{ वसीम अकरम त्यागी ** } ब्रिटने में हूऐ एक शान्तिपूर्ण प्रदर्शन से फिर से इस्लाम पर चर्चा शुरु हो गई है. लोगों के जहनों में कई तरह के सवाल पैदा हो रहे हैं । कईयों के दिमागों में यह भी कौंध रहा है कि इस्लाम और उसके अनुयायी इतनी शान्ती से अपने विरोधियों को कैसे जवाब दे सकते हैं। जबकि इस्लाम के नाम पर तो दुनिया में खून खराबा हो रहा है। फिर कैसे मस्जिद के सामने प्रदर्शन करने वालों को इसके अनुयायी चाय नाश्ता कराकर विरोध को शान्त कर सकते हैं ? उनका ये सोचना और सवाल करना कोई गलत नहीं है क्योंकि पश्चिमी मीडिया, और उसके पदचिन्हों पर चलने वाली भारतीय मीडिया ने उन तथ्यों से परे जाकर इस्लाम और उसके अनुयायीयों के खिलाफ प्रोपगैंडा शुरु किया। जिसमें इस्लाम की छवी को भरपूर तरीके से खराब किया गया लोगों जहनों में इस तरह का जहर भर दिया गया कि मुस्लिम आतंकवादी होते हैं और इस्लाम आतंकवाद सिखाता है। और लोगों ने इस्लाम का अध्ययन किये बगैर ही इस तरह की धारणाऐं पालने में लग गये और उसके मूल को भूल गये कि इस्लाम धर्म में उदारवादी प्रवृत्तियां हमेशा से केंद्र में रही हैं।लेकिन इस्लाम के विरोधी लोग और ऐसे कुछ लोग भी जो इस्लाम की शिक्षाओं से अनभिज्ञ हैं, यह दुष्प्रचार करते हैं कि यह हिंसा और आतंकवाद का समर्थक है । ये शब्द इस्लामी शिक्षाओं के विपरीतार्थक शब्द हैं, जिनका इस्लाम से दूर-दूर का भी कोई संबंध नहीं है। यदि कहीं कुछ मुसलमान अपने व्यक्तिगत हित के लिए हिंसा और आतंकवाद का मार्ग अपनाएं और इन्हें बढ़ावा दें, तो भी किसी प्रकार इनका संबंध इस्लाम से नहीं जुड़ सकता, बल्कि यह धर्म-विरुद्ध कार्य होगा और इसे धर्म के बदतरीन शोषण की संज्ञा दी जाएगी। इस्लाम दया, करुणा, अहिंसा, क्षमा और परोपकार का धर्म है । इसके कुछ सुदृढ़ प्रमाणों पर यहां चर्चा की जाएगी।
क़ुरआन का आरंभ ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्रहीम’ से होता है । क़ुरआन की सभी सूरतों (अध्यायों) का प्रारंभ इन्हीं शब्दों से होता है और इन्हीं शब्दों के साथ मुसलमान अपना प्रत्येक कार्य प्रारंभ करते हैं। इनका हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है—‘अल्लाह के नाम से जो अत्यंत करुणामय और दयावान है।’ इस वाक्य में अल्लाह की दो सबसे बड़ी विशेषताओं का उल्लेख किया गया है । वह अत्यंत करुणामय है और वह अत्यंत दयावान है। उसके बन्दों और भक्तों में भी ये उत्कृष्ट विशेषताएं अभीष्ट हैं। उसके बन्दों की प्रत्येक गतिविधि उसकी कृपा और अनुग्रह की प्राप्ति के लिए होती है। क़ुरआन में है—‘अल्लाह का रंग ग्रहण करो, उसके रंग से अच्छा और किसका रंग हो सकता है ? और हम तो उसी की बन्दगी करते हैं ।’ (क़ुरआन 2:138) अब बताईये आतंकवादी गतिविधियों को अधिक से अधिक अनुदार इस्लाम का एक विकृत रूप भर माना जा सकता है। जैसे 9/11 के बाद शुरू हुई आतंकवाद विरोधी जंग ने इस्लाम के उदारवादी चेहरे का अस्तित्व ही खत्म कर देने का प्रयास किया , लेकिन इसके सामने घुटने टेकने के बजाय उदारवादी इस्लाम ने नए सिरे से अपनी ताकत दिखाई और इस क्रम में दुनिया को इस्लाम के कई पहलुओं से रूबरू होने का मौका मिला। उसी की एक मिसाल हाल फिलहाल में (बीबीसी पर प्रकाशित एक खबर ) ब्रिटेन में देखने को मिलती है जहां पर एक दक्षिणपंथी संगठन इंग्लिश डिफ़ेस लीग के कार्यकर्ता ब्रिटेन के यॉर्क स्थित एक मस्जिद के सामने विरोध प्रदर्शन कर रहे थे. लेकिन उनके आश्चर्य का उस समय कोई ठिकाना नहीं रहा जब मस्जिद के अधिकारियों ने उन लोगों को अंदर बुलाया और फिर उन्हें चाय नाश्ता कराया. मस्जिद के अधिकारियों के इस क़दम की अब हर जगह चर्चा हो रही है और कई लोग इसकी तारीफ़ कर रहे हैं. इंग्लिश डिफ़ेंस लीग के छह कार्यकर्ता इस रविवार को यॉर्क के बुल लेन में मौजूद मस्जिद के सामने करने के लिए जमा हुए थे. ये ख़बर मिलते ही लगभग 100 नमाज़ी भी मस्जिद में जमा हो गए. पहले तो इस बात की आशंका थी कि कहीं दोनों गुटों के बीच कोई झड़प न हो जाए लेकिन ठीक इसके उलटा हुआ. मस्जिद अधिकारियों ने प्रदर्शनकारियों को अंदर बुलाया और उनका आदर सत्कार किया. और प्रदर्शनकारियों में शामिल एक प्रदर्शनकारी ने कहा कि “मुझे लगता है कि रविवार को उस छोटी सी मस्जिद के बाहर जो कुछ हुआ उससे दुनिया बहुत कुछ सीख सकती है.” फ़ादर टिम जोंस इसके अलावा मस्जिद में मौजूद नमाज़ियों ने उन प्रदर्शनकारियों के साथ फ़ुटबॉल भी खेला.
ये कोई नया नहीं है कि इस तरह की घटना से आशचर्यचकित हुआ जाये. अगर हम इस्लाम के इतिहास और शिक्षाओं का अध्ययन करें तो हम पायेंगी कि इस्लाम में उदारता को सर्वोपरी माना गया है, और हिंसा को तो सरे से ही नकार दिया गया है, हजरत अली के हवाले से एक वाक्या है मरहब नाम के एक पहलवान ने हजरत अली को चुनौती दी थी कि वे उनसे कुश्ती करें हजरत अली ने इस चुनौती को स्वीकार किया और कुश्ती के अखाड़े में उतर गये जब आप उस पहलवान को चित्त करने वाले थे तो उसने आपके मुंह पर थूक दिया मरहब के इस दुर्वय्वहार को देखकर आपने उसे वहीं पर छोड़ दिया और कहा कि अगर मैं इस वक्त तुम्हें मारता हूं तो दुनिया ये समझेगी कि मेरी तुम्हारे साथ जाती दुश्मनी थी। जरा सोचिये कि क्या आज के दौर में ऐसा संभव है ? कि कोई आपके मुंह पर थूक दे और आप उसे क्षमा कर दें शायद नहीं क्योंकि नजारा आप देख चुके हैं जब बाबा रामदेव के ऊपर एक कार्यक्रम दौरान एक शख्स ने स्याही फेंक दी थी तो उसका बाबा के समर्थकों ने पीट पीट कर क्या हस्त्र किया था ये तो सभी को याद होगा। उससे पहले ईराकी पत्रकार मुंतजिर अल जैदी ने पूर्व अमेरिका राष्ट्रपति जार्ज डब्लयू बुश के ऊपर जूता फेंका था उसका क्या अंजाम हुआ वो भी सब जानते हैं। इन सबके विपरीत इस्लाम ऐसी शिक्षा देता है जिन्हें अगर जीवन में उतार लिया जाये तो आपसी, झगड़े, ऊंच नीच, छुआ छूत, सब खत्म हो जायेंगी। खैर ब्रिटेन में जो मस्जिद के इमाम और अधिकारियों ने किया उसकी आज बहुत अधिक जरूरत है ये काम बड़े पैमाने पर होने चाहिये, आपसी सदभाव के साथ ही मनुष्य का समाज में रहना संभव है। जैसा कि इस्लाम के पैगंबर हज़रत मुहम्मद (सल्ल॰) ने इन्सानों के प्रति उदारता, क्षमाशीलता और दयालुता का व्यवहार किया और इनकी शिक्षा दी। आपने साथ ही, पशु-पक्षियों पर भी दया करने की शिक्षा दी। आप (सल्ल॰) सारे जीवधारियों के लिए रहमत बनाकर भेजे गए थे। पशु-पक्षी भी इससे अलग न थे। आप अत्यंत बहादुर थे और अत्यंत नर्मदिल भी। आपने जानवरों के साथ नरमी करने, उनको खिलाने-पिलाने का हुक्म दिया और सताने से रोका। इस्लाम के आगमन से पूर्व अरबवासी निशानेबाज़ी का शौक़ इस तरह किया करते थे कि किसी जानवर को बांध देते और उस पर निशाना लगाते। आप (सल्ल॰) ने इसको सख़्ती से मना किया। एक बार आपकी नज़र एक घोड़े पर पड़ी, जिसका चेहरा दाग़ा गया था। आप (सल्ल॰) ने कहा—‘‘जिसने इसका चेहरा दाग़ा है, उस पर अल्लाह की लानत हो।’’ (तिरमिज़ी)
आपने जानवरों को लड़ाने से भी मना फ़रमाया है। आपके दयाभाव की एक मिसाल देखिए। एक सफ़र में आप (सल्ल॰) के साथियों ने एक पक्षी के दो बच्चे पकड़ लिए, तो पक्षी अपने बच्चों के लिए व्याकुल हुआ। आपने देखा, तो कहा—‘‘इसको किसने व्याकुल किया?’’ सहाबा ने कहा—‘‘हमने इसके बच्चे पकड़ लिए।’’ आपने उन्हें छोड़ने का हुक्म दिया। (अबू दाऊद)
जबकि आज के दौर में तो इंसानों की इंसानों से ही दूरी बढ़ती जा रही है ऐसे मे जानवरों का ख्याल कौन रखेगा ? जबकि इस्लाम इस सारी शृष्टी की हिफाजत करने का हुक्म देता है। इस्लाम और पैंगबर ऐ इस्लाम की इन्हीं बातों से प्रभावित होकर मौजूदा राज्यसभा सांसद और संघ के मुखपत्र पांचजन्य के पूर्व संपादक तरुण विजय को भी आखिर इस सच्चाई को स्वीकार करना पड़ता है और व कहते हैं‘‘…क्या इससे इन्कार मुम्किन है कि पैग़म्बर मुहम्मद एक ऐसी जीवन-पद्धति बनाने और सुनियोजित करने वाली महान विभूति थे जिसे इस संसार ने पहले कभी नहीं देखा ? क्या आज के इस अराजकता भरे दौर में इन शिक्षाओं से सीख लेनी की जरूरत नहीं है जिनका सही मायने में इंसानी जिंदगी से सरोकार है… जैसा ब्रिटेन में हुआ ऐसा अगर यहां हो जाये तो क्या फिर भी सियासतां दंगे कराने और जातीय व धार्मिक धुर्वीकरण की राजनीती कराने में सफल हो जायेंगे ? उत्तर न में हैं ब्रटिने की इस घटना के आज के दौर के इस्लामी शायर डॉ. माजिद देवबंदी कहते हैं कि इसकी शुरुआत काफी पहली होनी चाहिये थी लेकिन अभी भी कुछ ज्यादा नहीं बिगड़ा है इसलिये अधिका प्रचारित करने की जरूरत भी है और इस्लाम और उसकी शिक्षाओं को बारे में वे अपना एक शेर गुनगुनाते हैं-
संग कितने भी उछाले मेरी जानिब दुनिया
मेरे होंटो पे सदा हर्फे दुआ होती है ।
अगर ये पैगाम आम हो जाये तो फिर लोगों को धर्म और जाती के नाम पर भड़काया नहीं जा सकता और उन बुद्धीजीवियों के मुंह को भी बंद किया जा सकता है जो धर्म को मार्कस की तरह अफीम की संज्ञा देते हैं।
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वसीम अकरम त्यागी युवा पत्रकार
9927972718, 9716428646
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