{अरुण जेटली**}
पिछले चौबीस घंटेे में मैंने दो महत्वपूर्ण टिप्पणियां सुनीं जिन्होंने मुझे परेशानी में डाल दिया। विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद लंदन में किसी व्याख्यान के लिए गए थे। अपने व्याख्यान में उन्होंने टिप्पणी की कि उच्चतम नयायालय और निर्वाचन आयोग अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जा रहे हैं। उनका मानना है कि कुछ ऐसे लोग भारतीय लोकतंत्र को नियंत्रित नहीं कर सकते जो चुनकर नहीं आए हैं क्योंकि यह काम निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा ही किया जाना चाहिए। भारतीय संविधान के अंतर्गत शक्तियों का स्पष्ट बंटवारा किया गया है। कानून की व्याख्या करने की जिम्मेदारी अदालतों की है। न्यायालय विधायिका द्वारा बनाए गए किसी भी कानून की संवैधानिक वैधता की न्यायिक समीक्षा कर सकती है। न्यायालय कार्य पालिका के सभी कार्यों की न्यायिक समीक्षा कर सकती है। न्यायालय का काम है कि वह संवैधानिक संस्थाओं के अधिकार क्षेत्र की सीमाओं के बारे में फैसला करे। आमतौर पर अदालतें कार्य पालिका की तरह अपनी समझ नहीं बदल सकती। नीतियां बनाना कार्यपालिका का काम है। कानून बनाना संसद का काम है। उनके कार्यों की न्यायिक समीक्षा के लिए न्यायालय हमेशा आ सकती है और किसी भी असंवैधानिक और निरंकुश कार्य पर रोक लगा सकती है। न्यायालय कार्य पालिका को निर्देश दे सकती है कि वह कानून के आदेश का पालन करे।
न्यायालय यह भी पता लगाने की इच्छा रख सकती है कि कोई फैसला लेते समय क्या कार्यपालिका सोच-समझकर कार्य कर रही है। सभी फैसलों की स्पष्ट व्याख्या होनी चाहिए। इन व्याख्याओं को रिकॉर्ड में रखा जाना चाहिए। केवल एक अनुमान के साथ किसी कानून की मौजूदगी की कल्पना नहीं की जा सकती। कानून की व्याख्या और न्यायिक समीक्षा करते समय, न्यायालय उसकी वैधानिकता और औचित्य के मानदण्डों को परख सकती है। इसे कुछ लोग न्यायाधीश द्वारा बनाया गया कानून भी कह सकते हैं। यह सही है कि कभी कभार उच्चतम न्यायालय कार्य पालिका के लिए नियम/विनियम/दिशा निर्देश तय कर देता है। हाल के वर्षों में कुछ न्यायिक घोषणाओं में अधिकारों को बांटने की बात को पूरी तरह निकाल दिया गया। लेकिन कुछ अपवाद हैं। कुछ असाधारण चीजें हो सकती हैं। उनसे भारत के न्याय संबंधी कामकाज के सामान्य स्वरुप का संकेत नहीं मिलता।
भारत का निर्वाचन आयोग कई वर्षों में परिपक्व होकर उभरा है। इसकी स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने की प्रमुख जिम्मेदारी है। उसने अच्छा काम किया है। भारतीय लोकतंत्र स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने तथा एक स्वतंत्र न्याय पालिका के कारण ही बचा हुआ है। एक स्वतंत्र मीडिया और एक जोशपूर्ण संसदीय लोकतंत्र ने भारत में लोकतंत्र की परम्परा को मजबूत बनाने में योगदान दिया है। आचार संहिता आरंभ में असंविधिक थी। आज इसे संविधान के अनुच्छेद 324 के अंतर्गत चुनाव आयोग के बाकी अधिकार क्षेत्र के हिस्से के रुप में कानूनी लागू करने वाली संस्था के रुप में अधिकार मिला हुआ है। 2002 में उच्चतम न्यायालय ने अपने एक फैसले में इसकी पुष्टि भी की है। मुख्य रुप से इसकी वजह से कभी-कभी सरकारों को आदर्श आचार संहिता असुविधाजनक लगती है, लेकिन इसका मकसद भारत के स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराकर सभी को समान अवसर प्रदान करना है। यह बड़ी विचित्र बात है कि सरकार के एक वरिष्ठ मंत्री ने विदेशी धरती पर जाकर इन संस्थानों की आलोचना की है। ये ऐसे संस्थान हैं जिन्होंने भारत में लोकतंत्र को मजबूत बनाने में योगदान दिया है।
दूसरी परेशानी में डालने वाली टिप्पणी अरविंद केजरीवाल ने की। उनका कहना था कि श्री नरेन्द्र मोदी मीडिया को मैनेज कर रहे हैं और मोदी लहर चला रहा है। उन्होंने लगता है कि मीडिया को पैसा दिया जा रहा है और अरविन्द केजरीवाल के केन्द्र में सत्ता में आने के बाद वह इसके लिए जिम्मेदार पत्रकारों को जेल में डाल देंगे। यह अहसास होने के बाद कि उनकी टिप्पणी से लोगों की कड़ी प्रतिक्रिया हो रही है तो वह अपने बयान से अब मुकर गए हैं।
अरविंद केजरीवाल ने लोगों को लुभाकर शुरुआत की। वह जनता को बरगलाते रहे। वह बिना किसी सबूत के किसी एक और सभी के खिलाफ आरोप लगा सकते हैं। सच्चाई से उनका कोई लेना-देना नहीं है। वह बार-बार झूठ बोलने में विश्वास रखते हैं। उनका मानना है कि जो तथ्य उन्होंने रखे हैं वह सही हैं। अनेक क्षेत्रों में लुभाने की कला जानने के कारण उनकी कोई विचारधारा नहीं है। अपनी बात रखने से पहले वह भीड़ का मूड देखते हैं। इस तरह का व्यक्ति लोकतांत्रिक संस्था के लिए बेहद खतरनाक है। साधारण भाषा में उनका मत है ‘‘मीडिया को सबक सिखाया जाना चाहिए क्योंकि वह ईमानदार नहीं है।’’ कैमरे में जो कुछ रिकॉर्ड किया गया है उससे वह मुकर सकते हैं।
सलमान खुर्शीद और अरविंद केजरीवाल लोकतांत्रिक संस्थानों जैसे न्याय पालिका, स्वतंत्र प्रेस या निर्वाचन आयोग से नाराज क्यों हैं? उनकी आलोचना परिपक्व राजनीति का संकेत नहीं है। चुनाव में हार और जीत चुनावी प्रक्रिया का हिस्सा है। भारत और उसका लोकतंत्र अमर है। मनुष्य नहीं। चुनाव में हार की संभावना से सलमान खुर्शीद और अरविंद केजरीवाल को हताश नहीं होना चाहिए।
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