{ नानुभाई नायक }
प्रबुद्ध अर्थशास्त्री जगदीश भगवती ने नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन के साथ देश की अर्थ व्यवस्था तथा गरीबी जैसे विषयों पर चर्चा छेड़ी है I
अमर्त्य सेन ने एक न्यूज़ चैनल के साथ बातचीत करते हुए विकास की जो बात की थी और मोदी को बिलकुल दर किनार कर दिया, उससे मैं सहमत नहीं हूँ I इस तरह जगदीश भगवती के विकास के विचार भी मुझे लगते हैं कि गरीबों के विकास का कोई निश्चित मार्गदर्शन नहीं दे रहे I इतना ही नहीं, उन्होंने कहा कि गुजरात में भ्रष्टाचार नहीं है, वह भी पूरा सही नहीं है I
मेरा मानना है कि विकास का अर्थ समझना और उसका रास्ता खोजने का काम कोलम्बिया युनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र तथा क़ानूनशास्त्र के प्रोफ़ेसर का नहीं है I उसी तरह हार्वर्ड युनिवर्सिटी के अर्थशास्त्रीओं व फिलोसोफर का भी काम नहीं है I क्योंकि ये तमाम युनिवर्सिटी अधिकांशत: पैसे पैदा करने कि ही शिक्षा देते हैं I वहाँ इन्सान को इन्सान बनाने कि शिक्षा प्रमुख नहीं होती I मेरा मानना है कि मनमोहन सिंह सहित दुनिया भर में अनेक कथित अर्थशास्त्रीयों द्वारा उनकी कल्पना के मुताबिक विकास का मुद्दा उठाए जाने से केवल और केवल कोर्पोरेट जगत जैसे अत्यंत स्वार्थी तथा पैसों के जरिए कीर्ति खरीदने वाले ढोंगी वर्ग को ही फायदा हुआ है I
वातानुकूलित कार्यालयों में बैठ कर सतत चर्चा में रहने की मशक्कत करने वाले विचारक, अर्थशास्त्री, प्रशासक, राजनेता, चिंतक और पत्रकार तक विकास का सही रास्ता नहीं बता सके हैं, क्योंकि उनका यह उद्देश्य होता ही नहीं है I वो तो फोटोग्राफरों को साथ में लेकर राहुल रोटी खाने जाए या मजदूरों के साथ कपड़े मैले करके मिट्टी के तगारे उठाने जाए, ऐसा सोचा-समझा खेल मात्र हैI
अमर्त्य सेन ने ये कहा था कि जब तक सरकारें मानवीय क्षमता बढ़ाने के लिए प्रयत्नशील नहीं होंगी, तब तक विकास का कोई मतलब नहीं है I अब दुनिया भर की सरकारें तो अपना ही विकास करने में व्यस्त हैं I यदि सरकारें कुछ करें ही नहीं और कभी करने वाली भी नहीं हैं, तो मानव जाति का विकास करना ही नहीं ? और गरीबों को गरीब ही रहने देंगे ? सरकारें मानवीय क्षमताएँ बढ़ाएँ नहीं और हम देखते ही रहें ? इतने सवाल करके उन्होंने ‘फुड गारन्टी’ बिल के लिये युपीए सरकार की प्रशंसा की थी I वे कहना चाहते थे कि जगत की कोई सरकार ने जो काम नहीं किया है वह काम युपीए सरकार ने किया है I शायद उन्हें मालुम नहीं होगा कि अमेरिका में गरीबी रेखा के नीचे जीने वाले करोडों लोगों को ‘फुड’ के लिये ‘केश गारन्टी चेक’ दिये जाते है I फिर भी वहाँ हर साल गरीबों की संख्या बढ़ती जाती है और ‘केश गारन्टी चेक’ की धनराशि वहाँ आर्थिक बोझ बन गई है I
एरिक फ्रोम ने कहा था कि लोग स्वतंत्रता से डरते हैं I ‘फीयर ओफ फ्रीडम’ अर्थात् वे लोकतांत्रिक चुनाव में जो ‘गरीबी हटाओं’ जैसे वायदे करते हैं, उन्हें मत देकर चुनते हैं I परिणाम स्वरूप उनका विकास होता ही नहीं है, क्योंकि ‘गरीबी हटाओं’ के नारे तो चुनावीजीत का सिर्फ लोलीपोप होता हैं I एरिक फ्रोम ये कहना चाहते हैं कि वास्तव में स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में इंसान को ऐसे लोगों को ही चुनना चाहिए, जो दिए गए वचन निभा सकने जितने विश्वसनीय हों I
जोन रोल्स ने ‘अॅ थियरी ऑफ जस्टिस’ तथा ‘पॉलिटिकल लिबरलायज्म’ नामक दो पुस्तकों व ‘जस्टिस एज फेयरनेस’ नामक निबंध में न्यायी समाज की बात की है I इसमें भी लम्बी-लम्बी चर्चा का सार इतना ही है कि न्यायी समाज में स्वतंत्रता का अधिकार सबको है यानी जितना गरीब को है, उतना अमीर को भी है I यानी स्वतंत्रता में अमीरों को अपनी कुशलता तथा सूझ से धन कमाने का अधिकार है I वे मानते हैं कि अमीरों का पैसा अमीर खर्च करेंगे, तो धीरे-धीरे गरीबों तक जाएगा ही I इसके लिए वे डिस्ट्रीब्यूटिव जस्टिस यानी आवंटन में न्याय की बात करते हैं I इस प्रकार पैसा उपर से नीचे तक जाएगा और गरीबों की गरीबी धीरे-धीरे कम होगी I रोल्स कहते हैं कि आर्थिक असमानता यदि वह कार्यक्षमता बढ़ाती हो (जैसा कि अमर्त्य सेन ने कहा) और उसके फलस्वरूप समाज के निम्न वर्ग के लोगों को फायदा हो, तो वह वाजिब है I रोल्स स्वतंत्रता को समानता के साथ नहीं जोड़ते I वे मानते हैं कि स्वतंत्रता में व्यक्ति को अपनी शक्ति के मुताबिक कमाने की स्वतंत्रता का भी समावेश हो जाता है I ऐसा कहके अमर्त्य सेन की तरह ही वे कहते हैं कि तमाम राष्ट्र मिलकर विश्व में एक वैश्विक सरकार नहीं बनाएँगे, तब तक ग्लोबल जस्टिस यानी वैश्विक न्याय की संभावना नहीं है । वे कहते हैं कि वर्तमान जगत में एक महत्वपूर्ण सवाल ग्लोबल जस्टिस यानी देश-देश के बीच चलने वाले न्यायतंत्र का है । बहुराष्ट्रीय जगत में बहुत अन्याय चल रहा है, लेकिन तमाम राष्ट्र मिलकर विश्व में जब तक एक वैश्विक सरकार का गठन नहीं करते, तब तक ग्लोबल जस्टिस यानी वैश्विक न्याय की समस्या हल नहीं हो सकती, क्योंकि दुनिया के कई देशों में लोकतंत्र नहीं है । कई देशों को मत देने के अधिकार या नागरिक स्वतंत्रता की बिलकुल दरकार नहीं है । कई देशों में प्रेस फ्री नहीं है तथा विचार व वाणी की स्वतंत्रता भी नहीं है । विचार की स्वतंत्रता के बिना सामाजिक न्याय प्राप्त करना मुश्किल है । लोकतंत्र यानी सिर्फ मतदान पेटी और मत देने का अधिकार ही नहीं, बल्कि समाज में मुक्त विचार एवं मुक्त चर्चा की स्वतंत्रता भी होनी चाहिए, जो कई देशों में नहीं है । इन सब कारणों से वैश्विक सरकार की रचना करना कठिन है । इस प्रकार रोल्स वैश्विक न्याय में विश्वास नहीं करते । अत: उसे कैसे पाया जा सकता है, उस पर विचार ही नहीं करते ।
इन तमाम चिंतक ने ग्लोबल डेमोक्रेसी की स्थापना के कोई उपाय नहीं बताए हैं । उन सब ने ऐसी संभावना का विचार ही नहीं किया है । अत: वातानुकूलित कार्यालयों में बैठ कर वे जिन सरकारों के कर्तव्य की बात करते हैं, उन सरकारों के पक्ष में ही खड़ा रहना पसंद करते हैं । परिणामस्वरूप नोबल पुरस्कार से खुश होकर अखबारों में लेख लिखने के अलावा उन्हें कोई खास काम नहीं है । हालाँकि इलकाब, पुरस्कार, अॅवोर्ड किस तरह दिए जाते हैं और किस तरह उसके लिए लोबिंग होती है, वो एक अलग बात है, लेकिन ऐसे पुरस्कारों – अॅवोर्ड के कारण अधिकांश लोग सरकारों के साथ बैठ जाते हैं और जाने-अनजाने गरीबों को अधिक गरीब बनाने का ही काम करते हैं।
श्री जगदीश भगवती अमर्त्य सेन के विकास के मुद्दे को महत्त्व नहीं देते I वे मानते हैं कि सेन के विचार पण्डित नेहरू तथा योजना आयोग के विचार जैसे ही हैं, जिन पर अमल होने के बावजूद गरीबी घटने की बजाए बढ़ी है I वे प्रो. अरविंद पानागरिया के साथ मिलकर ग्रोथ एन्हांसिंग ट्रैक-१ तथा ट्रैक-२ के जरिए पहले रिफोर्म और फिर गरीबों के लिए सुधारोन्मुखी खर्च करने पर विचार करते हैं I उनका कहना है कि उनके गरीबी दूर करने के ऐसे आयोजन के लिए अमत्यॅ सेन के विचार नुकसानदेह हैं I यहाँ भी गुजरात मोडल क्या है, वह कैसा है उसकी विस्तृत चर्चा किसीने की नहीं I ज्यादातर सरकार के साथ चर्चा करके सरकार की हाँ में हाँ करने का काम उन्होंने किया हैं I
जगदीश भगवती गुजरात मोडल की प्रशंसा करते हैं I वे कहते हैं कि गुजराती पैसे इकट्ठा करने में विश्वास करते हैं, लेकिन वे सामाजिक उद्देश्य के लिए पैसे खर्च करने से भी पीछे नहीं हटते I वे जोड़ते हैं कि यह हमारी वैष्णव परम्परा है और विकास का उत्तम मॉडल है I वे मोदी को सर्टिफिकेट देते हुए कहते हैं कि मोदी ने पर्यावरण पर पुस्तक भी लिखी है, वे भ्रष्टाचारमुक्त हैं और उन्होंने गुजरात को सामाजिक विकास में भी आगे बढ़ाया है I यहाँ गुजरात मॉडेल क्या है ? वह कैसा है ? उसकी विस्तृत चर्चा किसीने नहीं की I ज्यादातर सरकार की हाँ में हाँ करने का ही काम उन्होंने किया है I
जगदीश भगवती अमर्त्य सेन को राजनीतिक महत्त्वाकांक्षी कहते हैं, तो मनमोहन सिंह को अच्छे अर्थशास्त्री बता कर १९९१ से वे जो आर्थिक सुधार कर रहे हैं, उसकी प्रशंसा करते हैं I उनकी पुस्तक राहुल गाँधी ने पढ़ी थी और उनके साथ भारतीय अर्थ व्यवस्था के बारे में बात की थी I इतना ही नहीं उनका लोकसभा का भाषण सोनिया गाँधी ने सुना था और सोनियाजी उनके साथ चाय पीने भी आई थीं I उन्होने ये भी कहा था कि राजीव गांधी सोनिया गांधी के साथ कोलम्बिया आए, तब से वे उन्हेँ पहचानते हैं और जोड़ा था कि राजीव, सोनिया या राहुल गांधी तीनों के व्यक्तित्व नकली नहीं हैं I जगदीश भगवती का यह इति सिद्धिम् है I
वे प्रो. पानागरिया के साथ इस बारे में विस्तार से एक पुस्तक लिख रहे हैं I दिसम्बर तक यह पुस्तक प्रकाशित हो जाएगी I तब तक उसके विवरण के लिए इंतजार करने को कहते हैं यानी गरीबी हटाओ का सम्पूर्ण मानचित्र शायद यह पुस्तक में वे देंगे I पर उनकी यह पुस्तक अभी तक प्रकाशित नहीं हुई है I
में मानता हूँ कि गांधीजी ने दलितों व दरिद्र नारायणों के सुख का सिस्टम खोजने की बात कही थी I उस बारे में आज तक किसी ने बिलकुल विचार ही नहीं किया है I गांधीजी के अचानक निधन के बाद जयप्रकाशजी ने गांधीजी का सपना साकार करने के लिए पक्षरहित शासन व्यवस्था पर बहुत बहस की थी I उन्होने कहा था कि कोई ऐसी शासन व्यवस्था जरूर खोजेगा, लेकिन यदि कोई ऐसी शासन व्यवस्था न खोज सका, तो सिर्फ भारत ही नहीं, दुनिया बड़े संकट में पड़ जायेगी I
गांधीजी ने संसद को बांझ तथा वेश्या कहा था और जयप्रकाशजी ने कहा था कि मौजूदा चुनावी शासन व्यवस्था नहीं बदली, तो पूरा जगत भारी संकट में पड़ जाएगा I दोनों की बातें सही साबित होने जा रही हैं I ऐसे में मैं भी पिछले आठ साल से गांधीजी के विचारों के साथ बने रहते हुए पक्षरहित शासन व्यवस्था की बजाए पक्षरहित समाज व्यवस्था पर छह पुस्तकें लिख रहा हूँ I इनमें (१) मानवोत्थान के परिप्रेक्ष्य में गांधीजी मेरे राहनुमा (२) बापू ! तब आप याद आए ! (३) स्वतंत्र भारत और (४) यस, वी केन ! बट, वाय वी केन नॉट ? एण्ड हाउ वी केन ! ये चारों पुस्तकें गुजराती, हिन्दी, मराठी और अंग्रेजी में प्रकाशित हो चुकी हैं I इन चारों पुस्तकों में जगत भर की शासन व्यवस्था में कौन क्या है, कहाँ है, क्या करना चाहिए, क्यों करना चाहिए आदि अनेक सवालों के बारे में अत्यंत विस्तार से जानकारी देने की मैंने कोशिश की है I
बाकी दो पुस्तकों में भ्रष्टाचार के निमित्त बनने वाले कर की बजाए (१) करबोझ रहित बजट तथा (२) ‘मेरे सपनों का विश्व’ गांधीजी के विचारों द्वारा भारत की शासन व्यवस्था को समाज व्यवस्था में बदलने का विचार मैंने रखा है, क्योंकि शासन शब्द में भी हिंसा अभिप्रेत है I अत: शासन व्यवस्था को समाज व्यवस्था में बदल कर भारत की स्वतंत्रता से आगे बढ़ कर जगत भर की स्वतंत्रता के जरिए जगत भर के मानववाद तक जाने का छह सौ पचास पन्नों का विस्तृत मसौदा मैंने ‘मेरे सपनों का विश्व’ नामक पुस्तक में देने की कोशिश की है I
ये दोनों पुस्तकें शायद जनवरी में प्रकाशित होगी I यें दोनो पुस्तकें गुजराती, हिन्दी, मराठी और अंग्रेजी में प्रकाशित होगी I
अलबत्ता, मेंने इन दोनो पुस्तको में हाल जो न्यूज – चेनलो बेवजह चर्चा कर रही है यह सारे के सारे प्रश्नो के उपाय बताने के प्रयत्न किये है I परंतु यह एक इन्सान का काम नहीं I मेरे अकेले का भी काम नहीं अगर आप सब जागृत भाई–बहन सक्षम चिंतक, समाजशास्त्री, कानूनशास्त्री, शिक्षणशास्त्री वगैरह इन बाबतों में रस लेंगे और इस पुस्तक को पढकर मुझे आपके सूचन भेजेंगे तो हम सब इकट्ठा होकर इस पुस्तक में सुधार करके शासन व्यवस्था बदलने का कोई ठोस मसौदा दे सके, जिसके लिए पूरे देश और दुनिया के लोग राह देख रहे हैं I
Nanubhai Naik
Shri Chandrakant Bakshi to whom he has described as his true well wisher and great friend in “Aabhang” that the creator of your poetry collections, Shri NanubhaiNayak holds good interest in literature also.
His initial novels “Pran Jago re” and “Nari Narnu Ramakdu” three editions of which have already been published and in which the impression of pathetic sweet language of Sharadbabu is clearly experienced. “Pran Jago re” is a pathetic sweet creation of social life from Vapi to Tapi.
The language and the symbols he arranged in “Suratna Dhulia Maholla ma” appear new and special through many ways. This social novel flowing with historical references has become very enjoyable because of its spoken words. This kind of novels is found very few in Gujarati.
The renowned advocate of Mumbai Shri Chhelshankar Vyas was an old ascetic of literature and Journalism. As a senior friend of Shri Nanubhai Naik, he came to Surat to proceed the case admitted by Gujarat government against a short story “Kutti” of Shri Chandrakant Bakshi, at that time he read the novel “Tofan” by Shri Nanubhai Naik. His wife said, “He has read very few Gujarati novels. Mainly he reads only English books but he read your “Tofan” novel completely, not only that but he liked it so much that he made many remarks also while reading it. Later he also discussed about the language and symbols of “Tofan”, specially about the glittering thoughts presented in the same.”
“Oh India” written in 1971 is his first novel of Gujarat, discussing about politics. This novel already has been published in Marathi. Renowned writer and journalist Shri Chandrakant Bakshi has admired this novel very much. And specially at the time of visit of Surat, the governor of that time stood in the lift till the red carpet being spread and congratulated for the remark made by the writer.
Besides these his many other novels, collections of satirical articles, collections of short stories etc. have been published.
He has written satirical poems for years in satirical “Sandesh” daily with title “Sanjay Vani” in “Pratap” daily, “BholaBhagat Na Bhakhela” in “Chet Machhandar”, “Kavi Nang Kahe” and in “Nutan Bharat” daily and “Arunoday” weekly “Guru Ghantal Kahe” titles.
Those who ask for original plays, they should see his “Mudita Balaram”. – a worth seeing drama.
From the remarkable folders sent by “SahityaSangam” every Diwali, his satirical poems are admired so much that every now and then “Gujarat Samachar” daily “Sandesh” daily and “Milap”, “NayaMarg” etc. many magazines have published them all. “Sandesh” daily had some times engaged space of three full columns for his poems.
He has written more than two hundreds short stories, satirical articles etc. which already have been published in Prajabandhu, Chandani, NavChetan, Aaram, AkhandAnand, Savita, Kankavati, Padchhaya, Apsara, Chet Machhandar, Chitralekha, AbilGulal, Nutan Bharat, Arunodaya, Sarvodaya etc. magazines. “Sabras” a continued story of child literature was published in “Jansatta” by weekly periodicals.
Inthebooknamed“AacharyaRajnishKayeMarge” hehasma depostmortemofconductan dthoughts ofRajanish ji. He was invited to Surat for three days and during closed door meeting with him, had created a big controversy.
He is associated with many social and cultural activities of Surat. He was the secretary of “Narmad Sahitya Sabha” for many years. Now he is the Vice President of “Narmad Sahitya Sabha”. He had been the member of Managing Committee of Sarvajanik Education Society, a renowned educational organization of Surat. He is the president of Surat Printing Press Association and Surat Commercial Printers Society for many years. He was the welcome president of “MudrakParishad” held in Surat. He is the founder member of Gujarat Printers Federation and had been the president also. He is the established member of Gujarati Books Publishers Association. He is the pioneer of Gujarati and Marathi Pocket Books. LateAcharyaAtre making observations of Marathi Pocket Books of “Sahitya Sangam” in his “Maratha” daily for three weeks asked question that if a publisher sitting in Surat out of Maharashtra can publish such beautiful pocket books, only for Rs. 2.50 then what do the Marathi Publishers do ?
He is running a big movement of “book culture” against “T.V. Culture” by offering cheap books to the people of Gujarat. He is trying sincerely to pay the obligation of Gujarati people and literary persons by publishing the creation of first category of literary persons in Gujarati at half value and publishing the same creation in Hindi, Marathi and English besides Gujarati.
To give 23 books yearly worth Rs. 1800 at 70 % less value means only against Rs. 545 through home delivery, such a five years “GranthYatra” scheme was introduced. It has completed five years. It is the first experiment all over India to offer the books in five years worth Rs. 9000 against the payment of only Rs. 2725 through home delivery. The main purpose of this scheme is,the cultured Gujaratis can give legacy of library of best books to their family at ordinary investment only.
There is no complete democracy anywhere in the world. Making such surprising statement, to save democracy, in “How should be good government” he has presented complete draft of good government, which has been published in Hindi, Marathi and English besides Gujarati. Many great leaders of India have admired the same. Same way, 65 corrections suggested by him to “constitution reform tribunal” its book named “Suggestions for Constitution Amendments” have been published in Hindi, Marathi and English besides Gujarati, which were accepted by the president of constitution reform tribunal himself and he had instructed his steno to place important points in the meeting of the committee. Specially the matter of pleasure is such that the constitutional reforms tribunal had suggested amendments of 400 pages out of which the government and election commission accepted about 15 suggestions and all of them are from the books of Shri Nanubhai Naik.
Address of Communication
Nanubhai Maganlal Naik
‘Sahitya Sangam – Opp. Pancholi Wadi, Kazi’s Maidan, Gopipura, Surat – 395001 (Gujarat, India)
Mobile : 098251 44427 E-mail: nanubhainaik27@gmail.com
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