– निर्मल रानी –
चेन्नई महानगर को पिछले दिनों प्रकृति की बारिश रूपी आपदा का सामना करना पड़ा। इसके पूर्व 2013 में उत्तराखंड के केदारनाथ व उसके आसपास के क्षेत्रों में कुदरत ने अपना ऐसा कहर बरपा किया कि आज तक मरने वालों की सही संख्या का अंदाज़ा नहीं हो सका। इसी प्रकार गत् वर्ष 2014 में कश्मीर के श्रीनगर व उसके आसपास के क्षेत्रों में बाढ़ ने अपना ज़बरदस्त तांडव दिखलाया। वहां भी बेहिसाब जान व माल का नुकसान हुआ। अन्य देशों से भी प्राकृतिक आपदा के इसी प्रकार के समाचार प्राप्त होते रहते हैं। मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि इस समय पृथ्वी पर निरंतर बढ़ते तापमान अर्थात् ग्लोबल वार्मिंंग के परिणामस्वरूप ऐसी तमाम प्राकृतिक घटनाएं हो रही हैं और भविष्य में भी होती रहेंगी जो पहले कभी नहीं हुई हैं। चेन्नई में हालांकि बरसात के मौसम में तेज़ बारिश पहले भी होती रही है। परंतु गत् दिनों बेमौसमी बारिश ने जिस प्रकार अपना कहर बरपा किया और तीन सौ से अधिक लोगों को इस विनाशलीला ने अपनी आग़ोश में ले लिया ऐसा तो चेन्नईवासियों ने पहले कभी नहीं देखा व सुना। चेन्नई शहर में भाारी बारिश का कारण जहां प्रकृति का कोप समझा जा रहा है वहीं इस महानगर के डूबने में मानवीय गलतियों को भी जि़म्मेदार माना जा रहा है। बारिश के पानी की निकासी के पर्याप्त उपाय न होना,बरसाती पानी जमा होने के गड्ढों का भरकर वहां इमारतें खड़ी कर देना जैसी समस्याओं ने चेन्नई को तबाही की उस स्थिति तक पहुंचा दिया कि इसके नुकसान का खमियाज़ा केवल चेन्नई वासियों को ही नहीं बल्कि देश की अर्थव्यवस्था को भी भुगतना पड़ सकता है। क्योंकि यहां की विनाशरूपी बारिश व इससे पैदा हुए बाढ़ जैसे हालात ने न केवल इस महानगर के रेलवे स्टेशन,हवाई अड्डे,वहां तेज़ी से चल रही मैट्रो परियोजना तक को डुबो कर रख दिया बल्कि इससे महानगर का उद्योग जगत भी बुरी तरह प्रभावित हुआ है। औद्योगकि उत्पादन कहीं-कहीं तो पूरी तरह से ठप्प हो गया है और इन हालात के सामान्य होने में अभी काफी समय भी लग सकता है।
बहरहाल प्राकृतिक आपदा की इस संकटपूर्ण घड़ी में देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां का दौरा कर एक हज़ार करोड़ रुपये की सहायता राशि केंद्र सरकार की ओर से घोषित की। देश के अन्य तमाम स्वयंसेवी संगठन तथा दानी सज्जनों द्वारा बड़े पैमाने पर चेन्नई के बाढ़ पीडि़तों की सहायतार्थ अपने हाथ बढ़ाए जा रहे हैं। भारतीय सेना भी उत्तरांचल तथा कश्मीर की ही तरह यहां भी अपनी जान पर खेलकर इस आपदा में फंसे लोगों को सुरक्षित बाहर निकालने के काम में लगी हुई थी। निश्चित रूप से सेना ने एक बार फिर देश के लोगों की रक्षा का कर्तव्य निभाते हुए हज़ारों लोगों की विशेषकर महिलाओं,बुज़ुर्गों व बच्चों की जानें बचाईं। परंतु इन सबके अतिरिक्त एक बार फिर यहां उन लोगों को इक_े होकर समान रूप से एक-दूसरे की सहायता करते देखा गया जो समय-समय पर धर्म के नाम पर एक-दूसरे के सामने खड़े होकर एक-दूसरे के विरुद्ध तलवारें खींच लिया करते हैं। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के कार्यकर्ता बड़ी संख्या में चेन्नई पहुंचकर बाढ़ पीडि़तों को इस संकट से उबारते देखे गए। बिना किसी धर्म व जाति की सीमा के यह संघी कार्यकर्ता सभी इंसानों की समान रूप से मदद करते नज़र आए। गोया यहां इनका मिशन किसी हिंदू मात्र की मदद करना नहीं बल्कि बाढ़ में घिरे किसी भी व्यक्ति की जान बचाना व उसकी सहायता करना था। इसी प्रकार चेन्नई में कई मुस्लिम संगठनों ने जिनमें से कई स्थानीय संगठन थे तो कई संगठनों के स्वयं सेवक दूसरे शहरों व राज्यों से चेन्नई पहुंचे थे, उन्होंने भी धर्म व जाति की सीमाओं को देखे बिना स्वयं को खतरे में डालते हुए समस्त बाढ़ पीडि़तों की सहायता की। इतना ही नहीं बल्कि चूंकि बाढ़ के चलते रहने तथा पीने के पानी का संकट भी चेन्नईवासी झेल रहे हैं। ऐसे में वहां की कई बड़ी व छोटी मस्जिदों के द्वार समस्त बाढ़ पीडि़तों के लिए खोल दिए गए। स्थानीय मुसलमानों ने समस्त पीडि़तों को मस्जिद में पनाह दी तथा उन्हें पीने का स्वच्छ पानी उपलब्ध कराया।
यदि हम किसी प्राकृतिक विपदा या किसी बड़ी दुर्घटना की प्रतीक्षा किए बिना अपने दैनिक जीवन में जहां भी संभव हो एक-दूसरे की सहायता करने के लिए तत्पर रहें तो न केवल इससे प्रत्येक धर्म के अनुयाईयों का एक-दूसरे धर्म के अनुयाईयों के मध्य आदर व सम्मान बढ़ेगा बल्कि वर्तमान दौर में एक-दूसरे धर्म के बीच खिंचती जा रही नफरत की दीवार भी गिराई जा सकेगी। यदि हम बिना किसी संकट के तथा बिना किसी की धर्म व जाति देखे हुए एक-दूसरे की मदद करना सीख जाएं और हमारे स्वयंसेवी संगठन चलाने वाले संचालक अथवा हमारे धर्मगुरू हमें ऐसी सीख देने लगें तो इसका प्रभाव पूरे समाज व पूरे देश पर पड़ेगा। आज हमारे देश में सबसे बड़ी कमज़ोरी यहां फैली सांप्रदायिकता,जातिवाद,कट्टरता,स्वार्थ जैसी विषमताएं हैं। यदि हम समाज से इन बुराईयों को खत्म करने में कभी सफल हो सके तो हमारे देश को आगे बढऩे से दुनिया की कोई ताकत रोक नहीं सकती। एकता,सौहाद्र्र,भाईचारा तथा परस्पर सहयोग की भावना जब हमें प्राकृतिक विपदा से उबार सकती है फिर आिखर यह जज़बा हमें साधारण व सामान्य दिनों में मदद क्यों नहीं पहुंचा सकता? उदाहरण के तौर पर आज यदि हम किसी गुरुद्वारे में जाकर लंगर ग्रहण करना चाहते हैं तो वहां का प्रबंधन किसी व्यक्ति से उसका धर्म या जाति नहीं पूछता। कोई मौलवी या फकीर किसी को दुआ ताबीज़ या खैरात देते समय उसका धर्म व जाति नहीं पूछता। किसी मंदिर का प्रसाद बिना किसी धर्म व जाति बताए हुए ग्रहण किया जा सकता है। यही जज़्बा सामान्य दिनों में प्रत्येक व्यक्ति के सामान्य जीवन में भी होना चाहिए। राष्ट्र के विकास का यही सबसे बड़ा सूत्र है कि हम एक बनें और नेक बनें बजाए इसके कि हम हिंदू बने, सिख बनें मुस्लिम बनें या ईसाई बनें हम केवल अच्छे इंसान बनें।
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निर्मल रानी
लेखिका व् सामाजिक चिन्तिका
कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर निर्मल रानी गत 15 वर्षों से देश के विभिन्न समाचारपत्रों, पत्रिकाओं व न्यूज़ वेबसाइट्स में सक्रिय रूप से स्तंभकार के रूप में लेखन कर रही हैं !
संपर्क : – Nirmal Rani : 1622/11 Mahavir Nagar Ambala City13 4002 Haryana , Email : nirmalrani@gmail.com – phone : 09729229728
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