– अनिल सिन्दूर –
भदेख नरेश परीक्षित का प्रथम स्वतंत्रता आन्दोलन में योगदान महत्वपूर्ण था साथ ही वह किसानों का दर्द समझने वाले बेहद संवेदनशील राजा थे ! यही वजह है कि सूखे के बाद उपजी विभीषिका के बाद किसानों से लगान वसूलने को जब अंग्रेजों ने उन पर जोर डाला उन्होंने लगान चुकाने को अपनी रियासत के कई गाँव तक गिरवी रख दिए ! उरई (जालौन) से उत्तर में लगभग 60 किमी. दूरी पर स्थित भदेख गाँव का विवरण मुग़ल बादशाह अकबर के शासनकाल में मिलता है ! उस समय भदेख कालपी सरकार के 16 मोहालों में से एक था ! भदेख मोहाल का क्षेत्रफल 72हज़ार 9सौ 30वीघा 14 विशवा था ! कालपी सरकार का कुल रेवन्यू 4करोड़ 93लाख 56हज़ार 732 दाम था जिसमें 12लाख 60हज़ार 199 दाम भदेख मोहाल का था ! सयार ड्यूटी में भदेख मोहाल से 3414 दाम कालपी सरकार को प्राप्त होते थे ! 50 घुड़सवार तथा 2000 पैदल सैनिक भदेख से मुग़ल सेना में भेजे जाते थे ! एक समय सेंगर राजपूत की 26 गाँवो की रियासत का मुख्यालय भदेख बना ! 22 नवम्बर 1805 को ग्वालियर के दौलतराव सिंधिया और ईस्ट इण्डिया कम्पनी के मध्य मुस्तफ़ापुर में एक संधि हुई, जिसके अनुसार भदेख गाँव ईस्ट इण्डिया को प्राप्त हुआ ! इस संधि पर लार्ड लेक के प्रतिनिधि के रूप में लेफ्टी. कर्नल मालकम तथा सिंधिया के प्रतिनिधि मुंशी केवन नैन के हस्ताक्षर हुए ! प्राम्भ में अंग्रेजों ने भदेख को कानपूर जिले में शामिल किया परन्तु 1825 में भदेख को कालपी में शामिल कर लिया !
1857 कि क्रांति के समय भदेख के राजा परीक्षित के पास 26 गाँव थे ! राजा को कम्पनी सरकार को 12262 रुपए प्रतिवर्ष कर के रूप में देने पड़ते थे ! 1857 कि क्रांति में जालौन जिले में अंग्रेंजों के विरुद्ध सर्वप्रथम विद्रोह का झंडा राजा भदेख ने उठाया ! अंग्रेजों के कानून राजा के लिए बिल्कुल अलग एवं नये थे करों कि वसूली में इतनी ज्यादा कठोरता थी कि राजा को कई बार अपमानित होना पड़ा ! प्रत्येक वर्ष लगान में बढ़ोत्तरी कर दी जाती थी ! वर्ष 1830, 1834, 1838 में जिले में भयंकर अकाल पड़ा कास्तकारों से कर वसूल कर पाना राजा के लिए मिश्किल होरहा था जिले की वर्ष 1840 में रेवन्यू की मांग 3लाख 41हज़ार 151 रुपए थी, वर्ष 1851 में बढ़कर 6लाख 56हज़ार 532 रुपए कर दी गई थी ! वहीँ पास के राजाओं रामपुरा तथा गोपालपुरा को कोई कर नहीं देना पड़ता था ! जब कि सरावन के राजा को 3526 रुपए तथा जगम्मनपुर के राजा को केवल 4754 रुपए वार्षिक अंग्रेजों को देते थे !
# धरोहर को सहेजने की परम्परा – # 1857 के स्वतंत्रता आन्दोलन में राजा भदेख की भागीदारी सराहनीय
राजा परीक्षित कि देनदारी बढ़ती जा रही थी ! सरकारी कर्मचारी, अधिकारी अंग्रेंजों के दबाब में बार-बार- राजा के यहाँ वसूली के लिए पहुँचने लगे ! राजा के लिए यह बड़ी बात थी ! राजा बड़े स्वाभिमानी थे ! स्वाभाव भी नरम दिल था इसलिए वह अपनी रैयत से लगान कड़ाई से वसूल नहीं करते थे ! वर्ष 1813, और 1816 में राज्य अकाल से पीड़ित रह चुका था वर्ष 1833 और 1834 में फिर भयंकर अकाल पड़ा ! वर्ष 1837-38 में वर्षा देर से हुई जनता गांवों को छोड़कर एनी स्थानों को भरण-पोषण को चली गयी !
जालौन के मराठा शासक अपने राज्य कि जनता कि परेशानी को दृष्टिगत रख वसूली में सख्ती नहीं कर रहे थे परन्तु कालपी के अंग्रेज अधिकारिओं को तो सिर्फ राजस्व वसूली से ही मतलब था ! समय पर बकाया न जमा करने के कारण कनार में तहसीलदार देवीप्रसाद के यहाँ पेश होने का आदेश मिला ! सम्मान की रक्षा को उन्होंने रियासत के कई गांवों को रूपनाथ मारवाड़ी के पास गिरवी रखकर कर्ज लेकर लगान जमा किया ! राजा जलालत को सहन न कर सके और 1857 में जैसे ही जालौन में सैनिकों ने विद्रोह किया राजा परीक्षित भी विद्रोहिओं के साथ हो गये ! राजा परीक्षित ने एक सेना का गठन कर शेरगढ़ घाट पर अधिकार कर लिया ! झाँसी के विद्रोही सैनिकों के उरई आने पर परीक्षित ने उनकी हर प्रकार से मदद कि और 24 जून 1857 को झाँसी की ब्रिगेड ने शेरगढ़ घाट को पार करके औरय्या (इटावा) को लूट लिया ! तात्या टोपे से प्रभावित ग्वालियर राजा के सैनिक अक्टूबर 1857 में कई टुकड़ों में अलग-अलग दलों में जालौन कि ओर आ रहे थे !
ये सब सैनिक जालौन के बाहर एक माह तक रुके रहे एस पुरे समय परीक्षित ने ग्वालियर के सैनिकों को रसद का प्रबन्ध किया ! कुछ समय बाद कानपूर पर पुन: अधिकार के लिए तात्या टोपे के साथ ग्वालियर के सेना के साथ ही भदेख नरेश के सैनिक भी गए थे ! 6 दिसम्बर 1857 को कानपूर के युद्ध में क्रांतिकारियों को हार का मुँह देखना पड़ा ! पराजित सेनायें तात्या टोपे के साथ कालपी लौटी ! क्रांतिकारियों की पराजय तथा अपने उद्देश्य में सफलता न मिलने के क्षोभ के कारण राजा परीक्षित ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली ! राजा परीक्षित कि मृत्यु के बाद जालौन जनपद कि उत्तरी सीमा और कनार परगना में क्रांति कि ज्वाला को प्रज्जवलित रखने को परीक्षित कि विधवा रानी चन्देलन जू स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़ी ! कालपी पर अधिकार हो जाने के बाद कैप्टन टरनन ने भदेख पर अधिकार करने को एक सेना भेजी और तोपों के गोलों से भदेख की गढ़ी को ध्वस्त कर दिया ! रानी, उनका गोद लिया पुत्र, दीवान तथा कुछ अन्य सहयोगियों के साथ गिरफ्तार कर कालपी लाया गया ! रानी के क्रन्तिकारी सहयोगी जिनको गिरफ्तार नहीं किया जा सका था उन्होंने कालपी पर आक्रमण कर रानी को मुक्त कराने का निश्चय किया जिसकी खबर जैसे ही कैप्टन टरनन को लगी उसने रानी चन्देलन जू को कानपूर भेज दिया और उनके नये ठिकाने उनके पिता की औंनहा (कानपूर देहात) गढ़ी को भी ध्वस्त करवा दिया ! क्रांति में भाग लेने के कारण अंग्रेंज सरकार ने राजा परीक्षित के सभी गाँव नीलाम कर दिए !
रानी चन्देलन जू ने अंग्रेजों से समझौता किया और अपने गोद लिए पुत्र को लेकर अपने मायके औनहा चली गयीं ! वहीँ उन्होंने अपने पुत्र देवीवक्स सिंह कि परवरिश की देवीवक्स सिंह के पुत्र प्रताप सिंह और उनके पुत्र राजा रघुनाथ सिंह हुए ! राजा रघुनाथ सिंह के समय देश आज़ाद हो चुका था ! राजा रघुनाथ सिंह ने विरासत में मिली समाज सेवा को अपनाया और उन्होंने राजनीति को सेवा का जरिया बनाया ! कांग्रेस के टिकट पर वह 1967 से 1974 तक सरवन खेडा (कानपूर देहात) विधायक रहे ! वह पूर्व मुख्यमंत्री चन्द्रभानु गुप्ता के बहुत करीब थे ! कानपूर में गंगा बैराज निर्माण को गंगा महा समिति गठित की ! 1989 में आन्दोलन शुरू हुआ जिससे गंगा घाटों पर आ सके ! गंगा में गिरने वाले गंदे नालों का भी विरोध शुरू हुआ ! गाँव के लोग शहर की ओर पलायन न करें इसके लिए जरुरी था गाँव में ही शहरों जैसा खुशहाल माहौल बनाया जाय ! उन्होंने 20 एकड़ जमीन देकर एक बृहद पर्यावरण पार्क बनवाया जिसे संरक्षित करने को सरकार को सौंप दिया ! पर्यावरण पार्क के बगल में ही एक बच्चों का ऐसा पार्क बना जो शहरों में भी देखने को कम ही मिलता है !
वह बिनोवा भावे के भू-दान आन्दोलन से जुड़े और अपनी सैकड़ों एकड़ जमीन हरिजनों को पट्टे बनवा कर वितरण किये ! गाँव में ही शिक्षा का हब बने 196 बीघा जमीन बहुत सस्ते दाम में एक इंजीनियरिंग कालेज को दे दी ! गाँव में ही रोजगार के साधन उपलब्ध कराने पर भी उन्होंने शिक्षा पर विशेष जोर दिया ! आदिवासी बस्ती बनाने को भी जमीन का एक बड़ा हिस्सा दिया ! गाँव में पानी को संरक्षित करने को तालाब संरक्षित किया जो अब सरकार के पास है ! प्रशासन ने उसे मछली पालन को पट्टा कर दिया जो उसका स्वरुप बिगाड़ने पर आमादा है ! आज उसी धरोहर को सहेजने में लगे हैं उनके पुत्र सर्वेश प्रताप सिंह जिन्होंने गाँव के किसानों को समर्थ बनाने का बीड़ा उठाया है !
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अनिल सिन्दूर
विशेष संवादाता आई एन वी सी न्यूज़
# 28 वर्षों से विभिन्न समाचार पत्रों तथा समाचार एजेंसी में बेवाकी से पत्रिकारिता क्षेत्र में पत्रिकारिता के माध्यम से तमाम भ्रष्ट अधिकारियों की करतूतों को उजागर कर सज़ा दिलाने में सफल योगदान साथ ही सरकारी योजनाओं को आखरी जन तक पहुचाने में विशेष योगदान, वर्ष 2008-09 में बुंदेलखंड में सूखे के दौरान भूख से अपनी इहलीला समाप्त करने वाले गरीब किसानों को न्याय दिलाने वाबत मानव अधिकार आयोग दिल्ली की न्यायालय में उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के सात जिलों के जिला अधिकारिओं पर मुकद्दमा.
ई-मेल : anilsindoor2010@gmail.com , anil.sindoor@outlook.com , Mob. No. 9415592770
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