लेखक म्रदुल कपिल कि कृति ” चीनी कितने चम्मच ” पुस्तक की सभी कहानियां आई एन वी सी न्यूज़ पर सिलसिलेवार प्रकाशित होंगी l
-चीनी कितने चम्मच पुस्तक की दसवीं कहानी –
_तुम सा कोई और …__
ऑफिस से बाहर निकला तो बारिश की हल्की फुहारे बदन को भिगो रही थी , दिन शाम के साये से गुजरता हुआ रात के आगोश की और बढ़ चूका था , मेरी मंजिल यंहा से 19 किलोमीटर दूर मेरा घर था , मुझे पता ही नही चला कब बाइक हाइवे पर आई और कान में लगी Hands-free से होते हुए ताल Movie के गाने दिल तक पहुचने लगे , हाँ मुझे आज भी याद है की ऐसे मौसम में जब भी मै तुम्हे घर छोड़ने जाता था तब हम दोनों एक ही Hands-free से घर तक यही गाने सुनते हुए पहुँचते थे ,मुझे नही मालूम आज जब तुम मुझ से हजारो किलोमीटर दूर किसी और की बन कर ये गाने सुनती हो की नही और अगर सुनती हो तो मुझे याद करती हो की नही , लेकिन मैंने आज तक राइट साइड वाली हैंडफ्री को अपने कान में नही लगाया वो आज भी तुम्हरे लिये खाली है ,
प्यार ही तो था तुम्हारे जाने के बाद तुम्हारे बचे रह गए सामानों से लिपटकर रोना ,दिसंबर की सर्दियों में रोज सर को भिंगोना तीन बार ,गार्नियर के कंडिशनर की गंध को रुमाल में बसाकर रखना.
आजकल प्यार-श्यार को नहीं मानने वाली तुम कहती रही वक़्त भर देगा मेरे जख्म .
पर इसी अरसे मै सोचता रहा तुम्हारी दी हुई लीवायस टीशर्टों, प्रो-वोग जूते
यार्डली-टेम्पटेशन डियोडेरेंट को खपाने में ही बरस गुजरेंगे..
जानती हो , तुम्हारे जाने के बाद एक अरसा गुजर गया सिर्फ खुद को ये यकीं दिलाने में की तुम अब मेरे साथ नही हो , यकीं होने के बाद भी ज़िंदगी रुकी नही चलती रही बस ये लगा की अब कहानी खत्म , तभी कोई आया तुम्हरी ही तरह दबे पांव और बोला कि ” पता है फिर क्या हुआ ! ” ये वही मोड़ है जहाँ पहुंचकर हर किस्से को नया पता मिल जाता है , हाँ फिर से मेरी ज़िंदगी की कहानी को एक किरदार मिला है , और पता है इसकी और तुम्हारी पसंद लगभग एक जैसी ही है ।
तुमने भी बिना किसी वजह के मुझे पसंद किया था और इसने भी , तुम्हारी तरह इसे भी देर तक गंगा घाट पर पानी में पैर डाल कर बैठे रहना पसंद है , तुम्हारी ही तरह इससे भी बटर स्कॉच आइसक्रीम पसंद है और जब वो आइसक्रीम खाते खाते इसकी छोटी सी नाक पर लग जाती है तो ये भी मुझे तुम जैसी ही भोली भाली और खूबसूरत लगती है ,
मैंने फिर से पहनना शुरू कर दिया Black Shirt , क्युकी तुम्हारी तरह उसे भी मुझ पर पसंद Black Shirt , एक बार फिर से पहले की तरह नही जला पता हूँ बेधडक हो कर सिगरेट , न जाने क्यों उसका अश्क आ जाता है नजरो के सामने , तुम्हारी ही तरह उसे भी बहुत पसंद है मेरी आँखे , लेकिन जानती हो तुम्हारे जाने के बाद ये आँखे बेनूर हो गयी थी और उसने जैसे किसी जादू से एक फिर से इनमे नूर भर दिया है ,
हाँ एक बात जरूर अलग है तुम में और उसमे , तुम कभी नाराज नही होती थी , बस एक बार हुयी और फिर मै तुम्हे मना न सका तुमने कोई मौका ही न दिया , लेकिन ये बात , बेबात पर नाराज हो जाती है और बिना मनाये खुद ही मान जाती है ,इसके गुस्से का प्यार छू जाता है दिल को ….
एक बार फिर से चल दिया हूँ प्यार के उसी रास्ते पर जंहा पूरा जँहा बसता है , नही जानता इस सफर का हश्र क्या होगा ,? अब नही सोचता की आबाद होना है या बर्बाद ? एक फिर से खुद की इश्क़ के हवाले कर रहा हूँ,
” मै खुद के वजूद को तुम्हारी कैद से आजाद करना चाहता हूँ , उसके प्यार में गिरफ्त हो कर “
बातो बातो में याद ही नही रहा , मेरी मंजिल ( मेरा घर ) आ गया था।
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म्रदुल कपिल
लेखक व् विचारक
18 जुलाई 1989 को जब मैंने रायबरेली ( उत्तर प्रदेश ) एक छोटे से गाँव में पैदा हुआ तो तब दुनियां भी शायद हम जैसी मासूम रही होगी . वक्त के साथ साथ मेरी और दुनियां दोनों की मासूमियत गुम होती गयी . और मै जैसी दुनियां देखता गया उसे वैसे ही अपने अफ्फाजो में ढालता गया . ग्रेजुएशन , मैनेजमेंट , वकालत पढने के साथ के साथ साथ छोटी बड़ी कम्पनियों के ख्वाब भी अपने बैग में भर कर बेचता रहा . अब पिछले कुछ सालो से एक बड़ी हाऊसिंग कंपनी में मार्केटिंग मैनेजर हूँ . और अब भी ख्वाबो का कारोबार कर रहा हूँ . अपने कैरियर की शुरुवात देश की राजधानी से करने के बाद अब माँ –पापा के साथ स्थायी डेरा बसेरा कानपुर में है l
पढाई , रोजी रोजगार , प्यार परिवार के बीच कब कलमघसीटा ( लेखक ) बन बैठा यकीं जानिए खुद को भी नही पता . लिखना मेरे लिए जरिया है खुद से मिलने का . शुरुवात शौकिया तौर पर फेसबुकिया लेखक के रूप में हुयी , लोग पसंद करते रहे , कुछ पाठक ( हम तो सच्ची ही मानेगे ) तारीफ भी करते रहे , और फेसबुक से शुरू हुआ लेखन का सफर ब्लाग , इ-पत्रिकाओ और प्रिंट पत्रिकाओ ,समाचारपत्रो , वेबसाइट्स से होता हुआ मेरी “ पहली पुस्तक “तक आ पहुंचा है . और हाँ ! इस दौरान कुछ सम्मान और पुरुस्कार भी मिल गए . पर सब से पड़ा सम्मान मिला आप पाठको अपार स्नेह और प्रोत्साहन . “ जिस्म की बात नही है “ की हर कहानी आपकी जिंदगी का हिस्सा है . इसका हर पात्र , हर घटना जुडी हुयी है आपकी जिंदगी की किसी देखी अनदेखी डोर से . “ जिस्म की बात नही है “ की 24 कहनियाँ आयाम है हमारी 24 घंटे अनवरत चलती जिंदगी का .