{ सरिता बरारा } एक अनुमान के अनुसार भारत में हर वर्ष 1.36 मिलियन बच्चों की मौत होती है और उनमें से दो लाख बच्चों की मृत्यु डायरिया के कारण होती है। हालांकि, प्रतिरक्षण और अन्य बाल स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में सुधार के कारण भारत में शिशु मृत्यु दर(आईएमआर) और पांच वर्ष से कम आयु के शिशु की मृत्यु दर(यू5एमआर) में निरंतर कमी आ रही है। डब्ल्यूएचओ के 2012 के आंकड़ों के अनुसार, प्रत्येक वर्ष पांच वर्ष से कम आयु के शिशुओं की मृत्यु में 11 प्रतिशत मृत्यु डायरिया के कारण होती है।
यह अनुमान लगाया गया है किडायरिया के कारण होने वाली मृत्यु में से 90 प्रतिशत मृत्यु को ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्ट, ओआरएस और जिंक की गोलियों के प्रयोग द्वारा आसानी तथा प्रभावी ढंग से कम किया जा सकता है। यह उपचार डब्ल्यूएचओ द्वारा अनुमोदित है।
इसमें कोई संदेह नहीं किपिछले कुछ वर्षों में जिंक और ओआरएस की खपत बढ़ी है लेकिन ऐसा अनुमान है किभारत में पांच प्रतिशत से भी कम बच्चें इस अनुमोदित उपचार को प्राप्त कर रहे हैं। अनेक ग्रामीण इलाकों में स्वास्थ्यकर्मी और माताओं को भी यह जानकारी नहीं है किडायरिया के उपचार के लिए जिंक और ओआरएस अनुमोदित उपचार है।
जल जनित बीमारियां जैसे डायरिया, खराब सफाई व्यवस्था तथा अस्वच्छ पेयजल वाले क्षेत्रों में उत्पन्न होती हैं। भारत में गांवों और शहरी बस्तियों में शौचालयों की कमी तथा खराब सफाई व्यवस्था के कारण आधी से ज्यादा आबादी खुले स्थान पर शौच करती है, ग्रामीण भारत में एक लाख लोगों के रहने के स्थान पर रहने वाले पांच करोड़ लोगों के लिए स्वच्छ पेयजल उपलब्ध नहीं है, इसलिए अनेक लोग जल जनित बीमारियों जैसे डायरिया के शिकार हो सकते हैं।
कच्ची धातुओं और जिंक के अनुपूरकों, बच्चे के जन्म से लेकर लगातार छह महीने तक स्तनपान, बेहतर स्वास्थ्य विज्ञान और स्वच्छता तथा स्वच्छ पेयजल की आपूर्तिद्वारा डायरिया के कारण होने वाली मृत्यु को रोका जा सकता है।
डायरिया विश्व की ऐसी तीसरी बड़ी बीमारी है, जिसके कारण पांच वर्ष से कम आयु में बच्चों की मृत्यु हो जाती है। अत: इस बीमारी को नियंत्रित करने की तत्काल आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने इस समस्या से निपटने की नई रणनीतिके रूप में 28 जुलाई को सघन डायरिया नियंत्रण पखवाड़े की शुरूआत की है।
15 दिनों के इस लंबे अभियान के प्रथम सप्ताह के दौरान डायरिया नियंत्रण गतिविधियों पर ध्यान दिया जाएगा। इसमें ओआरएस और जिंक थैरेपी को प्रोत्साहित किया जाएगा। इस उद्देश्य के लिए स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों पर ओरआरएस तथा जिंक कॉर्नरों की स्थापना की जाएगी। इस अभियान में डायरिया के उपचार के लिए जरूरतमंद बच्चों की पहचान करने और उनके परिवारों को ओरल रिहाइड्रेशन सॉल्यूशन पैकेट उपलब्ध कराने के लिए लगभग साढ़े आठ लाख प्रत्यायित सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं तथा एएसएचए को शामिल किया जाएगा।
इस अभियान के दूसरे सप्ताह के दौरान, बच्चों की उम्र के अनुसार स्तनपान की आवश्यकता संबंधी जागरूकता सृजन की जाएगी। इस बारे में जागरूकता सृजन करते हुए बच्चों की माताओं को छह महीने से कम आयु के डायरिया के लक्षण वाले शिशुओं को स्तनपान न रोकने के लिए कहा जाएगा। शिशु देखभाल और स्तनपान के बारे में जानकारी प्रदान करने के आईडीसीएफ कार्यक्रम के तहत इसे कवर किया जाएगा।
स्वच्छता पर एक सघन सामुदायिक जागरूकता अभियान होगा। स्वास्थ्य कार्यकर्ता नवजात और युवा शिशुओं को भोजन कराने, स्वास्थ्य और स्वच्छता के उपयुक्त तरीकों पर परामर्श सत्रों का आयोजन करेंगे। एक पखवाड़े तक चलने वाले कार्यक्रम के दौरान यह सब गतिविधियां राज्य, जिला और गांव के स्तर पर संचालित की जाएगी।
स्वास्थ्य हस्तक्षेप के अतिरिक्त सरकार ने बड़ी संख्या में हैजे से होने वाली मौतों की संख्या कम करने वाले ऐसे साधारण कदमों के प्रति जागरूकता पैदा करने में समुदाय की व्यापक भूमिका की बात की है।
सरकार इस अभियान के दौरान हैजा नियंत्रण उपायों को गति देने के लिए केन्द्र और राज्य के स्तर पर स्वास्थ्य कार्यकताओं और उसी तरह गैर-सरकारी संगठनों और स्वैच्छिक क्षेत्र को भी संगठित करेगी।
इस बड़े स्वास्थ्य कार्यक्रम की शुरूआत के लिए आयोजित समारोह में हैजे से होने वाली शिशु मृत्यु को समाप्त करने के लिए सरकार के संकल्प के लिए तैयार उपायों के पैकेज का विमोचन करते हुए केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने प्रेरक उपायों और दायरे से बाहर जाकर समाधान की आवश्यकताओं पर जोर दिया है।
हमारी सरकार ने लम्बे समय से चली आ रही इस समस्या के लीक से हटकर समाधान के लिए अभूतपूर्व ढंग से जोर दिया है। कितने ही वर्षों से इसके लिए बहुत कुछ किया जा चुका है। अब हमें जिसकी आवश्यकता है, वह वे विचार हैं जो कमजोर तरीकों को चुनौती देकर प्रेरक कार्रवाई का आवाह्न करें।
उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मिलेनियम विकास लक्ष्यों को 2015 तक पूरा करने के लिए भागीदारों को जोड़कर उनमें सहक्रिया की आवश्यकता पर भी जोर दिया है।
मंत्री महोदय ने कहा कि हमने हमेशा मृत्युदर को नीचे लाना लक्ष्य नहीं रखा है। हमें सितम्बर, 2015 तक संयुक्त राष्ट्र मिलेनियम विकास लक्ष्य पूरा करना होगा। इसीलिए मैं बाल-मृत्यु के अभिशाप को चुनौती देने के लिए बड़े स्तर पर सहक्रियाओं में जुड़ाव के लिए आवाह्न करता हूं।
संस्था का कहना है कि यह 2,30,000 स्वास्थ्यकर्मी और करीब 10 लाख देखरेख करने वालों तक पहुंच बनाने में सक्षम रहा है। वे एक उन्नतिशील ग्रामीण वितरण नेटवर्क उत्पन्न करने के लिए भी काम कर रहे हैं। यह नेटवर्क पारंपरिक औषधीय माध्यम से भी कहीं बढ़कर है।
लेकिन जैसा कि पहले ही बताया गया है कि पाँच साल तक की उम्र के पाँच फीसदी से भी कम बच्चे ओआरएस का साधारण उपचार और जिंक अनुपूरक प्राप्त कर रहे हैं। वर्ष 2015 तक जिंक अनुपूरक और ओआरएस उपचार की उपलब्धता को बढ़ाकर करीब 30 से 35 फीसदी बच्चों तक पहुंचाने का लक्ष्य है, ऐसा करने से हर साल हजारों बच्चों की जान बचाई जा सकेगी।
एक अनुमान के मुताबिक यदि स्वच्छ पेयजल और बेहर सफाई व्यवस्था मुहैया कराई जाए, तो प्रत्येक 20 सेकेंड में एक बच्चे की जान बचायी जा सकती है। इन आधारभूत सुविधाओं में सुधार कर रुग्णता और बीमारियों को 80 फीसदी तक कम किया जा सकता है, साथ ही तेजी से बढ़ती शिशु मृत्युदर को तेजी से घटाया जा सकता है। गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र सहस्त्राब्दी लक्ष्य 2015 (यूएन मिलेनियम गोल 2015) के तहत शिशु मृत्यु दर को भी करीब दो तिहाई की दर तक कम करने का लक्ष्य रखा गया है।
हालांकि कई पखवाड़ों से चल रहा अभियान जल जनित बीमारियों की रोकथाम के लिए वर्तमान में जारी प्रयासों को गति देगा। स्वास्थ्य अधिकरणों की ओर से बेहतर प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि ओआरएस और जिंक अनुपूरक पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हों। यह भी सुनिश्चित करना होगा कि खुले में शौच करने की प्रथा का अंत करने के लिए फास्ट ट्रैक आधार पर प्रयास किए जाएं। इसके लिए बड़ी तादाद में शौचालयों का निर्माण करना होगा और विशेष रूप से शहरी एवं स्लम इलाकों में सफाई व्यवस्था को दुरुस्त करना होगा। साथ ही देशभर के करीब पाँच करोड़ लोग, जो स्वच्छ पेयजल से वंचित हैं, उन्हें तुरंत यह आधारभूत सुविधा मिलनी।