{निर्मल रानी**}
भारतीय राजनीति में अरविंद केजरीवाल नामक उस नेता का उदय हो चुका है जिससे देश को काफी उम्मीदें बंधी हैं। अंग्रेज़ों की गुलामी से मुक्त होने के बाद हालांकि हमारे बलिदानी महापुरुषों ने तथा स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने यही सोचा था कि पराधीनता से मुक्ति पाने के बाद भारतवर्ष आत्मनिर्भर,स्वावलंबी तथा विकसित राष्ट्र बनेगा। प्रत्येक हाथ को काम मिलेगा। देश में चारों ओर हरियाली,खुशहाली, तरक्की तथा विकास का वातावरण दिखाई देगा। देश से गरीबी,जातिवाद,सांप्रदायिकता, अशिक्षा जैसी बुराईयां समाप्त होंगी। परंतु देश आज़ाद क्या हुआ गोया स्वतंत्र भारत के स्वतंत्र रहनुमाओं को देश को लूटने,बेचने और खाने का मौका मिल गया। देश की राजनीति गत् 6 दशकों में धीरे-धीरे परिवारवाद, सांप्रदायिकता, जातिवाद,भ्रष्टाचार तथा क्षेत्रवाद की भेंट चढ़ गई। केंद्रीय राजनीति से लेकर क्षेत्रीय स्तर की राजनीति तक परिवारवाद की गिरफ्त में आ गई। गोया भारतीय लोकतंत्र, लोकतंत्र न होकर राजशाही व्यवस्था का प्रतीक नज़र आने लगा। और विभाजित भारतीय समाज इसी व्यवस्था में जकड़ कर रह गया। और आिखरकार शायर को कहना पड़ा-
कहां चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए?