– डॉ. सुभाष खंडेलवाल –
भारत हजारों वर्ष की सभ्यता और संस्कृति का इतिहास समेटे पिछले ७२ वर्ष से लोकतंत्र के पथ पर चल रहा है। मिस्र, यूनान और यूरोप के कुछ देश भी भारत के आगे-पीछे अपनी सभ्यता और इतिहास के साथ आगे बढ़ रहे हैं। वैसे अप्रâीकी सभ्यता और इतिहास सबसे पुराना है। दुनिया पिछले सौ वर्षों में राजतंत्र से निकलकर लोकतंत्र के पथ पर आई है। यह हजारों वर्ष में घटा वो चमत्कार है, जिसकी किसी ने कल्पना भी नहीं की होगी। दुनिया में कुछ मुल्कों को अभी भी आजादी की तलाश है। अमेरिका दुनिया का वो मुल्क है, जो साढ़े तीन सौ वर्ष पूर्व अस्तित्व में आया। उसे बनाने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका अंग्रेजों की रही है। अमेरिका का कोई भी नागरिक हो, वह सिर्फ अमेरिकी है। वहां जात, रंग, नस्ल, मजहब के बंटवारे नहीं हैं। इसलिए वहां कि बहुसंख्यक गोरी आबादी एक काले अर्फीकी बराक ओबामा को अपना राष्ट्रपति चुनती है।
अमेरिका को यूरोप के जिन लोगों ने बनाया खासकर अंग्रेजों ने। हमारे देश पर भी उन्होंने २०० बरस तक राज किया। अमेरिका लगातार आगे बढ़ता चला जा रहा है और हम जिन कारणों से हजारों वर्ष गुलाम रहे उन्हीं कारणों को ढोते हुए आज भी उखड़ी सांसे ले रहे हैं। अमेरिका से हम सड़क का कचरा साफ करने की प्ररेणा ले रहे हैं लेकिन दिमाग में फसे कचरे को साफ करने को तैयार नहीं हैं। दुनिया में लोकतंत्र से बढ़कर कुछ भी नहीं है। इसकी भी बुराईयां हैं, लेकिन अच्छाई इतनी ज्यादा है कि हम सिर्फ गुलामी के काल को जरा-सा समझेंगे तो लोकतंत्र का सम्मान करना सीख जाएंगे।
आज हमारा देश लोकतंत्र के अनेकानेक विरोधाभास के साथ आगे बढ़ रहा है। देश ने एक राह पकड़ी है हिन्दुत्व की, जिसकी वाहक भाजपा अपने पुराने हिन्दू महासभा के अजेंडे की ओर जा रही है। आज की कांग्रेस १९८० की गांधीवादी, समाजवाद की अवधारणा के साथ शुरू हुई भाजपा है। आज समाजवादियों के विभिन्न धड़े देश-भर में खासतौर पर उ.प्र.-बिहार में काम कर रहे हैं, जो बीते हुए कल के कांग्रेस के मार्ग के मुसाफिर हैं। आज के कम्युनिस्ट मजदूर आंदोलन से निकलकर कर्मचारी संगठनों में बदल गए हैं।
देश ने एक राह और भी पकड़ी है, वो है हिन्दुत्व से नफरत की। जिसकी वाहक कभी बसपा थी, लेकिन आज वो भी भाजपा, कांग्रेस, समाजवादियों के पीछे-पीछे कतार बद्ध हो उनके ही मार्ग पर चल पड़ी है। देश ने एक और राह पकड़ी है, उसमें है, कन्हैयाकुमार जैसे नौजवान जो कम्युनिस्ट हैं। जितेश मेघाणी हैं, दलितों के कई संगठन हैं, जो बिखरे हुए हैं। ये एक अलग ही चरम पंथ की ओर जा रहे हैं। उसमें गांधी का स्थान नहीं है। उसमें हिन्दुत्व और राम का मतलब है, ब्राह्मण की गुलामी। उसमें सिर्पâ अंबेडकर हैं, पूâले हैं। इनकी उस राह में भी नफरत है। कांग्रेस, भाजपा और समाजवादी गांधी की बात करते हैं। आचरण उसके विपरीत करते हैं। दलित और उनसे जुड़े हुए संगठन डॉ. अम्बेडकर की बात करते हैं, लेकिन कुछ भी हासिल होते ही चाहे नौकरी हो या सत्ता सबसे पहले नव ब्राह्मण बन जाते हैं। एक वर्ग और है, वो है मुसलमान जिसे नया दलित बनाया जा रहा है। फिर भी चेतना की रफ्तार बढ़ रही है। इसका कारण शिक्षा, जागरुकता, टीवी, मीडिया आदि है।
हमारा संविधान जाति धर्म से परे धर्मनिरपेक्ष गणतंत्र की उदघोषणा करता है। लेकिन आज हो रहा इसके उलट है। राजनैतिक दल संविधान के मूल तत्वों को पतन की ओर ले जा रहे हैं, बचा है तो बस इतना ही कि देश की किस्मत का फैसला आज भी बुलेट (बंदूक) की गोली से नहीं वरन् बेलेट (मत पत्र) से हो रहा है। संविधान का एक और खिलवाड़ चुनावों में धन के बढ़ते प्रभाव का है। जिस पर देश के सभी राजनैतिक दलों ने अपने चेहरे पर बेशर्मी का परदा डाल रखा है। धन साधन पर चुनाव आयोग भले ही रोक लगा रहा है। लेकिन सभी राजनैतिक दलों में वंशवाद की तरह इस मामले में भी मौन सहमति है। सुविधानुसार सभी एक-दूसरे पर आरोप लगाते रहते हैं। सवाल उठता है कि यह आखिर कब तक चलेगा। लोकतंत्र से खिलवाड़ की यह गिरावट कहीं हमारे संविधान को और उसके स्तंभों को संकट में ले जा रही है। यह सब कहां जाकर रुकेगा, यही आज का यक्ष प्रश्न है।
___________________________
डॉ. सुभाष खंडेलवाल
प्रधान संपादक रविवार पत्रिका
संपर्क – :
Email – : ravivar.patrika@gmail.com
Postal Address : 210, Corporate House, 169, RNT Marg, Indore (M.P.)
Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely his own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.