ज़ाकिर हुसैन
नई दिल्ली. बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने प्रधानमंत्री बनने के सपने के टूटने के बाद पहले मुसलमानों को कोसा, फिर सपा, कांग्रेस, भाजपा पर बसपा को हराने का आरोप लगाया. उसके बाद मायावती ने अपनी ही पार्टी के 100 से अधिक अध्यक्षों, उपाध्यक्षों और सदस्यों को उनके पद से हटा दिया है. इन सभी अध्यक्षों को राज्यमंत्री का दर्जा हासिल है. अपने हंटर के लिए मशहूर मायावती ने यह हंटर इन सभी पर इसलिए चलाया है, क्योंकि उनका प्रधानमंत्री बनने का सपना हाशिये पर आ गया है.
जिस तरह से जनता ने क्षेत्रीय पार्टियों में अपना विश्वास कम किया है उसका खामियाजा लालू प्रसाद यादव और राम विलास पासवान जैसे राजनीतिक बिसात के माहिर खिलाडी भी भुगत चुके हैं. क्षेत्रीय पार्टियों का घटता जनाधार और राष्ट्रिय पार्टियों का बढ़ता वर्चस्व इस बात का साफ़ संकेत देते हैं की 2014 में भी शायद क्षेत्रीय दलों के सुप्रीमो के प्रधानमंत्री बनने के सपने हाशिये पर नला दिए हैं. गौरतलब है की चुनाव से पहले लालू, पासवान, पवार और मायावती अपने आप में कहीं न कहीं प्रधानमंत्री बनने का सपना पाले हुए थे.
चुनाव में नाकामी की समीक्षा के लिए मायावती ने आज पार्टी उम्मीदवारों के अलावा पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष, पार्टी संयोजकों, पदाधिकारियों के साथ निर्वाचित सांसदों व विधायकों की बैठक बुलाई है। इन सभी को लोकसभा चुनाव में बसपा उम्मीदवारों को जिताने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। मायावती ने सिर्फ बसपा के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र की बहन आभा अग्निहोत्री को बख्श दिया है. बताया जा रहा है कि पार्टी संगठन में महत्वपूर्ण बदलाव भी किए जा सकते हैं.
मायावती किसी भी तरह प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचना चाहती थीं. वे अपने हर तरह के हथियार को इस्तेमाल कर चुकी थीं. उन्होंने देश में अपनी सोशल इंजीयरिंग की पाठशाला का पाठ हर वर्ग को पढ़ाने की कोशिश की. उन्हें उम्मीद थी कि वे 100 से अधिक सीटें लाकर प्रधानमंत्री पद की दौड़ में पहले पायदान पर होंगी, पर देश को छोड़िए अपने खुद के घर में भी मायावती को वो कामयाबी नहीं मिली, जिसकी बुनियाद पर वे प्रधानमंत्री बनने के अपने सपने को संजोये हुए थीं. मायावती ने अपने सभी ‘लालबत्ती कार्यकर्ताओं’ से पहले ही साफ़ कर दिया था कि किसी भी हालत में उन्हें कम से कम 50 सीट तो चाहिए ही. ऐसा न होने पर मायावती ने 100 अधिक ‘लालबत्ती कार्यकर्ताओं’ की लालबत्ती तो छीने ही साथ ही पूरे प्रदेश में चुनाव हरने के दो दिन के बाद ही पूरे संगठन के बड़े-बड़े पदाधिकारियों को पैदल करके रख दिया है.
मायावती को लेकर तीसरे मोर्चे ने बड़े-बड़े दावे किए. उन सब दावों की हवा निकलने के बाद वह दिन दूर नहीं जब मायावती लेफ्ट और कांग्रेस को अपनी हार का जिम्मेदार बताना शुरू कर दें और यह भी कह दें कि लेफ्ट, भाजपा और कांग्रेस नहीं चाहती कि दलित की बेटी देश की प्रधानमंत्री बने.
मायावती की चिंता का सबसे बड़ा विषय उनका अपना खिसकता दलित वोट बैंक, साथ छोड़ते मुस्लिम और अपर कास्ट के वोट बैंक का बिखराव है. मायावती जिस तरह से अपने कार्यकर्ताओं को ट्रीट करती हैं उससे उनको और नुक्सान होगा, क्योंकि मायावती के पास जितने भी कार्यकर्ता हैं वे सब कांग्रेस या भाजपा छोड़कर आए हैं. ऐसे में जब कांग्रेस उत्तर प्रदेश में अपनी पकड़ मज़बूत करती जा रही है तो वे कार्यकर्ता वापस कांग्रेस या भाजपा में लौट सकते हैं.
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