कविताएँ
1- धर्म वालों मैं पुछना चाहता हूँ
किस धर्म का ये गीत है
खून खूनी जिंदगी –
किस पंथ की ये रीत है
कदमों के नीचे वंदगी –
करुणा दया के पाँव कटते
बेबस बनेगी जिंदगी –
किस धर्म की ये जीत है
रोएगी दर दर जिंदगी –
किस धर्म की ये प्रीत है
लाशों पे जीती जिंदगी –
किस धर्म की ये सीख है
जीवन को जारे जिंदगी –
2-
रोकर किसी से आप मोहब्बत न मांगिए
अपने या अपने गैर को गुरबत न मगिए –
काफी नहीं है जिंदगी जितनी मिली हमें
उलफत के रास्तों से रुखसत न मांगिए –
अफसानों ने है लिखा हम शहादतपसंद है
गद्दारों की जिंदगी और सोहबत न मांगिए –
आसमां कह रहा है ये जमी कह रही है
ना मांगो अगर दुआ तो नफरत न मांगिए –
न रोक पाई है हौसलों को दरिया कभी कोई
कागज के नाव सी कभी किस्मत न मांगिए
3-
जब आँखों में नेह नहीं
नीर न जाने बहते क्यों ?
नेह नयन में आया जब
नीर न जाने बहते क्यों ?
सूनी आँखों के मरुधर
प्रेम के बदल ढूंढ रहे
जलते पांव वेदन बढती है
नीर न जाने बहते क्यों ?
रूठा मीत परदेस बसा
न मना सके कर जोड़ उसे
ह्रदय मुकुर मन टूट गया
नीर न जाने बहते क्यों ?
4-
लफ़्फ़बाजों को सियासत में उतार दिया है
देख बाबाओं को धर्म ने बाजार दिया है –
अब ऊँची ऊँची धर्म की दीवारें खींचीं हैं
जातियों की गहरी खायीं ने आकार लिया है –
धर्म जाति को बचा ने की सियासत होती है
इंसानियत को कहीं आदमी ने मार दिया है-
विपन्नता बनी रहे इंतजाम है महंगाई का
प्रेम व विस्वास का क्या पुरस्कार दिया है-
उजारे की आश उनका घर अँधेरा रह गया
खाली जनधनी किताब हाथ आधार लिया है-
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उदय वीर सिंह
कवि व् लेखक
शिक्षा – गोरखपुर विश्वविद्यालय से
स्वतंत्र लेखन
गोरखपुर में रहते हैं