पानी ने किया पानी-पानी

– निर्मल रानी –


                                   
अभी मात्र एक सप्ताह पहले ही देश में सूखा व मानसून पूर्व सूखा पड़ने जैसे समाचार शीर्षक नज़रों के सामने से गुज़र रहे थे। चेन्नई में ग्राउंड वाटर समाप्त हो जाने तथा बिहार में जल संकट पैदा होने की ख़बरें प्रकाशित हो रही थीं। गोया पानी के अभाव से हाहाकार मचा सुनाई दे रहा था। इसी दौरान शायद प्रकृति ने प्यासी धरती व प्यासे लोगों की फ़रियाद सुन ली। नतीजतन भारत सहित लगभग पूरे दक्षिण एशिया क्षेत्र में ज़बरदस्त बारिश हुई। कुछ क्षेत्रों में तो ऐसी बारिश हुई जो तबाही का मंज़र साथ लेकर आई। भारत में आसाम सहित पूर्वोत्तर के कई क्षेत्रों में लाखों लोग बाढ़ की विभीषिका का सामने करने के लिए मजबूर हुए। यहाँ सेना को बाढ़ प्रभावित लोगों की मदद के लिए दिन रात एक कर लोगों को सुरक्षित स्थान पर ले जाना पड़ा। धुबड़ी जेल में 5 फ़ुट पानी भर जाने की वजह से यहाँ के 409 क़ैदियों को अन्यत्र भेजना पड़ा।आसाम विधान सभा के सत्र को बाढ़ की विभीषिका के चलते स्थगित करना पड़ा। गौहाटी में ब्रह्मपुत्र नदी ने पिछले 15 सालों  का रिकार्ड तोड़ते हुए ख़तरे के निशान से 51.23 मीटर ऊपर बहना शुरू कर दिया। राज्य में कई लोगों के मरने का भी समाचार है। केंद्रीय जल शक्ति मंत्री द्वारा पारम्परिक रूप से बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का हवाई सर्वेक्षण कर राज्य को 251. 55 करोड़ रूपये की बाढ़ सहायता राशि देने की घोषणा की गई। विश्वप्रसिद्ध क़ाज़ीरंगा राष्ट्रीय उद्यान का अधिकांश भाग जलमग्न हो गया। नतीजतन  30 से अधिक वन्य जीवों की मौत हो गयी इनमें 1 सींग वाले 4 गेंडे भी शामिल हैं।
                                   
इसी प्रकार बिहार में कोसी नदी के पानी में आया उफान फिर से चर्चा में है। नेपाल में हुई भारी बारिश ने एक बार फिर सीमावर्ती बिहार को जलमग्न कर दिया। मुख्यमंत्री नितीश कुमार बिहार के लगभग 26 लाख बाढ़ प्रभावित लोगों को हर संभव सहायता पहुँचाने का आश्वासन देते तथा सवा लाख बढ़ पीड़ितों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचाने का दावा ठोकते सुनाई दिए। ख़बरों के अनुसार पूरे राज्य के प्रत्येक ज़िला मुख्यालयों में इमर्जेन्सी ऑपरेशन सेंटर की स्थापना की गई है जो बाढ़ नियंत्रण कक्ष के रूप में कार्य कर रहा है। ग़ौर तलब है कि राज्य के सीमावर्ती इलाक़े के 12 ज़िले व इनसे सम्बंधित 78 प्रखंडों की 555 पंचायतें नेपाल से आने वाली बाढ़ से बुरी तरह प्रभावित हैं। इसी क्षेत्र के लगभग 26 लाख लोगों को घर से बेघर होना पड़ा है तथा राज्य में बाढ़ व बारिश के चलते अब तक 50 लोगों की मौत होने की भी ख़बर है। मधुबनी सहित कई इलाक़ों में रेल पटरियां पानी में डूब जाने के चलते रेल यातायात बाधित हो रहा है। इसी प्रकार उत्त्तराखंड में भी भरी बारिश की वजह से तबाही होने के कई समाचार सुनाई दे रहे हैं। भूस्खलन व बारिश का मलवा व कीचड़ आदि भरी मात्रा में सड़कों पर आ जाने के चलते राज्य के गढ़वाल व कुमाऊँ क्षेत्र के 130 मार्गों पर यातायात बंद करना पड़ा।
                                 
कम-ो-बेश यही या इसी से मिलते जुलते हालात महाराष्ट्र,उत्तर प्रदेश,हिमाचल प्रदेश व हरयाणा-पंजाब में भी कई स्थानों से सुनाई दे रहे हैं।  मुंबई में बाढ़ से जनजीवन तो अस्त व्यस्त था ही कि अचानक डोंगरी इलाक़े में एक बहुमंज़िला इमारत ज़मींदोज़ हो गयी जिसमें 7 लोगों के मरने व चालीस से अधिक लोगों के मलवे में दबे होने का समाचार प्राप्त हुआ। बारिश के दौरान रेल यातायात बाधित होना,रेल पटरियों का धंस जाना,नदियों के तट बंधों का टूटना,गली मोहल्लों का जल मग्न हो जाना,खेतों द्वारा समुद्र या बड़ी झील जैसा दृश्य पेश करना,कालोनियों व बाज़ारों का डूब जाना,नालियों व नालों का जाम हो कर ओवर फ़्लो होकर बहना जैसी ख़बरें गोया हम भारतवासियों की नियती बन चुकी हैं। बारिश के दौरान ही प्रशासन द्वारा बनाई जाने वाली गलियों,सड़कों व नाले नालियों तथा जल निकासी की व्यवस्था की पोल भी ख़ूब खुलती दिखाई देती है। प्रत्येक वर्ष बारिश के दौरान ही रिश्वत और भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ी विकास व निर्माण व्यवस्था की भी ख़ूब क़लई खुलती है। दशकों से इन मुसीबतों व प्राकृतिक आपदाओं से छुटकारा मिलने सम्बन्धित योजनाएं भी बनाई जाती रही हैं। हज़ारों करोड़ रूपये जनता को रहत देने के नाम पर ख़र्च किये जाते हैं। परन्तु नतीजा यह निकलता है कि पहले से भी ज़्यादा तबाही के दृश्य दिखाई देते हैं,पहले से ज़्यादा जन-धन का नुक़सान होता है,पहले से अधिक स्थानों पर कालोनियों,गांवों व मोहल्लों के डूबने की ख़बरें आती हैं। वर्षा ऋतू का पानी जगह जगह निचले स्थानों में इकठ्ठा होकर फ़सलों को बर्बाद करता है,बीमारी फैलने का कारण बनता है,आवागमन में लम्बे समय तक दिक़्क़त पैदा करता है। और जिस जल को सुचारु रूप से धरती के धरातल में पहुंचकर धरती के जलस्तर को कुछ ऊपर करना चाहिए,वही जल प्रदूषित होता है या वाष्पीकृत हो जाता है।
                                सवाल यह है कि क्या वजह है कि हम भारतवासी प्रत्येक वर्ष इन हालात का सामना करने को मजबूर रहते हैं ? पिछले वर्ष के हालात व घटनाओं से हम,हमारी सरकार व प्रशासन तजुर्बा हासिल करते हुए अगले वर्षों में उसके अनुरूप सुरक्षात्मक प्रबंध क्यों नहीं कर पाते। हमारे योजनाकार और मोटी-मोटी तनख़्वाहें लेने वाले अभियंतागण आख़िर क्यों शहरों में सड़कों व गलियों को लगातार ऊँचा करते जा रहे हैं जिसकी वजह से पूरे पूरे मोहल्ले सड़क व गली के निचले स्तर  पर हो जाने की वजह से पानी में डूब जाते हैं ?पिछले दिनों अम्बाला शहर में धूलकोट स्थित बिजली विभाग के कर्मचारियों की एक कॉलोनी व कार्यालय में लगभग 5 फ़ुट पानी का भराव हो गया। 2 दिनों तक कालोनीवासी इन्हीं हालात से जूझते रहे। प्रशासन असहाय बना रहा। आख़िरकार एक मुख्य मार्ग को काट कर पानी बाहर निकाला गया। क्या सरकार व प्रशासन को इस बात का ज्ञान नहीं कि ज़मीन पर निचले  स्तर में बनी कालोनियों,मोहल्लों,सरकारी कार्यालयों,बैंकों आदि में जलभराव होता हैं लिहाज़ा उसके क्या उपाय किये जा सकते हैं ?क्या वजह है कि योजनाकारों द्वारा हर जगह गलियां,सड़कें,नालियां व नाले दिन प्रतिदिन ऊँचे से ऊँचे किये जा रहे हैं ?बस्तियों,कालोनियों व कार्यालयों के डूबने का यही कारण है। सोचने का विषय है कि मुश्किल से एक आम नागरिक अपने पूरे जीवन की कमाई इकट्ठी कर या क़र्ज़ लेकर अपना व अपने परिवार के लिए सिर छुपाने का एक आशियाना तैयार करता है। पैसा पैसा जोड़ कर अपनी घर गृहस्थी का सामान बनाता है। सरकारी कर्मचारियों व अधिकारियों को सरकारी कालोनियों में आवास आवंटित किया जाता है। परन्तु जब मध्यम स्तर की भी बारिश होती है तो निर्माणकर्ताओं के घटिया निर्माण की पोल तो खुलती ही है साथ साथ योजनाकारों की ग़लत योजनाओं का भी भंडाफोड़ होता है।लगभग प्रत्येक वर्ष बारिश के दौरान पैदा होने वाली इन जन समस्याओं का नतीजा यही होता है कि प्रभावित लोगों को आर्थिक नुक़सान उठाना पड़ता है,सामान्य जनजीवन प्रभावित होने की वजह से देश का भी आर्थिक विकास बाधित होता है,प्रभावित कार्यालयों में पूरा कामकाज ठप्प हो जाता है,ग़लत योजनाओं के दुषपरिणामों से निपटने के लिए जनता के पैसों की और भी बर्बादी करनी पड़ती है।

                           
लिहाज़ा सरकार को चाहिए कि सभी ऐसे सरकारी कार्यालय व कालोनियां जो मुख्य मार्गों से नीचे के स्तर पर जा चुके हैं उन भवनों की अविलम्ब ऐसी व्यवस्था हो कि पानी का जमाव या बहाव ऐसे भवनों की ओर न हो। जहाँ तकनीकी दृष्टि से यह संभव न हो सके वहां ऊँचे धरातल पर नए व मज़बूत भवन निर्माण कराए जाएं। गलियों, मोहल्लों व बाज़ारों आदि में यहाँ तक कि गांवों में भी लगभग प्रत्येक वर्ष और कहीं कहीं तो साल में दो बार कभी सीमेंटेड गली बनने के नाम पर तो कभी इंटरलॉकिंग टाइल्स बिछाने के बहाने गलियों व सड़कों को बार बार ऊँचा किया जा रहा है। आम लोगों के पहले से बने मकानों का स्तर सड़कों से नीचे हो रहा है। सड़कों व नाले नालियों का गन्दा पानी यहाँ तक कि कई बार तो सीवरेज का मेन होल का ओवरफ़्लो हुआ पानी भी लोगों के घरों में घुस जाता है। जगह जगह वाटर सप्लाई के लीक करते हुए पाईप भी ऐसी गन्दगी में डूबे नज़र आ जाएंगे। इसलिए ज़रूरी है कि सड़कों व गलियों तथा नालों व नालियों को ऊँचा करने का सिलसिला तत्काल बंद किया जाए। कहीं गली सड़क बनानी है तो पुरानी सड़क खोद कर पहले के ऊंचाई के स्तर तक ही सड़क निर्माण किया जाए। इन सब के पीछे भ्रष्टाचार ही सबसे प्रमुख कारण है। इन दुर्व्यवस्थाओं के लिए ज़िम्मेदार लोगों को चाहिए कि वे अपनी नेक नीयती व मानवतापूर्ण सोच का परिचय देते हुए आम लोगों की बस्तियों को पानी पानी होने से बचाएं और अपनी नाकामियों को स्वीकार करते हुए स्वयं शर्म से पानी पानी हों तो ज़्यादा बेहतर होगा।

 

_____________

 

परिचय –:

निर्मल रानी

लेखिका व्  सामाजिक चिन्तिका

 

कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
 

 

संपर्क -: Nirmal Rani  :Jaf Cottage – 1885/2, Ranjit Nagar, Ambala City(Haryana)  Pin. 4003 E-mail : nirmalrani@gmail.com –  phone : 09729229728

 
 

Disclaimer : The views expressed by the author in this feature are entirely her own and do not necessarily reflect the views of INVC NEWS.

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here