अंसार कम्बरी की ग़जल

imagesजब से पश्चिम से सूरज निकलने लगा,

रौशनी क्या हुयी देश जलने लगा ।
आग ऐसी उगलने लगा आसमाँ,
सर्द झीलों का पानी उबलने लगा ।
आईने आस्ती ने चढ़ाने लगे,
पत्थरों का कलेजा दहलने लगा ।
धूप से डर गये जब मेरे हम.सफ़र,
मेरा साया मेरे साथ चलने लगा द।
जब कभी झोपड़ी सर उठाने लगी,
जाने क्यों ये हवेली को खलने लगा ।

 

वोदूरहोनेकेअफ़सानेगढ़रहीहोगी
वफ़ाकेकिस्सेकिताबोंमेंपढ़रहीहोगी

उसकाहँसनातोमहज़एकदिखावाहोगा
चाँदनीरातमेंशबनमसेजलरहीहोगी

सभीकेआँखनमहैबस्तीमे
आपनेदर्दकीकोईग़ज़लकहीहोगी

मेरीतरहसेकिसीकोबनाकेदीवाना
वोअमूमननएचेहरेबदलरहीहोगी

वहीउदासचेहरालेकेहोगयारुख्सत
मेरीतलाशमेंकोईनदीरहीहोगीण्ण्ण्ण्

अंसारकम्बरी

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