ज़ाकिर हुसैन
छतरपुर. दलित समाज के ढाई सौ से ज़्यादा लोगों ने हिन्दू धर्म को त्याग कर बौद्ध धर्म अपना लिया है. धर्म परिवर्तन के साथ ही इन लोगों ने अपने नाम के साथ अपनी मूल जातियों की जगह बौद्ध लिखने का फ़ैसला किया है.
अखिल भारतीय भिक्षु महासंघ के नायक 103 वर्षीय बौद्ध भिक्षु ने कल छतरपुर में लोगों को बौद्ध धर्म की विशेषताओं के बारे में विस्तार से जानकारी दी थी. साथ ही पिछले 5 हज़ार सालों से दलित के नाम पर इंसान का इंसान के द्वारा शोषण पर अपने विचार व्यक्त किए. उन्होंने यह भी कहा कि हिन्दू धर्म के अन्दर सभी मनुष्यों को समान नहीं समझा जाता. मनुवादी विचारधारा के मानने वालों ने आर्थिक रूप से पिछड़े और सामाजिक तौर पर कमज़ोर इंसानों को ‘दलित’ की संज्ञा देकर हजारों सालों तक उनका शोषण किया और यह सिलसिला आज भी जारी है. बौद्ध धर्म सबको एक समान होने का दर्जा देता है. बौद्ध धर्म में छूआछूत के लिए कोई स्थान नहीं है.
हिन्दू धर्म त्यागने और बौद्ध धर्म अपनाने के लिए सामूहिक रूप से दो बौद्ध भिक्षा कार्यक्रमों का आयोजन किया गया. एक कार्यक्रम सन सिटी में हुआ, जहां पर 60 लोगों ने हिन्दू धर्म त्याग कर बौद्ध धर्म की दीक्षा ली. दूसरा कार्यक्रम अम्बेडकर नगर में हुआ. इस कार्यक्रम में बौद्ध भिक्षु आनंद देव ने बौद्ध धर्म के विधि-विधान से 200 लोगों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी. दीक्षा लेने के फ़ौरन बाद ही हिन्दू धर्म त्यागने वालों ने अपने नाम के साथ बौद्ध लिखना शुरू कर दिया.
बौद्ध धर्म अपना चुके लोगों से जब धर्म परिवर्तन की वजह पूछी गई तो उनमें से कुछ लोगों का कहना था कि हमारे पूर्वजों ने हिन्दू होने का खामियाज़ा भुगतते हुए ‘दलित’ के नाम पर बहुत मानसिक वेदना झेली है और अब हम नहीं चाहते कि हमारी आने वाली पीढियां भी हिन्दू धर्म में रहकर ‘दलित’ होने का खामियाज़ा भुगतें. हम अपनी इस हज़ारों साल की शोषण की परंपरा को आज ख़त्म कर चुके हैं.
धर्म परिवर्तन के इस मामले में पुलिस के एक आला अफ़सर का कहना है कि इस मामले की जांच करा रहे हैं. किसी तरह की कोई भी गड़बड़ी या साज़िश पाए जाने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी.
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