मुंबई। अभिनेत्री शबाना आजमी ने लैंगिक समानता को लेकर अपने बयान दिए हैं। उन्होंने कहा कि अगर हमें लैंगिक समानता स्थापित करना है, तो महिलाओं को सशक्त बनाने के साथ-साथ पुरुषों को भी मर्दानगी की परिभाषा बदलने की जरूरत है। दरअसल, शबाना ने हाल ही में अपने भाई बाबा आजमी के निर्देशन में बनी फिल्म ‘मी रक्सम’ प्रस्तुत की है। यह फिल्म एक ऐसे मुस्लिम पिता के बारे में है, जो अपनी युवा बेटी की भरतनाट्यम नर्तकी बनने के सपने को हासिल करने में उसकी मदद करने के लिए अपनी बनी-बनाई परिपाटी से अलग राह चुनते हैं। इसे लेकर शबाना ने कहा कि “फिल्म में पिता सलीम के चरित्र का एक बहुत ही खास गुण यह है कि वह पत्नी के निधन के बाद अपनी 15 साल की लड़की के पिता और मां दोनों रहते हैं। पिता के लिए एक किशोरी बेटी को मां की तरह पालना आसान नहीं है। मुझे लगता है कि महिलाएं अपने बच्चों के लिए पिता और मां दोनों भूमिकाओं में बेहतर हैं। जब पुरुषों की बात आती है, तो शायद वे नहीं हैं। इसीलिए सलीम का चरित्र बहुत ही खास था, यह मर्दानगी को फिर से परिभाषित करने जैसा था।” उन्होंने समझाते हुए आगे कहा कि “वर्तमान में मर्दानगी के विचार के आसपास विषाक्त सोच फैली हुई है। मर्दानगी का अर्थ है, गठीली मांसपेशियां, शक्तिहीन से अधिक शक्ति पाना, जो कि एक जहरीली चीज है। हां यह सच है कि हम चाहते हैं कि महिलाएं बदलें और स्वतंत्र बनें। लेकिन लैंगिक समानता स्थापित करने के लिए हमें पुरुषों में भी बदलाव की जरूरत है। PLC.