{ वसीम अकरम त्यागी **} मीडिया भले ही मौलाना खालिद मुजाहिद को आतंकी लिख रही हो मगर वह आतंकी नहीं था यह मैं नहीं बल्कि मेरे साथ निमेष आयोग भी कह रहा है और वे लोग भी कह रहे हैं जो जो न्याय पसंद हैं अब चाहे वे हमारे साथी मौहम्मद अनस हों या फिर अवनीश पांडे समर कह सभी रहे हैं कि खालिद मुजाहिद और मौलाना तारिक कासमी निर्दोष हैं। ये लफ्फाजी नहीं बल्कि साक्षों के आधार पर कह रहे हैं अगर कोई इनकी दलीलों को नहीं मान रहा है तो वो हैं बजरंगी, कथित राष्ट्रवादी चडढीधारी, गिरोह जिसकी नजर में दाढ़ी और टोपी, अहमद, अली, खान, मिर्जा, अल्वी, आदी सब नाम आतंकवादी ही होते हैं। ये कभी नहीं मानेंगे कि वह निर्दोष था. इनकी नजर में गोडसे देशभक्त है सावरकर देशभक्त है. लेकिन कोई और नहीं इनके अनुसार बाकी सब गद्दार हैं और मुसलमान तो सबसे बड़े वाले । खैर ….. सवाल ये है कि सरकार ने निमेष आयोग की सिफारिशों पर अमल क्यों नहीं किया ? जबकि रिपोर्ट आये हुऐ पांच महीने गुजर गये हैं । इस सवाल को पहले भी कई बार उठाया जा चुका है और आज फिर उठाया जा रहा है। रहा सवाल खालिद मुजाहि की रहस्मय मौत का तो उससे भी पर्दा उठ चुका है क्योंकि जिस तरह खालिद मुजाहिजद के सर पर चोट हैं उसे देख कर कोई भी कह सकता है कि ये एक मर्डर है. जबकि पुलिस के अनुसार उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई थी. तो ये चोट कहां से आई ऐसे में खालिद मुजाहिद के वकील मोहम्मद शोएब उस बयान को गंभीरता से लेना भी जरूरी है जो उन्होंने Muslim Mirror को दिया है जिसमें कहा गया है कि खालिद मुजाहिद के शव पर गंभीर चोटों के निशान हैं जो उस वक्त नहीं थे जब उनकी मुलाकात फैजाबाद कोर्ट में हुई थी उस वक्त वह स्वस्थय थे और पोस्टमार्टम के शव को देखने पर साफ नजर आ रहा है कि खालिद की मौत हार्टअटैक से नहीं हुई है बल्कि उसे मारा गया है चेहरे पर सूजन, नखूनों का काला पड़ जाना, मुंह और आंख से खून आना ये तो हार्ट अटैक के लक्ष्ण नहीं है।
ऐसे में वेलफेयर पार्टी ऑफ इंडिया के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. कासिम रसूल इलियास द्वारा लगाये गये आरोपों को भी गंभीरता से लेना जरूरी है, जो उन्होंने एक प्रेस बयान में कहा कि खालिद मुजाहिद की हृदय गति बंद हो जाने के कारण मौत नहीं हुई, बल्कि पुलिस ने उसकी हत्या है. फैजाबाद कोर्ट में पेशी के बाद वापसी पर उसे बेरहमी से मारा गया जिसके निशान उसके चेहरे और शरीर पर बिल्कुल स्पष्ट थे. वेल्फ़यर पार्टी ऑफ इंडिया के महासचिव के अनुसार निमेष आयोग की रिपोर्ट मेंखालद मुजाहिद और तारिक कासमी की रिहाई अब जबकि निश्चित हो गई थी और इन पुलिस अधिकारियों की गर्दन फंसने वाली थी जिन्होंने उस पर झूठा मुकदमा किया था. इससे पहले खालिद मुजाहिद की रिहाई प्रक्रिया में आती उसे मार दिया गया ताकि न रहे बांस और न बजे बांसुरी.
जो भी हो यह कहीं न कहीं पुलिस की निर्दयता का दर्शा रहा है. जिस वजह से पूर्व एडीजी समेत 42 पुलिस कर्मियों पर केस दर्ज हुआ है। जिस पर संघ परस्त मीडिया को आपत्ती है उन्हें निर्दोषों को आतंकी लिखने में आपत्ती नहीं है मगर उनके कातिलों पर अगर मुकदमा भी दर्ज हो जाये तो आपत्ती उसकी जांच सीबीआई को दे दी जाती है तो आपत्ती जैसे कि सीबीआई खुद पाक साफ हो भूल जाते हैं जिस पर खुद उच्चन्यायलय ने सवालिया निशान लगाया है वह निष्पक्ष जांच भला कैसे कर सकती है ? लेकिन इससे ये जरूर साबित हो जाता है कि इस मामले में कोई ऐसा पेंच तो जरूर है जिससे सरकार असल अपराधियों को बचाना चाहती है । असल अपराधी वही असल अपराधी जिन्होंने ये ब्लास्ट कराये थे क्योंकि निमेष आयोग ने तो इन्हें दोषी पाया ही नहीं तो फिर ये ब्लास्ट कराये किसने ? क्या ऐसा तो नहीं जिन पुलिसकर्मियों ने इस हत्या को अंजाम दिया है ब्लास्ट भी उन्हीं के इशारे पर हुऐ हों ? क्योंकि जब सेना के कर्नल पुरोहित के अंदर के हिंदुत्तव की भावना जाग सकती है मुस्लिमों को कत्ल करने की भावना जाग सकती है तो हो सकता है पुलिस के अंदर भी यही भावना जाग गई हों ? और अब अपनी गर्दन फंसती देख उन्होंने खालिद मुजाहिद का कत्ल कर दिया हो जो कि इस तस्वीर में साफ नजर आ रहा है कि उसकी हत्या हुई है। और रहा सवाल न्याय का तो न्याय तो मलियाना हाशिमपुरा कांड के दंगा पीड़ितों को नहीं मिल पाया, और वे दोषी 25 पीएसी के जवान आज भी खुले घूम रहे हैं. न्याय तो 1993 के मुंबई दंगा पीड़ितों को नहीं मिल पाया और वे 31 पुलिसकर्मी आज भी प्रशासनिक सुख भोग रहे हैं जो जस्टिस श्रीकृष्ण कमीशन की रिपोर्ट में दोषी पाये गये थे। सवाल वही है कि क्या पुलिस के खिलाफ सबूत होने पर भी न्यायलय पीड़ित को इंसाफ दिला सकता जो है अभी तक नहीं हुआ है।
साथ ही नरम हिंदुत्ववाद को बढ़ावा देने वाले समाचार पत्रों से भी एक सवाल कि जब तक किसी व्यक्ति पर आरोप सिद्ध न हो उस व्यक्ति को अपनी खबर में आप किया लिखते हैं ? जितनी बेशर्मी से सहारा समय और राष्ट्रीय सहारा के पत्रकार खालिद मुजाहिद को “हुजी आतंकी” लिख रहे हैं तो क्या वो नरेंद्र मोदी को भी हत्यारा और यूपी के मंत्री मनोज परस को बलात्कारी, राजा भय्या को कातिल, और भाजपा नेता अमित शाह को कातिल लिखने की हिम्मत रखते हैं, मगर लियाकत अली शाह, पोफेसर गिलानी को संदिग्ध आतंकवादी लिखने में इस संघ पोषित मीडिया को कोई आपत्ती नहीं है यह जानते हुऐ भी कि इन्हें कोर्ट ने बरी कर दिया है। और जिसे ये हूजी का आतंकी करार दे रहे हैं उसे निमेष आयोग पहले ही क्लीन चिट दे चुका है फिर ये दुष्प्रचार आखिर किस लिये ? ये तो पेशा नहीं है मीडिया का यह तो नहीं सिखाया था जेम्स अगस्टस हिकी ने, अजीमुल्ला खां, राजा राम मोहराय ने फिर क्यों अपने पेशे के साथ बेमानी की जा रही है ?
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** वसीम अकरम त्यागी
उत्तर प्रदेश के जिला मेरठ में एक छोटे से गांव अमीनाबाद उर्फ बड़ा गांव में जन्म
माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एंव संचार विश्विद्यलय से पत्रकारिता में स्नातक और स्नताकोत्तर
समसामायिक मुद्दों और दलित मुस्लिम मुद्दों पर जमकर लेखन। यूपी में हुऐ जिया उल हक की हत्या के बाद राजा भैय्या के लोगों से मिली जान से मारने की धमकियों के बाद चर्चा में आये ! फिलहाल मुस्लिम टूडे में बतौर दिल्ली एनसीआर संवाददता काम कर रहें हैं
9716428646. 9927972718
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Allah apko esi tarah josh o himmat de mere bhai ameen
kisse karen shikayat ab kiski den duhai.
marne wala mar gaya aur kuch logon ke dilon ko sukoon mil gaya .ab dekhna ye he ke marhom khalid ko insaf kab milta he.aaj tak atif sajid ko to insaf mila nahi jinka farzi ancounter delhi poolic ne batla house me kiya tha .aur abhi to kitne begunah gujrat up aur karnatka andhra pardesh ki jailo me apni ba izzat rihai ka intezar kar rahe hen.