लिवर प्रत्यारोपण की तकनीकों के विकास के साथ रोगी न केवल लंबा जीवन जीता है, बल्कि उपचार के बाद के परिणाम भी बेहतरीन होते हैं।
नई दिल्ली में साकेत स्थित मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल के मैक्स सेंटर फॉर बायलरी साइंसेस के अध्यक्ष, डॉक्टर सुभाष गुप्ता ने बताया कि, “एमआरआई लिवर स्कैन जैसी इमेजिंग तकनीकों में विकास की मदद से आज हम छोटे से छोटे ट्यूमर का पता आसानी लगा लेते हैं, जो सीटी स्कैन से कर पाना बहुत मुश्कलि होता है। इसमें सबसे बड़ा विकास यह है कि अब मृत डोनर के अंगों को मशीन में संरक्षित किया जा सकता है। शरीर से निकाले गए अंगो को कोल्ड स्टोरज में सीमीत समय के लिए ही रखा जा सकता है और लिवर को निकालने के 12 घंटो के अंदर ही प्रत्यारोपित किया जाना चाहिए। जबकि मशीन संरक्षित अंगो को सामान्य तापमान में रखा जा सकता है और पंप के जरिए खून का बहाव जारी रहता है जिससे लिवर सामान्य स्थिति में रहकर पित्त का उत्पादन कर पाता है।”
जीवीत डोनर लिवर ट्रांसप्लांट की प्रक्रिया में लिवर के केवल उस भाग को प्रत्यारोपित किया जाता है जो खराब हो चुका होता है। सर्जरी के बाद डोनर का शेष लिवर दो महीनों के अंदर फिर से बढ़ने लगता है और पुन: सामान्य आकार ले लेता है। इसी प्रकार रिसीवर का प्रत्यारोपित लिवर भी अपनी सामान्य आकृति में बढ़कर, अपने कार्य को सामान्य रूप से शुरू कर देता है।
डॉक्टर सुभाष ने आगे बताया कि, “लिवर कैंसर के असरदार इलाज के लिए बाद के चरण बाले मरीजों को लिवर ट्रांसप्लांट की सलाह दी जाती है। फैटी लिवर सहित लिवर की पुरानी बीमारी में लिवर कैंसर होने की संभावना 15% बढ़ जाती है। इसलिए समय पर रोकथाम के लिए नियमित जांच जरूरी है। सर्जिकल तकनीकें इतनी एडवांस हो चुकी हैं कि जीवीत डोनर लिवर ट्रांसप्लांट छोटे बच्चों में भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है। उच्च बिलीरुबिन वाले रोगियों के प्लाजमा को डोनर के प्लाजमा के साथ बदला जाता है जिससे पित्त कम होता है और प्रत्यारोपण की सफलता की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।”
भारत में यह तकनीक अब लोकप्रिय हो रही है। यह एक प्रबंधित प्रक्रिया है जिसे करने के लिए संबंधित विषेशज्ञ की सलाह और अनुमति की आवश्यकता होती है। लिवर के केवल खराब भाग को प्रत्यारोपित किए जाने के कारण लिवर डोनेशन बिल्कुल सुरक्षित हो गया है। डोनर 2-3 हफ्तों के समय में बिल्कुल सही हो जाता है और उसका लिवर भी बढ़कर सामान्य आकार में आ जाता है।
डॉक्टर सुभाष गुप्ता ने कहा, “इसी प्रकार से, ट्रांसप्लांस के बाद होने वाली बीमारियां जैसे हेपेटाइटिस सी से अब घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसका आसानी से इलाज किया जा सकता है। हेपेटाइटिस सी को खत्म करने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली एंटीवायरल थेरेपी बेहतरीन और असरदार साबित हुई है, जिससे भविष्य में हेपेटाइटिस लिवर ट्रांसप्लांट का कारण नहीं बनेगी।”