– डॉ. मयंक चतुर्वेदी –
संत परंपरा का निर्वहन करते हुए राजनीति में आए योगी आदित्यनाथ पर यह आरोप सदैव से लगते रहे हैं कि वे हिन्दुत्व की राजनीति करते हैं, चुनावों में एक वर्ग विशेष, धर्म-संप्रदाय से जुड़े वोटों का ध्रुवीकरण करते हैं और जरूरत पड़े तो वे तीन तलाक, लव जिहाद, मदरसा, कब्रिस्तान जैसे धर्म आधारित विवादित बयान देने से पीछे नहीं रहते । उनके तमाम पुराने बयानों को एक बार में देखने पर यही लगता है कि वे अल्पसंख्यक समाज खासकर मुसलमानों के धुरविरोधी हैं। सीधेतौर पर इसका प्रभाव भी समुचे यूपी में योगी के विरोध में देखने को मिलता है तो वहीं प्रशंसकों की कोई कमी भी इसी कारण नहीं है कि वे सीधे-सीधे बोलते हैं। फिर उनके कितने भी विरोधी लोकतंत्र, सेक्युलरिज्म और कट्टरता की आड़ लेकर खड़े हों जाए लेकिन योगी अपनी कही बात से पीछे नहीं हटते हैं। अभी हाल ही में यूपी चुनावों के दौरान जब उन्होंने कुछ मीडिया संस्थानों को अपने साक्षात्कार दिए तो उनकी सही में मंशा क्या है और वे राष्ट्र, राजनीति एवं समाज को लेकर किस प्रकार से सोचते हैं, यह बात व्यापक स्तर पर उजागर हुई। जिसका निष्कर्ष यही है कि यूपी के वर्तमान मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी राजनीति को सेवा का मध्यम मानते हैं और उत्तरप्रदेश को खुशहाल विकसित बनाने का वे स्वप्न देखते हैं ।
भाजपा ने उन्हें जैसे ही यूपी का मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा की तो उत्तरप्रदेश या देश की राजधानी दिल्ली से ही नहीं तमाम राज्यों से यह आवाज भी उठी कि यह उत्तरप्रदेश के लिए ठीक निर्णय नहीं है। सभी खबरिया चेनलों पर यह बहस शुरू हो गई कि उनके सीएम बनने के कारण यूपी को कितना नुकसान होगा, किंतु क्या यह मानलेना पूरी तरह सही होगा कि उत्तप्रदेश को योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने से सिर्फ नुकसान ही होगा । निश्चित ही कुछ बातें हैं जिन पर सभी को गौर अवश्य करना चाहिए। योगी के इस वक्तव्य को गंभीरता से देखें, हमारे पास नेता हैं, हमारे पास कार्यकर्ता हैं, हमारे पास कैडर है, हम अपनी इस विचारधारा को पुष्ट करते हुए उत्तर प्रदेश में राज भी बदलेंगे, समाज भी बदलेंगे, वहां की विकृत व्यवस्था भी बदलेंगे। हमारी नज़र कुर्सी पर नहीं, भारत माता के चरणों पर है, हम भारत माता के विकास के लिए उत्तर प्रदेश के समग्र विकास के लिए कार्य करेंगे । वस्तुत: यह बातें योगी आदित्यनाथ ने एक खबरिया चेनल इण्डिया 24 सेवन के साक्षात्कार में कहीं थीं। देखाजाए तो इससे पता चल जाता है कि वे उत्तरप्रदेश की समुची राजनीति एवं वहां की व्यवस्था को लेकर क्या सोचते हैं।
इसमें कोई दोराय नहीं कि वह बीजेपी के फायर ब्रांड नेता हैं। पूर्वांचल में उन्हें हिंदुत्व के पुरोधा के रूप में जाना जाता है। लेकिन क्या इससे यह तय किया जा सकता है अथवा यह धारणा पुष्ट की जाना चाहिए कि वे हिन्दुओं के अलावा अन्य पंथ-संप्रदाय के विरोधी हैं ? योगी के अब तक दिए जिन बयानों एवं भाषणों को लेकर मीडिया तथाकथित धर्मनिरपेक्ष ताकतें और राजनीतिक पार्टियां उन्हें कटघरे में खड़ा करती आई हैं, वास्तव अब उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद ही सही यह जरूर पूछा जाना चाहिए कि योगी जब किसी बात को कह रहे होते हैं तो उसके पीछे का संदर्भ क्या था ? जिस पर उनका यह बयान या भाषण सार्वजनिक हुआ। क्या हिन्दूहित की बात कहना साम्प्रदायिक हो जाना है ? भारत ने तो पाकिस्तान का रास्ता नहीं चुना, न ही डायरेक्ट एक्शन के नाम पर देश के दो टुकड़े करने के लिए हिन्दुओं ने कोई प्रयास किए, बल्कि जिन स्वातंत्र्यवीर सावरकर से लेकर अन्य देशभक्तों पर हिन्दू अतिवादी होने का आरोप लगता रहा है, धर्म के आधार पर भारत के टुकड़े हो, यह तो उन्होंने भी कभी नहीं चाहा था। फिर जब टुकड़े हो ही गए तो मुसलमानों को जिन्हें भारत से प्यार था और जो शेष हिन्दुस्थान में बहुसंख्यक समाज के साथ ही रहना चाहते थे, उन्हें देश में रहने देने से लेकर, उन्हें अल्पसंख्यक मानकर विशेष रियायतें देने तक और उसके बाद भी भारत को पंथ निरपेक्ष गणराज्य घोषित करने तक यदि आप देखें तो कहीं से भी हिन्दूहित की बात करने वाले कटघरे में खड़े किए जाएं ऐसे नजर नहीं आते हैं, फिर उसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही क्यों न हो ।
उसके बाद भी यदि इसी हिन्दू परंपरा का निर्वहन करनेवाले योगी आदित्यनाथ पर प्रश्नचिन्ह लगाए जाते हैं तो अवश्य यह सोचना जरूरी है कि आखिर इस सब मामले में सत्य क्या है ? यहां योगी के स्वभाव पर गौर किया जाना चाहिए कि वे क्या सोचते हैं और क्या चाहते हैं ? उन्हीं के शब्दों में समझिए, जनप्रतिनिधि होने के नाते मैं किसी जाति या मजहब का प्रतिनिधि नहीं हूं। मेरे पास कोई पीड़ित आता है तो मैं उसकी सुनवाई करता हूं और न्याय के लिए शासन-प्रशासन से अपील करता हूं। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत की सनातन संस्कृति को वो लोग कोसते हैं और गालियां देते हैं, जो खुद संकीर्ण दायरे में कैद हैं। हमने सर्वें भवन्तु सुखिन: की बात की, सबका साथ सबका विकास की बात की, तो हम सांप्रदायिक हो गए। जो लोग जाति या मजहब के नाम पर वोट मांगते हैं वे सेक्युलर हो गए। यह दोगलापन बंद होना चाहिए।
उत्तरप्रदेश के विकास को लेकर के योगी आदित्यनाथ ने मुख्यमंत्री बनने से पूर्व ही अपनी ओर से साफ संकेत दे दिए थे जिसमें वे साफ और सीधे शब्दों में कहते हुए देखे गए कि भारतीय जनता पार्टी ने अपने मैनिफेस्टो में किसानों की बात की है, युवाओं की बात की है, गांव की बात की है, पशु धन की सुरक्षा और पशु धन के संरक्षण के लिए अवैध कत्लखानों को रोकने की बात कही है। भारतीय जनता पार्टी ने लघु और सीमांत किसानों के ऋणों को माफ करने की बात कही है। गांव के समग्र विकास के साथ-साथ गरीबी रेखा के नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों को बुनियादी सुविधाएं, पेयजल, आवास, विद्युत, रसोई गैस, शौचालय आदि की व्यवस्था देने की बात कही है। सबसे महत्त्वपूर्ण बात भाजपा ने युवाओं को स्वावलंबन का जीवन देने के लिए, उन्हें रोज़गार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कही है, जिसमें कि आगे ग्रुप बी और ग्रुप सी में सभी तरह के साक्षात्कार खत्म करके मेरिट के आधार पर नौकरी देने की व्यवस्था की जाएगी। भारतीय जनता पार्टी ने अपने मैनिफेस्टो में इस बात को भी कहा है कि संप्रदायिक हिंसा जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में हम इसको निश्चित कराएंगे कि वहां पर सामयिक पलायन की स्थिति ना पैदा हो, उसके लिए पुलिस और डिप्टी एसपी रैंक और डिप्टी कलैक्टर रैंक के अधिकारियों की तैनाती वहां पर होगी और सीधे-सीधे ज़िला अधिकारियों को इसके लिए जवाबदेह बनाया जाएगा।
वस्तुत: इन सभी बातों पर गंभीरता से गौर करने के बाद कहना यही होगा कि उत्तरप्रदेश के लिए वहां की वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए योगी आदित्यनाथ जैसा ही व्यक्ति मुख्यमंत्री बनना चाहिए था, जोकि अपने चाल और चरित्र दोनों से स्पष्ट होता। संयोग से अब यूपी को योगी मुख्यमंत्री के रूप में अपने दो सहयोगी उपमुख्यमंत्रियों के साथ मिल गए हैं। आगे आशा यही की जानी चाहिए कि उत्तरप्रदेश का वर्तमान और भविष्य दोनों ही सुखद है।
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डॉ. मयंक चतुर्वेदी
वरिष्ठ पत्रकार एवं सेंसर बोर्ड की एडवाइजरी कमेटी के सदस्य
डॉ. मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है।
सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।
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