अनेकवर्णा की तीन कविताएँ
1.सपने
बीती रात के सपने
कासनी.. बैंजनी
धूमिल.. औ’ चटकीले..
बहते ही रहे..कांच के टूटते झरने..
किश्तों में उगते..बारी-बारी कहते
अपनी कह, जल उठते..
किस्सों के जंगल
हर किस्से में
खुद से ही तो मिल रही थी
छुपी हुयी जो अब तक थी
क्रमशः उजागर होती जाती थी
सपनों की सुना करो
वो घुमा फिरा कर
सारे सच कह देते हैं
जिनसे हम मुँह छुपाते हैं
उनको भी सुन लें तो वो
कर्पूर बन उड़ जाते हैं
सफ़ेद कबूतर..
किसी अनोखे आयाम में
पनाह पाते हैं..
2.एक चुप.. हज़ार चुप
सीखा ही दिया
चुप हो जाना
इतना चुप
कि अब बस..
चुप्पी बोलती है..
उबलते चावलों में से
माड़ सा निथर गया
मेरा वाचाल होना
जिदियाना.. मनुहार करना..
रूठना.. ‘रोना-धोना’
तुमने तो सदा
उसे ‘धोना’ ही माना..
कितने दिन यूँ अकेली रोती
प्रलापी को ‘समझदार’ बना ही दिया..
फिर भी कुछ, अब भी
नहीं बदल सका
एकतरफा उदासीनता..
और एकतरफा लिप्तता
जुड़ाव.. कारण-उद्देश्य..
अब भी वहीँ है.
3.पार
हमेशा सर पर सवार
एक ही बात,जा
ना है.. कहीं
जाने किस पार?
कुछ और नहीं तो
इस पल से किसी
दूजे पल ही सहीघर से बाहर
पैर धरूँ..
ना धरूँ..
बस, जाना है मुझे
इस ठहरे ताल में
मुट्ठी-मुट्ठी
भर देना है
हिलोर
यहाँ खड़े-खड़े
पैरों से देखो
जड़ें निकल आईं हैं
इससे पहले
टस से मस होने की
गुंजाइश भी न बचे,
निकल पड़ना है
स्वयं का पकड़ हाथ
स्वयं के साथ
स्वयं से मिलने
बस.. चले जाना है।
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——– प्रस्तुति – नित्यानन्द गायेन
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अनेकवर्णा
लेखक /पत्रकार
शिक्षा- अंग्रेजी साहित्य से MA
विशेष- लगभग सात वर्षों तक ‘पर्पल आर्क फिल्म्स’ में प्रोडक्शन असिस्टेंट तथा ‘डेल्ही मिड डे’ में पत्रकार के रूप में कार्यरत रहीं
प्रकाशन- ‘गुलमोहर’ साझा काव्य संकलन तथा ‘कथादेश’ व ‘गाथांतर’ पत्रिका में कविताएँ प्रकाशित ‘स्त्रीकाल’, ‘गाथांतर’ और ‘पहली बार’ ब्लॉग में भी रचनाएँ प्रकाशित हुयी हैं.
ई-मेल- aparnaanekvarna@gmail.com – मूल निवास – गोरखपुर
अपर्णा जी की कवितायें एक दिनचर्या की तरह हैं | उनका सरल स्वभाव और विलक्षण काव्य समझ दुर्लभ सामंजस्य है | उनकी कविता में उच्च कोटि के शब्द-संयोजन के साथ-साथ सुन्दर भाव भी होते हैं | उन्हें हिंदी साहित्य के आकाश में प्रतिष्ठित स्थान मिले , मेरी शुभकामनाएं |
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आप सभी का हार्दिक धन्यवाद. नित्यानंद भाई का विशेष रूप से धन्यवाद्.. हमेशा उत्साह बढ़ने के लिए.
अपर्णा एक बेहतरीन कवियत्री हैं, इनकी हर कवितायेँ अपने आप में परिपूर्ण होती हैं, मैंने इनसे हर वक़्त कुछ सीखा है ………..बधाई शुभकामनायें !!
कविताएँ प्यारी हैं ,आस्वाद को लगती हुई सी ।प्रगीतात्मक
लय सधी इन कविताओं में मुझे मन की काव्यात्मक अवस्थिति के आरोह-अवरोह से भरा संगीत सुनाई पङता है ।
उत्कृष्ट…मन को गहराई से छूती हैं सभी कवितायेँ
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अंतिम दोनों कविताएं बहुत सुंदर हैं !हार्दिक बधाई अपर्णा जी !!
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कवितायें …जो दिल को छु जाए ऐसा ही कुछ लिखा हैं आपने !