कलयुग के यह उपदेशक…

–  निर्मल रानी –         

हमारे देश में उपदेशकों की गोया बाढ़ सी आई हुई है। धर्म क्षेत्र से लेकर राजनीति के क्षेत्र तक हर जगह ‘मुफ्त’ में ही ज्ञान उंडेला जा रहा है। और इस ज्ञान वर्षा का परिणाम क्या है यह बताने की ज़रूरत भी नहीं है। धर्म व अध्यात्म क्षेत्र को स्वयंभू उपदेशकों द्वारा कलंकित करने की कहानियां तो अक्सर हमारे देश में टेलीविज़न से लेकर समाचार पत्रों व पत्रिकाओं तक में प्रथम शीर्षक पर प्रसारित व प्रकाशित होती रही हैं। ऐसे कई स्वयंभू अध्यात्मवादियों व धर्माधिकारियों पर देश व दुनिया थू-थू कर चुकी है। और ऐसा ही हाल हमारे देश के लोकतंत्र तथा यहां सक्रिय अनेक राजनीतिज्ञों का भी है। बिना सोचे-समझे अतार्किक बातें कह देना,अपनी पूर्वाग्रही भड़ास निकालना,समाज में अलग-अलग तरह की दीवारें खींचने की कोशिश करना,झूठ-सच व अनर्गल बातें अपने भाषणों में करना,सत्ता हासिल करने के लिए लोकतंत्र व संविधान की धज्जियां उड़ाने जैसी अनेक बुराईयां भारतीय राजनीति में अपना घर बना चुकी हैं। कहना गलत नहीं होगा कि इस समय न केवल देश बल्कि पूरी दुनिया के हालात इसी प्रकार की सत्तालोभी,भ्रष्ट तथा व्यवसायिक राजनीति की वजह से बद से बदतर हो रहे है तथा यह भी सच है कि विश्व की राजनीति इस समय लगभग शत-प्रतिशत पुरूष समाज के हाथों में ही है। वही पुरुष समाज जो अमेरिका से लेकर उत्तर कोरिया,सीरिया,इराक, िफलिस्तीन,यमन जैसे देशों के नेतृत्व को संभाले हुए है।

दुनिया के ऐसे माहौल में हमारे देश के एक प्रतिष्ठित भाजपाई नेता तथा मध्यप्रदेश सरकार के उर्जा मंत्री पारस जैन ने स्वयं शादीशुदा व दो बच्चों के पिता होने के बावजूद एक ऐसा उपदेशपूर्ण बयान दिया है जिसे सुनकर उनकी मानसिकता तथा सोच-विचार पर तरस आता है। मंत्री महोदय फरमाते हैं कि-केवल कुंआरे अर्थात् अविवाहित लोगों को ही ‘सांसद अथवा विधायक बनाया जाना चाहिए। शादीशुदा व परिवार रखने वाले लोगों को सांसद अथवा विधायक नहीं बनाना चाहिए’। अपने इस बयान के पक्ष में उन्होंने यह तर्क दिया कि ‘शादीशुदा लोग अपने परिवार की चिंता करते हैं और उनका परिवार भी बढ़ जाता है। बाद में वह अपने बच्चों की शादी की चिंता करने लगते हैं। परंतु जो शादी नहीं करते वे केवल देश के बारे में ही सोचते हैं’। उनके इस बयान का मकसद इस वक्तव्य के शब्दों से उतना ज़ाहिर नहीं होता जितना कि उन्होंने अपने इसी बयान के संदर्भ में अपने अगले वाक्य में स्पष्ट किया। अपने इस बयान के समर्थन में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मिसाल देते हुए कहा कि ’यह दोनों लोग सिर्फ अपने देश की ही चिंता करते हैं’। पंरतु उन्होंने कुंवारे जि़म्मेदार राजनीतिज्ञों की सूची में कुछ ‘वास्तविक’ कुंआरों का नाम नहीं लिया। मिसाल के तौर पर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी, उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती व तमिलानाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता की परिवार न बसाने जैसी कुर्बानियों का जि़क्र नहीं किया। न ही उन्हें भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष राहुल गांधी ‘देश की चिंता’ करते हुए नज़र आए जोकि िफलहाल कुंवारे ही हैं।

सोचने का विषय है कि पारस जैन के इस बयान में आिखर किन विचारों के दर्शन दिखाई देते हैं उपदेश के या चाटुकारिता के? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को कुंआरा कहना तो तथ्यात्मक रूप से ही गलत है। क्योंकि उन्होंने अपने चुनाव नामांकन  के घोषणा पत्र में अपने शादीशुदा होने की बात स्वीकार की है। परंतु जैन साहब ने महज़ मोदी व योगी जैसे बड़े नेताओं को खुश करने व उनकी खुशामदपरस्ती के लिए ऐसा बयान दिया। वे यदि किसी दूसरे दल के नेता की ही नहीं तो कम से कम अपने ही दल के नेता खट्टर साहब की कुर्बानी को तो याद करते? पारस जैन की बातों में एक विरोधाभास यह भी है कि अपने दो बच्चों व एक पत्नी जैसे खुशहाल परिवार के साथ रहते हुए आिखर उन्हें यह एहसास कैसे हुआ कि शादीशुदा व्यक्ति की तुलना में कुंआरा व्यक्ति भ्रष्टाचार नहीं करता? क्या यह उनका अपना अनुभव है? क्या वे पुत्र या परिवार मोह में ऐसा कर चुके हैं या उनके भीतर कभी ऐसा करने की इच्छा जागृत हुई?। उन्होंने अपनी बात की दलील में मोदी व योगी का नाम तो लिया परंतु श्री अटल बिहारी वाजपेयी जैसे महान भाजपा नेता का नाम नहीं लिया। ऐसा इसलिए कि उन्हें वाजपेयी जी की तारीफ से कुछ हासिल नहीं होना जबकि मोदी व योगी की प्रशंसा उनके राजनैतिक जीवन में चार चांद लगा सकती है। उन्होंने डा० एपीजे अब्दुल कलाम का नाम भी नहीं लिया क्योंकि उनका नाम लेने से भी उन्हें कुछ हासिल नहीं होने वाला। हां अगर उनके संरक्षकों की ‘पैनी नज़र’ कलाम साहब के नाम पर पड़ जाए तो जैन साहब के लेने के देने ज़रूर पड़ सकते थे। इसलिए उन्हें देश के कुंआरों में केवल दो ही आदर्श कुंआरे दिखाई दिए ,मोदी और योगी।

हमारे देश में लाल बहादुर शास्त्री,गुलज़ारी लाल नंदा,सरदार पटेल,पंडित जवाहर लाल नेहरू,अबुल कलाम आज़ाद,रफी अहमद कि़दवई,जगजीवन राम,मोरारजी देसाई,चौधरी चरण सिंह तथा मनमोहन सिंह जैसे हज़ारों राजनीतिज्ञों के नाम है जिन्होंने ईमानदारी,शिष्टाचार तथा सौम्यता का प्रदर्शन करते हुए आजीवन राजनीति की है। आज भी इनकी ईमानदारी के चर्चे देश व दुनिया में होते रहते हैं। परंतु यह सभी परिवार चलाने वाले शादीशुदा लोग थे। इन्होंने व इन जैसे अनेक नेताओं ने गृहस्थ जीवन बिताने के बावजूद एक आदर्श राजनीतिज्ञ का जीवन बसर किया। जहां तक कुंआरे रहने व कुंआरा रहकर सदाचारी व शिष्टाचारी होने का प्रश्र है तो इस क्षेत्र में साधू-संतों,ब्रहमचारियों,त्यागियों व तपस्वियों को सबसे अधिक श्रद्धा व सम्मान की नज़र से देखा जाता है। उनके विषय में मेरा तो कुछ लिखने का साहस नहीं परंतु देश के प्रसिद्ध अविवाहित जैन धर्मगुरू मुनि श्री तरूण सागर जी के विचारों को भी सुनना ज़रूरी है। मुनि महाराज फरमाते हैं कि-‘ यह कड़वा सच है कि आज देश के संत,महात्मा,महामंडलेश्वर व शंकराचार्य अकूत संपत्ति के मालिक बने बैठे है। उनके बड़े-बड़े आश्रम, भव्य मंहगी कारें व उनकी जीवनशैली को देखकर लगता ही नहीं कि यह भारत के विरक्त संत हैं। जैसे नेताओं की संपत्ति की कभी जांच नहीं होती। वैसे ही साधू-संतों की संपत्ति की जांच भी नहीं होती। आज वे ‘साधना’ में कम ‘साधनों’ में ज़्यादा जी रहे हैं। याद रखें कर्मचारी कोठे पर और साधू बैंक में कभी शोभा नहीं देता’।

मुनिश्री तरुण सागर जी महाराज का यह कथन केवल इसलिए उद्धृत किया ताकि मध्यप्रदेश के उर्जा मंत्री पारस जैन के ज़ेहन में यह बात बैठ सके कि उन्हीं के समाज के एक सर्वप्रतिष्ठित धर्मगुरु उन कुंआरे लोगों के बारे में कैसे स्पष्ट विचार रखते हैं जिन्होंने ब्रह्मचार्य व परिवार के त्याग की आड़ में क्या कुछ नहीं बना रखा है। मंत्री महोदय को इस प्रकार की बेतुकी बातें कर समाज में कुंवारों व शादीशुदा लोगों के मध्य लकीर खींचने की कोशिश हरगिज़ नहीं करनी चाहिए। जिसका परिवार नहीं होगा वह परिवार की तकलीफ,परिवार की जि़म्मेदारियों,परिवार की चिंता व समाज व राष्ट्र के प्रति उसकी भूमिका के बारे में कैसे सोच सकेगा? सच पूछिए तो आज के दौर में किसी कुंआरे या पत्नी छोड़े हुए व्यक्ति को कोई अपना मकान भी किराए पर नहीं देना चाहता। ज़ाहिर है कुंआरे व्यक्ति से अधिक विश्वसनीय परिवार रखने वाला व्यक्ति माना जाता है। इस प्रकार का उपदेश देने वालों को ‘कलयुग के उपदेशक’ के सिवा और कुछ नहीं का जा सकता।

_____________

परिचय –:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !

संपर्क -:
Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 4003
Email :nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.



 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here