{ निर्मल रानी } अच्छे दिन आने वाले हैं का ‘लॉलीपाप’ दिखाकर सत्ता में आई भारतीय जनता पार्टी लोगों को दिखाए गए सपनों को पूरा करने के बजाए देश में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने के प्रयास में जुटी प्रतीत हो रही है। ‘सब का साथ सब का विकास’ जैसे नारे महज़ पाखंड नज़र आ रहे हैं। हालंाकि भारतीय जनता पार्टी अटल बिहारी वाजपेयी के नेत़त्व में पहले भी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सबसे बड़े घटक दल के रूप में सत्ता में रह चुकी है। परंतु उस दौरान सांप्रदायिकता का ज़हर फैलाने का भाजपा का ऐसा प्रयास इस हद तक नहीं देखा गया जितना कि नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद देखा जा रहा है। न तो यह कहा जा सकता है और न ही प्रमाणित किया जा सकता है कि यह सबकुछ प्रधानमंत्री के इशारे पर हो रहा है। परंतु भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से लेकर सांसद योगी आदित्यनाथ तथा इंदौर की विधायक ऊषा ठाकुर जैसे कई सांसदों व विधायकों के सांप्रदायिक दुर्भावना फैलाने वाले बयानों से तो ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि गोया भाजपा नेताओं ने ‘सईयां भए कोतवाल तो अब डर काहे का’ वाली कहावत को चरितार्थ करना शुरु कर दिया है। गोया भाजपाई नेताओं को इस बात का विश्वास है कि उनका ‘आका’ उनके ज़हरीले बोलों से नाराज़ नहीं बल्कि खुश होगा।
लोकसभा चुनावों के प्रचार के दौरान अमित शाह ने जोकि उस समय भाजपा द्वारा उत्तर प्रदेश के प्रभारी मात्र बनाए गए थे, परंतु नरेंद्र मोदी के सबसे विश्वसनीय सिपहसालार की हैसियत उस समय भी रखते थे, ने 4 अप्रैल को मुज़फ्फरनगर में जिस समय समुदाय विशेष से बदला लेने जैसा गैरजि़म्मेदाराना वाक्य अपने भाषण के दौरान सार्वजनिक रूप से इस्तेमाल किया था तथा पार्टी ने उनके वक्तव्य पर न तो कोई आपत्ति जताई थी न ही उनके िखलाफ कोई नोटिस जारी किया था, उसी समय भाजपा के भविष्य के इरादों का अंदाज़ा लग गया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अमित शाह का ‘बदला लेने’ जैसा अत्यंत ग़ैरजि़म्मेदाराना बयान देना,उधर पूर्वी उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ द्वारा जगह-जगह घूम-घूम कर विकास,रोज़गार,मंहगाई आदि के बजाए केवल और केवल सांप्रदायिकता फैलाने की बातें करना तथा आगे चलकर इसी क्षेत्र से अर्थात् वाराणसी से नरेंद्र मोदी द्वारा चुनाव मैदान में उतरना चुनाव विश£ेषकों के इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए काफी था कि यह सबकुछ उत्तर प्रदेश जैसे देश के सबसे अधिक संसदीय क्षेत्रों वाले राज्य में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण कराने के लिए ही किया जा रहा है। और प्रदेश में 71 सीटों पर विजयी होकर भाजपा ने यह साबित भी कर दिया कि उसकी रणनीति पूरी तरह कारगर साबित हुई है। और इसी ‘सफलता’ के बाद जिस अमितशाह पर मुज़फ्फरनगर,शामली व बिजनौर में उनके भडक़ाऊ भाषण के चलते मुकद्दमे दर्ज हुए उसी अमित शाह को पार्टी ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसे महत्वपूर्ण पद से पुरस्कृत किया।
और इन दिनों जबकि उत्तर प्रदेश में उपचुनाव होने जा रहे हैं, एक बार फिर भाजपा ने अपनी उसी रणनीति को दोहराते हुए योगी आदित्यनाथ को उपचुनाव प्रचार की कमान थमाई है। और भाजपा के यह माननीय सांसद आए दिन उत्तर प्रदेश में कोई न कोई ज़हरीले बयान देकर अपनी ‘योग्यता’ साबित करने का प्रयास कर रहे हैं। भाजपा की समाज को बांटने की इन कोशिशों का मीडिया का एक वर्ग अथवा देश का उदारवादी तबका भले ही कितना विरोध या आलोचना क्यों न करता हो परंतु रचनात्मक रूप से यही दिखाई दे रहा है कि सांप्रदायिकता फैलाने वाले अपने ‘बहादुरों’ को पार्टी द्वारा सम्मानित अथवा पुरस्कृत ही किया जा रहा है। संजय बलियान जोकि मुज़फ्फरनगर दंगों के आरोपी थे उन्हें केंद्रीय मंत्रिमडल में शामिल करना तथा एक दूसरे आरोपी संगीत सोम को ज़ेड सुरक्षा मुहैया कराना भी इसी सिलसिले की एक महत्वपूर्ण कड़ी है। इसी प्रकार सुब्रमण्यम स्वामी ने जिस समय भारतीय मुसलमानों को मताधिकार से वंचित किए जाने जैसा विवादास्पद व आपत्तिजनक बयान दिया था उनके इस बयान के कुछ ही दिनों बाद पार्टी ने स्वामी के लिए लाल क़ालीन बिछा दी थी। और आज वही स्वामी जगह-जगह पार्टी का पक्ष लेते तथा उसके सांप्रदायिकता फैलाने वाले नेताओं की पैरवी करते नज़र आ रहे हैं। मोदी सरकार ने स्वामी को भी ज़ेड प्लस सुरक्षा के रुतबे से नवाज़ा है। गोया करोड़ों रुपये महीने के खर्च वाली ज़ेड सुरक्षा सांप्रदायिकता का ज़हर फैलाने वाले नेताओं को उपलब्ध कराई जा रही है। समझ नहीं आता कि यह अच्छे दिन आिखर हैं किसके लिए?
अब एक बार फिर समाज को संप्रदाय के आधार पर विभाजित करने का खतरनाक खेल मध्यप्रदेश के इंदौर से भाजपा की एक विधायक ऊषा ठाकुर द्वारा खेला गया है। इन्होंने मध्यप्रदेश में होने वाले गरबा उत्सव में मुसलमानों के प्रवेश पर प्रतिबंध लगाने की बात की है। जिस देश में ऐसी कोशिशें होनी चाहिए कि सभी धर्मों व समुदायों के लोग मिलजुल कर एक-दूसरे के त्यौहारों में शरीक हों तथा उन्हें परस्पर हर्षोल्लास के साथ मनाएं, वहीं एक वर्ग विशेष को दूसरे वर्ग के त्यौहारों में शिरकत करने से रोकने की बात कहना गैरकानूनी,अनैतिक तथा समाज को बांटने का प्रयास मात्र ही है। और वह भी एक निर्वाचित महिला विधायक द्वारा ऐसा बयान देना तो बिल्कुल ही निंदनीय है। बड़े आश्चर्य की बात है कि जिस देश में कश्मीरी ब्राह्मण समाज स्वयं को 1450 वर्ष पूर्व हुई करबला की उस घटना से जोड़ता है जिसमें हज़रत इमाम हुसैन व उनके परिवार को यज़ीदी सेना द्वारा शहीद कर दिया गया था और उसी की याद में आज भी कश्मीरी ब्राह्मण समाज मोहर्रम मनाता हो व ताजि़ए रखता हो। इतना ही नहीं बल्कि पूरे देश में सभी धर्मों के लोग मोहर्रम में पूरी श्रद्धा के साथ शरीक होते हों। जहां गणेश पूजा व दशहरे में मुस्लिमों की सक्रिय भागीदारी की खबरें सुनाई देती हों।जहां हिंदुओं की सबसे पवित्र नगरी अयोध्या में मंदिर-मस्जिद के इतने बड़े विवाद के बावजूद आज भी इस धर्मनगरी के तमाम दुकानदार,प्रसाद बेचने वाले तथा देवी-देवताओं की पोशाकें सिलने वाले लोग मुसलमान हों। जिस देश में किसी गरीब हिंदू बच्चे की परवरिश किसी मुसलमान द्वारा किए जाने तथा किसी मुस्लिम की बेटी को हिंदू परिवार द्वारा ब्याहने के समाचार सुनाई देते हों। जिस देश में रहीम,रसखान और जायसी जैसे कवियों द्वारा हिंदू देवी-देवताओं की स्तुति में सैकड़ों भजन लिखे गए हों। और अपनी ऐसी तमाम विशेषताओं की वजह से ही भारतवर्ष दुनिया का सबसे बड़ा धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र जाना जाता रहा हो, आज उसी धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र पर आिखर सांप्रदायिकता के यह कैसे बादल मंडराने लगे हैं कि धर्म विशेष के लोगों को दूसरे धर्म से जुड़़े किसी आयोजन में शामिल होने से रोका जाने लगा है? यह वह देश है जहां मंदिरों- गुरुद्वारों में रोज़ा-अफ्तार कराने तथा नमाज़ अदा करने की खबरें सुनाई देती हैं। देश के अधिकांश पीरों-फकीरों व संतों की दरगाहों व मज़ारों पर लगने वाले मेलों में ज़्यादा संख्या हिदू समुदाय के लोगों की ही होती है।
गोया धर्मनिरपेक्षता तथा सर्वधर्म संभाव भारतवासियों का स्वभाव है तथा यह गांधी के देश भारत के लोगों की रग-रग में बसी है। आज जिस महान शिवाजी के नाम का दुरुपयोग देश की सांप्रदायिक ताकतों द्वारा अपने पक्ष में किया जाता है वही शिवाजी न केवल एक महान मुस्लिम फकीर के शिष्य थे बल्कि उन्होंने अपने गोपनीय दस्तावेज़ देखने वाले अपने सलाहकार तथा प्रमुख सेनापति भी मुस्लिम ही रखे थे। परंतु भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में आने के बाद लगता है अपनी जीत को पचा नहीं पा रही तथा जीत के नशे व अहंकार में चूर होकर देश के सामाजिक एकता के ताने-बाने को ध्वस्त करने पर तुली हुई है।
संभव है भाजपा नेताओं के ऐसे प्रयास उन्हें चुनावों में जीत दिलवा देते हों,यह भी संभव है कि समाज में ज़हर घोलने के बाद विजयश्री मिलने पर ऐसे नेताओं को अमितशाह,संजय बालियान तथा संगीत सोम की तरह भविष्य में भी पुरस्कृत किया जाए परंतु देश की सामाजिक एकता तथा राष्ट्र की अखंडता के लिए सत्ता या पुरस्कार पाने की गरज़ से ऐसे प्रयास करना कतई मुनासिब नहीं है। देश का तालिबानी करण हरगिज़ नहीं होना चाहिए। अफगानिस्तान व पाकिस्तान की दुर्दशा को देखकर इन्हें स्वयं इस निष्कर्ष पर पहुंचना चाहिए कि तालिबानी करण के नतीजे आिखर क्या होते हैं। सब का साथ सब का विकास का वास्तविक अर्थ धरातल पर दिखाई देना चाहिए। देश को इस समय सबको साथ लेकर राष्ट्र के समग्र विकास की राह पर चलने की ज़रूरत है। जैसाकि प्रधानमंत्रीने स्वयं लाल िकले से अपने संबोधन में कहा भी है। उनका लाल िकले का भाषण रचनात्मक होते नज़र आना चाहिए। परंतु यदि भाजपा नेताओं के ज़हरीले बोल इसी प्रकार सामने आते रहे तथा वे धर्म के नामपर समाज को तोडऩे जैसा अधर्म करते रहे तो यह पूरे देश के लिए अत्यंत विनाशकारी साबित हो सकता है।
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कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.
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