-डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी –
शाम को नित्य की तरह इवनिंग वाक पर था। टाइम हो गया था, इसलिए थोड़ा तेज कदम से घर की तरफ चलने लगा, इसी बीच दो-चार जान-पहचान वाले बोले सर जी रूकिए कुछ आवश्यक बात करनी है। कहना पड़ा डियर घर वापसी का समय हो गया है, आज नहीं अब कल बात कर लेना या चाहो तो दिन में आ जाना और खूब जी भर कर बतिया लेना। एक ने कहा सर जी कुछ अच्छा नहीं लग रहा है—–मैंने सुना नहीं बस इशारे से कह दिया कि अब कुछ भी नहीं, आना हो तो कल आ जाना। रात तो किसी तरह बीत गई, गुड मार्निंग, शुभ प्रभात, सुबह बखैर का आदान-प्रदान का टाइम भी समाप्त हो गया कुछ लिखने का मूड बना रहा था तभी शाम वाले प्रेेमी जन आ पहुँचे। बाद दुआ-सलाम के बात कुछ यूँ चली– एक ने कहा सर जी आज कल कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा है। सूबे में राजनीतिक उथल-पुथल- मिशन- 2017 करीब और अपने यहाँ प्रशासनिक हल्के में तब्दीली यह सब क्या है। आज कल तो अपना इलाका चित्राँशियों की चपेट में आ गया है। दूसरे ने कहा सर जी डेंगू और बुखार, चिकनगुनिया का प्रकोप भी जोरों पर है, कई लोग इसकी चपेट में हैं। पहले वाले सज्जन बोले यार चुप भी करो चित्राँशी प्रकोप के बजाए डेंगू, चिकनगुनिया, बुखार के प्रकोप का राग अलापने से क्या मिलने वाला। दूसरे वाले ने कहा डियर माफ करना अब मैं बीच में नहीं बोलूँगा- तुम सर जी से अपनी बात कह डालो तभी मैं कुछ कहूँगा। मुझे टोकना पड़ा हे जबरिया प्रवृष्ट किए मित्रों झगड़िए मत आप सभी अपनी-अपनी जिज्ञासा मिटाए परन्तु ध्यान रहे कि एक-एक करके। मैंने इतना कहकर अपने लेखन कक्ष के उस तरफ इशारा किया जहाँ एक 40 वर्ष पुराना प्लेट टंगा था उसमें लिखा था कृपया शान्त रहें।
बहरहाल दोनों शान्त हो गए। मैंने पहले वाले सज्जन से कहा कि भाई जी आप अपने दिल का गुबार मिटा डालो- कहो क्या कहना चाहते हो। इतना सुनना था कि वह बोल उठे सर जी अपने यहाँ इस समय चित्राँशाइटिस का प्रकोप हो गया है, मुझे अजीब सा लगा, कहना पड़ा डियर थोड़ा तफसील से कहो ताकि मैं भी समझ सकूँ। वह बोल पड़े- सरकारी महकमें के टॉप टू बाटम अफसर चित्रांश जाति के तैनात किए गए हैं, ऐसे में प्रतीत होता है कि अब तो पटवारी काल आ गया है, एक दम से मुंशीगीरी चल रही है बड़े हाकिम एक-दो दिन के स्थानीय अवकाश के लिए शासन से अनुमति मांगते हैं, अपने विशेषाधिकार का प्रयोग नहीं करते जबकि इसके पूर्व के हाकिम ऐसे नहीं थे। अब देखिए ना- बीते दिवस हिन्दू त्योहार उपरान्त मुस्लिमों का मोहर्रम एक ही दिन पड़ गया था। हिन्दू-मुस्लिम सौहार्द बना रहे इसके दृष्टिगत मुसलमानों ने बड़े चित्राँशी से वार्ता किया तो उन्होंने कहा कि चलिए शासन को पत्र लिखूँगा जैसा आदेश मिलेगा वैसा किया जाएगा। मुझे दो अवकाश देने का ही अधिकार है- बहरहाल हाकिम ने शासन से अनुमति प्राप्त कर स्थानीय अवकाश घोषित कर दिया था। सर जी अपने यहाँ चित्राँशियों को कई नामों से जाना जाता है, अब आप ही बताइए ई जवन चित्राँशी हाकिम आए हैं- बड़े मुंशी आदमी हैं, छोटौ-मोटौ कामे बदे लिखा-पढ़ी करिहैं, आपन अधिकार काहें नाय इस्तेमाल करतेन।
आगन्तुक परिचित की अवधी भाषा सुनकर बड़ा आनन्द आया और उसकी कथनी पर सोचने को विवश भी होना पड़ा। मैंने कहा डियर फ्रेन्ड चित्राँशी धरती पर ही नहीं देव लोक में भी लिखा-पढ़ी का काम करते हैं। अरे वही जिन्हें ‘चित्रगुप्त’ कहा जाता है। आखिर इसमें बुरा ही क्या है, लिखा-पढ़ी कार्य तो अच्छा और स्थाई होता है। मेरा इतना कहना था वह तपाक से बीच में ही बोल पड़े, देखो सर जी हाकिम तो चित्राँशी हैं ही वर्दी महकमें के मुखिया भी उसी जाति के तैनात कर दिए गए हैं आते ही कई पुलिसजनों को सस्पेण्ड कर दिए वह भी लिखा-पढ़ी के साथ। अब समझ में नहीं आ रहा है कि जिले में तैनात सरकारी हाकिमों द्वारा इतना लिखा-पढ़ी की जाएगी? तब तो कइयों के साथ अन्याय होगा। ए चित्राँशी अफसर सबकी खाट खड़ी करने पर तुले हैं।
दोनों मेरे लेखन कक्ष में अपनी-अपनी भड़ास निकाल रहे थे तभी सुलेमान आ धमका। सुलेमान को तो आप बेहतर जानते होंगे वही मेरा लंगोटिया यार। बगैर किसी भूमिका के कहना शुरू कर दिया कि यार कलमघसीट अब तक हम लोग अल्पसंख्यक थे और अब ऐसा प्रतीत हो रहा है कि सरकार और नेताओं ने मिशन-2017 को देखते हुए चित्राँशियों को ‘अल्पसंख्यक’ घोषित कर दिया। देखो न अब तो पूरा इलाका इन चित्राँशियों की गिरफ्त में आ गया है। कैथाना टोला में लोग 15 दिन से दिवाली मना रहे हैं, सोहर गाने की तैयारियाँ शुरू कर दिया है। शहर के जिस-जिस मोहल्ले में इस जाति के लोग रहते हैं, उनके घरों के लोग यहाँ तैनात बड़े अफसरों (स्वजातीय) को अपना सगा-सम्बन्धी या रिश्तेदार बताकर अन्य लोगों में खौफ पैदा करने लगे हैं।
एक गुप्त रोग डाक्टर हैं- सुना है वह तो सबसे ज्यादा खुश हैं………..अफसरों की बिरादरी के घरों में ढोलक और अन्य बाद्य यन्त्रों पर महिलाएँ सोहर गाने व डांस करने का रिहर्सल कर रही हैं। पता चला है कि आगामी दिनों में उनके किसी नए रिश्तेदार अफसर के यहाँ किन्नरों का जमावड़ा होने वाला है। सुलेमान ने बुलेट ट्रेन की तरह जारी रखा- कलमघसीट सबसे अधिक गलत तो हम दोनों के साथ हो रहा है। अपने यहाँ अब तक एक-दो हम दोनों के स्वजातीय अफसर ही आए हैं। चित्राँशी जाति के कई अफसर काफी समय तक यहाँ रह चुके हैं। दक्षिण भारत के अधिकारी टिक ही नहीं पाते हैं। मेरी जाति का यहाँ कोई वर्दी हाकिम ही नहीं आया है। हाँ एक बड़ा अफसर कुछ महीने के लिए अर्सा पहले आया था। एक बात समझ में नहीं आती क्या हम दोनों की जाति के अफसर कम है-? या फिर राजनीति में इस जाति का दब दबा कम है।
इसी बीच बुड़बक आ धमका- वह धाड़ मारकर रोने लगे। उनकी धाड़ से मेरे लेखन कक्ष ही नहीं इसके बाहर के लोग भीं भौंचक रह गए। मैने सुलेमान को इशारा किया- वह उठा और बोला बेटा बुड़बक यह क्या कर रहे हो? चुप हो जावो तुम तो अच्छे बच्चे हो……। बुड़बक ने कहा क्या चुप होऊँ चचा जान….. एक ठू अपनी बिरादरी का वर्दी हाकिम था काफी ट्यूनिंग बना लिया था कुछ कमाई शुरू हो गई थी तभी सरकार सनक गई उसका ट्रान्सफर कर दिया। पशु तस्करी, असलहा बिक्री, जमीन जायदाद पर अवैध कब्जा, मार-पीट और हत्या, चोरी, छिनैती करने वालों पर मैने अपना दबदबा बना लिया था, अच्छी खासी कमाई होने लगी थी जब अपनी तकदीर चमकने लगी तभी पुलिस कप्तान का तबादला हो गया अब लाला आए हैं मेरा तो बहुत कुछ कमाने/करने का सपना टूट गया, मेरा क्या होगा चच्चा जान……..? सुलेमान ने बुड़बक को अपने गले लगा लिया और पुचकारते हुए कहा बेटा हमारे नूर-ए-चश्म तुम तो तिकड़मी ब्राण्ड के मीडिया परसन गिने जाते हो- इस नए वर्दी हाकिम को भी पटा लेना। पटाने याराना करने और उससे लाभ कमाने का हुनर तो तुम बखूबी जानते हो……..? बुड़बक की सिसकी बन्द हो गई, उसने प्रसन्न होकर कहा चचा जान अल्लाह आप को मरने के बाद जन्नत बख्शे……। माफ करिएगा उर्दू का ज्ञान कम है इसलिए राय बताने/ढांढस बंधाने के लिए शुक्रिया आप जल्द ही खुदा को प्यारे हों………। यही शुभ कामना है मेरी। बुड़बक का इस तरह उर्दू भाषा का (प्रयोग करना) इस्तेमाल करना सुलेमान के साथ-साथ सभी को कत्तई बुरा नहीं लगा था।
मैं पशोपेश में था चाहकर भी मेरी बैठक/लेखन कक्ष में पधारे पुरानी कुर्सियाँ/तख्त तोड़ने वाले इन खबरनबीसों को कैसे कहूँ कि वह लोग अब जाएँ। यही सब सोच रहा था तभी कालू चैम्बर आ धमके। कालू चैम्बर विशुद्ध शाकाहारी हैं, दिन में पानी और रात को अल्प भोजन करते हैं। इन्हें नानवेज और मदिरा से सख्त एलर्जी है, इनके इसी गुण की वजह से मैं इन्हें लाइक करता हूँ। उन्होंने कहा सर जी यहाँ का बड़ा अजीब माहौल हो गया है जिधर नजर डाली जाती है उधर चित्राँशी अफसर ही कुर्सियों पर बैठे मिलते हैं। समझ में नहीं आता कि शासन में कौन ऐसा कद्दावर नेता है जो चुन-चुनकर यहाँ अपने स्वजातीयों की तैनाती करवा रहा है। यहाँ के माननीय तो चित्राँशी जाति के नहीं हैं फिर किसकी सिफारिश पर अब तक एक दम से विलुप्त इस जाति के अफसर मशरूमों की तरह प्रदेश शासन और प्रशासन में पैदा हो गए और उनकी तैनाती यहाँ की जाने लगी है। क्या यह सब मिशन-2017 के दृष्टिगत तो नहीं हो रहा है? कालू चैम्बर की तर्क भरी बात में दम दिखे या न दिखे लेकिन चर्चा-ए-आम है कि यहाँ टाप टू बाटम प्रमुख पदों पर चित्राँशी जाति के मुलाजिमों की तैनाती की गई है- मेरी बिरादरी के अफसर यहाँ के बड़े ओहदों पर बैठे कम दिखाई पड़ेंगे-?
चैम्बर की बातें सुनकर सुलेमान ने कहा यार सब्र करो जल्द ही वैसा होगा। आने दो इलेक्शन तब तुम्हारी पार्टी जीतेगी और तुम्हारी बिरादरी के अफसरों की धड़ल्ले से तैनाती होगी। बुरा मत मानना ऐसा तो होता आया है। मैं कोई नई बात थोड़े ही कह रहा हूँ। चैम्बर के चेहरे पर एक अजीब सी मुस्कान देखने को मिली। उसने एक प्रश्न सुलेमान से पूँछ डाला- चचा जान जब ऐसा होता चला आ रहा है तब अपने यहाँ ऊँचे ओहदों पर चित्राँशी बिरादरी के अफसरों की तैनाती सरकार क्यों कर रही है? क्या सी.एम. की जाति के अफसर नहीं हैं या वह लोग यहाँ आना ही नहीं चाहते- सुलेमान ने कहा डियर नेफ्यू चैम्बर तुम्हारा कहना ठीक है, मुझे तो प्रतीत हो रहा है कि हिन्दुओं में अल्पसंख्यक चित्राँशी बिरादरी के अफसरों को सरकार/सरकार की पार्टी में बैठे थिंक टैंक के इशारे पर ही यहाँ ऊँचे ओहदों पर इस बिरादरी के अफसरों की तैनाती की गई है। अब यह मत पूँछना कि मौजूदा सरकार की पार्टी का थिंक टैंक कौन है? हो सकता है कि कोई चित्राँशी बिरादरी का हो या फिर ऐसा कोई जानकार हो जिसे पता है कि यदि चित्राँशी अफसरों को अच्छे पदों पर यहाँ तैनात कर दिया जाए तो मिशन- 2017 में मौजूदा सरकार की पार्टी की जीत सुनिश्चित हो सकती है। सुलेमान इतना ही कह पाया था तभी इण्डियन जो अभी तक चुप्पी मारे था बोल उठा आप सभी सीनियर हैं- छोटा मुँह बड़ी बात नहीं कहूँगा, लेकिन चित्राँशी जाति के अफसरों की तैनाती के पीछे ‘सेटिंग-गेटिंग’ मेन कारण है। बुड़बक बोला डियर इण्डियन यह सेटिंग-गेटिंग क्या है-? इण्डियन ने कहा यह तुम मुझसे नहीं यहाँ विराजमान सीनियर कलमकारों से पूँछो।
मुझे लगा कि यह ‘बहस’ काफी लम्बी है, इसलिए खुलकर कहना पड़ा मेरे प्यारे हमपेशा साथियों आज की मीटिंग ‘एडजर्न’ करो- डेंगू, मलेरिया, बुखार और चित्रांशियों के प्रकोप से बचने का उपाय ढूँढों। सुलेमान ने कहा डियर कलमघसीट यार तुम बजा फरमा रहे हो- आज की बैठक समाप्त की जानी चाहिए। सुलेमान ने मेरे इरादे को समझ लिया था इसलिए मेरा समर्थन किया। वह जान गया था कि ये नए लौंडे जो अपने को खबरनबीस कहलवाने का शौक पाले हुए हैं जातिवादी विचारों के हैं इसलिए डेंगू, मलेरिया बुखार की अनदेखी करके नई तैनाती पाए अफसरों के बारे में बातें कर रहे हैं। मेरा अपना मानना है कि जब पूरे प्रदेश में जाति-धर्म के नाम पर वोट माँग कर सरकार बनाने का धन्धा चल निकला है तब ये लोग ऐसा क्यों न करें? कोई मीडिया हाउस इन्हें इतनी पगार तो देता नहीं कि ये उससे ठाट-बाट की जिन्दगी जी सकें- इसीलिए ये पत्रकार बन्धु स्वजातीय अफसरों की तैनाती को लेकर काफी उत्सुक रहते हैं।
बहरहाल! मुझे इस प्रकरण पर कुछ नहीं कहना है मित्रों यह आफ द रिकार्ड है। वैसे एक बात कहना चाहूँगा कि आज की बैठक में खबरनबीसों ने जो मुद्दा उठाया उसे अवश्य ही एकदम सही माना जा सकता है। मेरे घर के अगल-बगल चित्रांशी जाति के कई परिवार हैं- उनके यहाँ महीनों से खुशियाँ मनाई जा रही हैं, दिवाली आने के एक महीने पहले से ही चीनी झालर से उनके आवास जगमगा रहे हैं। नृत्य संगीत की महफिलें जमती हैं जिसमें महिलाएँ म्यूजिक/डान्स का रिहर्सल करती देखी जा सकती हैं। यही सब चल रहा था तभी मच्छरों ने ऊपर से खटमलों ने नीचे से रक्त चूसना शुरू कर दिया, बिजली की अघोषित कटौती चल रही थी- नींद खुल गई।
हलक तर करने के लिए पानी पिया और हाथ से हैण्डफैन (हाथ का पंखा/बेना) चलाते हुए पावर सप्लाई बहाल होने की प्रतीक्षा करने लगा था, एकाध घण्टे उपरान्त बिजली आ गई, लेखन कक्ष में पड़े कथरी वाले तख्त पर लेट गया, नींद उचट गई थी सो लिखने की सोच, खैनी का एक बड़ा पीस मुँह में डालकर लिखने लगा। लेकिन यह आलेख न काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर पर आधारित और सर्वथा काल्पनिक हैं। ……….आपका कलमघसीट
______________
डॉ. भूपेन्द्र सिंह गर्गवंशी
वरिष्ठ पत्रकार व् टिप्पणीकार
रेनबोन्यूज प्रकाशन में प्रबंध संपादक
संपर्क – bhupendra.rainbownews@gmail.com, अकबरपुर, अम्बेडकरनगर (उ.प्र.) मो.नं. 9454908400
लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं और आई.एन.वी.सी का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं।