अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का बहाना लेकर इस्लाम धर्म के पैग़ंबर हज़रत मोह मद का अपमान किए जाने पर इस समय विश्र्वव्यापी बहस छिड़ी हुई है। इस बीच देखा यह जा रहा है कि अमेरिका से मतभेद रखने वाले दुनिया के कई देश, तमाम समाजसेवी संगठन, राजनैतिक दल व अमेरिका के पारंपरिक विरोधी तमाम राजनेता अमेरिका में बनी इन्नाोसेंस ऑफ़ मुस्लिम नामक फ़िल्म के निर्माण तथा इसके प्रचारप्रसार के लिए सीधेतौर पर अमेरिका को ही ज़ि मेदार ठहरा रहे हैं। इस फ़िल्म के विरोधस्वरूप देखा भी यही जा रहा है कि मुसलमानों का ग़ुस्सा विश्र्वव्यापी स्तर पर अमेरिका या अमेरिकी हितों पर टूट रहा है। यहां तक कि इस ग़ुस्से ने लीबिया में अमेरिकी राजदूत की जान तक ले ली। तालिबानों ने अ़ ग़ानिस्तान में नाटो के कई लड़ाकू विमान उड़ा दिए। दुनिया के लगभग एक दर्जन देशों में अमेरिकी दूतावास पर प्रदर्शन हुए जिसमें कई जगह तो हिंसा, तोड़फोड़ व आगज़नी तक की घटनाएं घटीं। दर्जनों लोग अब तक मारव् जा चुके हैं। ईरान के राष्ट्रपति महमूद अहमदी नेजाद एक बार फिर इसी प्रकरण का सहारा लेकर इज़राईल व अमेरिका पर गरजते नज़र आए। हिज़बुल्ला नेता हसन नसरूला ने इस मौक़े को शियासुन्नाी विश्र्वव्यापी एकता के लिए चुना तथा मुस्लिम जगत से तौहीनएरसूल के विष्य पर एक होकर अमेरिका के विरुद्ध खुलकर संघर्ष् करने का आह्वान किया। कुल मिलाकर इस समय अमेरिका निश्चित रूप से चिंतित व परव्शान दिखाई दे रहा है। भले ही उसे विश्र्व की सबसे बड़ी महाशक्ति होने के नाते गुर्राने या दहाड़ने की आदत यों न पड़ चुकी हो। परंतु इस समय वही अमेरिका स्वयं को चारों ओर से उलझा, परव्शान व असहाय सा महसूस कर रहा है।
गत् दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ के ६ऋवें अधिवेशन में राष्ट्रपति बराक ओबामा के भाष्ण से भी इस बात की झलक साफ़ दिखाई दी कि अमेरिका वर्तमान हालात से बेहद चिंतित व ख़ौफ़ज़दा है। परंतु ओबामा के भाष्ण के दो पहलू ऐसे थे जोकि परस्पर विरोधाभास रखने वाले थे। हज़रत मोह मद पर अमेरिका में बनी फ़िल्म को लेकर ओबामा ने कहा कि हज़रत मोह मद की तौहीन करने वालों की भविष्य में कोई जगह नहीं है। परंतु इसी के साथसाथ उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका इस फ़िल्म पर अमेरिकी क़ानूनों के तहत रोक नहीं लगा सकता। ओबामा की यह दोनों बातें ही परस्पर विरोधी हैं। एक ओर तो आप हज़रत मोह मद की तौहीन करने वालों के लिए कोई स्थान न होने की बात करते हैं दूसरी तरफ़ ऐसी फ़िल्मों को न रोकने के लिए अमेरिकी क़ानूनों का सहारा लेते हुए असहाय भी दिखाई देते हैं। आख़िर यह कैसी नीति है? दुनिया के और भी कई देश ऐसे हैं जहां एकदूसरव् के धर्म के अवतारों,पैग़ंबरों, देवीदेवताओं या धर्मगुरुओं अथवा धर्मस्थानों या धर्मग्रंथों को तो बड़ी शान के साथ अपमानित किया जाता है या उन्हें जलाया तोड़ाफोड़ा जाता है।
परंतु ऐसा करने वाला पक्ष अपने धर्म के लिए कोई नकारात्मक या अपमानजनक बात सुनना तक गवारा नहीं करता। मिसाल के तौर पर पाकिस्तान में इस अमेरिकी फ़िल्म प्रकरण के विरोध में हुए हिंसक प्रदर्शन के बाद वहां के एक प्राचीन चर्च को आग लगा दी गई और उसे तहसनहस कर दिया गया। भारत में १ऽऽ२ में हिंदूवादी संगठनों ने अपना शक्ति प्रदर्शन करते हुए एक अदालत में विचाराधीन एवं विवादित बाबरी मस्जिद के ढांचे को बड़े ही सुनियोजित ढंग से तथा राजनैतिक आंदोलन की शल देकर उसे गिरा दिया। यह निहायत ही निंदनीय व शर्मनाक घटना थी। परंतु इसकी प्रतिक्रिया पड़ोस के देश पाकिस्तान व बंगलादेश में कई मंदिरों को ध्वस्त करने जैसी निंदनीय कार्रवाई कर अंजाम दी गई। इसी प्रकार २००२ में साबरमती एसप्रस में ५ऋ कारसेवकों को ज़िंदा जलाए जाने का दुःस्साहस किया गया तो इसके जवाब में गुजरात में दर्जनों धर्मस्थान जलाए गए व तोड़फोड़ की गई तथा हज़ारों लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया।
आख़िर यह सब घटनाएं अहसिष्णुता के किस पैमाने पर ले जाकर इंसान को खड़ा करती हैं? किसी भी धर्म के प्रत्येक व्यक्ति को यह बात तो स्वीकार करनी ही पड़ेगी कि जितना एक समुदाय के व्यक्ति को अपना धर्म,अपने धार्मिक अवतार, अपना धर्मस्थान या अपना धर्मग्रंथ प्रिय है उतना ही दूसरव् धर्म या विश्र्वास के व्यक्ति को भी है। लिहाज़ा यदि हमें किसी दूसरव् धर्म या विश्र्वास के व्यक्ति से यह उ मीद रखनी है कि हमारव् आदर्श महापुरुषें, अवतारों, धर्मग्रंथों या धर्मस्थानों की किसी दूसरव् समाज का व्यक्ति इ.ज्ज़त करव् तो सर्वप्रथम उसे ख़ुद दूसरव् धर्म की परंपराओं की इ.ज्ज़त करनी होगी। और यदि इस विष्य पर कोई भी धर्म या समाज एकपक्षीय सोच रखेगा तो भविष्य में भी ऐसे ही विध्वांसात्मक परिणाम सामने आते रहेंगे जैसे आते दिखाई दे रहे हैं। धार्मिक विष्यों को लेकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता वैसे भी निहायत ही गंभीर व संवेदनशील विष्य है। इसे किसी भी क़ीमत पर क्षेत्र,राष्ट्र या महाद्वीप जैसी सीमाओं में नहीं बांधा जा सकता। यही वजह है कि हज़रत मोह मद पर आपािजनक कार्टून डेनमार्क में प्रकाशित होता है तो हिंसक प्रदर्शन भारत के लखनऊ शहर में हो जाते हैं। हज़रत मोह मद विरोधी फ़िल्म अमेरिका में बनती है तो चर्च पाकिस्तान में जला दिए जाते हैं। मस्जिद भारत की हिंदुत्ववादी शक्तियों द्वारा गिराई जाती है तो उसका बदला बंगलादेश में मंदिर गिराकर या वहां के बेगुनाह हिंदुओं को सताकर लिया जाता है।
उपरोक्त चंद उदाहरण इस निष्कर्ष् पर पहुंचने के लिए पर्याप्त हैं कि भले ही ज़मीनजायदाद तथा हिंसा व आंतरिक मामलों संबंधी काऩून दुनिया के प्रत्येक देश अपनेअपने मुल्कों की ज़रूरतों के अनुसार यों न निर्धारित करव्ं परंतु जहां तक अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रश्र्र है तो इस विष्य पर अंतर्राष्ट्रीय क़ानून बनाए जाने की तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अंतर्राष्ट्रीय मापदंड स्थापित किए जाने की बहुत ज़रूरत है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर धर्म या विश्र्वास से जुड़ी ऐसी बातों को सार्वजनिक रूप से बेलाग लपेट के कहना जोकि भले ही आपके लिए या आपके अध्ययन के अनुसार सही यों न हों परंतु यदि वही बातें समाज के दूसरव् वर्ग को चुभती हैं, कष्ट पहुंचाती हैं या उससे सहन नहीं होतीं तो आपको अपनी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कथित आज़ादी को नियंत्रण में रखना ही होगा। बहुत साधारण से उदाहरण के साथ इस बात को समझने की ज़रूरत है जैसे कि आप अपनी सत्यवादिता या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर किसी काने व्यक्ति को काना कहकर नहीं बुला सकते। किसी काले व्यक्ति को कालाकलूटा,अंधे को अंधा या लंगड़े को लंगड़ा कहना कहां की सत्यवादिता या अभिव्यक्ति की आज़ादी मानी जाएगी? किसी भ्रष्ट व्यक्ति के सामने आप उसे भ्रष्ट कहिए, किसी रिश्र्वतख़ोर थानेदार को रिश्वतख़ोर कहिए परिणाम अपनेआप सामने आ जाएगा। कुल मिलाकर यदि हमें अपने घरपरिवार से लेकर बाहरी समाज तक में शांति रखनी है और शांति के रास्तों पर चलते हुए समाज को व देश को आगे ले जाना है तो परस्पर सहयोग, परस्पर तालमेल तथा एकदूसरव् का मानस मान करना बेहद ज़रूरी है। हमें यदि अपनी, अपने धर्म व विश्र्वास की इ.ज्ज़त दूसरों से करवानी है तो हमें उससे पहले यह काम ख़ुद करना होगा। दुनिया के किसी भी कोने में ऐसी कोई मिसाल नहीं मिल सकती जहां पर आप अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर दूसरों को ज़लील व अपमानित करते हुए उन्हीं से आपको स मान मिलता हो।
लिहाज़ा संयुक्त राष्ट्र संघ में अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा के भाष्ण के संदर्भ में एक बार फिर मैं यही कहना चाहूंगा कि अमेरिका में वहां के क़ानून के मुताबिक क़ुरान शरीफ़ का जलाया जाना या हज़रत मोह मद के विरुद्ध लिखना,फ़िल्म बनाना या बाईबल को अपमानित करना या हिंदू देवीदेवताओं के चित्रों को जूतेचप्पलों पर छापना वहां के नियमों के अनुसार अि ाव्यक्ति की स्वतंत्रता भले ही हो। परंतु इसकी धमक पूरी दुनिया में पहुंचती है। और ऐसे अमेरिकी क़ानून को दुनिया में अमन क़ायम रखने वाला क़ानून तो हरगिज़ नहीं ंकहा जा सकता। लिहाज़ा इस विष्य पर बाक़ायदा संयुक्त राष्ट्र संघ में सभी सदस्य देशों द्वारा चर्चा किए जाने की ज़रूरत है तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे नियम बनाए जाने, उन्हें लागू करने व उनका पालन कराए जाने की ज़रूरत है जिससे कि धर्म और विश्र्वास के नाम पर किसी भी समाज का व्यक्ति अपने या किसी दूसरव् समाज के किसी आराध्य को अभिव्यक्ति के किसी भी माध्यम के द्वारा अपमानित न कर सके। हो सकता है कि आप किसी दूसरव् समाज के किसी आराध्य का स मान कर पाने में असमर्थ हों, आपकी शिक्षा या आत्मा अथवा संकीर्णता आपको इस बात की इजाज़त न देती हो तो बेशक आप अपने धर्म व विश्र्वास की सीमाओं में ही रह सकते हैं, इसकी आपको पूरी आज़ादी है और होनी भी चाहिए। परंतु दूसरव् धर्म या विश्र्वासों के आराध्यों, उनके धर्मस्थानों, धम्रग्रंथों, अवतारों या पैग़ंबरों को नीचा दिखाने या उनकी तौहीन करने का अधिकार कहीं भी किसी को भी हरगिज़ नहीं होना चाहिए।
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**Tanveer Jafri ( columnist),(About the Author) Author Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also a recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.
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