है। इसके साथ ही उन्होंने भूमिगत जल स्तर की निरन्तर कमी पर भी चिंता व्यक्त की। पवन राजपूत ने जोर देते हुए कहा की समय आ गया है जब हम वर्षा का पानी अधिक से अधिक बचाने की कोशिश करें। बारिश की एक-एक बूँद कीमती है। इन्हें सहेजना बहुत ही आवश्यक है। यदि अभी पानी नहीं सहेजा गया, तो संभव है पानी केवल हमारी आँखों में ही बच पाएगा। पहले कहा गया था कि हमारा देश वह देश है जिसकी गोदी में हजारों नदियाँ खेलती थी, आज वे नदियाँ हजारों में से केवल सैकडों में ही बची हैं। कहाँ गई वे नदियाँ, कोई नहीं बता सकता। नदियों की बात छोड दो, हमारे गाँव-मोहल्लों से तालाब आज गायब हो गए हैं, इनके रख-रखाव और संरक्षण के विषय में बहुत कम कार्य किया गया है। मोरध्वज राजपूत ने कहा की पानी का महत्व भारत के लिए कितना है यह हम इसी बात से जान सकते हैं कि हमारी भाषा में पानी के कितने अधिक मुहावरे हैं। आज पानी की स्थिति देखकर हमारे चेहरों का पानी तो उतर ही गया है, मरने के लिए भी अब चुल्लू भर पानी भी नहीं बचा, अब तो शर्म से चेहरा भी पानी-पानी नहीं होता, हमने बहुतों को पानी पिलाया, पर अब पानी हमें रुलाएगा, यह तय है। सोचो तो वह रोना कैसा होगा, जब हमारी आँखों में ही पानी नहीं रहेगा? वह दिन दूर नहीं, जब सारा पानी हमारी आँखों के सामने से बह जाएगा और हम कुछ नहीं कर पाएँगे। इसके साथ ही सभा मैं उपस्थित सभी लोगों से जल संरक्षण के लिए शपथ दिलाई गयी। संगोष्ठी मैं समाज के प्रमुख गण्मान्य व्यक्तियों सहित महिलाओं, बच्चों ने बडी तादाद मैं हिस्सा लिया। संगोष्ठी मैं अरबसिंह राजपूत, हरिप्रसाद, प्रभावसिंह, लवली लोधी, दुष्यंत, हरिकिशन, आनंद, जीतेन्द्र, दीपक, राजवीर आदि प्रमुख रूप से उपस्थित रहे।