{ निर्मल रानी } भारतीय लोकतंत्र में चौथे स्तंभ का दर्जा प्राप्त मीडिया के विषय में वैसे तो शायर ने कहा है कि
न स्याही के हैं दुश्मन न सफ़ेदी के हैं दोस्त।
हमको आईना दिखाना है दिखा देते हैं।।
परंतु बदलते समय के साथ-साथ समाज में धन की लालच की पराकाष्ठा के चलते शायद अब मीडिया को दूसरों को आईना दिखाने के बजाए स्वयं अपना मुंह आईने में देखने की ज़रूरत दरपेश है। मीडिया के विषय पर आयोजित होने वाले बड़े-बड़े सेमीनार अथवा इससे संबंधित वार्ताओं में अक्सर बड़े-बड़े लच्छेदार भाषण मीडिया के दिग्गजों द्वारा सुनाए जाते हैं। क्या किसी समाचार पत्र का मालिक तो क्या उसका मुख्य संपादक,संपादक अथवा समूह संपादक सभी अपने-अपने मीडिया हाऊस की गुणवत्ता,उसी निष्पक्षता तथा निडर होने का बखान करते सुने जाते हैं। इतना ही नहीं बल्कि आजकल तो इन्हीं मीडिया घरानों के बीच तलवारें खिंची भी देखी जा रही हैं। खुलेआम दो अलग-अलग मीडिया घराने क्या समाचार पत्र समूह के स्वामी तो क्या टेलीविज़न के संचालक दोनों ही एक-दूसरे को अपमानित करने,नीचा दिखाने तथा एक-दूसरे पर कीचड़ उछालने में लगे हुए हैं। जबकि हकीकत तो यह है कि ऐसे दोनों ही घराने चोर-चोर मौसेरे भाई ही हैं। क्या किसी गंभीर मीडिया हाऊस को यह शोभा देता है कि वह एक-दूसरे पर लांछन लगाने के लिए अपने समाचार पत्रों या चैनल का प्रयोग करे? क्या देश के पाठक अथवा श्रोता अब इसी काम के लिए रह गए हैं कि वे मीडिया घरानों की आपसी लड़ाई को बैठकर निहारें? बजाए इसके कि देश-प्रदेश तथा उनके अपने क्षेत्र के वर्तमान हालात के बारे में उन्हें कोई ज्ञानवर्धक व ताज़ातरीन जानकारी दी जाए?
ऐसे मीडिया समूह के मालिकों से तथा उन नेताओं से क्या उम्मीद की जा सकती है जो समाचार पत्रों को पैसे देकर अख़बारों के माध्यम से अपनी झूठी वाहवाही प्रकाशित करवा रहे हों? हालांकि ऐसा नहीं है कि प्रत्येक प्रत्याशी प्रत्येक समाचार पत्र को पैसे देकर अपनी $खबरें प्रकाशित करवाना चाहता हो। दरअसल यह सारा खेल प्रसार संख्या पर आधारित है। जिस समाचार पत्र की जितनी अधिक प्रसार संख्या है उसके अनुसार उसका पैकेज उतना ही क़ीमती है। परंतु अधिक प्रसार संख्या वाले कई अखबार ऐसे भी हैं जो पेड न्यूज़ जैसे अपवित्र व अनैतिक गोरखधंधे में नहीं पड़ते। हालांकि प्रत्याशियों द्वारा उन्हें ख़रीदने की कोशिश भी की जाती है। परंतु नैतिकता व सिद्धांत की राह पर चलने वाले तथा मीडिया के प्रति बने जनता के भ्रम की लाज रखने वाले समाचार पत्र ऐसे प्रत्याशियों के झांसे में नहीं आते। निश्चित रूप से ऐसे निष्पक्ष व ईमानदार मीडिया हाऊस पर गर्व किया जाना चाहिए।
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कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं.
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