नित्यानन्द गायेन की टिप्पणी : कवयित्री आरती हिंदी कविता का एक जाना -पहचाना नाम हैं। इनकी काव्य भाषा बहुत सरल है जिससे पाठक इनकी रचनाओं से खुद को बड़ी आसानी से जोड़ लेते हैं। आरती जी स्वयं एक कुशल संपादक भी हैं इसलिए उन्हें अच्छी तरह पता है कि कविता को कहाँ से शुरू होकर कहाँ समाप्त होना है। आइये पढ़ते हैं इनकी कुछ छोटी किन्तु रूमानी प्रेम कविताएँ !
आरती की सात कविताएँ
1.आकार बन गया
अधिक दिन नहीं हुए थे तुमसे मिले
की मेरे भीतर फैली तरल मिटटी
कोई आकार सा अख्तियार करने लगीमेरे उजाड़ हुए दिनों से
आ टकराई
खनखनाती लाल ईंटें
तिनके चिन्दियाँ रेशे
किसी घोसले से उड़कर कुछमेरे तो मानों ‘पर’ ही उग आये
और मैं उड़ी भी दूर;;;;;;दूर।
2.मेरी नज़रों में ‘मैं ‘
तुम्हें याद करते हुए आज सुबह मैंने
कुनकुने पानी में आधा चम्मच शहद मिलाकर पिया
मेरे चहरे से मिठास और लालिमा टपकने लगी
मैंने आइने में देखा
तुम मेरे पीछे खड़े थे /सचमुच आज मेरी नजरों में
मैं,
बेहद खूबसूरत लगी।
3.छोटी -छोटी बातें
बहुत सी बातें नहीं कहना चाहती तुमसे
मसलन आज मेरी उंगली चाकू से घायल हो गई
ऐसी छोटी छोटी बातें क्यों कहना ?
तुमने कहा – दर्द भी अब मेरा है, इसलिए
कोसों दूर बैठकर भी इस तरह
मेरे जख्मों में दवा लगा दी तुमने।
4.तस्वीर बन गई
मैंने कुछ कहना चाहा
बरबस तुम्हारा नाम आया
मैं सुनना चाहती थी कोई गीत
तुम्हारे बोल कानों में खनखनाने लगे /रात दो बजे मैं जग रही हूँ
कविता लिखने की कोशिश करती
मेरी कलम चलती रही
तुम्हारी तस्वीर बन गई।
5.नक्षत्र की तरह
मेरी आभूषण विहीन कलाई थामकर
ऐसे निहाल हो जाते हो जैसे
कुबेर धन प् लिया हो
मेरे आसपास रहते हुए तुम
मिला देते हो अपना प्रकाश
मुझ अस्त होते दिन में
तुम चले जाते हो जब
मैं नीरवता की स्याह रात में चाँद बनकर
थोड़ी उजियारी बिखेर लेती हूँ
और मेरी कलाई का वह भाग
जो तुम्हारे हाथों में थोड़ी देर पहले था
अब; नवरत्नों से जड़कर दिपदिपाने लगा है
किसी नक्षत्र की तरह।
6.अँधेरा घिर आने पर
मैं अपनी चेतना को उतारकर
रद्द हो चुके कपड़ों की तरह फेंक देना चाहती हूँ
इन दिनों वही करना चाहती हूँ
जैसा तुम कहते जाओ
तुम्हारी हथेलिओं की तपन को फैलाकर नस -नस में
पकड़कर उंगली
चलते जाना चाहती हूँ
शहर के आखिरी छोर वाली झोपड़ी तक
आज अँधेरा घिर आने की परवाह किये बगैर।
7.कोई कहानी सुनाओ न
तुमने कहा -फ़ाख्ते का बच्चा
मैं नन्हे नन्हे पैरों पर फुदकने लगी
गौरैया का बच्चा कहा जब
मैं उड़ने लगी
हिरन का बच्चा कहा तो सचमुच
कुलांचे भरकर उस छोटी टेकरी पर जा चढ़ी
और लाल आँखोंवाला खरगोश तो बार बार कहते हो
मैं हर बार कोमल श्वेत रोओं का स्पर्श महसूस लेती हूँ
तुमने मुझे बच्चे में परिवर्तित कर दिया है
मैं अब जिद करना चाहती हूँ
‘कोई कहानी सुनाओ न ‘
रानी पारी तोता मैना कोई भी चलेगी
मैं तो बस
तुम्हारी गोद में सर रखकर
गहरी नींद सोना चाहती हूँ।
प्रस्तुति :
नित्यानन्द गायेन
Assitant Editor
International News and Views Corporation
परिचय-
डा. आरती
मध्य प्रदेश के छोटे किन्तु खूबसूरत कस्बे गोविंदगढ़ ( रीवा ) में जन्म। एम.ए. एवं पी-एच. डी. ( हिंदी साहित्य ), कई दैनिक साप्ताहिक , एवं पाक्षिक समाचार पत्रो में संपादन कार्य। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कई वर्षो तक सम्बद्ध रही। अभी ‘ समय के साखी ‘ प्रगतिशील मूल्यों की साहित्यिक पत्रिका ( मासिक) का संपादन। ‘ नरेश सक्सेना की चयनित कविताएँ ‘ पुस्तक का संपादन। कविता संग्रह ‘ मायालोक से बाहर ‘ एवं ‘समकालीन कविता में स्त्री ‘ आलोचना पुस्तक शीघ्र प्रकाश्य।
संपर्क – बी ५०९ जीवन विहार कॉलोनी पी. एण्ड टी. चौराहा, भोपाल ४६२००३
आरती जी अपनी अनुभूतियों को भाषा से आगे ले जाती है। यह बहुत अधिक गहराई अनुभव में आ
ने पर होता। उनके पर रोना नही एक समवेत स्वर होता है। वे अकेले अपनी बात कहती भी है तो अपनी तरह के स्वरों में।
प्रेम की सीधी सरल अभिव्यक्ति,.. आभार ।
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आपने दिल निकाल कर कविता के अन्दर रख दिया हैं ! शानदार बहुत उम्दा !
आरती की कविताएँ मासुम इच्छाओं की कविताएँ हैं और इस यांत्रिक समय में प्रेम के पल खोजना एक मुश्किल इम्तेहान है…
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वाह ,एक से बढकर एक कविता ! आपको आज ज़माने बाद पढ़ने का मौक़ा मिला ! बधाई हो !
खूबसूरत कविताएँ ।