आशा पाण्डेय ओझा की सात कवितायेँ

आशा पाण्डेय ओझा की सात कवितायेँ

शिव कुमार झा टिल्लू  की टिप्पणी : श्रीमती आशा पाण्डेय ओझा वर्तमान हिन्दी साहित्य की एक चर्चित कवयित्री  हैं .इनकी कविताओं  में बिम्ब और भाव कल्पतरु की छाया के आवरण से विलग  यथार्थपरक होतें हैं .तामझाम और दिखावेपन से इन काव्यों को कोई लिप्सा नहीं.  अपने बोधगामी और  प्रांजल शब्दों में विदुषी कवयित्री स्नेह  से लेकर ओज और आस्था तक की बातें रख देती हैं अतुकांत शैली के ये काव्य नवकविता में काफी जनप्रिय हैं , जहाँ पुरातन संस्कृति की छाँह तो है पर सारे शिल्प नव आयामों से सुसज्जित हैं . कही मौन संवेदना का मार्मिक छायारूपक विवेचन तो कही सामाजिक विसंगति पर कूर थाप ..लेकिन सारे उद्बोधन सुधि पाठक पर सहज छाप छोड़ेंगे ऐसी आशा और विश्वास  है क्योंकि काव्य इनकी सर्जना नहीं प्रवृति सदृश दिखती हैं …साभार , ( शिव कुमार झा टिल्लू  साहित्यकार और समालोचक )

आशा पाण्डेय ओझा की सात कवितायेँ

1  जिस देश की राजनीति

जनता की सिसकियों की थाप
अनसुनी कर
भोग-विलास संग
नाजायज सबंध बना
रंगरेलियाँ मना रही हो
जिस देश की राजनीति
उस सत्ता की कोख से
नाजायज अंधेरों का जन्मना
कैसे रोक सकता है भला कोई
विधवा के जीवन सा ठहर जाता है
उस देश का विकास
सम्पूर्ण पोषण के अभाव में
विकृत अपाहिज हो जाते हैं संस्कार
आंतक की औलाद
घूमने लगती है गली-गली
आवारा सांड सी बेलगाम
बीमार रहने लगता है अर्थशास्त्र
साहित्य का दम घुटने लगता है
चहुँ ओर काला धूंआं छोड़ती उस सदी में
तिल-तिल मरता है स्वर्णिम इतिहास
हत्या हो जाती है इंसानियत की
और बेवा सराफतें कर लेती हैं आत्महत्या
इस तरह क्षण-क्षण खंड-खंड
टूटता  बिखरता समाप्त हो जाता है
वो देश

2  देश प्रेम में मिट जाते हैं

सरहद पर जाते वक़्त
वो जो नज़र झुका कर
कहा तुमने
प्रिया!
लौट कर ना आ पाऊं शायद
फिर से तेरी बाहों में
जन्मभूमि के क़र्ज़ चुकाने हैं
नहीं निभा पाऊंगा
तुम्हारे प्रति अपना फ़र्ज़
हो सके तो माफ़ कर देना मुझे
तेरी इस शपथ से
डबडबाये जरुर थे नयन मेरे
पर यकीं कर
तन गया था गर्व से
माथा मेरा
कितनी खुश नसीब होती हैं
वो मांएं,बहनें,प्रेमिकाएं,पत्नियाँ,बेटियां
जिनके बेटे,भाई,प्रेमी,पति,पिता
देश प्रेम में मिट जाते हैं

3 कैसा जुलाहा है पिता

पिता
कैसा जुलाहा है
न जो बच्चों  के लिए
हर ख़ुशी बुन लेता है
पता नहीं कहां से लाता है
वो रेशमी तागे
सबसें नर्म सबसें मुलायम
सबसें चटक रंग
बेश कीमती
उसके बुड्ढे  होते हुवे हाथ भी
कभी थकते  नहीं
अपने बच्चों की
ख़ुशी बुनते हुवे
जब झुर्रियां पड़ती है हाथों में
कांपने लगती है आवाज
क्षीण होने लगती है
आँखों की रौशनी
वो और भी साध लेता है
अपने हाथ
ताकि उसके बाद भी
खाली न रहे
बच्चों का दामन खुशियों से
मैंने खो दिया ये जुलाहा
पर मेरा दामन आज भी भरा है
इस जुलाहे के बुने हुवे तागों से
अनगिन तागे
सबसें भिन्न तागे
जिन पर बहरा गिर जाता है
मेरी आँखों का खारापन
पर यह खारापन
उडाता नहीं रंग इन तागों का
चमकीला कर देता है
इनका रंग

4 क्यों हो मौन

कौनसी साध साधने को रखा है
यह अखंड मौन व्रत तूने स्त्री ?
अब तोड़ तेरा ये मौन व्रत
और चीख स्त्री
क्या पता तुम्हारी चीख
अंधी बंजर आँखों में रौशनी उगा दे
जो देख पाने में सक्षम नहीं
तेरे साथ पग-पग पर
होता हुआ अन्याय
क्या पता तुम्हारी चीख
छील दे उन कानों में उगा
मोटी परतों का  बहरापन
जो सुन नहीं पाता तेरा क्रन्दन
हो सकता है तेरी चीख जरुरी हो
इस सृष्टि की जमीं पर
तेरी चुप्पी के बीज
व तेरे आंसूओं की बरसात से
उपजी पीड़ा की फसल काटने के लिए
क्या पता तुम्हारी चीख
पशुत्व की ओर बढती हुई आत्माओं  को
पुन:घेर लाये मनुष्यत्व की ओर
क्या पता तुम्हारी  इसी
चीख से बच जाये
तुम्हारी इज्जत तुम्हारी आबरू
तुम्हारा अस्तित्व
जो रोज-रोज
मसले-कुचले जा रहैं हैं
मानुष की देह धारे
अमानुषों द्वारा
इस अनंत चुप्पी में डूबी हुई
भोगेगी कब तक
यह भयावह संत्रास!
चुप्पी की इस शय्या पर लेटी
तुम जीने की कामना से वंचित
एक लाश सी लगती हो
तुम्हारी इस  चुप्पी का
यही अर्थ लगाता पुरुष
कि तुम हो सिर्फ़
भोग विलासिता की वस्तु भर
दर्ज कराने को
अपने अस्तित्व की मौजूदगी
तोड़ अंतहीन मौन
उधेड़ अपने होठों की वो सिलाई
जो जरा सी खुलते ही फिर सीने लगते हैं
तेरे दादा-दादी नानी-नानी माँ-पापा
तुझे कुलटा कुलक्षिणी  कहे जाने के
भय से घबराकर
कब तक नहीं उतरेगी
तूं अपने अंतःस्थल में
और कितने युगों तक न होगा
तुझको स्वका भान
चल खुद के लिए न सही
इस सृष्टि के लिए ही बोल
तुम्हारी चीख जरुरी है
बचे रहने को स्त्री
बची रहने को पृथ्वी

5 प्रेम का संत

मन की शाखाओं पर
आज भी झूलती है तेरी छब
चेतना के तड़ाग में
खिलती तेरे स्वप्नों की कुमुदिनियाँ
साँसों की हवा में
अब तक  तैरती तेरी गंध
दृष्टि की चातकी तकती राह
मन उपवन में यादों के मृग
अभी भी भरते कुलांचे
उम्र का बगीचा चाहे हो जाये उजाड़
पर सुधियों की केतकी
रहती सदा हरी भरी
हर बसंत में फिर-फिर
परिस्फुरण होता है
स्मृति कलिकाओं का
ग्रीष्म की हर सांझ मन की छत पर
बिछने लगती
प्रतीक्षा की हल्की गुलाबी चादरें
सावण भादो की बारिशों में भीगता
अंतर का कोर-कोर तुम्हारे विचार से
हर शीत में चली आती
प्रवासी पक्षियों सी तेरी सुधि
रगों की पोखर किनारे
डाल कर अपना डेरा
विचरती चहूँ ओर
इस तरह तुम से परे भी
पल-पल बीतता तुम्हारे संग
ये सुख सुविधाओं का भोगी तन
स्वीकार लेता है बंधन
पर मन में बसा
प्रेम का संत
परिव्रज्या सा जीता जीवन

6 वो तिलचट्टे

मैं उसें जानती नहीं
उससें मुहब्बत भी नहीं करती
न ही पसंद भी
नापसंद भी नहीं करती
नापसंद उसें  किया जाता है
जो कभी पसंद भी आया हो
जिससें कभी कोई वास्ता ही ना रहा
ना तन का,,ना मन का ना जीवन का
किसी बस स्टॉप ,रेल्वे स्टेशन ,
बाजार, राह चलते शहर,
ऑफिस, कॉलेज
नरेगा हो या फेमिन
बार-बार उसकी आँखें
अंधेरे में,
गर्म स्थान खोजती हुई
तिलचट्टों सी रेंगती है जब मुझ पर
या जानबूझकर बेवजह
बार बार छूने का करती  यत्न
भोजन ढूंढती फिरती तिलचट्टे के
एक जोड़ी संवेदी श्रृंगिकाएँ  सी
उसकी वासना के कीच से लिपटी
गंदी उँगलियाँ मुझे
तब मैं खूबसूरत नहीं लगती खुद को
बल्कि लगता है
गंदी चिकनाई सी कुछ काइयां
उतर आई हों जैसे मेरे जिस्म के चारों ओर
या उघड़ा छुट गया मेरा बदन
यह सोचकर
बचा-बचा कर सबसें  नजर
जांचती हूँ अपने अंगों को बार-बार
सब कुछ ठीक है
की तसल्ली के बावजूद
लगता है कुछ गड्ढे से हो आये हों
मेरी देह के आर पार
उसकी गंदी पैनी नजर से
और तब अचानक
मेरे बदसूरत हो जाने का
अहसास होने लगता है मुझे
बड़ी सिद्दत से
मेरा रूप रंग लगने लगता है बैरी मुझे
मिचलाने  लगता है मन
जी करता है अपने पैरों तले कुचल दूँ
उसकी उँगलियों के श्वासरंध्र
जो छू कर देह,
छिलते मेरी आत्मा
तब जाने कहाँ गुम हो जाते यकायक
मेरे अंदर के  नारी वाले कोमल भाव
तुम अक्सर जिसें  कहा करते हो
चंडी, दुर्गा या कि चाहे फूलन ही सही
हाँ वैसा ही कुछ -कुछ
होने लगता है आभास
टूट कर मेरी सहन शक्ति
देने लगती जबाब
हाँ तब मैं पीटती हूँ उसें
फिर जानवरों की तरह
खो कर अपना आपा ,
कभी-कभी बीच बाजार
तय किया है मैंने
अब मैं नहीं करुँगी
घबराकर आत्म हत्या
नहीं बैठूंगी चुप
अब दूँगी पलट कर उसें जवाब
सुनो तिलचट्टों!
जिस दिन छूओगे हमारी इज्ज़त
जोखिम में होगी तुम्हारी भी जान
विचार लेना तुम

7 सुखद अहसास

तेरा  मेरा होना
एक  सुखद अहसास
तेरा साथ
तपते रेगिस्तान पर
चलते पैरों को
छू लिया हो जैसे
बारिश की शीतल बूंदों ने
तेरी खूबियों की रोशनी
दबाती गई
मेरे मन के
संदेह रुपी पीले अंधेरे
दर्द-ग़म का हर अँधेरा
भाग निकला आंख दबाकर
प्यार के इस
पवित्र उजाले के सामने
तेरे साथ
ज़िन्दगी का पल-पल
यूं लग रहा है मानो
यही स्वर्ग हो
मैं जो कुछ हूँ तेरी बदौलत
तुझसे  अलग
मेरा कोई अस्तित्व कहां
ज्यों चाँद में
अपनी ज्योति कहाँ
वह तो केवल सूरज-ज्योति से
निर्मल-धवल चमकता
तेरा प्यार, तेरा स्नेह
मेरे जीवन की श्रेष्ठ अनुभूति
और मैं लगी हुई हूँ बटोरने में
तेरे प्यार से पूरित
कण-कण को
तेरे अहसास से पूरित
क्षण-क्षण को

परिचय

invc news,aasha pandey ojhaआशा पाण्डे ओझा

शिक्षा :एम .ए (हिंदी साहित्य )एल एल .बी,जय नारायण व्यास विश्व विद्यालया ,जोधपुर (राज .)
हिंदी कथा आलोचना में नवल किशोरे का  योगदान में शोधरत

प्रकाशित कृतियां
1. दो बूंद समुद्र के नाम 2. एक  कोशिश रोशनी की ओर (काव्य ) 3. त्रिसुगंधि (सम्पादन ) 4 ज़र्रे-ज़र्रे में वो है
शीघ्र प्रकाश्य
1.  वजूद की तलाश (संपादन ) 2. वक्त की शाख से ( काव्य ) 3. पांखी (हाइकु  संग्रह )
देश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं व इ पत्रिकाओं  में कविताएं ,मुक्तक ,ग़ज़ल ,,क़तआत ,दोहा,हाइकु,कहानी , व्यंग समीक्षा ,आलेख ,निंबंध ,शोधपत्र निरंतर प्रकाशित

सम्मान -पुरस्कार
कवि  तेज पुरस्कार जैसलमेर ,राजकुमारी  रत्नावती पुरस्कार  जैसलमेर,महाराजा कृष्णचन्द्र जैन स्मृति सम्मान एवं पुरस्कार पूर्वोत्तर हिंदी
अकादमी शिलांग (मेघालय ) साहित्य साधना समिति पाली एवं  राजस्थान साहित्यअकादमी उदयपुर द्वारा अभिनंदन ,वीर दुर्गादास राठौड़ साहित्य सम्मान जोधपुर ,पांचवे अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विकास सम्मलेन ताशकंद में सहभागिता एवं सृजन श्री सम्मान ,प्रेस मित्र क्लब बीकानेर राजस्थान द्वारा अभिनंदन ,मारवाड़ी युवा मंच श्रीगंगानगर राजस्थान द्वारा अभिनंदन ,साहित्य श्री सम्मान संत कवि सुंदरदास राष्ट्रीय सम्मान समारोह समिति  भीलवाड़ा राजस्थान ,सरस्वती सिंह स्मृति सम्मान पूर्वोत्तर हिंदी अकादमी शिलांग मेघालय ,अंतराष्ट्रीय साहित्यकला मंच मुरादाबाद के सत्ताईसवें अंतराष्ट्रीय हिंदी विकास सम्मलेन काठमांडू नेपाल में सहभागिता एवं हरिशंकर पाण्डेय साहित्य भूषण सम्मान ,राजस्थान साहित्यकार परिषद कांकरोली राजस्थान  द्वारा अभिनंदन ,श्री नर्मदेश्वर सन्यास आश्रम परमार्थ ट्रस्ट एवं सर्व धर्म मैत्री संघ अजमेर राजस्थान के संयुक्त तत्वावधान में अभी अभिनंदन ,राष्ट्रीय साहित्य कला एवं संस्कृति परिषद् हल्दीघाटी द्वारा काव्य शिरोमणि सम्मान ,राजस्थान साहित्य अकादमी उदयपुर एवं साहित्य साधना समिति पाली राजस्थान   द्वारा पुन: सितम्बर २०१३ में अभिनंदन

रूचि :लेखन,पठन,फोटोग्राफी,पेंटिंग,प्राकृतिक सौन्दर्य को निहारते हुवे घूमना-फिरना

सम्पर्क – :
आशा पाण्डेय ओझा , c/o जितेन्द्र पाण्डेय ,उपजिला कलक्टर , पिण्डवाडा 307022 , जिला सिरोही राजस्थान
फोन – : 07597199995 , 09772288424 /07597199995 , 09414495867

E mail – :  asha09.pandey@gmail.com

21 COMMENTS

  1. शानदार कविताएँ … संत का प्रेम …प्रेम पर जो सवाल उठाती हैं …वह सभी सवाल आत्मा को कहीं और ले जाती हैं ! इस कविता ने आपको आज दुनिया के पहले हज़ार रचनाकारों में शामिल कर दिया हैं ! बधाई की आप सच में पात्र हैं !

    • सीमा राठौर जी अन्य कविताओं के साथ प्रेम का संत पसंद करने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद

  2. आपकी सभी कविताएँ अच्छी ,बहुत अच्छी हैं पर अगर मुझे किसी एक को पसंद करने के लियें कहा जाए तो मेरे लियें बहुत ही मुश्किल हो जाएगा !! आशा पाण्डेय ओझा जी …पढ़ने , लिखने वाले घर में आपका स्वागत हैं ! यह इस न्यूज़ पोरटल की सबसे बड़ी खासियत हैं कि यहाँ कुछ ऐसा नहीं छपता जिससे समाज और देश का कोई सरोकार न हो !

    • डॉ राधिका वर्मा जी यह मेरे लिए ख़ुशी की बात है की आपको मेरी सभी कवितायेँ अच्छी लगी जी आप सही कह रही हैं यहाँ समाज देश के सरोकार की सामग्री है .. रचनाएँ भी समाज व देश से ही पनपती है इन्हीं के बीच इन्ही अहसासों से पनपती है .. आपका पुनह आभार आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु

  3. बहुत सारगर्भित कवितायें. ऐसी सिद्धहस्त रचनाकार की रचना प्रकाशित करने हेतु संपादक ज़ाकिर साहेब और सह सम्पादिका श्रीमती सोनाली बोस जी को साभार

    • सम्मानीय शिव कुमार झा जी आपका तो शुक्रिया अदा करने के लिए अल्फ़ाज गम हैं .. आपने मेरी रचनाएँ सम्पादन मंडल व पाठकों तक अपनी आत्मीय व उत्कृष्ट प्रतिक्रिया द्वारा पंहुचाई .. आपकी यह संक्षिप्त टिप्पणी बहुत बड़ी समीक्षा से भी ऊपर है .. आपका सहयोग व स्नेह अभिनंदन योग्य है .. आपका दिल से शुकिया अदा करती हूँ

    • सम्पादक ज़ाकिर साहेब और सह सम्पादिका श्रीमती सोनाली बोस जी तहे दिल से आपका शुक्रिया अदा करती हूँ

  4. प्रेम का संत….इतना कुछ कहती हुई कविता हैं जिसका उल्लेखन भी बहुत मुश्किल हो चला हैं ! आशा जी आपको पढ़ने का अब नया पता भी मिल गया हैं ! बधाई हो !

    • करूणा तिवारी जी प्रेम का संत मेरी भी पसंदीदा रचनाओं में से है जो मुझ नाचीज द्वारा अब तक लिखी गाई 450 कविताओं में से एक है .. यह कविता आज की पीढ़ी के प्रेम के नाम पर चार दिन का घूमना फिरना व क्षणिक आकर्षण भर देह का आकर्षण को प्रेम समझना उन्हें एक गहरे स्वार्थ रहित प्रेम व मन के समर्पण का संदर्भ समझाना था धन्यवाद आपका रचना पसंद आई आपको

  5. टिप्पणी की तारीफ भी बनती ही हैं ! कावियाएं बहित ही अव्वल दर्जे की हैं ! आशा जी सच में आपने दिल जीत लिया !

    • सलोनी मिश्रा जी आपका दिल से आभार आपने मेरी कविताएं पाठक वर्ग के सामने रखी आपका शुक्रिया इस न्यूज़ पोर्टल में मेरी रचनाओं को प्रकाशित करने के लिए

  6. वो तिलचट्टे….इस कविता ने मुझे मेरे भूतकाल में ला खडा किया ! आपकी सभी कविताएँ कई बार पढ़ने योग्य हैं ! आईं एन वी सी न्यूज़ का भी साभार जो पाठको की हर पसंद का ख्याल इस तरहा रखते हैं !

    • मोतीलाल जी सादर आभार आपका आपकी प्रतिक्रिया ने मेरे लेखन को नै उर्जा दी है .. मुझे और उत्कृष्ट लेखन की प्रेरणा दी जय आभार आपका

  7. शानदार ,सभी कविताएँ बहुत ही उम्दा ! आशा जी आपको पहले भी पढ़ा हैं पर इस अंदाज़ में नहीं ! आपने आज ” निराला जी ” की याद दिला दी ! बधाई !!

    • कौशल श्रीवास्तव जी अहो भाग्य कि मेरी रचनाओं से आपको निराला जी की याद आई .. हालाँकि मैं उनके लेखन का सौंवा हिस्सा भी नहीं रच पाई पर आपने इस प्रतिक्रिया मुझे और अधिक सशक्त और उम्दा लेखन के लिए प्रेरित किया है ताकि आपकी प्रतिक्रिया को मैं मूर्त रूप दे पाऊँ हार्दिक धन्यवाद आपका

  8. आशा जी आपकी पांचवी कविता लाजबाब हैं ! बाकी कविताएँ भी बहुत ही शानदार हैं ! इतनी शानदार कविताओं के लियें साभार !

    • अभिलाषा आनंद जी आपको मेरी रचनाएँ पसंद आई आपके सराहना भरे शब्दों की शुक्रगुजार हूँ

  9. सच में बहुत शानदार कविताएँ लिखी हैं आपने सभी कविताओं को पढ़ने के बाद लगा की किसी एक कविता की तारीफ़ मुश्किल हैं !

    • प्रशांत वर्मा जी आपकी इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आपके प्रति हृदय से आभारी हूँ

  10. शानदार कविताएँ ! सभी कविताएँ बहुत ही उम्दा पर … सुखद अहसास….मुझे सबसे ज़्यादा पसंद आई !

    • बहुत बहुत शुक्रिया आपका निदा कुमार जी आपको सुखद अहसास पसंद आई मेरे लिए यह क्षण सुखदाई हैं रचनकार जब अपनी रचना पर प्रतिक्रिया पाटा है तो .. लेखन की क्षमता दौगुनी गति पकड़ती है धन्यवाद 🙂

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