नेहरू-गाँधी परिवार का नेतृत्व नहीं बल्कि सत्ता से वनवास है असल समस्या

 – तनवीर जाफ़री – 

                                              पिछले दिनों देश के पांच राज्यों में हुये विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के अनअपेक्षित प्रदर्शन के बाद पार्टी में घमासान मचा हुआ है। साफ़ शब्दों में कहा जाये तो जिन ‘पैराशूट ‘ नेताओं ने सारी ज़िंदिगी नेहरू-गाँधी परिवार के नेतृत्व उनकी लोकप्रियता तथा उनके राष्ट्रीय जनाधार की बदौलत सत्ता सुख भोगा उन्हीं में से अनेक नेता कांग्रेस की सत्ता में यथाशीघ्र वापसी न होती देख अब उसी नेहरू-गाँधीपरिवार के नेतृत्व पर सवाल उठाने लगे हैं। वे यह भूल जाते हैं कि देश की वर्तमान साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति,झूठ व लांछन के दौर ने कांग्रेस की धर्मनिरपेक्ष व गांधीवादी राजनीति को ही हाशिये पर डाल दिया है। परन्तु जिन नेताओं को शीघ्र सत्ता चाहिये वे कांग्रेस के सिद्धांतों की तिलांजलि देकर किसी न किसी बहाने से या तो पार्टी छोड़ कर सत्ताधारी पार्टी में समाहित हो चुके हैं या नेतृत्व के विरुद्ध मुखर होकर पार्टी छोड़ने के बहाने तलाश रहे हैं।
                                             जहाँ तक नेहरू गाँधी परिवार द्वारा लिये गये कुछ ऐसे फ़ैसलों का प्रश्न है जिनसे कथित रूप से कांग्रेस को अतीत में नुक़्सान होता रहा है उदाहरण के तौर पर नवज्योत सिंह सिद्धू को पंजाब प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जाना अथवा कैप्टेन अमरेंद्र सिंह को मुख्य मंत्री पद से मुक्त करने का फ़ैसला देर से लेना आदि तो इस तरह के फ़ैसले भी सोनिया अथवा राहुल गाँधी द्वारा अकेले नहीं लिये गये। इस परिवार में शीर्ष पर हमेशा कोई कोई न कोई सलाहकार रहे हैं जिनकी सलाह व कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के सलाह मशविरे से ही ऐसे क़दम उठाये जाते हैं। परन्तु जब पंजाब की जनता ने ही राज्य में तीसरी राजनैतिक शक्ति के रूप में भरपूर समर्थन देने का मन ही बना लिया हो तो उसमें पार्टी नेतृत्व कर ही क्या सकता है? जी 23 कहे जाने वाले नेताओं के गुट में सबसे मुखर नाम ग़ुलाम नबी आज़ाद का है। कांग्रेस में शुरू से ही इन्हें बिना जनाधार वाला परन्तु गाँधी नेहरू परिवार का वफ़ादार नेता समझा जाता रहा है। कहना ग़लत नहीं होगा कि यह उस समय भी राजीव गाँधी के ख़ास सलाहकारों में गिने जाते थे जब बोफ़ोर्स के झूठे आरोपों का सामना कर रहे अमिताभ बच्चन द्वारा इलाहबाद संसदीय सीट से त्याग पत्र दिया था। और उसके बाद हुए उपचुनाव में वी पी सिंह के विरुद्ध पुनः अमिताभ बच्चन को बोफ़ोर्स की चुनौती स्वीकार करने हेतु पार्टी प्रत्याशी के रूप में खड़ा करने की इलाहाबद की जनता की अकांकक्षाओं के विरुद्ध सुनील शास्त्री जैसे कमज़ोर उम्मीदवार को खड़ा किया गया। यह इन्हीं सलाहकारों द्वारा लिया गया एक ऐसा ग़लत फ़ैसला था जिसके परिणाम स्वरूप देश में गठबंधन सरकारों का दौर चला। तभी से देश में अनेक क्षेत्रीय राजनैतिक दल बने और कांग्रेस के वोट अनेक क्षेत्रीय दलों में समाहित हो गये। आज वही ‘सलाहकार ‘ नेतृत्व पर प्रवचन दे रहे हैं ?
                                             उधर देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में जहां कांग्रेस पार्टी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही थी, प्रियंका गाँधी की मेहनत,उनके जुझारूपन व पूर्णकालिक सक्रियता की वजह से वहां कांग्रेस चर्चा में आई। राज्य में नये सिरे से संगठन खड़ा हुआ, लोगों में कांग्रेस से उम्मीदें जगीं। परन्तु अपेक्षित सीटें न मिल पाने के लिये नेतृत्व को ज़िम्मेदार ठहराने के बजाये संगठन की ख़ामियों को देखना चाहिये और यह काम दूसरी व तीसरी पंक्ति के नेताओं का है कि वे प्रियंका गाँधी द्वारा बनाये गये सकारात्मक वातावरण को वोट में बदलने के लिये समर्पित व ज़िम्मेदार कार्यकर्ताओं का नेटवर्क स्थापित करें और उनसे उनके सामर्थ्य के अनुसार बूथ स्तर तक यथा उचित काम लें।
                                             इस पूरे प्रकरण में सबसे घटिया बयान दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित के पुत्र संदीप दीक्षित की ओर से आया। उनका मत है कि  गाँधी परिवार  ही नहीं बल्कि 90 प्रतिशत कांग्रेस प्रभारियों को भी कांग्रेस से बाहर का रास्ता दिखाना चाहिये। आप फ़रमाते हैं कि कांग्रेस कार्यसमिति  ‘येस मैन’ ग्रुप बनकर रह गया है। इसलिये चमचे भले ही गाँधी परिवार के ख़िलाफ़ सवाल न उठायें परन्तु बाक़ी लोग तो उठाएंगे ही ? दरअसल संदीप दीक्षित जैसे नेता पुत्रों को ही आगे ला कर कांग्रेस का बेड़ा ग़र्क़ हो रहा है। दिल्ली के पिछले तीन विधान सभा चुनावों में संदीप दीक्षित ने अपने नेतृत्व का क्या करिश्मा दिखाया ? उनके पास शीला दीक्षित का पुत्र होने के अतिरिक्त और दूसरी योग्यता ही क्या है। परन्तु सत्ता से दूर रहने की बेचैनी में ‘सूप तो सूप छलनी भी बोलने लगी हैं’?
                                       नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में जितनी सशक्त व मुखर विरोध की भूमिका राहुल गाँधी व प्रियंका गांधी ने निभाई है इतना मुखर विरोध करते  देश का कोई नेता नहीं दिखाई दिया। कई बार इनके विरोध ने सत्ता को बैकफ़ुट पर जाने के लिये भी मजबूर किया है। हम दो हमारे दो का कटाक्ष हो या चौकीदार पर प्रहार,राफ़ेल सौदे का विरोध हो या पेगासेस का प्रबल विरोध, ऐसे तमाम मुद्दों को संसद से सड़क तक अपनी पूरी क्षमता व सामर्थ्य के अनुसार राहुल गाँधी ने उठाया है। पिछले चुनाव में मोदी और उनके कई नेताओं ने जनता से ‘नमक’ के बदले वोट माँगा जिसपर प्रियंका गाँधी ने ऐसी झाड़ लगाई कि मोदी फ़ौरन बैकफ़ुट पर आ गये और चुनावी सभा में यह बोलते नज़र आये कि ‘नमक आपने नहीं नमक तो आपका मैंने खाया है’। यह साहस और हिम्मत केवल इसी परिवार के सदस्यों में देखा जा सकता है। इन्हें कोई पद्मश्री या पद्म भूषण अथवा मंत्री या मुख्यमंत्री का पद कांग्रेस व उसके सिद्धांतों से विमुख नहीं कर सकता।
                                        देश इस समय सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के साथ साथ झूठ और दुष्प्रचार के दुर्भाग्यपूर्ण दौर से गुज़र रहा है। मीडिया सहित अनेक सरकारी संस्थायें सत्ता के समक्ष दण्डवत हैं। अपने विपक्षियों को डरा धमकाकर या लालच देकर उन्हें या तो अपने पक्ष में किया जा रहा है या ख़ामोश किया जा रहा है। कांग्रेस इस समय एक ऐसे अभूतपूर्व चुनौती काल से गुज़र रही है जिसमें पूरी कांग्रेस को एक मुट्ठी की तरह एकजुट होने तथा अपने कुंबे का विस्तार करने की ज़रुरत है न कि पार्टी छोड़ने के लिये नये नये बहाने तलाशने की। कांग्रेस में आज भी गाँधी नेहरू परिवार के सिवा भीड़ इकट्ठी करने वाला कोई नेता नहीं है। परन्तु जिन्हें सत्ता हासिल करने की जल्दी है उन्हें नित नये बहाने तलाशने से भी कोई रोक नहीं सकता। हक़ीक़त तो यही है कि नेहरू गाँधी परिवार का नेतृत्व नहीं बल्कि सत्ता से वनवास है बग़ावती सुर बुलंद करने वाले नेताओं की असल समस्या।

About the Author 

Tanveer Jafri

Columnist and Author

Tanveer Jafri, Former Member of Haryana Sahitya Academy (Shasi Parishad),is a writer & columnist based in Haryana, India.He is related with hundreds of most popular daily news papers, magazines & portals in India and abroad. Jafri, Almost writes in the field of communal harmony, world peace, anti communalism, anti terrorism, national integration, national & international politics etc.

He is a devoted social  activist for world peace, unity, integrity & global brotherhood. Thousands articles of the author have been published in different newspapers, websites & news-portals throughout the world. He is also recipient of so many awards in the field of Communal Harmony & other social activities.

Contact – : Email – tjafri1@gmail.com –

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