पद संवैधानिक और विचार देशद्रोही ?

– तनवीर जाफरी –        

साधू वेशधारी तथा उत्तर प्रदेश के सबसे बड़े संवैधानिक पद पर आसीन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ एक बार फिर अपने बेतुके बोल तथा बदज़ुबानी के लिए चर्चा में हैं। परंतु इस बार लगता है उनकी ज़ुबान नियंत्रण से कुछ ज़्यादा ही बाहर चली गई है। यही वजह है कि चुनाव आयोग ने उन्हें नियंत्रण में रहने की हिदायत भी दे डाली है। वे अल्पसंख्यकों को अपशब्द कहने तथा चेतावनी भरे लहजे में उन्हें चुनौती देने जैसे अपने विशेष अंदाज़ के चलते पूर्वी उत्तर प्रदेश में एक लोकप्रिय हिंदुवादी नेता की छवि गढ़ पाने में सफल हुए हैं। हालांकि किसी भी धर्म अथवा जाति के मध्य एक सीमित समाज में रहकर उसी समाज विशेष की बातें कर तथा दूसरों को बुरा-भला कहकर लोकप्रियता हासिल करने का मार्ग अत्यंत शार्टकट मार्ग समझा जाता है। परंतु आज देश में ऐसे तमाम नेता हैं जो सर्वसमाज में लोकप्रिय न हो पाने के कारण अपने धर्म व जाति में सांप्रदायिकता व जातिवाद फैलाकर लोकप्रिय होना चाहते हैं और वे इसमें सफल भी हो जाते हैं। परंतु इस रास्ते पर चलने के बावजूद भी यदि कोई ऐसा नेता ‘सबका साथ सबका विकास’ जैसे नारे भी देता रहे तो इसे महज़ पाखंड ही कहा जाएगा। बहरहाल योगी आदित्यनाथ स्वयं हिंदू युवा वाहिनी के नेता होने के साथ-साथ अपने ही समान विचारों वाली हिंदुत्ववादी भारतीय जनता पार्टी के सहयोगी भी हैं। और अपनी इन्हीं फायर ब्रांड ‘विशेषताओं’ की बदौलत देश के सबसे बड़े राज्य के मुख्यमंत्री भी है।

मुख्यमंत्री बनने से पहले योगी ने कई बार सांप्रदायिक दंगे भडक़ाने तथा समाज में हिंसा व नफरत फैलाने वाले अनेक बयान सार्वजनिक सभाओं में दिए। परिणामस्वरूप कई जगहों पर हिंसा भी भडक़ी तथा समाज में सांप्रदायिक तनाव व दुर्भावनाएं भी फैलीं। इस संबंध में उनपर कई आपराधिक मुकद्दमे भी विचाराधीन हैं। परंतु उनके इस सांप्रदायिकतापूर्ण फायर ब्रांड भाषण का उन्हें अब तक फायदा ही होता रहा है। मुख्यमंत्री के पद तक पहुंचना इसका सबसे बड़ा प्रमाण है। परंतु अपने इसी अनियंत्रित बोलों के चलते पिछले दिनों योगी आदित्यनाथ शायद अपनी सीमाओं से कुछ ज़्यादा ही आगे निकल गए। उन्होंने भारतीय सेना को ‘मोदी जी की सेना’ कहकर संबोधित किया। सोचने का विषय तो यह है कि योगी ने अपने यह ‘बहुमूल्य विचार’ गाजि़याबाद में एक जनसभा के दौरान दिए। यह सभा भाजपा प्रत्याशी पूर्व सेना अध्यक्ष वीके सिंह के समर्थन में बुलाई गई थी। योगी ने इसी स्टेज से भारतीय सेना को मोदी जी की सेना कहकर संबोधित तो कर दिया। परंतु स्वयं जनरल वी के सिंह को योगी के ‘वचन’ हज़म नहीं हो सके। वी के सिंह ने योगी के उक्त वक्तव्य पर अपनी प्रतिक्रिया देते हुए साफ कहा कि-‘भारत की सेनाएं अपने-आप में पूरी तरह तटस्थ हैं। वे इसके लिए सक्षम हैं कि वे राजनीति से अलग रहें। परंतु पता नहीं कौन ऐसी बात कर रहा है। एक ही दो लोग हैं जिनके मन में ऐसी बातें आती हैं क्योंकि उनके पास तो कुछ और है ही नहीं। जनरल सिंह ने कहा कि यदि कोई कहता है कि भारत की सेना मोदी जी की सेना है तो वह गलत ही नहीं बल्कि वह देशद्रोही भी है। भारत की सेनाएं भारत की हैं यह पॉलिटिकल पार्टी की नहीं हैं’।

दूसरी ओर इसी विषय को लेकर चुनाव आयोग ने भी उत्तर प्रदेश के चुनाव आयोग से गाजि़याबाद के जि़ला अधिकारी से योगी के सेना संबंधी बयान से संंबंधित रिपोर्ट मांगी है। लगभग सभी विपक्षी दलों, देश के अनेक बुद्धिजीवियों,लेखकों तथा समाज के अनेक विशिष्ट लोगों द्वारा योगी आदित्यनाथ के इस बयान की घोर निंदा की जा रही है। इस संबंध में कई विपक्षी दलों ने राष्ट्रपति से भी शिकायत की है तथा योगी के विरुद्ध कार्रवाई करने की मांग की है। वैसे योगी द्वारा भारतीय सेना को मोदी की सेना कहा जाना कोई अनायास ही व्यक्त किए गए विचार जैसा नहीं प्रतीत होता। भारतीय सेना को अपने रंग में रंगने की दक्षिणपंथी विचारधारा के लोगों की साजि़श काफी पहले से चली आ रही है। जब-जब भारतीय सेना ने सीमा पर दुश्मन को मुंहतोड़ जवाब दिया है तथा अपने शौर्य का प्रदर्शन किया है तब-तब इन्हीं दक्षिणपंथियों द्वारा सेना की हर कार्रवाई का राजनैतिक लाभ उठाने का प्रयास किया गया। सितंबर 2016  में हुई सर्जिकल स्ट्राईक से लेकर पिछले दिनों की गई बालाकोट एयर सट्राईक तक व सेना द्वारा मुठभेड़ में किसी आतंकवादी को मार गिराए जाने जैसे सेना के सभी पराक्रमों का श्रेय लेने की कोशिश की जाती रही है। दूसरी ओर जब-जब विपक्ष ने किसी रक्षा सौदे के संबंध में या सरकार द्वारा देश की सुरक्षा या सैन्य संबंधी किसी विषय पर सवाल उठाने की कोशिश की गई तो उन सवालों को बड़ी ही चतुराई से ‘सेना का मनोबल गिराने वाले सवाल’ बताकर स्वयं सेना की नज़र में अच्छे बनने तथा विपक्ष को सेना की नज़रों में गिराने का सोचा-समझा प्रयास किया जाता रहा है। वैसे भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण विभिन्न अवसरों पर अथवा किसी न किसी त्यौहार के बहाने सैनिकों के मध्य बार-बार जाते यहां तक कि सेना की वर्दी में सैनिकों के साथ चित्र खिंचवाते भी देखे गए हैं।

परंतु सेना के ही अनेक बड़े पूर्व अधिकारी भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के इस प्रयास से खुश नहीं हैं। सैन्य अधिकारी कतई नहीं चाहते कि भारतीय सेना का राजनीतिकरण किया जाए या इसे किसी दल अथवा नेता की सेना कहकर बुलाया जाए। आज सर्जिकल स्ट्राईक का श्रेय हासिल करने की कोशिश भले ही भाजपा कर रही हो परंतु सितंबर 2016 में सर्जिकल स्ट्राईक  का नेतृत्व करने वाले लेिफ्टनेंट जनरल बी एस हुडा को भारतीय जनता पार्टी द्वारा सर्जिकल स्ट्राईक का राजनीतिकरण करना कतई पसंद नहीं आया। यही वजह थी कि जनरल हुडा ने इस सर्जिकल स्ट्राईक करवाने के बाद सेना से अवकाश लेकर कांग्रेस पार्टी में शामिल होने का एलान किया। आज वही जनरल हुडा कांग्रेस पार्टी में कश्मीर नीति को लेकर पार्टी को अपना सहयोग दे रहे हैं। गोया सर्जिकल स्ट्राईक करने वाला वास्तविक नायक जनरल हुड्डा तो कांग्रेस पार्टी के साथ खड़ा है जबकि ‘बयान वीर फायर ब्रांड’ तथा समाज को बांटने वाले लोग घर बैठे ही सर्जिकल स्ट्राईक का श्रेय स्वयं लेने पर तुले हुए हें। ऐसे ही लोग भारतीय सेना को मोदी की सेना कहकर बुला रहे हैं। योगी आदित्यनाथ ने अपनी गाजि़याबाद की सभाओं के दौरान ही उस बिसाहड़ा गांवा में भी एक जनसभा की जहां वायुसेना के एक जवान के पिता अखलाक अहमद की हिंदुत्ववादी भीड़ द्वारा पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी। योगी आदित्यनाथ की बिसाहड़ा गांव में हो रही सभा में प्रथम पंक्ति में अखलाक के हत्यारे आरोपियेां को सम्मानित रूप से बिठाया गया था।

यही योगी आदित्यनाथ सहारनपुर में कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को मसूद अज़हर का दामाद बता चुके हैं। पहले भी योगी साफतौर पर यह कह चुके हैं कि हिंदू व मुसलमान दो अलग-अलग सभ्यताएं हैं जो एक साथ नहीं रह सकतीं। वे यह भी कह चुके हैं कि मैं हिंदू हूं इसलिए ईद नहीं मनाता। गोया उनके मुंह से एक-दो नहीं सैकड़ों बार ऐसी बातें निकलती रही हैं जिससे साफ पता लगता है कि उनका विश्वास सांप्रदायिक एकता में नहीं परंतु खांटी हिंदुतवादी राजनीति पर ही है। यही वजह है कि इनकी पार्टी न तो अल्पसंख्यकों को अपना प्रत्याशी बनाने की कोशिश करती है न ही उनसे वोट लेने का कोई विशेष प्रयास करती है। इसके बजाए हिंदुत्ववादी मतों को लामबंद कर सत्ता की मंजि़ल तक पहुंचने का आसान रास्ता समझती है। परंतु सेना के राजनीतिकरण का किसी भी दल का व किसी भी नेता को कोई भी प्रयास कभी भी सफल नहीं हो सकता। संवैधानिक पदों पर बैठने वालों को जोश के साथ-साथ होश में भी रहने की ज़रूरत है तथा संवैधानिक मर्यादाओं का पालन करने की आवश्यकता है। ऐसे पद पर बैठकर देशद्रोही विचार व्यक्त करने वालों के विरुद्ध सख्त कार्रवाई किए जाने की ज़रूरत है।

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About the Author

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

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