– घनश्याम गोयल व् सम्राट बंदोपाध्याय –
कृषि को लाभकारी व्यापार बनाने के लिए विभिन्न प्रकार के कदम उठाए जा रहे हैं जिनमें गुणवत्ता में सुधार और उपलब्धता के लिए आवश्यक साधन जुटाने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। जिनमें खाद्य, बीज, बिजली और सिंचाई की सुविधाओं को प्राथमिकता में शामिल किया जा रहा है। इन कदमों के उठाने से कृषि को लाभदायक व्यवसाय बनाया जा सकता है। जिनमें निम्नलिखित हैं-
सरकार किसानों को गुणवत्ता वाले बीज और उर्वरक उपलब्ध कराने और वितरण के लिए विभिन्न पद्धतियों, योजनाओं को लागू करने जा रही है। भारत सरकार ने इसके लिए दीनदयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना (डीडीयूजीजेयू) की शुरूआत की है। जिसका उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रो में किसानों को खेती और गैर-खेती के लिए अलग से विश्वसनीयता के साथ समुचित बिजली आपूर्ति के लिए आधारभूत संरचना का निर्माण करना है। डीडीयूजीजेयू योजना में ही राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना को भी शामिल किया रहा है।
जल राज्य का विषय है। जल स्रोत/सिंचाई उपायों को योजनावद्ध तरीके से लागू करने और इसे बनाए रखने के लिए राज्य सरकारों को उनके अपने संसाधनों के हिसाब से प्राथमिकता देना होगा। राज्यों को भारत सरकार वित्तीय सहायता, तकनीकी सहायता, उपलब्ध करा रही है। इसके तहत भारत सरकार जल निकाय योजना एंड सीएडीडब्लयूएम कार्यक्रम के तहत राज्यों को त्वरित गति सिंचाई लाभ कार्यक्रम, मरम्मत, पुनरुद्धार आदि सहायता मुहैय्या करा रही है। इन कार्यक्रमों के जरिए देश में सिंचाई की संभावना को बढ़ावा दिया जा सकेगा साथ ही प्रभावी उपयोगिता भी सुनिश्चित की जा सकेगी। विभिन्न योजनाओं के जरिए किसानों को लघु सिंचाई और सुरक्षित खेती के लिए वित्तीय सहायता भी प्रदान किया जा रहा है। राष्ट्रीय दीर्घकालिक कृषि लक्ष्य और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई) के तहत एकीकृत बागवानी विकास के लिए ऑन-फार्म जल प्रबंधन (ओएफडब्ल्यूएम) को महत्व दिया जा रहा है। लघु सिंचाई सहायता के लिए ओएफडब्ल्यूएम के तहत 35% छोटे अत्यंत छोटे किसानों के लिए 25% और अन्य किसानों के लिए 5 हेक्टेअर प्रत्येक किसान के हिसाब से सहायता दी जा जाएगी। यह सहायता 50% और 35% अलग-अलग क्षेत्रों कें हैं जो ड्राट एरिया प्रोग्राम, डेजर्ट डेवलैपमेंट प्रोग्राम और नार्थ इस्टर्न एण्ड हिमालयन रीजन के तहत आते हैं।
ग्रीन हाउस बनाने के लिए एकीकृत बागवानी विकास कार्यक्रम के तहत फसलों की सुरक्षा के लिए 4000 स्क्वयर मीटर तक प्रत्येक किसान को 50 प्रतिशत की सहायता दी जाएगी। राज्य सरकारें भी राष्ट्रीय किसान विकास योजना के तहत ऐसी तकनीकियों का बढ़ावा दे रही हैं।
सरकार कई योजनाओं को लागू कर रही है जिसमें राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (आरकेवीवाई), राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा लक्ष्य (एनएफएसएम), एकीकृत बागवानी विकास क्रार्यक्रम (एमआईडीएच), राष्ट्रीय आयलसीड एंड आयल पाम (एनएमवोवोपी) और ग्रामीण भंडारण योजना आदि शामिल है। जो कृषि में निवेश को बढ़ावा दे रहे हैं। सरकार पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के जरिए एकीकृत कृषि विकास के मुद्दे पर काम कर रही है। इसके लिए राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के निर्धारण का उपयोग करते हुए राज्यों में कृषि विकास योजनाओं के क्षेत्र में निजी क्षेत्र का बड़ा संगठन बनाना है।
कृषि क्षेत्र को सरकार ने ऋण देने के लिहाज से प्राथमिकता के तौर पर चिन्हित किया है। जो बैंक के कुल ऋण का 18 प्रतिशत हिस्सा होगा। किसानों को फसल ऋण 7 प्रतिशत वार्षिक दर पर दिया जाएगा। अगर किसान समय पर ऋण चुकता करते हैं तो उन्हें 3 प्रतिशत का परिदान दिया जाएगा। किसानों को गोदाम की रसीद पर फसल से पहले 6 महीने के लिए ऋण भी उपलब्ध कराया जा रहा है, ऋण की शर्तें ठीक वही हैं, जो उन्हें आपात बिक्री से बचाती हैं। इस प्रकार अन्य उद्योगों की तुलना में किसानों को दिया जाने वाला फसल ऋण सबसे सहूलियत वाला है। यद्यपि फसल पूर्व ऋणि पैदावार प्रबंधन, विपणन, प्रौद्योगिकी आदि पर संबंधित बैंक द्वारा स्पष्ट दर पर उपलब्ध हैं।
सरकार ने राजस्व संबंधित कई उत्साही उपाय भी किए हैं। जो इस प्रकार हैं – टैक्स में कमी, कर्ज में कटौती, विशेष खाद्य सामग्री में कस्टम ड्यूटी में छूट आदि शामिल है। इस तरह के पहल से खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को उत्साहित किया जा सकेगा। कृषि एवं प्रसंस्कृति खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (एपीईडीए) भी विभिन्न कृषि और संसाधित खाद्य उत्पादों को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाओं को लागू कर रहा है।
किसानों को उच्च गुणवत्ता वाले बीज और उर्वरक उपलब्ध कराने, विभिन्न अभियानों, योजनाओं और परियोजनाओं का ब्यौरा इस प्रकार है –
· बागवानी समेकित विकास अभियान- इस अभियान के तहत सब्जियों और मसालों संबंधी बीज उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए काम किया जाता है। सार्वजनिक क्षेत्र को कुल लागत की शत-प्रतिशत सहायता प्रदान की जाती है। जहां तक निजी क्षेत्र का प्रश्न है, उसे लागत का 50 प्रतिशत सहायता के तौर पर दिया जाता है। यह सहायता प्रति लाभार्थी के संबंध में अधिकतम 5 हेक्टेयर क्षेत्र के लिए सब्सिडी के आधार पर ऋण से जुड़ी है।
· राष्ट्रीय कृषि विस्तार एवं प्रौद्योगिकी अभियान- इस अभियान के तहत बीज और पौधे संबंधी उप-अभियानों से संबंधित कई योजनाएं और गतिविधियां चल रही हैं ताकि बीज क्षेत्र का विकास किया जा सके और अधिक उपज वाले बीजों का उत्पादन किया जा सके। ये बीज सभी प्रकार की फसलों के लिए हैं और इन्हें सस्ती दरों पर किसानों को उपलब्ध कराया जाना इस अभियान का लक्ष्य है। इसके अतिरिक्त बीज उत्पादकों को भी नई किस्मों की पौधों के विकास के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों को वित्तीय सहायता प्रदान करने का भी इस अभियान का लक्ष्य है।
· कृषि विज्ञान केंद्र- ये केंद्र भी बेहतर गुण वाले बीजों के उत्पादन और किसानों को ऐसे बीज प्रदान करने की गतिविधियों से जुड़े हैं। पिछले एक वर्ष के दौरान उन्नत किस्म और संकर दलहनों, तिलहन, दालों, वाणिज्य फसलों, सब्जियों, फूलों, फलों, मसालों, चारा, वनौषधि, औषधीय पौधों और फाइवर फसलों के 1.57 लाख कुंतल बीजों का उत्पादन किया गया और इन्हें 2.61 लाख किसानों को उपलब्ध कराया गया।
· तिलहनों और पाम ऑयल संबंधी राष्ट्रीय अभियान- इस अभियान के तहत उन्नत बीज की खरीद, प्रमाणित बीजों के उत्पादन और वितरण, नई प्रौद्योगिकियों संबंधी मिनी किट का वितरण, बीज संरचना विकास, पाम ऑयल और पेड़ों से प्राप्त होने वाले तिलहनों, जैव उर्वरकों, जिप्सम, पाइराइट, लाइमिंग, डोलोमाइट इत्यादि के उत्पादन के लिए सहायता प्रदान की जाती है।
· राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अभियान – इस अभियान के तहत किसानों को विभिन्न किस्मों और संकर फसलों से संबंधित ज्यादा उपज वाले प्रमाणित बीजों को सब्सिडी पर उपलब्ध कराया जाता है। धान, गेहूं, दालों और मोटे अनाजों के उत्पादन के लिए मिट्टी को उपजाऊ बनाने वाले पोषक भी सब्सिडी पर किसानों को उपलब्ध कराए जाते हैं। इसके अलावा जैव उर्वरक भी सब्सिडी पर किसानों को दिया जाता है।
· उर्वरक (नियंत्रण) आदेश, 1985 – उच्च गुणवत्ता वाले उर्वरकों के नियमन के लिए 1985 में इस आदेश को लागू किया गया था। कोई भी व्यक्ति ऐसे किसी उर्वरक का उत्पादन और आयात, बिक्री, भंडारण, बिक्री का प्रस्ताव, प्रदर्शन या वितरण नहीं कर सकता जो इस आदेश के तहत अधिसूचित नहीं है। राज्य सरकारों के अधिकृत उर्वरक निरीक्षक समय-समय पर उर्वरकों के नमूने लेते हैं और उनकी गुणवत्ता की जांच करते हैं। जहां तक आयातित उर्वरकों का प्रश्न है, केंद्र सरकार के उर्वरक निरीक्षक जहाजों या कंटेनरों से नमूने लेकर उनकी गुणवत्ता की जांच करते हैं।
· रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के अधीन उर्वरक विभाग बेहतर यूरिया और फास्फेटिक तथा पोटाश संबंधी उर्वरकों की 22 किस्में सब्सिडी की दरों पर किसानों को उपलब्ध कराते हैं जो उर्वरक (नियंत्रण) आदेश, 1985 के कड़े मानदंडों के अनुरूप होता है।
घनश्याम गोयल
पत्र सूचना कार्यालय में अतिरिक्त महानिदेशक नई दिल्ली !
सम्राट बंदोपाध्याय
पत्र सूचना कार्यालय, नई दिल्ली में सहायक निदेशक हैं !
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