{ निर्मल रानी }
भारतवर्ष में महिलाओं को प्राय: अबला अथवा बेचारी के रूप में देखा जाता है। महिला उत्पीडऩ की घटनाएं भी देश में प्रतिदिन कहीं न कहीं घटित होती ही रहती हैं। $खासतौर पर पिछले कुछ वर्षों में महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों ने विशेषकर सेक्स अपराधों ने पूरे देश को हिला कर रख दिया है। यहां तक कि महिलाओं की रक्षा हेतु कई नए $कानून बनाए गए हैं तथा महिला विरोधी अपराधों को निपटाने के लिए $फास्ट ट्रैक अदालतों का भी गठन किया गया है। देश का पुरुष प्रधान समाज भी महिलाओं पर होने वाले अत्याचार व यौन उत्पीडऩ जैसी घटनाओं को लेकर महिलाओं के प्रति पूरी सहानुभूति रखता देखा जा रहा है। पंरतु इन्हीं समाचारों व घटनाओं के मध्य यह भी देखा जा रहा है कि इसी महिला समाज में महिलाओं की अपराध में भागीदारी का ग्रा$फ भी दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।
हमारे देश में पुतली बाई,फूलन देवी तथा सीमा परिहार जैसी दस्यु सुंदरियों ने अपने हाथों में शस्त्र उठाकर यह साबित कर दिया है शस्त्र उठाना अथवा सशस्त्र होकर पुलिस अथवा मर्दों का मु$काबला करना उनके लिए कोई बड़ी बात नहीं है। परंतु उपरोक्त महिला दस्यु की पृष्ठभूमि में यदि हम झांकें तो हमें यह देखने को मिलेगा कि यह महिलाएं रोज़ी-रोटी कमाने अथवा किन्हीं साधारण पारिवारिक परिस्थितियों के चलते महिला दस्यु जगत में शामिल नहीं हुर्इं बल्कि कुछ अपरिहार्य परिस्थितियों ने इन्हें शस्त्र उठाने पर मजबूर कर दिया। और भारत के दस्यु इतिहास में इन महिलाओं ने इतनी प्रसिद्धि अर्जित की कि पूरा देश यहां तक कि भारतीय सिने जगत भी इनकी हिम्मत,बहादुरी व हौसले के चलते इनकी ओर आकर्षित हुआ। परंतु अ$फसोस की बात तो यह है कि आज हमारे देश में साधारण परिवार की साधारण व $गरीब महिलाएं मात्र अपनी रोज़ी-रोटी चलाने के लिए तथा अपनी इच्छाओं की पूर्ति हेतु आपराधिक गतिविधियों को अंजाम दे रही हैं। ऐसी महिलाअेां को अपराध जगत में धकेलने के लिए महिलाएं $खुद तो दोषी हैं ही साथ-साथ उनके परिवार के वे पुरुष सदस्य भी जि़म्मेदार हैं जोकि अपने घर की औरतों को तरह-तरह अपराध करने हेतु खुली छूट केवल इसलिए देते हैं ताकि वे बाहर निकल कर पैसे कमाकर लाएं तथा परिवार के सदस्यों का $खर्च उठाने के अलावा उनकी शराब की भी व्यवस्था करें।
पिछले दिनों अंबाला में एक ऐसी महिला अपराधी को गिर$फ्तार किया गया जो स्मैक बेचने का धंधा करती थी। उसका यह अवैध कारोबार हालांकि लंबे समय से चल रहा था। स्थानीय पुलिस भी का$फी समय तक उसके अपराध में सांझीदार थी। अनेक स्कूल-कॉलेज के बच्चे तथा युवा वर्ग के लोग इस महिला द्वारा बेची जाने वाली स्मैक के नशेे की गिर$फ्त में आते जा रहे थे। आ$िखरकार जब पूरे शहर में महिला द्वारा संचालित इस स्मैक के अड्डे की चर्चा जगह-जगह शुरु हो गई तब कहीं जाकर पुलिस ने इस औरत को स्मैक सहित धर दबोचा। और इस प्रकार स्मैक बेचने वाली महिला जेल की सला$खों के पीछे पहुंच गई। जिस बस्ती में रहकर यह महिला स्मैक बेचा करती थी, चौधरी बंसी लाल द्वारा हरियाणा में शराब बंदी लागू रहने के दौरान इसी बस्ती में सार्वजनिक रूप से शराब का अवैध धंधा किया जाता था। बताया जाता है कि उसी दौरान शराब की अवैध कमाई से उस बस्ती के कई लोगों ने अपने पक्के मकान सरकारी अथवा दूसरों की ज़मीन पर $कब्ज़ा जमाकर बना लिए। आज भी उस पूरी बस्ती में अपराधों,अवैध कार्यों तथा नशीले पदार्थों की बिक्री का सिलसिला जारी है। $गौरतलब है कि इस बस्ती को अपराध की दुनिया में धकेलने में पुलिस का भी कम योगदान नहीं है। पुलिस संरक्षण व पुलिस को मिलने वाली रिश्वत की बदौलत आज जो बस्ती अपराध व अवैध नशीले व्यापार का केंद्र बन चुकी है उसी बस्ती में आज स्वयं पुलिस कर्मी भी जाते हुए डरते व घबराते हैं। क्योंकि अपराध की दुनिया में अपने $कदम आगे बढ़ा चुकी महिलाओं के लिए पुलिस कर्मी अथवा किसी भी अन्य व्यक्ति के ऊपर किसी प्रकार का लांछन लगा देना कोई बड़ी बात नहीं है।
ऐसी महिलाओं विशेषकर युवतियों व किशोरियों को सर्दी-गर्मी अथवा बरसात के किसी भी मौसम में ब्रह्म मुहूर्तकाल में ही संदिग्ध अवस्था में अपने कंधों पर बड़ा सा गठरीनुमा थैला लादे हुए इधर-उधर घूमते हुए देखा जा सकता है। ज़ाहिर तौर पर तो यह महिलाएं व युवतियां कूड़े के ढेर पर मिलने वाले प्लास्टिक, गत्ता,लोहा अथवा अन्य कबाड़ ढंूढने का काम करती हैं। पंरतु देर रात के जिस काले अंधेरे में इन महिलाओं के $कदम घर से बाहर निकलते हैं उस समय तो अंधेरे के चलते कुछ भी नज़र ही नहीं आता। फिर आ$िखर इन औरतों को इनका मनचाहा कबाड़ कैसे दिखाई दे जाता है? वास्तव में चोरी का काम अंजाम देने वाली महिलाओं का यह एक संगठित नेटवर्क है जोकि कबाड़ व कूड़ा चुनने के नाम पर प्रात:कालीन 3-4 बजे ही अपने घरों से बाहर निकल आता है। और उन मकानों व दुकानों को यह निशाना बनाता है जहां कोई मकान या दुकान मालिक भूलवश अपनी कोई वस्तु अपने घर व दुकान के आसपास भूल गया हो। यह महिलाएं लोगों की नज़रें बचाकर उनके गेट के भीतर रखा सामान भी उठा ले जाती हैं। टूटियां,हैंडपंप के हैंडल, मेनहोल के ढक्कन,किसी बंद पड़े मकान की ग्रिल व खिड़कियां, चाय-पान की दुकानों या रेहडिय़ों के तालों को तोडक़र उनमें रखे $गरीब दुकानदार के सामानों का स$फाया आदि जैसे काम यह प्रात:काल अंजाम देती हैं। शहर का आम आदमी जब सुबह 5-6 बजे के आसपास सैर करने हेतु बाहर निकलता है तो यही युवतियां, महिलाएं व इनका साथ देने वाले किशोर अपने बड़े-बड़े भारी थैलों को कंधों पर उठाकर अपने-अपने घरों को वापस जाते दिखाई देते हैं। कई बार उनके कंधों पर लदा बोझ इतना भारी होता है कि वे इसे अपने कंधों पर उठाकर नहीं ले जा पातीं और इन्हें सुबह-सुबह रिक्शा चालक की सहायता लेनी पड़ती है।
इस महिला समाज को केवल चोरी जैसा अपराध ही नहीं करना पड़ता बल्कि प्रात:काल कभी-कभी इन्हें चोरी करते हुए पकड़े जाने के बाद शारीरिक उत्पीडऩ का शिकार भी होना पड़ता है। और अपने को बचाकर भाग निकलने के लिए ऐसी महिलाएं सबकुछ करने के लिए तैयार भी हो जाती हैं। इस पूरे प्रकरण में पहली जि़म्मेदारी तो उस पुरुष समाज की है जो स्वयं तो अपने घर में चैन से पड़ा हुआ अपनी नींदें पूरी कर रहा होता है तो उसी दौरान उसके घर की महिलाएं अपनी इज़्ज़त-आबरू का सौदा करने तथा अपने परिवार का पेट पालने के लिए चोरी व अन्य आपराधिक घटनाओं को अंजाम देने ब्रह्म मुहूर्त के अंधेरे में अपने-अपने घरों से बाहर निकल जाती हैं। तो दूसरी जि़म्मेदारी उस पुलिस व प्रशासन की भी है जो दशकों से सुबह-सवेरे होने वाले इस अपराध को रोक पाने में नाकाम है। बड़े बड़े अपराध की गुत्थी कुछ ही घंटों में सुलझाने की क्षमता रखने वाली पुलिस कई दशकों से ब्रह्म मुहूर्त में होते आ रहे इन अपराधों से नावा$िक$फ हो ऐसा हरगिज़ नहीं हो सकता। हां दिनोंदिन इनकी संख्या में इज़ा$फा होते जाना इस बात का सुबूत ज़रूर है कि पुलिस व प्रशासन इस विषय की पूरी तरह अनदेखी करते हैं तथा इन अपराधों से अपना मुंह फेरे हुए हैें।
इसी महिला समाज में तमाम ऐसी महिलाएं भी शामिल हैं जोकि सेक्स रैकेट का संचालन करती हैं। इनमें कई ऐसी महिलाएं हैं जो अपनी पूरी जवानी दुसरे पुरुषों से सेक्स संबंध स्थापित करने में बिता देती हैं। और आगे चलकर यही महिलाएं अपने आर्थिक लाभ के लिए अपने संपर्क में आने वाली दूसरी युवतियों को भी उसी नरक में धकेल देती हैं। अनेक नगरों में ऐसे रैकेट चलाने वाली महिलाओं व उनका सहयोग करने वाले पुरुषों को भी देखा जा सकता है। ऐसे अपराधों में संलिप्त महिलाएं प्राय: दबंग,निडर व आक्रामक प्रवृति की होती हैं। इसका कारण भी मुख्यत: यही है कि अपनी वासना की इच्छापूर्ति के लिए उनके पास आने वाले पुरुष तो दुश्चरित्र व अपराधी स्वभाव के होते ही हैं साथ-साथ नगर के कुछ विशिष्ठ लोगों व पुलिसकर्मियों से भी इनके संपर्क व संबंध बने होते हैं। और ऐसा धंधा चलाने वाली महिलाओं से इन्हीं संबंधों के भयवश कोई कुछ बोल नहीं पाता। परिणामस्वरूप जहां ऐसे रैकेट संचालित हो रहे हों उसके पास-पड़ोस का वातावरण गंदा हो जाता है। तथा उस इला$के के शरी$फ व इज़्ज़तदार लोगों का जीना मुहाल हो जाता है। वैसे भी किसी बदचलन,बदकिरदार तथा आवारा प्रवृति की महिला से मुंह लगाना भी आम आदमी पसंद नहीं करता। क्योंकि जो महिलाएं एक बार अपनी इज़्ज़त,इस्मत तथा चरित्र को दांव पर लगाकर सडक़ों पर खड़ी हो जाती हैं कोई पुरुष आसानी से उनका मु$काबला कम से कम बहस,वार्ता अथवा गाली-गलोच में तो कर ही नहीं सकता। वैसे भी एक शरी$फ व्यक्ति औरत से बहस करने से कतराता है। वह डरता है कि कहीं कोई बदचलन महिला उस पर भी किसी प्रकार का $गलत लांछन लगाकर उसे सारी जि़ंदगी के लिए बदनाम न कर दे।
उपरोक्त अपराधों के अतिरिक्त भी कई दूसरे संगीन अपराधों में महिलाओं की भागीदारी की $खबरें अक्सर आती रहती हैं। कभी किसी डकैती में किसी औरत के शामिल होने की $खबर मिलती है तो कभी ऐसे समाचार भी सुनाई देते हैं जबकि तथाकथित विशिष्ट व अमीर परिवार की महिला सदस्यों द्वारा अपनी सेक्स की इच्छापूर्ति के लिए इंटरनेट के माध्यम से दूसरे पुरुषों को आमंत्रित कर उनसे अपनी शारीरिक इच्छाओं की पूर्ति की जा रही हो। बड़े-बड़े गुंडे व गैंगस्टर के साथ महिलाओं की सक्रिय भागीदारी की खबरें भी कभी-कभी सुनाई देती हैं। गोया हम कह सकते हैं कि हमारे समाज में केवल पुरुष वर्ग ही बुराई अथवा अपराध की ओर अपने $कदम आगे नहीं बढ़ा रहा है बल्कि इस अपराध जगत में महिलाओं की भागीदारी भी लगातार बढ़ती जा रही है।
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**निर्मल रानी कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.
Nirmal Rani (Writer )
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